भयावह वायु प्रदूषण को लेकर कितनी गंभीर हैं हमारी सरकारें?
दिल्ली: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनावी रैली में भारत के वायु प्रदूषण को लेकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि चीन को देखिए, वहां की हवा कितनी दूषित है। रूस को देखिए, भारत को देखिए, वहां की हवा कितनी प्रदूषित है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए दिए गए डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान की आलोचना की जा सकती है लेकिन इससे भारत में वायु प्रदूषण की सच्चाई को बदला नहीं जा सकता है।
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह बयान ऐसे समय दिया है जब भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की हालत चिंताजनक स्थिति में है। शुक्रवार सुबह 8 बजे यह 365 दर्ज किया गया है। दिल्ली के कुछ इलाकों में तो एयर इंडेक्स 400 का आंकड़ा पार कर गंभीर श्रेणी में चला गया है। एनसीआर के शहरों की भी कमोबेश यही हालत है।
क्या हैं हालात?
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा शुक्रवार को जारी ताजा आंकड़े आने वाले समय में हालात और बदतर होने की ओर इशारा कर रहे हैं। समिति के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, राजधानी दिल्ली के आनंद विहार में वायु गुणवत्ता स्तर 387, आरकेपुरम में 333, रोहिणी में 391 और पश्चिमी दिल्ली के यह 390 जा पहुंचा है।
दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में वायु प्रदूषण बहुत खराब श्रेणी में चल रहा है। वहीं, वायु गुणवत्ता और मौसम के पूर्वानुमान पर शोध करने वाली संस्था सफर इंडिया ने चेताया है कि पड़ोसी राज्यों में पराली जलाए जाने से दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण और बढ़ सकता है। शुक्रवार यानी 23 अक्टूबर को हवा की गुणवत्ता और अधिक खराब हो सकती है।
अखबार नवभारत टाइम्स की एक खबर के मुताबिक इस साल अक्टूबर में जितनी पराली जलाई गई, उतनी पिछले कुछ सालों में नहीं जली थी। दिल्ली-एनसीआर की हवा में PM2.5 और PM10 कणों की मात्रा बढ़ गई है।
खबर के अनुसार, नासा के VIIRS सैटेलाइट ने अक्टूबर के पहले तीन हफ्तों में पंजाब-हरियाणा के भीतर पराली जलाने की 10,987 घटनाएं दर्ज की हैं। यह पिछले दो साल में इसी दौरान दर्ज डेटा का लगभग दोगुना है। यानी केंद्र और राज्य सरकारों की कोशिशों के बावजूद पराली जलाने में खास कमी नहीं आई है।
कितना बड़ा ख़तरा?
भारत में 2019 में वायु प्रदूषण से 16.7 लाख लोगों की मौत हुई है, जिनमें से एक लाख से अधिक की उम्र एक महीने से कम थी। अमेरिका के एक गैर सरकारी संगठन की तरफ से कराए गए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के मुताबिक बुधवार को हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) ने वायु प्रदूषण का दुनिया पर असर को लेकर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें बताया गया कि भारत में स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा खतरा वायु प्रदूषण है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बाहरी एवं घर के अंदर पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण के कारण 2019 में नवजातों की पहले ही महीने में मौत की संख्या एक लाख 16 हजार से अधिक थी। इन मौतों में से आधे से अधिक बाहरी वातावरण के पीएम 2.5 से जुड़ी हुई हैं और अन्य खाना बनाने में कोयला, लकड़ी और गोबर के इस्तेमाल के कारण होने वाले प्रदूषण से जुड़ी हुई हैं।’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण और हृदय एवं फेफड़ा रोग के बीच संबंध होने का स्पष्ट साक्ष्य है। एचईआई के अध्यक्ष डैन ग्रीनबाम ने कहा कि किसी नवजात का स्वास्थ्य किसी भी समाज के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होता है और इन नये साक्ष्यों से दक्षिण एशिया और अफ्रीका में नवजातों को होने वाले अधिक खतरा का पता चलता है।
‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर’ में प्रकाशित नये विश्लेषण में अनुमान जताया गया है कि नवजातों में 21 फीसदी मौत का कारण घर एवं आसपास का वायु प्रदूषण है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण अब मौत के लिए सबसे बड़ा खतरा वाला कारक बन गया है। इसके मुताबिक भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल सहित दक्षिण एशियाई देश उन शीर्ष दस राष्ट्रों में शामिल हैं जहां 2019 में पीएम 2.5 का स्तर सर्वाधिक रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन सभी देशों में 2010 से 2019 के बीच घर के बाहर पीएम 2.5 का बढ़ा हुआ स्तर महसूस किया गया।’ इसमें कहा गया कि 2010 के बाद से करीब पांच करोड़ लोग घर के अंदर वायु प्रदूषण से पीड़ित हुए हैं।
शोध के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण 2019 में विश्वभर में 67 लाख लोगों की मौत हुई। उच्च रक्तचाप, तंबाकू का सेवन और खराब आहार के बाद समय से पहले मौत का चौथा प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है।
क्या कर रही हैं सरकारें?
प्रदूषण का कहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी तबाही का कारण बन रहा है। दुर्भाग्य की बात है कि इस समस्या पर अंकुश लगाने और इसके समाधान की कोशिशों के दावों के बावजूद इसके खतरे में कमी नहीं आ रही है। इसमें सबसे बड़ी कमी राजनीतिक इच्छाशक्ति की दिख रही है।
हालात यह है कि जब वायु प्रदूषण की खतरा गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है तो केंद्र सरकार समेत तमाम राज्य सरकारें इससे निपटने के लिए फौरी कोशिश में लग जाती हैं। इस कोशिश में भी तमाम एजेंसियों, केंद्र और राज्य सरकारों में सामंजस्य का अभाव दिखता है। अभी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही प्रदूषण की रोकथाम और आंकड़ों को लेकर आपस में उलझते नजर आए थे।
इसके अलावा दिल्ली के प्रदूषण के लिए राज्य सरकार अक्सर हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाने को जिम्मेदार बताकर अपना पल्ला झाड़ लेती है। इस समस्या का हल भी पिछले कई सालों से इन राज्यों की सरकारें नहीं खोज पाई है।
ऐसे में कोरोना के चलते हालात इस बार और भी भयावह हैं। गुरुवार को एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने इसे लेकर गंभीर चेतावनी दी है। उन्होंने कहा, 'इस बात के भी सबूत हैं कि वायु प्रदूषण भी कोविड-19 के प्रसार में काफी हद तक मदद करेगा। इस पर इटली और चीन में कुछ महीनों पहले ही स्टडी की गई है।'
यानी प्रदूषण पर रोकथाम के लिए सरकारों को लफ्फाजी और आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़कर कड़े नियमों को लागू करने की जरूरत है, जिससे कि बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई जा सके।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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