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उत्तरी-बंगाल में COVID-19 लॉकडाउन का प्रभाव; सर्वे रिपोर्ट: एक-चौथाई परिवारों की आय पूरी तरह समाप्त

सर्वे में यह पाया गया कि लॉकडाउन के कारण अप्रैल और मई के महीनों में लगभग एक-चौथाई परिवारों की आय पूरी तरह से समाप्त हो गयी। लगभग दो-तिहाई परिवारों ने सूचित किया कि लॉकडाउन के कारण उनका कर्ज़ बढ़ गया और लगभग दो-तिहाई परिवारों के अपेक्षित मासिक आय में अगले छह महीनों में पूर्व-लॉकडाउन आय की तुलना में काफी कमी आएगी।
उत्तरी-बंगाल में COVID-19 लॉकडाउन का प्रभाव
image courtesy : The Statesman

हम लोगों ने जून महीने में पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग के छह जिलों में जनसंख्या का एक सर्वे (350 सैम्पल) किया है। इसमें रेस्पॉन्डेंट के परिवार के सदस्यों सहित कुल 1477 लोगों को शामिल किया गया है और यह सर्वे COVID-19 लॉकडाउन के प्रभाव को समझने के उद्देश्य से किया गया है।

सर्वे में यह पाया गया कि लॉकडाउन के कारण अप्रैल और मई के महीनों में लगभग एक-चौथाई परिवारों की आय पूरी तरह से समाप्त हो गयी। लगभग दो-तिहाई परिवारों ने सूचित किया कि लॉकडाउन के कारण उनका कर्ज बढ़ गया और लगभग दो-तिहाई परिवारों के अपेक्षित मासिक आय में अगले छह महीनों में पूर्व-लॉकडाउन आय की तुलना में काफी कमी आएगी।

85% से अधिक रेस्पॉन्डेंट यानी उत्तर देने वालों का मानना है कि शहरी क्षेत्रों में भी मनरेगा (MGNREGA) का विस्तार किया जाना चाहिए। 60% से अधिक परिवारों को अभी तक न तो कोई मुफ़्त गैस सिलेंडर मिला है और न ही जान धन योजना के तहत कोई आर्थिक सहायता मिली है। यह तथ्य भी सामने आया कि 10% गरीब परिवारों को वर्तमान संकट में भी मुफ्त राशन नहीं मिल रहा है।

350 घरों के हमारे सैम्पल में 289 पुरुष, 1 ट्रांसजेंडर और 60 महिलाएं हैं जिनकी उम्र 18 से 67 वर्ष के बीच है। और परिवार के सदस्यों की औसत संख्या 4.2 है। पूरे सैम्पल में 42 रेस्पॉन्डेन्ट मॉस्टर डिगरी, 53 ग्रेजुएशन, 107 रेस्पॉन्डेन्ट माध्यमिक परीक्षा पास,63 अशिक्षित और बाकी स्कूल ड्रॉप-आउट थे।

हमारे सैम्पल में 40 रेस्पॉन्डेन्ट बौद्ध, 5 ईसाई, 234 हिंदू, 70 मुस्लिम और एक मानवतावादी थे। 78 रेस्पॉन्डेन्ट OBC, 91 रेस्पॉन्डेन्ट SC, 47 रेस्पॉन्डेन्ट ST, 49 शेरशाहबदिया और शेष 85 रेस्पॉन्डेन्ट अन्य जातिगत पृष्ठभूमि से थे।

रेस्पॉन्डेन्ट मूल रूप से दार्जिलिंग, मिरिक, कलिंगपोंग, सिलीगुड़ी, दीवानगंज, मालदा, दिनहाटा, हरिश्चंद्रपुर, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दक्षिण दिनाजपुर, मयंकुरी, पर्मेखलीगंज, कूच बिहार आदि थे।

60 रेस्पॉन्डेन्ट प्रवासी मजदूर थे, जो लॉकडाउन के बाद केरल, कर्नाटक, बेंगलुरु, दिल्ली, बिहार, कोलकाता, गंगटोक आदि से उत्तर बंगाल वापस आ गए हैं। एक रेस्पॉन्डेन्ट दुबई से, एक इजरायल से और एक व्यापारी नौसेना से वापस आ गया है।

इस सर्वे में विभिन्न व्यावसायिक पृष्ठभूमि जैसे आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता, ऑटोरिक्शा चालक, बैंकर, नाई, ब्यूटीशियन, व्यापार मालिक, बढ़ई, क्लर्क, निर्माण श्रमिक, रसोइयां, कल्टीवेटर, दैनिक मजदूर, नर्तकिया, डिलीवरी बॉय, घरेलू सहायक, ड्राइवर,बिजली, कारखाने के श्रमिक, किसान, मछुआरे, मछली-फल-फूल-सब्जी बेचने वाले, कपड़ा-दुकान के मालिक, सुनार, सरकारी कर्मचारी, किराना-दुकान के मालिक, फेरीवाले, घर में रहने वाले और रिसोर्ट मालिक, होम ट्यूटर, घर बनाने वाले, होटल कर्मचारी, बीमा एजेंट, इंटरनेट-कैफे मालिक, मजदूर, वॉशर मैन, देशी शराब विक्रेता, राजमिस्त्री, मांस विक्रेता, मैकेनिक, मेडिकल शॉप के मालिक, दूधवाले, मोबाइल फोन रिपेयरिंग शॉप के मालिक, समाचार पत्र वितरक, रेस्तरां मालिक, पेंटिंग वर्कर, पैन-शॉप मालिकों, प्लंबर, राजनेता, संगठित निजी क्षेत्र के कर्मचारी, सेवानिवृत्त (सेना और अन्य) लोग, चावल-मिल श्रमिक, रिक्शा चालक, सेल्समैन, सुरक्षा गार्ड, स्व-नियोजित रोजगार, आभूषण-दुकान के मालिक, मिठाई की दुकान के मालिक, दर्जी, चाय-बागान श्रमिक, चाय उत्पादकों और विक्रेताओं, शिक्षकों, गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ता आदि को शामिल करने का प्रयास किया गया है।

लॉकडाउन से पहले 350 परिवारों की प्रति व्यक्ति आय 500 रुपये प्रति माह से 1,33,333 रुपये के बीच थी। सैम्पल जनसँख्या में वर्ग संरचना को समझने के लिए, हमने परिवारों को कम या ज्यादा समान रूप से पाँच प्रति व्यक्ति आय वर्गों में विभाजित किया है - 2500 रुपये प्रति माह से नीचे, 2500 रुपये प्रति माह या उससे ऊपर लेकिन 3500 रुपये प्रति माह से नीचे, 3500 रुपये प्रति माह या उससे ऊपर लेकिन 5000 रुपये प्रति माह से नीचे, 5000 रुपये प्रति माह से 7000 रुपये प्रति माह तक और 7000 रुपये से ऊपर प्रति व्यक्ति मासिक आय। सैम्पल घरों का लगभग एक पांचवा हिस्सा (अर्थात 70 परिवार के क़रीब) उपर्युक्त प्रत्येक आय वर्गों के अन्तर्गत आता है।

हमारे सैम्पल में 350 रेस्पॉन्डेन्ट की लॉकडाउन से पहले औसत मासिक पारिवारिक आय 22,300 रुपये थी। लॉकडाउन से पहले औसत मासिक आय पहले वर्ग के परिवारों के लिए, 9430 रुपये थी, दूसरे वर्ग के लिए 12800 रुपये, तीसरे के लिए 17400 रुपये, चौथे के लिए 21655 रुपये और पांचवे वर्ग के लिए 49100 रुपये थी। यह हमें परिवारों की स्थिति के बारे में एक समझ देता है।

198 परिवारों में से जिन्होंने अपनी आय के बारे में हमें सूचित किया 46 परिवारों ने बताया कि COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अप्रैल-मई के महीने में उनकी आय पूरी तरह समाप्त हो गयी थी। गरीब परिवारों के तीन वर्गो के लिए लॉकडाउन के कारण औसत प्रति व्यक्ति आय में हानि लगभग 57% रही है, और अपेक्षाकृत समृद्ध दो वर्गो के लिए यह हानि 43% रही है।

इसकी तुलना में 247 परिवारों के लिए जिनके बारे में हमें जानकारी प्राप्त हुई है, लॉकडाउन के दौरान औसत प्रति व्यक्ति व्यय केवल 15.5% कम हुआ है। सबसे गरीब एक-पांचवें हिस्से के परिवारों के लिए, इन दो महीनों के दौरान प्रति व्यक्ति व्यय केवल 5.5% कम हुआ क्योंकि वे मुख्य रूप से आवश्यक वस्तुओं उपभोग करते हैं। 197 रेस्पॉन्डेन्ट में से 125 (यानी 63.5%) ने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनका कर्ज़ बढ़ गया। केवल 34% रेस्पॉन्डेन्ट को (342 में से 116) अगले छह महीनों में अपनी मासिक आय बनी रहने की उम्मीद हैं, जबकि 97 रेस्पॉन्डेन्ट को अनुमान है कि अगले छह महीनों के दौरान उनके परिवार की औसत मासिक आय पूर्व-लॉकडाउन की तुलना में 55% रह जाएगी। 129 रेस्पॉन्डेन्ट को उनकी भविष्य की अपेक्षित आय के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

अतः, लगभग दो-तिहाई आबादी के मन में लॉकडाउन के बाद आय को लेकर अत्यधिक अनिश्चितता और डर बना हुआ है। 350 में से 168 रेस्पॉन्डेन्ट के पास MGNREGA जॉब कार्ड (48%) थे, लेकिन उनमें से 21 ने बताया है कि उनके जॉब कार्ड की वैधता समाप्त हो गयी है। 272 रेस्पॉन्डेन्ट में से 237 (87%) का मानना है कि शहरी क्षेत्रों में भी आखिरी उपाय के रोजगार कार्यक्रम (जैसे मनरेगा) की तत्काल आवश्यकता है। 136 रेस्पॉन्डेन्ट ने बताया है कि उनके परिवार में लॉकडाउन के दौरान COVID-19 के अलावा भी कुछ बीमारियां थी और उनमें से 120 (88%) ने बताया है कि लॉकडाउन एवं कोरोनावायरस के डर के कारण उनके उपचार में मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

केंद्र सरकार ने मार्च में पीएम गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) की घोषणा के तहत तीन ठोस वादे किए - मुफ्त राशन, मुफ्त गैस सिलेंडर और जन-धन खातों में 500 रुपये प्रति माह का प्रत्यक्ष लाभांतरण (3 महीने के लिए)। यदि हम अपने सैम्पल जनसँख्या के शीर्ष 25 परिवारों को पूर्व-लॉकडाउन प्रति व्यक्ति 12500 रु आय के साथ (या 50000रु से अधिक 4 सदस्यों के एक परिवार के लिए) छोड़ भी देते हैं तो 325 परिवारों में से 33 परिवार (10% से अधिक) ने सूचित किया है कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान कोई मुफ्त राशन नहीं मिला है। जबकि 12500 रुपये से अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले 25 रेस्पॉन्डेन्ट में से 14 रेस्पॉन्डेन्ट ने अप्रैल या मई महीनों के दौरान मुफ्त राशन प्राप्त करने की सूचना दी है।

12500 रुपये से कम प्रति व्यक्ति पूर्व-लॉकडाउन मासिक आय के साथ केवल 37% परिवारों को जन-धन खातों में पैसा मिला है। अन्य लोगों का या तो ऐसा कोई खाता नहीं है या उन्हें उन खातों में कोई पैसा नहीं मिला है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) की घोषणा के दो महीने बाद भी इस संकट की स्थिति में 65% से अधिक परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर नहीं मिला है। उत्तर बंगाल में 12500 रुपये से कम प्रति व्यक्ति मासिक आय वाले लगभग 35% परिवारों को ही मुफ्त गैस सिलेंडर मिले हैं। अतः, केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को संकट के तहत पहले से घोषित योजनाओं के कार्यान्वयन पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

अतिसंवेदनशीलता, असुरक्षा और संकट की इस स्थिति के दौरान धरातल से निम्न मुख्य मांगें सामने आ रही हैं। लोगों को मुफ्त भोजन, मुफ्त चिकित्सा सुविधा, बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी सुविधाएं, आर्थिक सहायता और कुछ सुरक्षा के साथ रोजगार की आवश्यकता है।

जैसे-जैसे कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं और डर और आशंका के कारण लॉकडाउन खोलने के बारे में लोगो की राय विभाजित है। सरकार की तरफ से उचित योजनाएँ होनी चाहिए और नीतियों और योजनाओं का धरातल पर भ्रष्टाचार मुक्त तरीके और अधिक कुशलता से उचित क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। कई प्रवासियों ने बताया है कि उन्हें MGNREGA के तहत रोजगार नहीं मिल रहा है और जॉब कार्ड प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। प्रवासी मजदूरों की स्थिति सबसे खराब है, वे सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं और अपनी अल्प बचत समाप्त होने के बाद अब वे कर्ज की जाल में फंस गए हैं। उम्मीद है कि सबसे बड़े लोकतंत्र में जिस पर हम सभी को गर्व है, सरकार इन मुद्दों पर जल्द से जल्द ध्यान देगी।

(सुरजीत दास जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के आर्थिक अध्ययन और नियोजन केंद्र में सहायक प्रोफेसर हैं। अब्दुल हन्नान सिक्किम विश्वविद्यालय गंगटोक भूगोल विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं और सबर्नी चौधरी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी, नई दिल्ली में रिसर्च फेलो हैं। अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद पूनम पाल ने किया है जो  सीईएसपी-जेएनयू में पीएचडी शोधार्थी हैं।)

लेखक डिक्शेन गोले, सुवाच घाटनी, दुलोन सरकार, हिमांगशु सेन, अनामिका रॉय और डॉ. मोहिदुर रहमान के प्रति उनके सहयोग के लिए आभारी हैं।

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