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भारत : आपदाओं के चलते लाखों बेघर होते बच्चों का भविष्य कैसे सुधरेगा?

यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर दिन औसतन 3,059 बच्चों को विस्थापन की पीड़ा सहनी पड़ती है। और साल 2016 से 2021 के बीच ये आंकड़ा 67 लाख रहा है।
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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर साभार : Pinterest

अक्सर कहा जाता है कि जब भी आपदाएं आती हैं, महिलाओं और बच्चों को दोहरी मार दे जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट "चिल्ड्रन डिस्प्लेस्ड इन अ चेंजिंग क्लाइमेट" भी कुछ इसी ओर इशारा करती है। इस रिपोर्ट की मानें, तो दुनिया में हर दिन औसतन 20,000 बच्चे बाढ़, सूखा, तूफान जैसी आपदाओं से विस्थापित हो रहे हैं। यही नहीं रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 से 2021 के बीच दुनिया भर के 44 देशों में करीब 4.31 करोड़ बच्चों को घरों को छोड़ अपने ही देश में किसी दूसरी सुरक्षित जगह शरण लेनी पड़ी थी। भारत के मामले में ये स्थिति और खतरनाक है।

बता दें कि यूनिसेफ की इस नई रिपोर्ट के अनुसार फिलीपीन्स के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है जहां इन छह वर्षों में सबसे ज्यादा बच्चे विस्थापित हुए हैं। रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर दिन औसतन 3,059 बच्चों को विस्थापन की पीड़ा सहनी पड़ती है। और साल 2016 से 2021 के बीच ये आंकड़ा 67 लाख बच्चों का है। ये आंकड़ा जितना बड़ा है, हमारी स्थिति उतनी ही गंभीर है क्योंकि आज भी आपको देश की सड़कों पर बड़ी संख्या में गरीब बच्चे भीख मांगते आसानी से दिखाई पड़ जाते हैं। इनमें से ज्यादातर ग़रीबी के अलावा शोषण, कुपोषण और नशीले पदार्थों के सेवन के भी शिकार हैं, जिनसे बचपन में ही उनका बचपना कहीं दूर छूट गया है।

रिपोर्ट में क्या ख़ास है?

इस रिपोर्ट के बाढ़ और तूफान को बच्चों के बढ़ते विस्थापन का सबसे बड़ा कारण बताया गया है। आंकड़ों के मुताबिक इन छह वर्षों में जितने भी बच्चे विस्थापित हुए हैं उनमें से 95 फीसदी मामलों में बाढ़ और तूफान जैसी मौसमी आपदाएं ही जिम्मेवार थी। दुनिया भर में 2016 से 2021 के बीच जहां बाढ़ के चलते 1.97 करोड़ बच्चों को बेघर होना पड़ा वहीं तूफान ने 2.12 करोड़ बच्चों को विस्थापन की ओर धकेल दिया।

बाढ़ और तूफान के बाद सूखे की मार ने सबसे ज्यादा बच्चों को हाशिए पर ला खड़ा किया है। सूखे के चलते 15 देशों में करीब 13 लाख से अधिक बच्चों को आंतरिक विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है। इनमें से आधे से ज्यादा बच्चे करीब 7.3 लाख सोमालिया के थे। वहीं इथियोपिया में 3.4 लाख और अफगानिस्तान में 1.9 लाख बच्चों को इसकी वजह से अपने घरों को छोड़ना पड़ा था।

कनाडा, इजरायल और अमेरिका जैसे देशों में जंगल में लगने वाली आग 810,000 बच्चों के विस्थापन की वजह बनी। इनमें से एक तिहाई से ज्यादा मामले अकेले 2020 में दर्ज किए गए थे। सरकारी और ग़ैर-सरकारी संगठनों के कई प्रयासों के बावजूद इनकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी देखी गई।

इस रिपोर्ट के निष्कर्ष में जलवायु परिवर्तन के चलते आ रही प्राकृतिक आपदाओं को बद से बदतर होती जा रही स्थिति का असल कारण बताया गया है। इन आपदाओं और विस्थापन के चलते बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता जाहिर की गई है। क्योंकि किसी भी आपदा के बाद, बच्चों का अपने माता-पिता से अलग होना, अपने घर से बेघर होना कई और खतरों जैसे उनके शोषण, बाल तस्करी और दुर्व्यवहार को बढ़वा देता है। उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी दूर कर देता है। जिससे वो गलत आदतों में पड़ने के साथ ही कुपोषण, बीमारी और अपर्याप्त टीकाकरण का शिकार हो सकते हैं।

बच्चों को बचाने का उपाय क्या है?

इस रिपोर्ट में बच्चों की इस समस्या के समाधान के लिए सबको एक साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया गया है। भविष्य में बच्चों को इस दर्द से राहत के लिए रिपोर्ट में कुछ उपाय भी सुझाए गए हैं। साथ ही जो बच्चे फिलहाल इस विस्थापन से जूझ रहे हैं उन बच्चों और युवाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए भी सरकारों, संगठनों, के साथ-साथ निजी क्षेत्र से भी मिलकर कार्रवाई करने का आह्वान किया गया है।

रिपोर्ट में बच्चों और युवाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिए उनकी सेवाओं पर सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को जोर देने के लिए कहा गया है, तो वहीं पहले ही विस्थापित हो चुके बच्चों तक मदद पहुंचाने और उनका कल्याण सुनिश्चित करने की बात भी कही गई है।

गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के अलावा और भी कई कारण हैं, जिनसे बच्चों का बचपन छीन जाता है। इसमें गरीबी सबसे और भुखमरी सबसे अहम है। आज भी राजधानी दिल्ली के चमचमाते कनॉट प्लेस में अमीरों के जूते साफ करते आपको कई गरीब बच्चे दिख जाएंगे। यह बच्चे विकास की ओर बढ़ते भारत की की कहानियां बयां करते हैं।

भारत में बच्चों की स्थिति चिंताजनक

अगर हम अनाथ बच्चों के बालगृहों की हालत देखें तो यह और भी भयावह है। हमारे देश में 2007 में विधायी संस्था के रूप में गठित, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) के एक आंकड़े के मुताबिक भारत में इस समय लगभग 1500 गैरपंजीकृत चाइल्ड केयर संस्थान (सीसीआई) हैं। यानी वे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत रजिस्टर नहीं किए गए हैं। कुछ रिपोर्ट्स के अमुसार देश में कुल 5850 सीसीआई हैं और कुल संख्या 8000 के पार बताई जाती है।

इस डाटा के मुताबिक सभी सीसीआई में करीब दो लाख तैंतीस हजार बच्चे रखे गए हैं। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने देश में चलाए जा रहे समस्त सीसीआई को रजिस्टर कराने के आदेश दिए थे। लेकिन सवाल सिर्फ पंजीकरण का नहीं है, सवाल संस्था के फंड या ग्रांट के साथ, उस पर निरंतर निगरानी और नियंत्रण की व्यवस्था का भी है, जो मौजूदा समय में नदारद है।

हमारे देश में बच्चों की स्थिति हर मामले में काफ़ी चिंताजनक है। साल 2016 में जारी की गई यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारत सर्वाधिक बाल मृत्युदर वाले शीर्ष पांच देशों में शामिल हो जाएगा और तब दुनिया भर में पांच साल तक के बच्चों की होने वाली कुल मौतों में 17 फीसदी बच्चे भारत के ही होंगें।

वहीं बीते साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 की रिपोर्ट देखें तो भारत के बच्चों में कुपोषण की स्थिति गंभीर है। जीएचआई जिन चार पैमानों पर मापा जाता है उसमें से एक बच्चों में गंभीर कुपोषण की स्थिति भी है, जो भारत में 19.3 फ़ीसदी पाया गया है जबकि 2014 में यह 15.1 फ़ीसदी था। इसका अर्थ है कि भारत इस पैमाने में और पिछड़ा है। हमारा देश अभी भी भ्रूण हत्या, बाल व्यापार, यौन दुर्व्यवहार, लिंग अनुपात, बाल विवाह, बाल श्रम, स्वास्थ्य, शिक्षा, कुपोषण जैसी समस्याओं से ग्रसित हैं। हम आज तक अपने बच्चों को हिंसा, भेदभाव, उपेक्षा शोषण और तिरस्कार से निजात दिलाने में कामयाब नहीं हो सके हैं, ये सभी के लिए चिंताजनक है।
 

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