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मध्य प्रदेश में अब निर्वाचित नहीं बल्कि ख़रीदी गयी सत्ता के दिन हैं

मध्य प्रदेश अब हिन्दुत्व के ‘शैतानी घोड़े’ पर सवार अपने प्रदेश की जनता को फतेह करने निकल चुका है और जनता ने भी जैसे इस नयी पारी में खुद की औक़ात समझ ली है।
 In Madhya Pradesh, now it is not the days of elected power but bought

लंबे समय तक सत्ता में बने रह जाने से पैदा होने वाला अहंकार क्या होता है और एक टिकाऊ सरकार की वास्तविकता क्या होती हैयह देखना है तो मध्य प्रदेश की तरफ रुख किया जाना चाहिए। जब अमेरिका के कैपिटोल में ट्रंप समर्थकों ने कोहराम मचाया क्योंकि उन्हें अपने नेता की हार मंजूर नहीं है और ऐसा करने को खुद उस नेता ने कहा जिसे मालूम है कि वो चुनाव हार चुका है। तब 2018 में मध्य प्रदेश में सत्ता बदली की चुनावी घटना याद आयी।

अगर ट्रंप के यहाँ लोकतान्त्रिक संस्थाएंहिंदुस्तान की तरह घुन खाई हुई न होतीं तो वह शिवराज सिंह चौहान और भजापा के मार्ग का अनुसरण करते। कुछ दिनों या महीनों के लिए जो बाइडन को सत्ता में बैठ जाने देते और बाद में डेमोक्रेट्स के निर्वाचित सदस्यों की वांछित संख्या खरीद लेते या संस्थाओं का खुलेआम उपयोग (दुरुपयोग) करके उन्हें दबाव में लाते और अपनी खोई हुई सत्ता वापस पा लेते।

उसके बाद वो उस अधूरे खेल को पूरा करते जिसके लिए जनता ने उन्हें दंडित किया था और बरास्ते निर्वाचन सत्ता से बाहर कर दिया था। इस खेल में जो सबसे महत्वपूर्ण खेल होता वो नस्लरंग और मजहब के नाम पर समाज और राष्ट्र की एकता को खंड खंड किए जाने का। तमाम मौजूदा लोकतान्त्रिक संस्थाओं को इस मंसूबे को पूरा करने के लिए उनका नितांत दुरुपयोग करते हुए इस लक्ष्य को हासिल करना और अपनी सत्ता के संरक्षण में बेरोजगार युवाओं को बाज़ाब्ता जोंबीज में बदलना। डोनाल्ड ट्रंप के मंसूबों को अमेरिका की अधिकतम जम्हूरियत पसंद नागरिकों ने हालांकि पूरा नहीं होने दियावहाँ की ऐतिहासिक संस्थाओं ने खुद का पतन होने से रोक लिया और अंतत: डोनाल्ड ट्रंप को उनकी सही जगह दिखला दी।

ट्रंप के बहाने शिवराज सिंह चौहान की याद इसलिए आना स्वाभाविक है क्योंकि अब शिवराज अपनी सत्ता की उस पारी में हैं जहां उनकी कुर्सी और उनके किए तमाम धतकर्मों को उन्हें दंड से बचाना है और इसके लिए उन्हें अपने ही दल और उसकी मातृ संस्था को हर हाल में खुश रखना है। उन्हें वो अधूरे काम पूरे करना है जो पारदर्शी जनादेश के जरिये केवल संभव नहीं थे। अब जब वो दुबारा सत्ता में लौटे हैं तो वो केवल जनादेश के बल पर नहीं लौटे हैं बल्कि खुलेआम बहुमत की तिजारत की है। यह उनके धनबल और अपने दल के शीर्ष नेतृत्व की शह पर पाई हुई सत्ता है जिसमें जनादेश का कोई महत्व नहीं है। संभव है किसी रोज़ वो खुद या उनकी सरकार का कोई नेता यह भी दे कि हमने सत्ता खरीदी हैइसमें जनता के प्रति जबावदेही के कोई माने नहीं हैं और प्रदेश की जनता को कोई हक़ नहीं है कि सरकार से सवाल पूछेइस मामले में जनता इस कदर गौण हो चुकी है कि उसने अपने जनता होने की अर्हता ही खो दी है।

यही वजह है कि मध्य प्रदेश अब हिन्दुत्व के शैतानी घोड़े पर सवार अपने प्रदेश की जनता को फतेह करने निकल चुका है और जनता ने भी जैसे इस नयी पारी में खुद की औकात समझ ली है। हाल की तमाम घटनाएँ यह बताने के लिए काफी हैं कि मध्य प्रदेश सरकार किसी भी अन्य राज्य की तुलना में हिन्दुत्व की स्थापना की दौड़ में सबसे आगे जा रहा है।

उज्जैनइंदौरमंदसौरभोपालराजगढ़ में जहां राम मन्दिर के लिए जबरन चन्दा उगाही के अभियान चरम पर हैं और इस बहाने मुसलमानों को हर रोज़ प्रताड़ित किए जाने की सरकार संरक्षित घटनाएँ सामने आ रहीं हैं बल्कि घटना होने के बाद पुलिस द्वारा चुन- चुन कर केवल मुसलमनाओं को ही उत्पीड़ित किया जा रहा है उससे लगता है कि अब शिवराज सिंह चौहान और उनके गृह व विधि मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बी.डी. शर्मा के साथ मिलकर एक ऐसे त्रिकोण रच लिया है जिसे इस अपेक्षाकृत शांत प्रदेश को गुजरात में बदलने का संकल्प ले लिए है और जो प्रधानमंत्री की मंशा से इस संकल्प से हिन्दुत्व की सिद्धी करने पर आमादा हो चुका है।

लव जिहाद के नाम पर धार्मिक स्वतन्त्रता से जुड़े कानून ने बीते पंद्रह सालों में पैदा किए जोंबीज को भी नया काम दे दिया है। हाल ही में एक धमकी पटल प्रदेश के छतरपुर जिले से सोशल मीडिया पर शाया हुआ है जिसे बजरंग दल ने शहर के तमाम मंदिर परिसरों के आस पास लगाया है। इस धमकी पटल में साफ साफ शब्दों में चेतावनी दी गयी है कि मंदिर परिसर के आस-पास अगर कोई विधर्मी लव जिहाद या नशा तथा संधिग्ध स्थिति में पाया गया तो बजरंग दल उसके खिलाफ प्रशासनिक रूप से कठोर सांवैधानिक कार्यवाही करेगा। इस धमकी पटल पर बाज़ाब्ता पूरी ज़िम्मेदारी लेते हुए इसे जारी करने वाले का नाम और उसका मोबाइल नंबर भी लिखा हुआ है। यानी कल जो काम बेनामी हो रहे थे अब सत्ता की इस नयी पारी में उन गैर-सांवैधानिक कृत्यों की ज़िम्मेदारी ली जा रही है।

जिन मंदिरों के बाहर इस तरह के धमकी पटल लगाए गए हैं उनकी दूरी पुलिस अधीक्षक कार्यालयजिला कलेक्टर के कार्यालय और सत्र न्यायालय से बमुश्किल 1 किलोमीटर के दायरे में हैं क्योंकि शहर की परिधि ही एक से डेढ़ किलोमीटर के दरमियान है। इस धमकी पटल को लगे हुए 2 दिन बीत चुके हैं लेकिन पुलिस प्रशासन की तरफ से कोई संज्ञान नहीं लिया गया है।

उल्लेखनीय है कि एक शहर के तौर पर छतरपुरबुंदेलखंड में सांस्कृतिक विविधतता और सामंजस्य का मुख्य केंद्र रहा है। इस ताने-बाने को एकतरफा रौंदने के इरादे से बीते कुछ सालों से जब से प्रदेश में भाजपा सरकार सत्तासीन है निरंतर कोशिशें हो रही हैं।

लव जिहाद’ जैसी मनगढ़ंत और काल्पनिक समस्या को रोकने के नाम पर हाल ही में प्रदेश सरकार ने एक कानून बनाया है जिसकी अमलवजावणी (क्रियान्वयन) अब इस तरह सामने आ रही है। इस पूरे मामले का दुखद पहलू यह है कि प्रशासन के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है और इसमें उसे देश की एकता तोड़ने या मज़हबी वैमनस्य फैलने का कोई आधार नहीं दिखलाई पड़ रहा है।

इससे पहले भी बीते 2 अक्टूबर को छतरपुर शहर में इन्हीं दक्षिणपंथी संगठनों ने काला दिवस मनाने की घोषणा की थी। उसके खिलाफ हालांकि कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने व्यक्तिगत हैसियत से पुलिस में रपट लिखवाई थी लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी जाने-पहचाने दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस तरह की खुलेआम धमकी और चेतावनी अब मध्य प्रदेश में आम बात होती जा रही है।

हाल ही में ग्वालियर शहर में गोडसे ज्ञान शाला का आयोजन भी इसी रूप में देखा जा सकता है। आखिर महात्मा गांधी के क़ातिल नाथूरम गोडसे के किस ज्ञान का प्रसार इस तरह के आयोजन से होगाहिंसा कानफ़रत काघृणा और वैमनस्य काइस आयोजन के खिलाफ भी किसी तरह की कार्रवाई की कोई ख़बर नहीं है।

नफ़रत और समाज में विद्वेष फैलाने वाली ऐसी घटनाओं को लेकर कांग्रेस का रुख भी स्पष्ट नहीं है। यह माना जा रहा है कि छतरपुर जिले का कांग्रेस नेतृत्व खुद शिवराज सिंह चौहान के एहसानों पर पल रहा है ऐसे में इन घटनाओं पर आँखें मूदना उनके लिए ज़्यादा सुभीते की राह है।

(लेखक पिछले क़रीब 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर काम कर रहे हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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