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भारत में जलवायु परिवर्तन के फ़सलों पर असर का अध्ययन किया गया

अनुसंधानकर्ताओं ने दो तरीक़ो का सुझाव दिया है जिनसे किसान अपने प्रबंधन के तरीक़ों में बदलाव ला सकते हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

वैज्ञानिकों ने 60 साल से अधिक वक्त के आंकड़ों का इस्तेमाल कर यह पता लगाया है कि दीर्घकाल तक मौसम में परिवर्तन ने कैसे भारत के तीन प्रमुख अनाज – चावल, मक्का और गेहूं, की फसलों पर असर डाला है।

अमेरिका में इलिनोइस विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पता लगाया कि किसान चावल तथा मक्का के लिए तापमान में बदलाव को अपनाने में सक्षम रहे, लेकिन गेहूं के लिए नहीं। हालांकि, वर्षा में वृद्धि से चावल की खेती बढ़ी, लेकिन इससे गेहूं तथा मक्का की फसलों पर प्रतिकूल असर पड़ा।

कृषि तथा उपभोक्ता अर्थशास्त्र की प्रोफेसर तथा इस अध्ययन की लेखिका मधु खन्ना ने कहा, ‘‘हमने यह भी पाया कि किसान अपनी रणनीतियों को विभिन्न क्षेत्रों तथा फसलों के अनुकूल ढाल रहे हैं। उदाहरण के लिए ठंडे क्षेत्रों के जिलों के मुकाबले गर्म जिलों ने बढ़ते तापमान में अधिक बेहतर प्रदर्शन किया।’’

यह अध्ययन पत्रिका ‘एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स’ में प्रकाशित हुआ है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘उच्च उत्पादन वाले क्षेत्रों में बेहतर सिंचाई सुविधाएं होती हैं और वे मानसून पर कम निर्भर रहते हैं इसलिए दीर्घकालिक और अल्पकालिक असर के बीच अंतर नगण्य है।’’

मौसम में परिवर्तन अल्पकालिक होते हैं जैसे कि गर्मी वाले दिन कभी गरज के साथ छीटें पड़ते हैं।

हालांकि, इस तरह की विविधताएं दीर्घकालिक अंतरों से अलग हो सकती है, जो जलवायु परिवर्तन का परिचय है।

अनुसंधानकर्ताओं ने दो तरीकों का सुझाव दिया है जिनसे किसान अपने प्रबंधन के तरीकों में बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने बीज की किस्मों में सुधार लाने तथा जलवायु परिर्वतन के अनुकूल तरीकों को अपनाने को लेकर किसानों को शिक्षित करने का सुझाव दिया।

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