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एकतरफ़ा ‘प्यार’ को प्यार कहना कहां तक जायज़ है?

किसी लड़की पर अपना एकछत्र अधिकार समझना "तुम मेरी ना हो सकीं तो किसी और की भी नहीं हो सकती" या फिर "तू मेरी है सिर्फ़ मेरी" यह मानसिकता हमारे पितृसत्तात्मक समाज की सोच का प्रभाव है।
प्यार
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : thehealthsite

किसी लड़के का एकतरफ़ा प्यार में पड़कर किसी लड़की को मानसिक यातना देना, उस पर तेजाब फेंकना या फिर उसे जान से मार देना कहां तक उचित है? प्यार की अगर यही परिभाषा है तो यह शत प्रतिशत गलत हैl

किसी लड़की पर अपना एकछत्र अधिकार समझना "तुम मेरी ना हो सकीं तो किसी और की भी नहीं हो सकती" या फिर "तू मेरी है सिर्फ मेरी" यह मानसिकता हमारे पितृसत्तात्मक समाज की सोच का प्रभाव है जो एक लड़के को इतना दंभी बना देती है कि वह लड़की की ना बर्दाश्त नहीं कर पाता और अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है जिसके परिणामस्वरूप आए दिन ऐसी घटनाएं घटती हैं जिनको सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैंl

आपको क्या लगता है इन घटनाओं का जिम्मेदार कौन है?

लड़कों और लड़कियों की परवरिश में भेदभाव

अधिकांश परिवारों में लड़कों की परवरिश इस तरह से की जाती है वो अपनी हर बात मनवा लेते हैं चाहे सही हो या गलतl इसके विपरीत अगर लड़की वही बात बोले तो उसे मना कर दिया जाता हैl लड़कों को हर वह वस्तु उपलब्ध कराई जाती है जिसकी उसे ख्वाहिश होती है, जिस कारण लड़कों को ना सुनने की आदत नहीं होतीl आवश्यकता से अधिक महत्व मिलने की वजह से वे जिद्दी और घमंडी बन जाते हैं और अपनी बहनों पर हावी रहते हैं। परिवार में पुरुष वर्चस्व होने के कारण उनके अंदर लड़कियों को नीचा दिखाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति पनपती है और आगे चलकर वे अन्य लड़कियों को भी इशारों पर नाचने वाली कठपुतली मात्र ही समझने लगते हैं जिसका परिणाम कभी-कभी बहुत ही घातक होता हैl

क्या हमारा समाज जिम्मेदार है?

हमारे पुरुष प्रधान समाज में लड़की का अगर कोई लड़का पीछा करता है या उसे गलत नजरों से देखता है तो उस लड़के को दोषी नहीं ठहरा कर लड़की पर ही लांछन लगाए जाते हैं जिससे उस लड़के को शह मिलती हैl

लड़की को तरह तरह के जुमले सुनने को मिलते हैं जैसे की "जरूर इस लड़की ने ही लिफ्ट दी होगी वरना इसमें ऐसी क्या बात है जो अन्य लड़कियों को छोड़कर इसके पीछे पड़ा है" या फिर देखो लड़कों को लुभाने के लिए कैसे कपड़े पहनती है तो फिर इसमें लड़कों का क्या दोष, वे तो पीछे पड़ेंगे ही अगर लड़की की चाल ढाल ही ऐसी हैl

मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित ‘छपाक’ फिल्म में (जो वास्तविक घटना पर आधारित है) मालती नाम की लड़की पर जब एसिड अटैक होता है तो पुलिस इंक्वायरी में ऐसे सवाल उठाए जाते हैं जो एक शरीफ लड़की को चरित्रहीन साबित करने के लिए काफी है जैसे उसके कितने बॉयफ्रेंड हैं और मोबाइल फोन में लड़कों के नंबर क्यों है? मालती एक ऐसे आदमी के एकतरफ़ा प्यार की शिकार बन जाती है जिसे वह अपना भाई मानती हैl आप ही सोचें कितनी ओछी मानसिकता होगी उस आदमी की ऐसी लड़की पर एसिड अटैक करवाता है जो उसे भाई की तरह सम्मान देती हैl

एक लड़की जो हंसती खेलती हुई जा रही है अचानक पीछे से आकर कोई उसके चेहरे पर तेजाब डाल देता है और वह पीड़ा से कराह उठती है और चारों तरफ उसकी चीत्कार सुनकर दिल दहल उठता हैl इस दृश्य को देखकर मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई की किसी लड़की पर तेजाब फेंक कर और उसे जिंदगी भर की यातना देकर कोई प्यार का दावा करने वाला कैसे खुश रह सकता है? यह तो एक लड़की पर सरासर अत्याचार है जिसका मूल कारण पुरुष का अहंकार है जिस को संतुष्ट करने के लिए वह अमानवीय हरकत करने में लेश मात्र भी संकोच नहीं करता l

‘डर’ - एकतरफ़ा प्यार के पागलपन को प्रस्तुत करती एक फिल्म

अगर कोई लड़की किसी लड़के को पसंद नहीं करती तो जबरदस्ती उसके पीछे पड़ कर उसकी ना को हां में बदलने की नाकाम कोशिश कहां तक जायज है? 1993 में रिलीज हुई यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म "डर" जो इसी विषय को लेकर बनाई गई थी उसमें राहुल नाम का एक लड़का जो किरण नाम की लड़की को मन ही मन पागलपन की हद तक चाहता है कि मनोस्थिति को निर्देशक ने जिस प्रकार प्रस्तुत किया है उससे साफ जाहिर होता है की प्यार का दावा करने वाले यह प्रेमी जीती जागती लड़की को दुकानों में शोकेस में रखी हुई गुड़िया से अधिक कुछ नहीं समझते जो उनके दिल को भा गई और साम-दाम-दंड-भेद कोई भी रास्ता अपनाकर उसे प्राप्त करना ही उनका मकसद बन जाता है l

राहुल किरण हासिल करने के लिए उसका पीछा करता है और तरह-तरह के षड्यंत्र रचता है जिससे उस लड़की को काफी मानसिक यातना  होती है जो की एक तरफा प्यार का नकारात्मक रूप हैl प्यार का दावा करने वाले यह प्रेमी इतने हठी और मतलबी होते हैं कि इनके लिए अपनी इच्छा को पूरा करना ही सर्वोपरि है चाहे किसी दूसरे का कितना ही अहित क्यों ना हो रहा हो l

बॉलीवुड फ़िल्मों का गलत प्रभाव

कई बॉलीवुड फ़िल्मों में एकतरफ़ा प्यार को सही साबित किया जाता है जिसका हमारे समाज पर गलत प्रभाव पड़ता हैl बड़े पर्दे पर जब हमारा हीरो हीरोइन के लगातार पीछे पड़ता है और उसे प्रभावित करने के लिए कई प्रकार के हथकंडे अपनाता है तो लोगों की नजर में सुपरस्टार बन जाता है क्योंकि "प्यार और जंग में सब जायज है" ऐसा अधिकांश फिल्मों में प्रस्तुत किया जाता हैl किंतु आप ही बताएं अगर तमाम कोशिशों के बावजूद भी लड़की हां नहीं करती तो इसका क्या परिणाम होगा? इसलिए मैं इस तरह की फिल्मों के सख्त खिलाफ हूं जो समाज में लड़कों को इस बात के लिए प्रेरित करती है की "लगे रहो कभी ना कभी तो पटेगी ही" या फिर “लड़की की ना का मतलब भी हां होता है” l

सन् 2013 में रिलीज हुई आनंद एल लाल द्वारा निर्देशित बहुचर्चित फिल्म  "रांझणा" में कहानीकार द्वारा एक ऐसे लड़के कुंदन को सही साबित करने की भरपूर कोशिश की गई है जो पहली नजर में जोया नाम की लड़की से प्यार करने लगता है और उसका पीछा करना शुरू कर देता हैl जिस उम्र में बच्चे पढ़ाई और खेलकूद में व्यस्त रहते हैं और उन्हें प्यार का मतलब भी पता नहीं होता कुंदन जोया के पीछे लग जाता है जिस वजह से जोया को शहर छोड़ना पड़ता हैl जब वह शहर से वापस आती है तब भी कुंदन उसका पीछा नहीं छोड़ता और हर वो काम करता है जिससे जोया का दिल जीत सकेl जब सारी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं बुझे मन से जोया का रिश्ता उस व्यक्ति से करा देता है जिससे वह प्यार करती है पर ऐन शादी के वक्त पर पहुंच कर हंगामा कर देता है और शादी नहीं हो पातीl जिस लड़के को जोया दिलो जान से चाहती है वह मारा जाता है और जोया आत्महत्या करने की कोशिश करती हैl मेरे विचार से जोया की इस स्थिति का जिम्मेदार कुंदन है जो बर्दाश्त नहीं कर पाता की जोया उसे छोड़कर किसी अन्य हिंदू लड़के को अपनाए और तैश में आकर जोया की जिंदगी बर्बाद कर देता हैl

इस फिल्म में कहानीकार ने पूरी कोशिश की है कि कुंदन जो इस फिल्म का मुख्य हीरो है उसे गलत ना समझा जाए और दर्शक जब इस फिल्म को देखकर सिनेमा हॉल से बाहर निकले तो उनके मन में ऐसे लड़के के लिए संवेदना हो जो एकतरफ़ा प्यार में पागल होकर एक लड़की की भावनाओं से खिलवाड़ करता हैl अगर वास्तव में कोई लड़का किसी लड़की को सच्चे दिल से प्यार करता है तो वह उसकी खुशी में ही अपनी खुशी समझेगा और अगर वह किसी लड़के को प्यार करती है और उसे अपने जीवनसाथी के रूप में अपनाना चाहती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिएl

वेब सीरीज "मिर्जापुर" में एकतरफ़ा प्यार की भयानकता का प्रस्तुतीकरण

अभी हाल ही में मैंने अमेज़न प्राइम टाइम पर एक वेब सीरीज देखी जिसमें मुन्ना नाम का एक लड़का जो कॉलेज स्टूडेंट है और पहुंचा हुआ गुंडा है स्वीटी नाम की क्लासमेट के पीछे पड़ जाता है और प्यार के नाम पर स्वीटी पर अपना हक जताने लगता हैl स्वीटी के बार-बार मना करने पर भी और यह समझाने पर की और भी लड़कियां हैं तो तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो? हो सकता है तुम्हें मुझसे प्यार हो पर मुझे तुमसे प्यार नहीं है, उसके समझ में नहीं आता और जब गुड्डू नाम के लड़के से स्वीटी प्यार करने लगती है और उससे विवाह कर लेती है व उसके बच्चे की मां बनने वाली होती है तो मुन्ना अपना आपा खो बैठता है और अत्यधिक क्रोध में आकर उसको जान से मार देता है| स्वीटी को गोलियों से छलनी करने के बाद और दरिंदगी की सारी सीमाएं पार करने के बाद भी उसे जरा भी आत्मग्लानि महसूस नहीं होती जो एकतरफ़ा प्यार का अत्यधिक घिनौना रूप है l

एकतरफ़ा प्यार या महज आकर्षण?

कुछ लड़के जो कि उम्र के उस पड़ाव पर होते हैं जिसमें वह प्यार का मतलब भी नहीं जानते अगर वह किसी लड़की की तरफ आकर्षित होते हैं तो उसे ही प्यार समझ बैठते हैंl ऐसे लड़के लड़की पर अपना अधिकार समझने लगते हैं और लड़की के ना करने पर अपना आपा खो बैठते हैं जिसका परिणाम होता है की ऐसी हरकत कर बैठते हैं कि आप जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकतेl इसका जीता जागता उदाहरण निकिता तोमर ह्त्याकांड है जिसमें हरियाणा के बल्लभगढ़ में तौसीफ नाम के लड़के ने निकिता नाम की लड़की को इसलिए गोली मार दी क्योंकि उसने तौसीफ से शादी करने से इंकार कर दिया थाl लेकिन मेरे ख्याल से इस काण्ड को "लव जिहाद" का नाम देना उचित नहीं है। संयोग से अगर यही लड़का हिंदू होता तो क्या वह निकिता तोमर को बख्श देता? एक तरफा प्यार में सनकी प्रेमी अगर पागलपन में आकर किसी लड़की का मर्डर कर देता है तो इसे सांप्रदायिकता का रंग देना बिल्कुल गलत है l

आपको क्या लगता है एक या दो लड़कों को सजा दिला कर हम इस प्रकार की घटनाओं को रोक सकते हैं? मेरे विचार से इस तरह की घटनाओं को तभी रोका जा सकता है जब हमारा पुरुष प्रधान समाज लड़कों और लड़कियों में भेदभाव ना करके उन्हें समान अधिकार दे और लड़कों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि अगर कोई लड़की उनसे प्यार नहीं करती तो वे उसे अन्यथा ना लें क्योंकि प्यार स्वाभाविक रूप से होता है ना कि जोर जबरदस्ती सेl एकतरफ़ा प्यार में पड़कर या उसे प्यार का नाम देकर एक लड़की के साथ अवांछनीय हरकत करना सौ फ़ीसदी गलत है और मानसिक विकृति का परिचायक है क्योंकि प्यार हमेशा दो तरफ़ा होता है एकतरफ़ा नहीं!

(रचना अग्रवाल स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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