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प्रतिबंधों को नज़रअंदाज़ कर Bt बैंगन की वापसी का जोख़िम नहीं ले सकता भारत

वैज्ञानिकों ने GMOs पर अपने विचारों में बदलाव नहीं किया है। विज्ञान ने भी GMOs का समर्थन नहीं किया है। तो क्यों भारत सरकार Bt बैंगन को देश में लाने के लिए उतावली हो रही है।
प्रतिबंधों को नज़रअंदाज़ कर Bt बैंगन की वापसी का जोख़िम नहीं ले सकता भारत

शुरुआती प्रतिबंधों और राज्यों के कड़े प्रतिरोध को नजरंदाज करते हुए Bt बैंगन को वापस लाने की कोशिशें हो रही हैं। केरल और पश्चिम बंगाल ने खास तौर पर Bt बैंगन का कड़ा विरोध किया था। अगर Bt बैंगन को वापस लाने की यह कोशिशें कामयाब हो जाती हैं, तो यह भारत की पहली जेनेटिकली मोडिफाइड (अनुवांशिक स्तर पर बदली गई) या GM फ़सल हो जाएगी। इससे भारत में दूसरी GM फ़सलों के आने के लिए दरवाजा खुल जाएगा। भले ही इन्हें लाने के लिए बड़े स्तर पर पैसा खर्च करना पड़े। 

फिलहाल यह कहा जा रहा है कि इस बार देशी Bt बैंगन की किस्मों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि पूरे विश्व की GM तकनीक पर चंद बहुराष्ट्रीय कंपनियों, उनके सहयोगियों और उनके नीचे काम करने वालों का ही कब्ज़ा है। इसलिए जिस "स्वदेशी" GM किस्म की बात की जा रही है, वह सिर्फ़़ स्थानीयकरण का दिखावा है, जबकि इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नियंत्रण वाली GM खाद्यान्न किस्मों के भविष्य में भारत आने के दरवाजे खुल जाएंगे। 

याद दिला दें कि 9 फरवरी, 2010 को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने Bt बैंगन पर स्वास्थ्य, पर्यावरण और सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंध लगा दिया था, इस प्रतिबंध की भारत और दुनिया में सराहना हुई थी। जयराम रमेश की अध्यक्षता वाले पर्यावरण मंत्रालय ने उस वक़्त पाबंदी के लिए एक नोट में कारण गिनाए थे। नोट में लिखा गया था, "उन सभी राज्यों ने जिन्होंने Bt बैंगन पर चिंता जताते हुए मुझे पत्र लिखे थे, उन्होंने इस मामले में बेहद सावधानी बरतने की अपील की थी, क्योंकि यह हमारे संघीय ढांचे के लिए बेहद अहम था, आखिर कृषि राज्य का विषय है."

Bt बैंगन पर सबसे कड़ी प्रतिक्रिया केरल की तरफ से आई थी। राज्य ने सभी "GMO (जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गेनिज़्म) के पर्यावरणीय निष्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया था और राज्य को पूरे तौर पर GM रहित रखने का फ़ैसला लिया था।" केरल ने प्रधानमंत्री से GM फ़सलों पर 50 साल के प्रतिबंध की मांग की थी।  GMO से जो अनुवांशकीय प्रदूषण होता है, मतलब इनका प्रसार गैर-GM फ़सलों पर होता है, उसे ध्यान में रखते हुए राज्यों का यह विरोध बेहद अहम था। पर्यावरण मंत्रालय ने Bt बैंगन के मामले में इस डर को माना था और इस पर प्रतिबंध लगाया था। अपनी पाबंदी में मंत्रालय ने लिखा था, "तथ्य यह है कि बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक मत है कि Bt बैंगन बड़े पैमाने पर कई चीजों के परागण (क्रॉस पोलिनेशन) से बनाया गया है, इसके उपयोग से दूसरी किस्मों पर Bt बैंगन के संक्रमण का ख़तरा एक चिंता खड़ी कर देता है।"

बता दें भारत बैंगन का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक है, दरअसल बैंगन का जन्म ही भारत में हुआ है। "नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्स ऑफ द इंडिय काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च" ने 2010 में पर्यावरण मंत्रालय को बताया था कि ब्यूरो में 3,951 किस्में हैं और Bt बैंगन के आने से 134 समृद्ध जैवविविधता वाले जिलों पर इसका असर पड़ने की संभावना है। रमेश के नोट में कहा गया, "विविधता के नुकसान के तर्क को नजरंदाज नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब Bt कॉटन के मामले में हमने देखा था कि उसके बीजों ने गैर-Bt बीजों पर प्रभाव डाला था।" 

लेकिन बैंगन पर भारत के बाहर के वैज्ञानिकों ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। जयराम रमेश ने साल्क इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलॉजिकल स्टडी़ज़, अमेरिका के प्रोफेसर डेविड स्कूबर्ट को उद्धरित किया था, जिन्होंने मजबूती से कहा था कि भारत में गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय ख़तरों को देखते हुए Bt बैंगन को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि GMओ से निजी कंपनियों पर ज़्यादा सामाजिक और राजनीतिक निर्भरता हो जाएगी। इससे खाद्यान्न उत्पादन और उपभोग की कीमत बढ़ जाएगी। उस वक़्त सरकार को विशषज्ञों और डॉक्टरों ने सलाह दी कि मानव उपभोग के लिए GM खाद्यान्नों की अब तक ठीक ढंग से जांच नहीं हुई है, इससे कई स्वास्थ्य खतरे पैदा हो सकते हैं। इन डॉक्टरों में "डॉक्टर्स फॉर फूड एंड सेफ्टी" नेटवर्क भी शामिल था, यह पूरे भारत के 100 डॉक्टरों का एक समूह है।

बल्कि GMO को इतनी नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली कि सरकार को कहना पड़ा कि "वैज्ञानिक समुदाय के भीतर ही इस पर मत साफ नहीं है" और "राज्य सरकारों का इस पर इतना तीखा विरोध" है कि इसे लागू करने का कोई मतलब ही समझ नहीं आता। यहां तक कि नागरिक समाज संगठनों और प्रख्यात वैज्ञानिकों ने भी कई ऐसे सवाल उठाए, जिनके संतोषजनक उत्तर नहीं दिए गए। यहां GMO और Bt बैंगन के लिए जनता के नकारात्मक भावों को भी याद रखा जाना चाहिए। आखिरकार पर्यावरण मंत्रालय ने तय किया कि "भारत को एक सावधानीपूर्ण मूल्यों पर आधारित तरीका अपनाना चाहिए और Bt बैंगन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यह प्रतिबंध तब तक होना चाहिए, जब तक हमारे देश के बैंगन की समृद्ध अनुवांशकीय संपदा समेत, Bt बैंगन के मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभावों के बारे में स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययन हर तबके को संतुष्ट नहीं कर देते।"

उस वक़्त भारत पहला ऐसा देश बनने वाला था, जो अनुवांशकीय बदलावों वाली किसी सब्ज़ी को अपने यहां ला रहा था। लेकिन क्या अब स्थितियां बदल चुकी हैं और क्या Bt बैंगन लाने पर भारत में जनमत बन चुका है? ऐसा लगता तो नहीं है। 

हाल में "एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर" नाम के संगठन से जुड़ी कविता कुरुगंती ने लिखा, "बॉयोटेक प्रायोजक और प्रोत्साहक, GM बीजों और ऐसी ही तकनीकों को भारत के खाद्यान्न और कृषि क्षेत्र में लाने के लिए, छुपे तौर पर Bt बैंगन को भारत में उतारने के लिए छलावे में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।" "सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर" के डॉ जीवी रामाजानेयुलु ने इस बात पर ध्यान दिलाया है कि कैसे Bt बैंगन की जरूरत भारत में कभी स्थापित नहीं हो पाई। वह बताते हैं कि अमेरिका की ताकतवर फर्म्स ने Bt बैंगन को प्रोत्साहन दिया, लेकिन गंभीर प्रोटोकॉल उल्लंघन, पर्यावरणीय संक्रमण चिंताओं और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावी ख़तरे की चिंताएं भी निकलकर सामने आईं। 

बांग्लादेश में Bt बैंगन को लाने का सबसे तीखा विरोध करने वालों में से एक फरीदा अख़्तर ने बताया है कि कैसे इसे एक ऐसे देश पर थोप दिया गया, जिसके पास बैंगन की 248 किस्में हैं, जबकि उसे GMO किस्म की जरूरत ही नहीं है। अख़्तर ने कहा कि अब बैंगन की खराब गुणवत्ता और किसानों को वित्तीय नुकसान बड़ा मुद्दा बन चुका है। बांग्लादेश में कई किसानों ने Bt बैंगन की खेती करना छोड़ दिया है, लेकिन उन्हें इसकी खेती करने के लिए प्रोत्साहन भी दिए जा रहे हैं। जहां उन्होंने Bt बैंगन की खेती में इज़ाफा किया है, वहां उर्वरकों का उपयोग बढ़ गया। साथ में कई तरह के कीटाणुओं के हमले भी बढ़े, जिन पर काबू पाने के लिए कई तरह के कीटनाशकों के इस्तेमाल में इज़ाफा हुआ। 

जब भारत में Bt बैंगन पर तीखी बहस हो रही थी, तब राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की पूर्व उपाध्यक्षा डॉ पुष्पा एम भार्गव ने व्याख्या कर बताया था कि कैसे किसानों को GM फ़सलें लगाने से नुकसान होगा। भार्गव को सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा चिंताओं पर बनाई गई जेनेटिक एनजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी में नामित किया था। उन्होंने कहा था, "हमारे कृषि समुदाय का 84 फ़ीसदी हिस्सा छोटे और सीमांग किसानों का है, जिनके पास चार हेक्टेयर से भी कम ज़मीन है। मोंसांटो आंकड़ों के मुताबिक़, Bt बैंगन का परागकण 30 मीटर की दूरी तय कर सकता है। जिसके चलते यह आसपास के गैर-Bt खेतों में भी संक्रमण फैला सकता है। कुल मिलाकर इसका उपयोग करने के कुछ वक़्त बाद हमारे पास गैर-Bt फ़सलें नहीं होंगी, भले ही तब किसान ट्रांसजेनिक फ़सलों का इस्तेमाल करना नहीं चाहेंगे।"

वह आगे कहती हैं कि यूरोप या दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत में उत्पादों को GM के तौर पर चिन्हित करने की व्यवस्था नहीं है. भार्गव के मुताबिक़,"इन देशों में किसी भी खाद्यान्न उत्पाद, जिसमें 0.9 फ़ीसदी से ज़्यादा GM सामग्री हो, उसे अनुवांशकीय बदलाव युक्त चिन्हित करना जरूरी होता है. इसलिए GM उत्पादन के क्रम में ना तो हम अपनी सब्ज़ियों का निर्यात कर पाएंगे और ना ही GM बैंगन और गैर GM बैंगन में अपना विकल्प चुन पाएंगे." ऊपर से वह सही ही कहती हैं कि दुनिया में जैविक खाद्यान्नों की मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को अच्छे दाम हासिल होते हैं. अगर हम GMO को अपने देश में प्रवेश दे देते हैं, तो इस बाज़ार से हाथ धो बैठेंगे.

भारत में बिगड़ते कृषि हालातों का परीक्षण करते हुए भार्गव ने लिखा कि हमारे देश में GMO का आगमन "एक छोटे लेकिन ताकतवर अल्पसंख्यक तबके" की कोशिशों का परिणाम था, जिसने अपने और "बहुराष्ट्रीय औद्योगिक घरानों (अमेरिका पढ़ें), अफ़सरशाही, राजनीतिक क्षेत्र के लोगों के साथ-साथ अनैतिक और बिना मूल्यों के काम करने वाले वैज्ञानिकों और कुछ तकनीकविदों के हितों को आगे बढ़ाने का काम किया, जिनका औज़ार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता था." वह आगे चेतावनी देते हुए कहते हैं, "हमारी 60 फ़ीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी हुई है और गांवों में रहती है. इसका मतलब हुआ कि GMO के ज़रिए सिर्फ खाद्यान्न सुरक्षा पर ही नियंत्रण नहीं होगा, बल्कि इससे किसान सुरक्षा, कृषि सुरक्षा और ग्रामीण सुरक्षा पर भी नियंत्रण हासिल हो जाएगा."

Bt बैंगन का विवाद सिर्फ़ भारत का मु्ददा नहीं है, दरअसल यह जीएस फ़सलों पर चल रहे बड़े विमर्श का हिस्सा है. कई देशों के विख्यात वैज्ञानिक, जो एक स्वतंत्र विज्ञान पैनल का निर्माण करते हैं, उन्होंने GM फ़सलों के सभी पहलुओं का परीक्षण करने के बाद कहा, "यह वायदों के मुताबिक़ नतीज़े देने में नाकामयाब रहती है और खेतों में समस्याओं को बढ़ाने की दिशा में दिखाई देती है", खासकर जेनेटिक संक्रमण के मामले में, इसलिए "GM और गैर GM कृषि के बीच किसी तरह का सहअस्तित्व नहीं हो सकता." इन वैज्ञानिकों ने जो सबसे अहम बात कही, वह यह थी- "इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि हमारी सुरक्षा को लेकर कई चिंताएं उपजती हैं, अगर उन्हें नजरंदाज़ किया गया, तो इससे स्वास्थ्य और पर्यावरण को ऐसा नुकसान पहुंचाएगी, जिसकी भरपाई करना नामुमकिन होगा."

यूरोप, अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड के 17 ख्यात वैज्ञानिकों के एक दूसरे समूह ने एक रिपोर्ट में कहा कि GMO, इनके मेज़बान पौधों का अनुवांशकीय ढांचा और उनके क्रियाकलाप बदल सकता है, जिससे "एक नए प्रकार के ज़हरीले और एलर्जीयुक्त पदार्थ का निर्माण हो सकता है और पोषक गुणवत्ता में गिरावट या बदलाव आ सकता है." इतना तय है कि 2010 में जब भारत में Bt बैंगन पर प्रतिबंध लगाया गया था, तबसे अब तक सुरक्षा का भरोसा नहीं बनाया जा सका है, फिर भी भारत में इसको लाने की कोशिशें फिर शुरू हो गई हैं. ऐसा क्यों?

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो कई सामाजिक आंदोलनों के साथ जुड़े रहे हैं, यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

India Cannot Ignore Moratorium and Risks to Bring Back Bt Brinjal

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