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कोविड है तो क्या महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े अन्य ज़रूरी मुद्दे छोड़ दिए जाएं?

28 मई महिला स्वास्थ्य पर अन्तराष्ट्रीय कार्यदिवस पर विशेष: पिछले 2 सालों से हम कोरोना से जूझ रहे हैं लेकिन क्या इसके चलते स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं को हमें नज़रअंदाज़ करना चाहिए।
कोविड है तो क्या महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े अन्य ज़रूरी मुद्दे छोड़ दिए जाएं?

अंतरराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य पर कार्य दिवस वर्ष 1987 में, कोस्टा रिका में WGNRR के बाद से प्रत्येक वर्ष 28 मई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण जैसे कि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य तथा अधिकारों (sexual and reproductive health and rights -SRHR) से जुड़े मुद्दों के बारें में जागरूकता बढ़ाना हैं। यह एक लम्बे संघर्ष के बाद महिला आंदोलनों के द्वारा हमें मिला है।

विश्व में हर महिला को यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों का अधिकार है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह दुनिया के किस हिस्से से है, किस उम्र की है, या उनकी जाति या धर्म क्या है। महिलाओं के प्रजनन व यौनिक स्वास्थ्य एवं अधिकार के आन्दोलन से जुड़े महिलाओं के अधिकारों की पैरोकारी करने वाले संगठन व अन्य सहयोगी दलों राज्य पर, राष्ट्र व वैश्विक स्तर पर विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है |

महिलाओं का प्रजनन व यौनिक स्वास्थ्य एवं अधिकारों जो कि मानवाधिकार का एक हिस्सा रहा है बहुत पीछे न जाएँ और पिछले 3-4 सालों में देखे तो ऐसा दिखता है कि समाज और सरकार में एजेंडा में प्रजनन अधिकारों की कोई जगह नही है और इसका हमेश ही उल्लंघन होता रहता है। सरकार का मातृत्व स्वास्थ्य स्वास्थ्य का बजट साल दर साल कम होता जा रहा है केवल योजनायें में दिखता है।

मेरे लिए यह वर्ष बीते 2020 और 2021 एक खास मायने रखता है। यह 28 मई कहीं ज्यादा महामारी दिवस ज्यादा लगाने लगा है न कि माहवारी दिवस- ऐसा लगता है कि यह केवल प्रचार और न्यूज़ खबरों के लिए ही रह गया है, और इतने वर्षों तक महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकारों के बारे में तो किसी को कुछ समझ में आया ही नहीं।

पिछले 2 सालों से हम कोरोना से जूझ रहे हैं लेकिन क्या इसके चलते अन्य स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं को हमें नज़र अंदाज़ करना चाहिए। क्या कोविड के समय महिलाओं के प्रसव होने बंद हो गए हैं, क्या अब डिलीवरी कक्ष के आवश्यकता नही है, क्या गर्भवती महिलाओं को जाँच की आवश्यकता नहीं है यह अब किसी को परिवार नियोजन सेवाओं कि ज़रूरत नहीं है।

उत्तर प्रदेश के जिले अम्बेडकर नगर, बाराबंकी व वाराणसी में मातृत्व वार्ड बंद है सिर्फ कोविड का टीकाकरण हो रहा है (वो भी पूरा नही मिल पा रहा है) जब PHC में जाकर देखा तो बेड पर कोई बिस्तर और चादर आदि कुछ नहीं था। पूछने पर स्टाफ ने बताया गया कि अभी यहाँ कुछ नहीं है, प्रसव करवाना है तो अपना सामान और चादर साफ सफाई के लिए सब लेकर आओ तो ही कुछ होगा।

लखीमपुर खीरी ब्लॉक बांकेगंज क्षेत्र की ग्राम पंचायत रामपुर ग्रंट नंबर 18 के मजरा छत्तीपुर गांव में गर्भवती महिलाओं, बच्चों की सुविधा के लिए बना एएनएम केंद्र वर्ष 2007 से बंद पड़ा है। विभाग की अनदेखी के चलते इमारत की छत से लेकर फर्श और दीवारों तक झाड़ियां उग आई हैं। गांव के लोगों का कहना है कि भवन ख़राब होने से आंगनबाड़ी, आशा वर्कर गर्भवती महिलाओं, बच्चों का टीकाकरण गांव में कहीं करती हैं। एएनएम की नियुक्ति भी वर्ष 2007 से अब तक नहीं हुई है। ब्लॉक में 24 उपकेंद्र, छह प्राथमिक अतिरिक्त केंद्र ..इनमें से अधिकतर जर्जर हैं|1 (अमर उजाला, 14 सितंबर, 2020)

आज वर्तमान में एक भयावह स्थिति भारत में दिख रही है जहाँ मजदूर परिवार पैदल, ठेला, रिक्शा, ऑटो, ट्रक आदि से अपने घर के लिए जा रहे हैं उनमें गर्भवती महिलायें व लड़कियां भी हैं। अब अंदाज़ा लगाइए की क्या महिलाओं और लड़किओं को माहवारी नहीं हो रही है या किसी को पेशाब नहीं जाना होगा? (हम सब जानते हैं की स्वच्छ भारत अभियान के बाद भी सुलभ शौचालयों की क्या स्थिति है) जब सामान्य दिनों में घरों में रहते हुए, यात्रा करते हुए, काम के दौरान बाहर रहते हुए या अन्य किसी कम के दौरान पेशाब देर तक रोकना पड़ता है और महिलाओं व लड़कियों को माहवारी के समय सेनेटरी पैड या साफ कपड़ा नही मिल पाता है।

रास्ते में प्रसव पर्व हो रहे हैं अस्पताल के बहार प्रसव हो रहे हैं और डर के लोग अस्पताल नहीं जा रहे प्रसव के लिए और घर में बिना प्रशिक्षित व्यक्ति के प्रसव कराये जा रहे हैं। कोई देखभाल नहीं सब स्वयं ही अपने आप ही सब संभाल रही हैं, तो क्या अब हम सिर्फ बातों में और ख़बरों में ही ये सारे दिवस मनाने की बात करते रहेंगे और सिर्फ एक दिन ही महिलाओं के स्वास्थ्य की याद आती है।

सबसे बड़ी बाधा अस्पतालों में OPD सेवाओं का बंद होना और निजी अस्पतालों की मनमानी है। ये अधिक से अधिक मुनाफा के चक्कर में लोगो को लोगों को लूट रहे हैं व कर्ज के बोझ में डाल रहे हैं |

इन सब के बावजूद सरकार के द्वारा जारी कई दिशा निर्देशों के बावजूद मातृत्व स्वास्थ्य और गर्भपात सेवाएं महिलाओं, विशेष रूप से गरीब महिलाओं की पहुंच से बाहर रहीं। यह उनके स्वास्थ्य और मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।

(सुनीता सिंह हेल्थ वॉच फ़ोरम की लखनऊ में सदस्य हैं और  उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य को लेकर काम करती हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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