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मैं नौ मस्जिदों में गया जिन्हें नष्ट कर दिया गया था, और फिर मैंने कोशिश छोड़ दी

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगा-पीड़ित इलाक़ों की मस्जिदों में जो दृश्य देखने को मिले, उनका स्वरूप तालिबानियों से लगभग मिलता जुलता है।
चाँद बाबा की मज़ार
चाँद बाबा की मज़ार अभी भी बाहर से जली हुई है

जैसे ही मैं एक उजाड़ मस्जिद से दूसरी मस्जिद के लिए जाता तो मेरे ज़हन में इतिहास की डरा देने वाली कहानियाँ उभरने लगतीं। फ़रवरी के अंतिम दिनों के बीते अड़तालीस घंटों में भीड़ हत्याएँ और लूटपाट करती रही।

मुझे याद आया कैसे तालिबान ने 2001 में अफ़ग़ानिस्तान की बामयान घाटी में गौतम बुद्ध की 6 शताब्दी पुरानी दो मूर्तियों को विस्फ़ोटकों से उड़ा दिया था। इस घटना को उन्होंने मज़हब का सहारा लेकर जायज़ ठहराया था कि इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है।

मुझे यह भी याद आया कि किस तरह इस्लामिक स्टेट नें पुरातात्विक स्थलों को तबाह करने के लिए बुलडोज़र और विस्फ़ोटक तैनात कर दिए थे जब वें उत्तरी इराक़ और सीरिया में घुसपैठ कर चुके थे। ऐसे कई उदाहरण हैं जैसे सीरिया के पलमीरास में उन्होंने उन्नीस सौ साल पुराना बालशमिन का मन्दिर मिट्टी में मिला दिया था। उन्होंने मोसुल स्थित एक मस्जिद भी उड़ा दी जहां पर यह मान्यता थी कि वहाँ पैग़ंबर यूनिस (ईसाइयों में जोनाह) दफ़्न हैं। इस्लामिक स्टेट किसी भी संत या पैग़ंबर की मान्यता के ख़िलाफ़ है। 

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(तय्यबा मस्जिद)

 मेरे ज़हन में इसी तरह की कहानियाँ चलती रहीं जब मैं और मेरा साथी पत्रकार दो स्थानीय लोगों की मदद से उन सभी सोलह मस्जिदों का जायज़ा लेने निकले जिन्हें आधिकारिक तौर पर दंगो में बर्बाद किया गया था।

हमने संकरी गलियों से होते हुए अंदर मोहल्ले में क़रीब नौ मस्जिदों को देखा और फिर मैंने कोशिश छोड़ दी।

एक भी एक अनोखी संख्या है, दो उससे कुछ कम। लेकिन जैसे जैसे हिंसक मौतों और टूटी मस्जिदों की संख्या बढ़ती जाती है वैसे वैसे उसकी उत्तरोत्तर व्याख्या करना मुश्किल हो जाता है।

अंत में आप सिर्फ़ यह कर सकते हैं कि इसका श्रेय आप उन खास लोगों को दे सकते हैं जिनका दुनिया को देखने का एक खास ढंग है। जो उन लोगों से नफ़रत करना सिखाते हैं जो अलग मान्यता रखते हैं, जिनसे उनका मन मेल नही खाता। इसी सोच ने आईएस और तालिबान को उन लोगो के ख़िलाफ़ अत्याचारी बनाया जो उनसे अलग मान्यता रखते थे और उसी सोच की बली ये दिल्ली की मस्जिदें भी चढ़ी।

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(तय्यबा मस्जिद के बाहर की वीरान सुनसान गली)

मस्जिदों पर हमला करने वालों की कहानियाँ एक जैसी हैं। दंगाइयों की भीड़, हेलमेट पहने, लाठियाँ और लोहे की रौड लिए जय श्रीराम के नारे लगाते मस्जिदों के अंदर घुसती है। वहाँ घुसकर लोग खिड़कियाँ तोड़ते हैं, कालीनों में चटाइयों में आग लगाते हैं, कुरान को फाड़ते हैं, दान-पेटियां तोड़ते हैं। गैस सिलेंडरो को फेंकते हैं ताकि धमाके से फ़र्श दीवारें सब तहस नहस हो जाएँ।

ये बहुत प्राचीन मस्जिदें नहीं हैं। ना ही कोई शिल्प कला की मिसालें। लेकिन जिस ढंग से भीड़ ने अपनी भड़ास निकाली वह बिल्कुल तालिबानी अंदाज़ था। उन्होंने अपना तिरस्कार इस तरह बयां किया जैसी ये धार्मिल स्थल उनके धर्मद्रोहियों के हों।

उत्तर पूर्वी दिल्ली का यह दृश्य क्या यह बता रहा है कि दिल्ली का भविष्य किस ओर अग्रसर है? यदि आप इस निष्कर्ष से बचना चाहते हैं तो अगर आप इन मस्जिदों को देखने जाएँ तो अपना आख़िरी विराम शिव विहार की तय्यबा मस्जिद पर लगाइये जो करावल नगर से सटी हुई है। यह आपका मानसिक संतुलन बिगड़ने नही देगी।

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सुनील प्रजापति, जिन्होंने तय्यबा मस्जिद से मुसलमानों को बचाया

रक्षक

जब नौशाद अख़्तर ने जो तय्यबा मस्जिद के इमाम हैं, ने 24 फ़रवरी की देर रात को शोरगुल सुना, उन्होंने तुरंत सुनील प्रजापति को फ़ोन लगाकर सूचना दी कि दंगे शुरू हो गए हैं।

अख़्तर 34 वर्षीय प्रजापति जी के यहाँ कभी किरायदार के तौर पर रहते थे जो उस वक़्त बिरयानी का व्यवसाय करते थे। प्रजापति जी को लगा था कि शायद कोई शादी समारोह होगा। वो अख़्तर को मज़ाक में अख़्तर जीजाजी कहते हैं।

 लेकिन जब प्रजापति अपने घर की छत पर गए तो देखते हैं कि मुख्य सड़क पर जो दुकानें हैं वो आग से जल रही हैं। उन्होंने तय किया कि वो और बाकी मुस्लिम लोग गली में पहरे पर खड़े होंगे। और वो दंगाइयों को दूर रखने में सफल रहे।

ऐसे ही फ़रवरी की 25 तारीख को क़रीब 300 लोग हेलमेट पहने दूसरे रास्ते से गली में घुस आए और मस्जिद का दरवाज़ा तोड़ दिया। अख़्तर ने बताया कि 60 मुस्लिम जिनमें 20 बच्चे और 15 महिलाएँ थीं मस्जिद में शरण लिये हुए थे। सब के सब तीसरे माले की छत पर भागे और पीछे से दरवाज़ा बंद कर लिया।और फिर भीड़ उन्हें हर मंज़िल पर तलाशती रही जब तक वो ऊपर छत तक नही पहुँच गए।

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फ़ातिमा मस्जिद और महबूब आलम

तब अख़्तर ने प्रजापति को फ़ोन किया कि "हम मार दिए जाएंगे"। तभी प्रजापति और दो अन्य स्थानीय लोग चंद्रपाल और संदीप मस्जिद के अंदर घुसे और सीढ़ियों को घेर लिया। बहुत बहस हुई, छीना झपटी हुई और प्रजापति को मुस्लिम परस्ती के ताने दिए गये।

प्रजापति ने बताया कि उन्होंने भीड़ से कहा कहा कि इमाम अख़्तर उनके जीजाजी हैं और उन्हें मारने से पहले आपको मुझे मारना होगा। प्रजापति ने कहा था, "जो लोग पवित्र मंदिरों और मस्जिदों को तोड़ सकते हैं सिर्फ़ वो ही लोगो का ख़ून कर सकते हैं।"

ये चमत्कार ही हुआ कि भीड़ उनकी बात मान गई और उसने इमाम और बाकी लोगों को सुरक्षित जाने दिया जिन्हें बाद में प्रजापति और उसके दोस्त लोनी छोड़ आये।

हालांकि मस्जिद को आग लगा दी गयी जो बाद में बुझा भी दी गयी। लेकिन 26 तारीख़ को वापस आकर उसे फिर से जला दिया गया। जिस दिन हम वहां गए गली बिल्कुल वीरान हो चुकी थी। एक अजीब सा एहसास था वहाँ। घरों को जला दिया गया था और सारा सामान लूट लिया गया था।

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(लोग जले हुए फारूकिया मदरसे में झाँकते हैं।)

प्रजापति ने बताया कि इस मोहल्ले के हिंदुओं और मुस्लिमों में काफ़ी अच्छे संबंध थे। हमलावर सब बाहर से आये थे।

लेकिन क्या पड़ोस में सब कुछ सामान्य है? मैंने पूछा।

"कुछ लोग हैं जो मुझे मुसलमानों को बचाने के लिए ताने देते हैं।"

धोखा

जब हम c ब्लॉक गली नम्बर 29 खजूरी ख़ास गये तो वहाँ बहुत से मुसलमान अपने घरों को देख रहे थे। उनके अंदर की दीवारें बिल्कुल काली हो चुकी थीं।

दिल्ली सरकार की तरफ से एक एनजीओ दंगा पीड़ित लोगों की मदद कर रहा था जिसमे दंगा पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिए फॉर्म भरवाए जा रहे थे।

गली में थोड़ा अंदर फ़ातिमा मस्जिद है जो बाकी गली की तरह 25 फरवरी को दंगे का शिकार हुई। हमलावरों ने पहले पत्थरबाज़ी की और फिर पेट्रोल बम फेंके। लोगों ने बताया कि वो घरों की छतों पर यह आस लगाए चढ़ गए कि पुलिस मदद करने आएगी जो कि आयी लेकिन काफी समय बाद।

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(मदीना मस्जिद के पास से निकल गए।)

महबूब आलम जो फ़ातिमा मस्जिद कमिटी के मुख्य सचिव हैं, मस्जिद के बाहर खड़े थे, जिसकी भीतरी दीवारें भट्टी की तरह काली पड़ चुकी थीं। उन्होंने बताया कि 24 फरवरी को जब वहाँ तनावपूर्ण स्थिति बनी तो मुस्लिम निवासियों ने सोचा कि वो किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाए लेकिन उनके मोहल्ले के हिंदुओं ने उन्हें ऐसा न करने के लिए मना लिया।

आलम ने बताया, "उन्होंने कहा कि अगर आपके साथ कुछ भी गलत होगा तो वो मिलकर सामना करेंगे। 25 तारीख़ को हमने उनसे मदद की गुहार लगाई लेकिन वो नही आए।"

"शायद वो भीड़ से डर गए होंगे?" मैंने पूछा।

उन्होंने  आवाज़ ऊँची करते हुए मेरे सवाल को दोहराया। उन्होंने एक हिंदू शख़्स के घर की तरफ़ इशारा करते हुए ज़ोर से उसका नाम लेते हुए कहा, "जब उनके पास मस्जिद को उड़ाने के लिये गैस सिलेंडर ख़त्म हो गए तो इसने ही उन्हें दो लाकर दिए।"

"क्या आप और बाकी लोग यहाँ कभी वापस आएंगे?" मैंने पूछा।

"आना ही पड़ेगा,और कहाँ जाएंगे।" लेकिन थोड़ी देर बाद वो मेरा इशारा समझ गए और बोले, "क्या आप ये कहना चाहते हैं कि मुझे उसे सार्वजनिक तौर पर धोखेबाज़ नहीं कहना चाहिए?"

मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।

बुरी तरह मारा और जलाया गया

फ़रूक़िया जामा मस्जिद करीब हज़ार वर्ग गज में फैली है। मस्जिद के पीछे एक दो मंज़िला जमीयतुल हुदा मदरसा है जिसकी तीसरी मंज़िल अभी बन रही है। शाम को मैं वहाँ गया। दरवाज़े बंद थे। एक एनजीओ टीम नुकसान का जायज़ा लेने आई हुई थी। मैंने खिड़की से देखा कि उसके शटर और ग्रिल गायब हैं और अंदर से सब कुछ बर्बाद कर डाला है।

हाजी फ़ख़रुद्दीन के मुताबिक जो जमीयतुल हुदा के अध्यक्ष हैं, मस्जिद को 25 फरवरी करीब साढ़े छः बजे नमाज़ ख़त्म होते ही निशाना बनाया। उपद्रवियों ने मस्जिद से लौट रहे लोगों पर हमला किया और उन्हें बड़ी बेरहमी से मारा गया।

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(औलिया मस्जिद की कालिख से ढके अंदरूनी दृश्य एक भयावह दृश्य हैं)

फख़रुद्दीन ने बताया कि मोहम्मद ज़ाकिर और मोहम्मद मेहताब मौके पर ही मारे गए। अरीब जो पहले मदरसे में पढ़ता था कई दिनों तक कोमा में रहा और हाल ही में मार गया। मस्जिद के इमाम मुफ्ती ताहिर, मुअज़्ज़िन जलालुद्दीन और हाजी अब्बास को कई फ्रैक्चर हुए और वो अभी अस्पताल में हैं।

उपद्रवी अगले दिन सुबह आठ बजे निकले। उन्होंने मदरसे पर हमला किया। सारे दस्तावेज़ जला दिए, CCTV कैमरे तोड़ दिए और दान पेटियों का सारा धन लूट कर ले गये।

बम फेंके गए

25 फ़रवरी रात साढ़े आठ बजे, शिव विहार की मदीना मस्जिद के इमाम मौलाना ज़ाहिद ने मस्जिद के अध्यक्ष दिलशाद को फ़ोन कर के सूचना दी कि दंगाई जय श्री राम के नारे लगाते हुए कॉलोनी की तरफ आ रहे हैं। दिलशाद ने उन्हें तुरंत बाहर निकल भागने को कहा।

उन्होंने मस्जिद को ताला लगाया और अंदर की गलियों से होते हुए मुस्तफ़ाबाद पहुँचे। दिलशाद ने मस्जिद में घुमाते हुए बताया कि अगर वो ऐसा न करता तो बचना मुश्किल था।

वहाँ का मंज़र भी बेहद परेशान कर देने वाला था। टूटी खिड़कियाँ, मज़हबी किताबों के टुकड़े, कुरान के फटे हुए पन्ने, टूटी पंखडियाँ, शराब की टूटी हुई शीशियाँ जो कि आग लगाने वाले पदार्थों से भरके फेंकी गई थी और गैस सिलेंडर के टुकड़े बिखरे हुए थे।

मदीना मस्जिद पर हमला करने वाले दंगाइयों में से कुछ लोग करीब तीन सौ मीटर दूर औलिया मस्जिद की तरफ बढ़े और रास्ते में घरों में आग लगाते और सीलेंडर फेंकते हुए निकले। एक घर की ग्राउंड फ़्लोर की छत बिल्कुल टूट गयी और बगल में एक हिस्से में एक डबल बेड सुरक्षित पड़ा था। बिल्कुल जैसे किसी युद्ध प्रभावित इलाके की कोई तस्वीर हो।

औलिया मस्जिद के अध्यक्ष गुलशन अहमद ने बताया कि वो मस्जिद के इमाम करी इरफान को लेकर भागे। मस्जिद के अंदर देखकर लग रहा था जैसे किसी ने धार्मिक किताबों ,चटाइयों की होली सी जलाई हो। वहां गैस सिलिंडर भी फेंके गए जो फटे नही, फिर भी नुकसान बहुत ज़्यादा हुआ था।

मुझे पहली मंज़िल पर ले जाया गया जो बिल्कुल काली हो चुकी थी।जब मैं बाहर निकल तो देखा कि मेरा दाये हाथ पर कालिख लगी है। शायद मैंने सीढ़ियों पर दीवार का सहारा लिया होगा।

अहमद ने बताया कि फिर उसने रात शिव विहार में नहीं बिताई।

सामंजस्य की बातें

भागीरथी विहार में जब मस्जिद का दरवाज़ा नही तोड़ पाए तो दंगाइयों ने दो खिड़कियों की ग्रिल उखाड़ डाली और जलते हुए टायर अंदर फेंके।

यहाँ पर नुकसान कम ही हुआ, शायद देखकर आपको लगे भी नहीं की यहाँ कुछ हुआ था।

मस्जिद के अध्यक्ष हाजी शमसुद्दीन कहते है कि यहाँ हिंदू और मुस्लिम दोनो साथ बैठ रहे हैं और भविष्य के बारे में सोचते रहते हैं। इसमें कोई शक नही की हमलावर बाहर से आए थे लेकिन हमारे हिन्दू बहन, भाइयों ने उन्हें समझाने या रोकने की कोशिश नही की।

मोहम्मद आरिफ ने बताया (जिन्हें हमने आधिकारिक सूची में लगे फोन नम्बर से खोजा) कि अशोक नगर में जितेंद्र और दो अन्य हिंदुओं ने जामा मस्जिद (मौला बख़्श मस्जिद) पर हमला करने जा रहे दंगाइयों का विरोध किया। जवाब में उन्होंने शर्मा के घर पर पथराव किया। आरिफ़ ने बताया कि उन्होंने वादा किया है कि मस्जिद में हुए नुकसान की मरम्मत करने में सहयोग करेंगे। और यह भी भरोसा दिलाया कि इस तरह का हमला आगे नही होने देंगे।

बाकी घटनाओं की तरह यह घटना भी काफ़ी परेशान करने वाली है। यहाँ दो बार हमला किया गया। पहली बार मस्जिद पर पथराव किया और मस्जिद परिसर में दुकानें जलाई गईं। जब एक हिन्दू पड़ोसी ने पुलिस बुलाकर पड़ोसी मुसलमानों को सुरक्षित निकलवाया तो भीड़ मस्जिद में घुस गयी। दान पेटियों से पैसे चुराए, कुरान को फाड़कर फेंका, कुरान और कालीनों में आग लगायी और पानी की पाइप लाइन तोड़ डाली।

पर्यटन स्थल

टायर मार्किट की मस्जिद गुम्बदों और मीनारों वाली उस तरह की मस्जिद नहीं है। वहाँ सिर्फ खाली जगह है जिसमें लोहे के खम्बो पर एस्बेस्टोस की चादर लगाकर बनाया गया है और उसके तीन तरफ कोई दीवार भी नही है। वहाँ ज़्यादा नुकसान नही हुआ वहाँ कुछ ऐसा वहाँ था ही नहीं। मुख्य सड़क पर स्थित टायर मार्किट में आग लगा दी गयी।कुछ नही बचा सिर्फ जली हुई दुकानों और सामान के टीलों को छोड़कर।

दोपहर में हम दो पैरा मिलिट्री के जवानों के साथ टायर मार्किट पहुँचे। प्रवेश द्वार का घेराव किया हुआ था। बैरियर के पास बच्चे, बूढ़े सब खड़े थे। फ़ोन से तस्वीरें ले रहे थे और चैट कर रहे थे।

एक नयी शुरुआत

आपको याद होगा चाँदबाग की मज़ार के हमले का वायरल वीडियो? यह नाम उन मस्जिदों की सूची में नही है। हम एक 10/8 फ़ीट के साधारण मकबरे पर रुके। दीवार का एक हिस्सा जो प्रवेश द्वार से सटा हुआ है टूटा हुआ था जहाँ एक दंगाई की वीडियो वायरल हुई थी जो वहां पेट्रोल बम फेंक रहा था।

जब हमने वहां का दौरा किया तब वो पहली बार दंगो के बाद खोला गया था। मिनाज पहलवान जो वहां का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी है उसने पुलिस पर गुंडो की मदद करने का आरोप लगाया।

मज़ार पर सम्मान व्यक्त करने और प्रार्थना करने आए ज़्यादातर लोग हिन्दू थे। पहलवान का कहना है कि यहाँ मुसलमानों से ज़्यादा हिंदुओं का आना जाना है।

यह एक विडम्बना ही है कि जबकि उनके सहधर्मी भी इस जगह का सम्मान करते हैं, उन्हीं लोगो में से तालिबानी मानसिकता के लोग उसे अपवित्र समझते हैं। शायद यही सोच इन लोगों को परिभाषित करती है।

हमने तय किया कि हम और मस्जिदों में नही जाएंगे। जैसे ही हम वापस लौटने के लिए निकले मुझे प्रजापति जी की वो बात याद आयी, "जो लोग मंदिरों और मस्जिदों को तोड़ सकते हैं शायद वही लोग ही एक दूसरे का ख़ून कर सकते हैं।" एक ठंडी सी लहर मेरे शरीर में दौड़ गयी। मैंने सोचा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली की यह घटना हमारे इतिहास की कोई नई घटना तो नहीं।

मध्ययुग में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमे एक दूसरे के धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया। लेकिन 2020 में इस घटना का होना अपने आप में किसी भयानक सपने की शुरुआत जैसा लगता है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

I Visited Nine Broken Mosques and Then I Gave Up

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