Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मैं अपने कहे हर एक शब्द पर क़ायम हूं: नादव लापिड

इज़रायली फ़िल्म निर्माता लापिड का कहना है कि वह इस बात से चकित हैं कि भारतीयों ने इस फ़िल्म 'द कश्मीर फ़ाइल्स' की उनकी आलोचना पर कई दिनों तक जुनूनी तरीक़े से चर्चा की है।
Nadav Lapid
गोवा में 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (आईएफ़एफ़आई) के समापन के दौरान बोलते हुए इज़रायली फ़िल्म निर्माता और आईएफ़एफ़आई के जूरी प्रमुख नादव लापिड। तस्वीर: पीटीआई

गोवा में हुए भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव (आईएफ़एफ़आई) में फ़िल्म 'द कश्मीर फ़ाइल्स' को लेकर इज़रायली फ़िल्म निर्माता नादव लापिड के बयान को लेकर एक बहस छिड़ गई है। यहां बोलते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें विवेक अग्निहोत्री की फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स “वल्गर प्रोपगैंडा” थी और यह एक कलात्मक प्रतियोगिता के लिए अयोग्य थी। भारत में सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा इस चिंता के बावजूद इस फ़िल्म का व्यापक तरीके प्रचार किया गया कि इससे विवाद भड़क सकता है। ये फ़िल्म नब्बे के दशक में कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन को लेकर बनाई गई है। उस समय उस क्षेत्र में आतंकवाद की शुरुआत हुई थी। भारत में आलोचकों ने भी इसे विभाजनकारी, एकतरफ़ा और राजनीति से प्रेरित सांस्कृतिक क़रार दिया है। स्वतंत्र पत्रकार दानिश बिन नबी ने हाल ही में लापिड से उनके बयान पर उठे विवाद के बारे में कुछ सवाल किया। पेश है उनके बातचीत का कुछ अंशः

दानिश बिन नबी: कई भारतीय मीडिया संस्थान एक ही तरह के रिपोर्ट चला रहे हैं कि आपने आईएफ़एफ़आई में 'द कश्मीर फ़ाइल्स' पर अपनी टिप्पणियों के लिए माफ़ी मांगी है। क्या आप अफ़सोस कर रहे हैं या आपने जो कहा है उस पर क़ायम हैं?

नादव लापिड: मैंने कहा कि फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स को लेकर मेरे बयान में हेरफेर किया गया था मानो कि मैं कश्मीर की त्रासदी को नज़रअंदाज़ कर रहा था या कम आंक कर रहा था और अगर किसी को, विशेष रूप से पीड़ितों या उनके रिश्तेदारों को तकलीफ़ हुई है तो मुझे ख़ेद है। लेकिन मैं अपने बयान में कहे गए हर शब्द पर क़ायम हूं। गुरुवार को मेरे साथी जूरी सदस्यों ने ट्वीट किया जो मैं पहले दिन से क्या कह रहा हूं। मेरा बयान पूरी जूरी की राय को दर्शाता है, न कि केवल मेरे व्यक्तिगत विचार को और यह कि हम सभी इस फ़िल्म के विज़न और इसके बारे में खुलकर बात करने की आवश्यकता को साझा करते हैं। मुझे लगता है कि यह काफ़ी अहम है, क्योंकि मैंने जो कहा उसे हेरफेर करके किसी व्यक्तिगत मामले में बदलना आसान होता है।

दानिश बिन नबी: भारत में इज़रायली राजदूत आपके ख़िलाफ़ खुलकर सामने आ गए हैं। आप इसे कैसे देखते हैं? क्या आप अपने साथी लोगों की तरफ़ से कोई धोखा महसूस करते हैं?

नादव लापिड: इज़रायली राजदूत ने मुझ पर हमला करने के लिए मेरे बयान में हेरफेर करने में अपनी भूमिका निभाई। वह वहां थे जब मैं मंच पर था और अच्छी तरह जानते थे कि मैं उसी फ़िल्म और केवल उसी फ़िल्म की आलोचना कर रहा था। चूंकि किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने मंच पर स्वीकार किया, वह फ़िल्में नहीं देखते हैं, शायद उन्हें उस क्षेत्र के बारे में बयान देने से पहले विनम्र होना चाहिए जिसमें वह अनजान हैं।

हालांकि, मुझे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा और किसी व्यक्ति के अपनी सच्चाई को व्यक्त करने के अधिकार और कर्तव्य की ग़लतफ़हमी से आश्चर्य नहीं हुआ।

दुर्भाग्य से, उनको अपने लंबे अनुभव के बावजूद, वह यह नहीं समझते हैं कि केवल अपने मत को व्यक्त करने का क्या मतलब है। वह मुझसे एक ऐसे पिता की तरह बात कर रहे थे जिनके शरारती बेटे ने अपना होमवर्क नहीं किया था। यह दुखद था।

मेरे बयान के ख़िलाफ़ कुछ भारतीय लोगों का ग़ुस्सा न के बराबर दुरुस्त था। मैं उन्हें समझ सकता हूं। लेकिन... मुझे आश्चर्य है कि क्या अब, अन्य जूरी सदस्यों द्वारा मेरे बयान के बाद जो कुछ कहा गया वह हमारा सामान्य बयान था। क्या फ्रांसीसी, स्पेनिश और अमेरिकी राजदूत अपने साथी लोगों की निंदा करेंगे। मुझे यकीन है कि वे ऐसा नहीं करेंगे। ख़ुसक़िस्मती से वे इस व्यक्ति की तुलना में बेहतर राजनयिक, अधिक ईमानदार, साहसी और कम लोकप्रिय हैं।

दानिश बिन नबी: क्या आप विस्तार से बता सकते हैं जो आपको लगता है कि 'द कश्मीर फाइल्स' प्रोपगैंडा है?

नादव लापिड: मैं इसे पहले ही एक हज़ार बार बता चुका हूं। मैं शायद ही अपनी फ़िल्मों के बारे में बात करता हूं जितना मैं इस बारे में बात करता हूं। ये फ़िल्म पूरी तरह से सपाट है; बुरी फ़िल्म बुरी होती है, और अच्छी फ़िल्म अच्छी होती है। बुरे फ़िल्म बुरे होते हैं, जबकि अच्छे अद्भुत होते हैं। यह बिना किसी संदर्भ और सस्ते सिनेमाई जोड़-तोड़ को प्रस्तुत करता है। मैं और आगे बोल सकता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि इतना काफ़ी है।

दानिश बिन नबी: किसी ख़ास कहानी को प्रचारित करने में सिनेमा कितना महत्वपूर्ण है? और इसी रह, क्या सरकार विभिन्न समूहों के बीच सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए हर फ़िल्म को क्रॉस-चेक करने के लिए बाध्य है?

नादव लापिड: मेरी राय में, सरकार की भूमिका कुछ भी वापस पाने की उम्मीद किए बिना इसका समर्थन करके सिनेमा के आवश्यक महत्व को समझना है। जिस क्षण आप शर्तों को आगे बढ़ाना शुरू करते हैं तो सब कुछ बर्बाद हो जाता है। मुझे ऐसी फ़िल्में चाहिए जो इसे बढ़ावा दे या उसे बढ़ावा दे, मुझे केवल व्यावसायिक फिल्में चाहिए।

दानिश बिन नबी: क्या आपको भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद थी?

नादव लापिड: मुझे पता था कि यह [फ़िल्म] एक संवेदनशील मामला है, लेकिन मुझे आश्चर्य है कि आपके जैसे विशाल देश में, लोग इसके बारे में तीन दिनों से जुनूनी रूप से बहस कर रहे हैं। यदि चर्चा इतनी हिंसक न होती, तो क़रीब-क़रीब प्रभावशाली होती। काश, एक तरह से इज़रायल में वे सांस्कृतिक मुद्दों के बारे में इतने चिंतित होंगे।

जैसा कि मैंने कहा है, समस्या यह है कि यह [मेरे बयान पर चर्चा] बेहद हिंसक है और वास्तविक जटिलता को व्यक्त नहीं करता है। मैं विदेशी ज़रूर हूं, लेकिन बाहर से देखने पर शायद यह किसी समाज के लिए अच्छा संकेत नहीं है जब आपके व्यक्तिपरक विश्वास को कहने का सरल कार्य इस तरह के ग़ुस्से को जन्म देता है। बेशक, यह लोगों को बात करने से डराता है।

दानिश बिन नबी: भारतीय मीडिया ने आपका पीछा किया। क्या आपको लगता है कि यहां का मीडिया निष्पक्ष और पेशेवर व्यवहार कर रहा है?

नादव लापिड: जब मुझे लगा कि मेरे बयान में हेरफेर किया गया है, तो मैंने अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए ख़ासकर टीवी पर कुछ साक्षात्कार दिए। कुछ पत्रकार पेशेवर और गंभीर थे, जबकि अन्य पत्रकार बेहद आक्रामक थे। उनकी इच्छा मेरी सच्चाई को सुनने की नहीं थी जो मैंने कहा था, बल्कि मेरे ख़िलाफ़ बहस में मुझे पस्त करने की थी। सौभाग्य से या दुर्भाग्य से मैं इज़रायल में एक आक्रामक समाज में पला-बढ़ा हूं, इसलिए मैं इस प्रकार के लोगों को जानता था। लेकिन शायद वे [भारतीय पत्रकार] कम से कम अपने एजेंडे को छिपाने के लिए कुछ प्रयास करें।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित साक्षात्कार को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

I Stand by Each and Every Word I Said: Nadav Lapid

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest