मराठा आरक्षण की मांग से कैसे सरगर्म हुई महाराष्ट्र की राजनीति?
राज्य सरकार के लिए गले की फांस बन गया है मराठा आरक्षण आंदोलन। तस्वीरें: मराठा क्रांति मोर्चा
जालना जिले में मराठा समुदाय के कार्यकर्ता मनोज जारांगे द्वारा बुलाई गई भूख हड़ताल से मराठा आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है। उनकी भूख हड़ताल से मराठा आरक्षण के मुद्दे ने एक बार फिर हवा पकड़ ली है और पूरे महाराष्ट्र में इस समुदाय द्वारा मार्च निकालकर जारांगे का समर्थन किया गया है। राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनाव नज़दीक आते ही इस मांग ने ज़ोर पकड़ ली है। इस पृष्ठभूमि में मनोज जारांगे की मांग क्या है? मराठा आरक्षण की वर्तमान स्थिति क्या है? ओबीसी समुदाय की क्या भूमिका है? और इस सब में कैसे उलझ गया सत्ता पर काबिज गठबंधन और राज्य की राजनीति? आइये जानते हैं-
मराठा आरक्षण की पृष्ठभूमि क्या है?
महाराष्ट्र में मराठा एक महत्वपूर्ण समुदाय है, राज्य में जिसकी आबादी 32 प्रतिशत से अधिक बताई जाती है। यह समुदाय हमेशा राज्य की राजनीति के केंद्र में रहा है। महाराष्ट्र के गठन के बाद से 20 में से करीब आधे मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से रहे हैं। इससे हम महाराष्ट्र में इस समुदाय के प्रभुत्व को समझ सकते हैं। यह समुदाय मुख्यतः कृषि कार्य में लगा हुआ है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से बारिश की स्थिति और बदलते मौसम के कारण किसानों की हालत खराब हो गई है। नतीजा यह कि इसका असर मराठा समुदाय पर भी पड़ रहा है।
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मराठी मज़दूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने वर्ष 1981 में मुंबई में पहला मार्च निकाला था। तभी से मराठा आरक्षण की मांग की जा रही है। वर्ष 2016-18 की अवधि के दौरान इस मांग में तेज़ी आई। 'मराठा क्रांति मोर्चा' के माध्यम से पूरे महाराष्ट्र को आंदोलित किया गया। इन दो वर्षों में मराठा समुदाय ने राज्य भर में 58 मार्च निकाले थे। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी मार्च शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित किए गए थे।
इसके बाद मराठा आरक्षण की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के दूसरे चरण में कुछ जगहों पर हिंसा की घटनाएं भी हुईं। कुछ जगहों पर मराठा समुदाय के युवाओं ने आत्महत्याएं कर ली थीं। मराठा आरक्षण की मांग 42 सालों से की जा रही है। हालांकि, इस मांग पर अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाई है।
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर एक बार फिर राज्य में मार्च निकाले जा रहे हैं। फिलहाल आरक्षण के लिए आंदोलन का यह तीसरा चरण है। 29 अगस्त को जालना जिले के अंतरवाली सराती में मनोज जारांगे द्वारा बुलाई गई अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल के कारण मराठा आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ लिया है। हालांकि, मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद जारांगे ने अब अपना अनशन खत्म कर दिया है, लेकिन आंदोलन और राजनीति जारी है।
मौजूदा मांग ने कैसे उड़ा दी सरकार की नींद?
मनोज जारांगे ने मांग की है कि मराठा समुदाय को कुनबी (पिछड़ा वर्ग से जुड़ी एक जाति) प्रमाणपत्र दिया जाएं। यदि यह प्रमाणपत्र प्राप्त हो जाता है, तो मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण मिल जाएगा। देखा जाए तो राज्य सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम के तहत मराठा समुदाय को आरक्षण दिया था। हालांकि, मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया। इसके बाद मराठा समुदाय की मांग है कि हमें ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया जाए।
इसके पहले वर्ष 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एसईबीसी के तहत मराठा आरक्षण को बरकरार रखा था। हालांकि, हाई कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण की 16 फीसदी की सीमा उचित नहीं है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुसार एसईबीसी के तहत शिक्षा में मराठा समुदाय के 12; जबकि सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी आरक्षण को स्वीकार किया गया था।
मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एसईबीसी के तहत मराठा समुदाय को दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 50 फीसदी आरक्षण सीमा का उल्लंघन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मराठा आरक्षण पर पहले रोक लगाने और बाद में इसे रद्द करने के बाद तीन-चार साल से मराठा समुदाय में निराशा और आक्रोश का माहौल है।
अध्ययन के बाद राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट ने मराठा समुदाय को पिछड़ा बताया। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने गायकवाड़ आयोग की इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि मराठा समुदाय पिछड़ा नहीं है। इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिका भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। इस मामले में फिलहाल सुधार याचिका लंबित है।
सरकार की किस चूक से भड़क गया आंदोलन?
बीते 2 सितंबर को जालना में राज्य की पुलिस ने लाठियां और आंसू गैस का इस्तेमाल कर प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने की कोशिश की थी। इसके बाद पुलिस समेत कुल 40 लोग घायल हो गए थे। इस घटना के बाद राज्य भर में मराठा समुदाय आगबबूला हो गया। इस आंदोलन को पूरे राज्य से समर्थन मिलना शुरू हो गया। पुणे, सोलापुर, यवतमाल, धुले, बुलढाणा, नासिक, अमरावती जैसे जिलों में मराठा प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए।
इस घटना के बाद राज्य सरकार की कड़ी आलोचना हुई थी। मराठा प्रदर्शनकारियों की पिटाई के मामले में उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को माफी मांगनी पड़ी। इसके बावजूद मनोज जारांगे ने अपनी भूख हड़ताल जारी रखी जिससे इस आंदोलन को और धार मिल गई। राज्य के विभिन्न दलों के नेता अनशन स्थल पर जाकर जारांगे से मिलने लगे।
राज्य में बिगड़ती स्थिति को सुधारने और अपनी सियासी ज़मीन खिसकते देख 7 सितंबर को राज्य सरकार ने मराठवाड़ा के मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने का एक सरकारी निर्णय जारी कर दिया।
सुलझने की बजाय क्यों उलझ गई समस्या?
अब मराठा समुदाय की ओर से मांग की जा रही है कि मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र देकर उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ दिया जाए। हालांकि, इसके बाद ओबीसी संगठन इसके विरोध में आ गए हैं। ओबीसी जनमोर्चा संगठन के अध्यक्ष प्रकाश शेंडगे ने चेतावनी दी है कि अगर मराठा समुदाय को ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण दिया गया तो वे सड़कों पर उतरेंगे। वे मराठा आरक्षण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ओबीसी नेताओं की राय है कि मराठा समुदाय को ओबीसी वर्ग से आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। ओबीसी समुदाय को फिलहाल राज्य में 19 प्रतिशत आरक्षण मिलता है।
वर्तमान में राज्य में 13 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 7 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 19 प्रतिशत ओबीसी, 2 प्रतिशत विशेष पिछड़ा वर्ग, 3 प्रतिशत विमुक्त जनजाति, 2.5 प्रतिशत घुमंतू जनजाति, 3.5 प्रतिशत आरक्षण घुमंतू जनजाति के लिए हैं। धनगर जैसे समुदाय के लिए 3.5 प्रतिशत, जबकि वंजारी समुदाय को दो प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। इसके साथ ही, राज्य में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है, जिनकी वार्षिक आय आठ लाख से कम है।
महाराष्ट्र की राजनीति कुल मिलाकर उलझ गई है। वजह, फिलहाल मराठा समुदाय की मांग है कि उन्हें ओबीसी कैटेगरी से आरक्षण दिया जाए। इस मांग से ओबीसी वर्ग के लोगों में बेचैनी पैदा हो गई है। इस मौजूदा स्थिति के कारण महाराष्ट्र राजनीतिक रूप से मराठा और ओबीसी के बीच ध्रुवीकृत हो गया है। मराठा समुदाय कांग्रेस और राष्ट्रवादी पार्टी के साथ बना हुआ है; इसलिए ओबीसी समुदाय बीजेपी और शिवसेना का वोटर है। फिलहाल राज्य में शिवसेना और एनसीपी के बीच फूट दिख रही है। इसलिए मराठा आरक्षण का मुद्दा राजनीतिक दृष्टि से और भी जटिल हो गया है।
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