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कोविड-19 सुरक्षा नियम लागू न हुए तो काम पर वापस जाना असंभव

मोदी सरकार का निर्णय कि फैक्टरियों का निरीक्षण नहीं होगा, काफी महंगा साबित होगा। बजाए इसके कि सरकार केवल कागज़ पर परामर्श जारी करती रहे, उसे स्वयं अपने दिशा-निर्देशों को लागू करने की पहल करनी चाहिये।
factory worker
image courtesy : RFI

लॉकडाउन के चलते जो उद्योग और कार्यालय पूरी तरह बंद थे, अब काम शुरू कर रहे हैं। श्रमिक और कर्मचारी काम पर जा तो रहे हैं, पर भयाक्रान्त होकर। आज महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें कार्यस्थल पर कोरोना संक्रमण से सुरक्षा कैस मिले? क्या सरकार ने इस दिशा में कोई सुरक्षा मानदण्ड स्थापित किये? इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टिटियूट आफॅ ऑक्युपेश्नल हेल्थ (एनआईओएच) ने संयुक्त रूप से कुछ दिशा-निर्देश तैयार किये हैं-‘बियांड कोविड-19ः कम्पेंडियम ऑन रिटर्न टू वर्कप्लेस गाइड’। इसका सार्वजनिक अवलोकन 20 जून 2020 को हुआ था।

कार्यस्थल पर सुरक्षा के कुछ दिशा-निर्देश इस प्रकार हैंः

-मालिकों को सुनिश्चित करना होगा कि पूरे स्टाफ के लिए पर्याप्त संख्या में मास्क, सैनिटाइज़र, साबुन और पानी हो।

-कार्यस्थल पर प्रवेश के समय और वापस जाते समय थर्मल स्क्रीनिंग और हाथों को सानिटाइज़ करना अनिवार्य होगा।

-अधिक इस्तेमाल होने वाले सतह और अन्य वस्तुओं को बारंबार साफ करते रहना होगा, जैसे मेज़-कुर्सी, दरवाज़े और खिड़कियां, कुंडियां व हैंडेल और रसोई व कैंटीन, शौचालय के फर्श और फिटिंग्स, टचस्क्रीन वाले समस्त उपकरण, कम्प्यूटर कीबोर्ड, अन्य उपकरण हर पाली में साफ किये जाने चाहिये।

-जो कर्मचारी हॉटस्पॉट या अधिक संक्रमण वाले इलाकों में रहते हैं, उन्हें काम पर नहीं बुलाना चाहिये।

-जिन कर्मचारियों को पुराने रोग हैं, गर्भवती महिलाएं और 60 वर्ष से अधिक आयु वाले कर्मियों को, यदि बहुत आवश्यक न हो तो कार्यस्थल पर न बुलाया जाए।

ये 107 दिशा-निर्देशों में से कुछ ही हैं, जिनका संबंध मैनुफैक्चरिंग प्लांट्स, कार्यालय, कार्यस्थल प्रबंधन, कार्यस्थल पर सुरक्षा संबंधी शिक्षण-प्रशिक्षण, कार्यस्थल पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होने, कोविड केसों का प्रबंधन, कार्यस्थल की साफ-सफाई, कीटाणुशोधन, वातानुकूलन, संवातन, व्यक्तिगत सफाई, मास्क का प्रयोग, फिजि़कल डिस्टैंसिंग, आरोग्य सेतु ऐप का प्रयोग और कार्मचारियों के लिए ‘क्या करें-क्या न करें’ के दिशा-निर्देश आदि से है।

इन दिशा-निर्देशों में सबसे महत्वपूर्ण यह बात है किः

-व्यवसायिक सुरक्षा व स्वास्थ्य तथा संक्रमण के रोकथाम के लिए प्रबंधन को पीपीई और पोशाक का प्रबंध करना प्रबंधन की जिम्मेदारी होगी। कार्यस्थल पर ऐसे तमाम प्रबंधन के लिए कर्मचारियों का पैसा खर्च नहीं होना चाहिये।

दुर्भाग्य की बात तो यह है कि यद्यपि इन्हें दिशा-निर्देश कहा जा रहा है, सही मायने में यह दस्तावेज केवल एक अकादमिक अध्ययन है, जिसे आईसीएमआर के तत्वावधान में एनआईओएच ने करवाया है। इसका स्वरूप सरकार द्वारा निर्देशित अनिवार्य मानक संचालक प्रक्रिया नहीं है।

यह उद्योगों और कार्यालयों पर लागू नहीं किया जा सकता, भले ही वे सरकारी क्यों न हों। वैसे भी आईसीएमआर एक उच्च-स्तरीय शोध केंद्र है, जिसके अधीन 28 शोध संस्थान हैं, और जिसे कोविड-19 टेस्ट किट और टेस्टिंग लैब का अनुमोदन करने का अधिकार है। गुणवत्ता की जांच के बाद वह औषधियों को भी मान्यता प्रदान करता है। पर इन्हें व्यवसायिक तौर पर लॉन्च करने का निर्णय लेने हेतु ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया अधिकृत होता है।

आईसीएमआर के अधिकारों का नियंत्रण इन सभी के वैज्ञानिक अनुमोदन तक सीमित है। वह किसी दिशा-निर्देश को लागू करवाने की ताकत नहीं रखता। न ही उसके पास यह अधिकार है कि वह उलंघन करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही कर सके।

फिर भी आईसीएमआर-एनआईओएच के द्वारा ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करने की वजह से श्रमिक-कर्मचारियों को अलग-अलग उद्योगों और कार्यालयों में इन्हें लागू कराने के लिए दबाव बनाने का अवसर मिला है।

जहां तक कोविड-19-संबंधी सरकारी कदमों को लागू करने की बात है, तो गृह मंत्रालय ने एक सशक्त समिति गठित की है और उसके निणर्य गुह मंत्रालय द्वारा आपदा प्रबंधन कानून 2005 या डिज़ास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट 2005 के प्रावधानों का हवाला देकर लागू किये जाते हैं। फिर टेस्टिंग और औषधियों के मामले नें गृह मंत्रालय ने स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय को अपने अधिकार सुपूर्द कर दिये हैं और इस मंत्रालय ने पुनः आईसीएमआर को अधिकृत किया है कि वह वैज्ञानिक तरह से टेस्ट किट्स को सत्यापित करे।

रोकथाम से संबंधित अन्य मुद्दों को लेकर गृह मंत्रालय ने 11 सशक्त समितियां गठित की हैं जिन्हें यह अधिकार दिया गया है कि वे स्वयं निर्णय लें और गृह मंत्रालय के माध्यम से उन्हें लागू करें। ग्रुप 6 को विशेष अधिकार दिये गए हैं कि वह कोविड-19 अनुक्रिया या रिस्पांस के मामलों में निजी क्षेत्र से डील करे।

आदर्श स्थिति तो यह होती कि ये सशक्त ग्रुप इन दिशा-निर्देशों को स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीड्योर के रूप में जारी करता और गुह मंत्रालय इन्हें लागू करने के लिए क्रियाविधि विकसित करता। पर मंत्रालय ने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। मोदी की गैरजिम्मेदार सरकार ने बिना किसी प्रकार के वैधानिक सुरक्षा-पद्धति के अर्थिक गतिविधियां चालू कर दी हैं।

यद्यपि मैनुफैक्चरिंग और कुछ अन्य आर्थिक गतिविधियों को 4 मई से चालू कर दिया गया था, एनडीएमए ने 9 मई को एक दस्तावेज प्रस्तुत किया जिसका विषय था ‘गाइडलाइन्स फॉर रीस्टार्टिंग मैनुफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज़ आफ्टर द लॉकडाउन’ यानि लॉकडाउन के बाद मैनुफैक्चरिंग उद्योगों को दोबारा चालू करने के संबंध में दिशा-निर्देश। 9 बिंदुओं वाले ये दिशा-निर्देश का स्वरूप भी सुझावों जैसा है क्योंकि ये बाध्यकारी नहीं हैं। यह भी केवल इसलिए लाया गया कि विसाखापटनम में गैस रिसाव दुर्घटना हो गई थी और देश भर में विरोध हो रहा था।

यह केवल काम पर लौटने वालों के लिए सावधानी हेतु बनाया गया। आज तक सरकार कार्यस्थल पर सुरक्षा को लेकर कोई और निर्देश नहीं ला सकी है। सरकार के इस गैरजिम्मेदाराना व्यवहार का परिणाम जमीनी स्तर पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।

चेन्नई में कोमस्टार एक 100 प्रतिशत निर्यात-आधारित इकाई है जिसमें 296 कर्मचारियों में से 82 कोविड संक्रमित पाए गए। यह तो मीडियम स्तर की इकाई है पर चेन्नई में एमआरएफ और ह्युनडाई जैसे बड़े उद्योगों में तक श्रमिक कोविड संक्रमित पाए गए हैं। एमआरएफ के कर्मचारियों ने बताया कि उद्योग में तीन पाली में काम कराया जा रहा था जो एसओपी के विरुद्ध है। यह उद्योग चेन्नई के रेड ज़ोन में है।

सरकार आदतन कागज पर दिशा-निर्देश जारी करती रहती है, पर जमीनी हक़ीकत क्या है? यह जानने के लिए हमने चेन्नई के मनाली-एन्नोर-थिरुवोत्रियुर औद्योगिक पट्टी के बड़े उद्योगों के कुछ कर्मचारियों से बात की। उन्होनें निम्नलिखित बातें बताईंः

क्योंकि एमआरएफ टायर्स के श्रमिक 28 मई से 13 जून तक हड़ताल पर थे, एमआरएफ यूनियन के पूर्व कार्यकारिणी सदस्य शेखर से बातचीत की गई। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, ‘उत्पादन प्रक्रिया ही ऐसी है कि सोशल डिस्टैंसिंग संभव नहीं होता। प्रत्येक ट्रक टायर का वजन 60 किलो होता है और उसे उठाने के लिए 5 श्रमिकों की जरूरत होती है। दूसरी बात कि 1050 स्थायी और 500 ठेके पर काम कर रहे श्रमिकों के हाथों से टायर गुज़रते हैं। लोडिंग के समय आपस में 2 फुट की दूरी भी बनाना मुश्किल होता है।’
 
श्रमिक हड़ताल पर क्यों गए और उन्हें क्या हासिल हुआ? शेखर ने बताया, ‘हम हड़ताल पर इसलिए गए कि हमारी कुछ मांगें थीं। मस्लन हमें पीपीई (मास्क, ग्लव्स, ओवराल आदि) मिलनी चाहिये हमने मांग की कि जब कुछ श्रमिक संक्रमित पाए गए तो सभी की टेस्टिंग होनी चाहिये। हमने अच्छी चिकित्सा की मांग की। अभी तो एमआरएफ प्रबंधन ने सुहम अस्पताल को स्वास्थ्य सेवा का ठेका दे रखा है। यहां हमें बुखार की गालियां दे दी जाती हैं और हमें घर पर क्वारंटाइन कर दिया जाता है। पर इस दौरान हमें वेतन नहीं मिलता। यदि हम टेस्ट करवाते हैं तो हमें अपने जेब से खर्च करना पड़ता है और चिकित्सा का पैसा हमें वापस नहीं मिलता यानि रीइंबर्स नहीं होता।’
 
इतना ही नहीं, उन्होंने बताया कि, ‘कुल 18 श्रमिक संक्रमित पाए गए थे। 10 अभी भी अस्पताल में हैं और केवल 4 पूरी तरह ठीक हुए। 4 घर में क्वारंटाइन में हैं। पीपीई नहीं दिये जा रहे हैं और केवल हैंड सैनिटाइज़र्स से काम चलाया जा रहा है। मशीन और जहां काम किया जाता है वे सतह सैनिटाइज़ नहीं किये जाते। हम सोशल डिस्टैंसिंग तक नहीं रख पाते, तो व्यक्तिगत साफ-सफाई से क्या लाभ? हमें खाना खाने के लिए केवल एक घंटा मिलता है और 350 श्रमिक दौड़कर हाथ धोने 10 नलों के पास जाते हैं और जहां नल है वह कमरा 10×10 फुट का है जिसके कारण भारी भीड़ लग जाती है। खाते समय भी हम सोशल डिस्टैंसिंग कैसे रखें जबकि हमें एक ही मेज़ पर आमने सामने बैठना होता हैं।

वॉशरूम को साफ रखने का काम ठेका मजदूरों का है पर लॉकडाउन के कारण और यातायात सुविधाओं के अभाव में अधिकतर आते ही नहीं। इसलिए वॉशरूम्स की सफाई दिन में एक बार ही होती है और इस्तेमाल के बाद सानिटाइज़ भी नहीं किये जाते। हड़ताल के बावजूद प्रबंधन टस-से-मस नहीं हुआ। प्रबंधन ने हड़ताल की अवधि का पगार भी काट लिया। 55 वर्ष से अधिक आयु वालों को आने से रोक दिया गया पर उन्हें छुट्टी का वेतन नहीं मिला।’

पास में कार्बोरन्डम युनिवर्सल उद्योग है, थिरुवोत्रियूर में ही। यहां यूनियन के दो पदाधिकारी संक्रमित पाए गए। सुरक्षा की मांग को लेकर 60 श्रमिकों ने ‘हड़ताल-पर-रहो’ का आह्वान किया। एक पदाधिकारी निलंबित कर दिया गया। हिंदुजा फाउंडरीज़, एन्नोर में एक कर्मी की कोविड से मौत हो गई। अशोक लेलैंड में संक्रमण नहीं फैला पर 50 वर्ष से ऊपर वालों को घर बैठा दिया गया। श्रीराम फाइबर्स में एक श्रमिक संक्रमित पाया गया। कुछ बड़े उद्योगों में मालिक मास्क और ग्लव्ज़ देते हैं पर श्रमिकों को उन्हें बार-बार धोकर इस्तेमाल करना पड़ता। छोटे और मझोले उद्योगों में तो मास्क तक नहीं दिये जाते।

सेखर कहते हैं, ‘हड़ताल पर जाने के बाद हमने श्रम विभाग से शिकायत की। बावजूद इसके कि हमने 17 दिन हड़ताल की, श्रम विभाग ने हमारी मांगों को तवज्जो नहीं दिया, न ही त्रिपक्षीय वार्ता बुलाई। उसने श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर और अनिवार्य रूप से पीपीई देने की मांग पर कोई मत नहीं रखा। चेन्नई के दक्षिण उपनगरों में मरईमलई नगर स्थित कोमस्टार टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड में जब 82 श्रमिक संक्रमित पाए गए, तभी सरकार ने कम्पनी बंद करने का निर्देश दिया। इस तरह सरकार की लापरवाही से कितनी जानें जा सकती हैं!’

मोदी सरकार का निर्णय कि फैक्टरियों का निरीक्षण नहीं होगा काफी महंगा साबित होगा। बजाए इसके कि सरकार केवल कागज़ पर परामर्श जारी करती रहे, उसे स्वयं अपने दिशा-निर्देशों को लागू करने की पहल करनी चाहिये।

(लेखक श्रम मामलों के जानकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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