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भारत की बीस वर्ष की सबसे भयंकर रेल दुर्घटना: सुरक्षा के मुक़ाबले शोशेबाज़ी को प्राथमिकता

सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी समस्याओं के 275 मामले सामने आए थे, इनमें ऐसे प्रकरण जिनमें ‘प्वाइंट की ग़लत सेटिंग तथा शंटिंग ऑपरेशनों की अन्य ग़लतियां’ पायी गयी थीं, वे 84 फ़ीसद यानी 231 थे।
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फ़ोटो : PTI

तीन-तीन रेलगाडिय़ों की दुर्घटना--इसकी चपेट में शालीमार कोरोमंडल एक्सप्रेस, यशवंतपुर हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी आयी हैं--पिछले 20 साल की भारत की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना है। 7 जून को इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 288 मौतों की पुष्टि हो चुकी थी। सवाल यह है कि अब जबकि भारतीय रेलवे में सिग्नलिंग तथा एक पटरी से दूसरी पटरी पर गाडिय़ों का लाया-ले जाया जाना, स्वचालित व्यवस्था के जरिए होता है और आज से नहीं, पिछले काफी समय से होता आ रहा है, तो तीन-तीन ट्रेनों की यह दुर्घटना हुई तो कैसे?

कैसे हुई दुर्घटना?

आखिर, ऐसी दुर्घटना हो कैसे गयी? यह दुर्घटना, बालासोर के निकट, बेहनागा बाजार स्टेशन के करीब हुई। पहले हावड़ा से चलकर चेन्नई की ओर जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस, खड़ी हुई मालगाड़ी से जाकर भिड़ गयी। मेन लाइन खाली थी और उस पर सिग्नल भी हरा था, पर कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन की ओर चली गयी, जहां मालगाड़ी खड़ी हुई थी। इन सूरते हाल में ट्रेन चालक के लिए इसका कोई मौका ही नहीं था कि वह ब्रेक लगा पाता और ट्रेन को रोक पाता। यह पहली टक्कर रही। इसके बाद, दूसरी टक्कर तब हुई जब बंगलूरु से आ रही हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस से कोरोमंडल एक्सप्रेस की बेपटरी हुई बोगियां जाकर भिड़ गयीं और इस टक्कर के चलते, हावड़ा सुपरफास्ट की पिछले छोर की बेगियां बेपटरी हो गयीं। यह दूसरी टक्कर थी। करीब-करीब एक साथ दो-दो टक्करें होने तथा बोगियों के बेपटरी होने और यह सब तेज रफ्तार ट्रेनों के साथ होने का नतीजा, मौतों की बड़ी संख्या के रूप में सामने आया है। मौतों की मौजूदा संख्या ने, इसे भारतीय रेलवे के इतिहास की चौथी सबसे बड़ी दुर्घटना बना दिया है।

दुर्घटना की खबर मिलते ही बेहनागा कस्बे के लोग और रेल कर्मचारी दुर्घटना स्थल पर पहुंचे और उन्होंने ही उनसे जो भी बन पड़ा, मदद करने की तब तक कोशिश की, जब तक कि घायल यात्रियों को अस्पतालों में पहुंचाने तथा मृतकों को अलग करने के लिए, सहायता नहीं पहुंच गयी। दोनों यात्री गाडिय़ां लगभग 130 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से विरोधी दिशाओं में दौड़ रही थीं। उनके लिए मुख्य अप लाइन और मुख्य डॉउन लाइन खाली थीं और इसके चलते ये गाडिय़ां इस सेक्शन पर अधिकतम रफ्तार से जा रही थीं।

तब यह दुर्घटना हुई तो कैसे? भारतीय रेलवे का नेटवर्क, दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है और यात्री किलोमीटर के पैमाने देखें तो, यह दुनिया भर में दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है। ऐसे में क्या रेल सेक्शनों पर बचाव उपकरणों को इस तरह की दुर्घटना से बचाव नहीं कर लेना चाहिए था? तब एक रफ्तार से चलती रेलगाड़ी को, उस सेक्शन पर कैसे डाल दिया गया, जिस पर मालगाड़ी खड़ी हुई थी?

रेलगाडिय़ों का पटरी बदलना

रेलगाडिय़ां जब पटरी बदलती हैं, इस काम के लिए पटरियों से जुड़े कुछ ठोस उपकरणों, जैसे जंक्शनों तथा क्रॉसिंगों का सहारा लिया जाता है, जिनकी स्थिति को समुचित लीवरों के जरिए बदला जाता है। इंटरलॉकिंग तथा सुरक्षा व्यवस्थाओं के जरिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि इस तरह पटरियों की अदला-बदली का काम सुरक्षित तरीके से हो। लाल, हरे तथा पीले सिग्नल भी, लीवरों की स्थिति और सिग्नलिंग व्यवस्था की अनुमतियों को दर्शाते हैं। जब पटरी सुरक्षित रूप से वांछित स्थिति में पहुंच जाती है, ट्रेन चालक के लिए उपयुक्त सिग्नल दे दिए जाते हैं और लीवरों को लॉक कर दिया जाता है, जिससे जब तक संबंधित रेलगाड़ी गुजर नहीं जाए, उन्हें और इधर से उधर नहीं किया जा सके।

एक जमाने में ये लीवर हाथ से चलाए जाते थे। लेकिन, पिछले काफी समय से इनका संचालन स्वाचालित हो चुका है। पुरानी इंटरलॉकिंग तथा सिग्नलिंग व्यवस्थाएं, रिले पर आधारित होती थीं। लेकिन, अब ज्यादातर इसके लिए सॉलिड-स्टेट तथा माइक्रोप्रोसेसर आधारित प्रणालियों का उपयोग किया जाता है। इसलिए, सभी यांत्रिक लीवरों का संचालन, इंटरलॉकिंग तथा सिग्नलिंग प्रणालियों के जरिए, नियंत्रित होता है। बहरहाल, चाहे जिस भी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा हो, सभी प्रणालियों में समान स्तर की संरक्षा सुनिश्चित की जाती है। इसमें यह भी शामिल है कि प्रणाली में गड़बड़ी का संकेत मिलते ही, सिग्नल लाल हो जाता है और रेलगाडिय़ों को आगे बढऩा तब तक रुक जाता है, जब तक कि गड़बड़ी को दुरुस्त नहीं कर लिया जाता है।

प्राथमिक रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में इंटरलॉकिंग तथा सिग्नलिंग प्रणाली ने ‘सही तरीके से’ काम किया था। फिर भी पटरी के संबंधित हिस्सों की स्थिति, जिनसे यह तय होना था कि रेलगाड़ी किस पटरी पर जाएगी, जाहिर है कि रेल चालक को सिग्नल के जरिए मिल रहे संकेत से मेल नहीं खाती थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस के लिए मेन डॉउन लाइन पर सिग्नल तो ग्रीन था, लेकिन पटरी का वह हिस्सा जो रेलगाड़ी को लूप लाइन की ओर भेज सकता था, उसे मेन लाइन से हटाकर लूप लाइन की ओर ले गया और रेलगाड़ी के चालक को पता ही नहीं चला कि क्या होना चाहिए था?

लेकिन, इंटरलॉकिंग प्रणाली कैसे फेल हो गयी और उसने रेल इंजन के चालक को सही संकेत क्यों नहीं दिया। प्रेस में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा संभवत: इसलिए हुआ कि बेहनागा बाजार रेलवे स्टेशन के नजदीक, लेवल क्रॉसिंग पर एक बूम बैरियर था, जो सिग्नल के लिए दिक्कत पैदा कर रहा था। चूंकि ट्रेन को ग्रीन सिग्नल तभी मिलता जब लेवल क्रॉसिंग से बंद होने का संकेत प्राप्त होता, इस समस्या को एक शॉर्टकट से इस शर्त को धता बताने के जरिए हल करने की कोशिश की गयी होगी। ऐसा लगता है कि इस प्रक्रिया में बाकी सुरक्षा प्रबंध भी निष्प्रभावी हो गए, जो यह सुनिश्चित करते कि ट्रेन के लिए दी जा रही पटरी और सिग्नल में पूरा तालमेल हो। इसीलिए, रेलगाड़ी के चालक के लिए संकेत यह था कि मेन लाइन पर ग्रीन लाइट का अनुसरण करे, जबकि पटरियों की व्यवस्था उसकी गाड़ी को लूप लाइन पर ले जा रही थी, जिस पर मालगाड़ी खड़ी हुई थी।

षडयंत्र की खोज: ध्यान बंटाने का खेल

लेेकिन, इसकी छानबीन करने के बजाए कि गड़बड़ी कहां हुई--यह सिग्नलिंग प्रणाली के ठीक से काम नहीं करने का परिणाम था या दोषपूर्ण रख-रखाव के चलते मानवीय भूल का या नियम-कायदों का पूरी तरह से पालन नहीं किए जाने का--सोशल मीडिया में इस दुर्घटना के पीछे कोई सोची-समझी साजिश होने के एक और भी ज्यादा कुटिलतापूर्ण चर्चाओं को चलाने की कोशिश की जा रही है। इसमें सरकार के शीर्ष से आ रहे तरह-तरह के बयान मदद कर रहे हैं, ताकि रेलवे की विफलताओं की ओर से ध्यान हटाकर, षडयंत्र की कल्पनाओं की ओर मोड़ दिया जाए। रेलवे के दुर्घटना के कारणों की समुचित तरीके से जांच पूरी कर पाने से पहले ही, ‘अपराधी कौन’ की अटकलबाजियों के खेल शुरू हो चुके थे। अब सीबीआई को ‘अपराधियों’ की खोज करने के काम पर लगा दिया गया है और बलि के लिए बकरों की खोज शुरू हो गयी है। शासन की ओर से रेलवे और सीबीआई को साफ-साफ इसका इशारा दिया जा चुका है कि उन्हें बलि के बकरे खोजने हैं और उन व्यवस्थागत खामियों पर ध्यान केंद्रित नहीं करना है, जो ऐसी बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन सकती हैं।

रेल असुरक्षित: व्यवस्थागत खामियां जिम्मेदार

इस सिलसिले में भारतीय रेलवे की कुछ व्यवस्थागत खामियों पर नजर डाल लेना उपयोगी होगा, जिनकी निशानदेही नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक ने, भारतीय रेलवे में बेपटरी होने के प्रकरणों पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट (2022 की संख्या, 22) में की है। इस रिपोर्ट में चार वर्ष की अवधि, अप्रैल 2017 से मार्च 2021 के बीच सामने आये प्रकरणों की जांच की गयी है। इसमें पकड़ में आयी कुछ समस्याओं का विवरण दिया गया है। इनमें से एक यह है कि दुर्घटनाओं की बड़ी संख्या के मामलेे में, ‘‘ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट’’ को जिम्मेदार माना जा सकता है, जो उस प्रकार के सारे रख-रखाव के काम का जिम्मा संभालता है, जिसकी हमने इस तरह की दुर्घटनाओं के संभव कारण के रूप में निशानदेही की है।

सीएजी की उक्त रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी समस्याओं के 275 मामले सामने आए थे, इनमें ऐसे प्रकरण जिनमें ‘प्वाइंटों की गलत सेटिंग तथा शंटिंग ऑपरेशनों की अन्य गलतियां’ पायी गयी थीं, वे 84 फीसद यानी 231 थे। दूसरे शब्दों में इस तरह की समस्याएं से तो, जिनसे यह दुर्घटना हुई हो सकती है, भारतीय रेलवे ग्रस्त रही है। यह दूसरी बात है कि इस तरह की गड़बडिय़ों से ऐसी बड़ी दुर्घटनाएं नहीं हुई थीं, जैसी अब हो गयी है। लेकिन, यह तो इस तरह की त्रुटियों की प्रकृति का ही हिस्सा है। उनमें से ज्यादातर के चलते बड़ी दुर्घटनाएं नहीं होंगी। लेकिन, यह तो महज संयोग की बात है कि 231 बार तो ऐसी गड़बडिय़ों से कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई, लेकिन 232वीं बार में बड़ी दुर्घटना हो गयी। रेलगाडिय़ों की संरक्षा, खासतौर पर तब जबकि हम उनकी रफ्तार और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, कोई पांसे फेंकने का खेल नहीं है। इसमें तो लक्ष्य सौ फीसद संरक्षा का होना चाहिए, न कि कम या ज्यादा फीसद का।

यहीं हम इस कहानी के दूसरे महत्वपूर्ण हिस्से पर आ जाते हैं। रेल पटरियों के प्वाइंट सेट करने में और संचालन के लिए नाजुक महत्व रखने वाले उपकरणों के रख-रखाव में, इतनी सारी समस्याएं क्यों आ रही हैं? क्योंकि आज भारतीय रेलवे के पास इस तरह के अति-महत्वपूर्ण कामों तथा रख-रखाव की जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए, पर्याप्त कर्मचारी ही नहीं हैं। आज रेलवे में 3 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं और इनमें खासा बड़ा हिस्सा तकनीकी स्टाफ तथा ऑपरेटिंग स्टाफ के पदों का है--रेल चालक, गार्ड, स्टेशन स्टाफ और रख-रखाव कर्मी भी। इसका मतलब यह है कि या तो इन महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित कर्मचारी ही नहीं हैं या फिर जितने भी कर्मचारी उपलब्ध हैं, उन्हीं पर काम का बहुत ज्यादा बोझ डाला जा रहा है। दोनों ही स्थितियों में इसे दुर्घटनाओं के होने का इंतजार करते रहने का ही नुस्खा कहा जाएगा।

औंधी प्राथमिकताएं असुरक्षित चाल

लेकिन, एक ओर तो रोजमर्रा के रख-रखाव की अनदेखी की जा रही है और कर्मचारियों से लगातार सोलह-सोलह घंटे तक काम कराया जा रहा है और दूसरी ओर भारतीय रेलवे, वंदे भारत के नाम से नयी, ज्यादा रफ्तार की एक्सप्रेस ट्रेनें शुरू करने के एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य के पीछे भाग रही है। 13 मई तक, ऐसी 17 रेलगाडिय़ां चलने भी लगी थीं और 75 और गाडिय़ां 2023 के अगस्त तक शुरू किए जाने का प्रस्ताव है। इनमें से हरेक गाड़ी की लागत, 115 करोड़ रुपये है। यह उस महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना के ऊपर से है, जिससे 1,08,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से, मुंबई से अहमदाबाद को जोड़ा जाएगा। इसी सब के बीच रेलवे, अपने संरक्षा कार्यक्रम के लिए संसाधनों में कटौतियां ही कर रही है।

सीएजी की रिपोर्ट (पैरा-3.3.1-एक्जिक्यूटिव समरी) में ध्यान दिलाया गया है कि रेलवे को पांच वर्ष की अवधि में अपने संरक्षा बजट में, 20 हजार करोड़ रुपये अपने आंतरिक संसाधनों से लगाने थे और 80,000 करोड़ रुपये केंद्र सरकार के फंडों से मिलने वाली बजट सहायता में से लगाने थे। रिपोर्ट बताती है कि इस सुरक्षा बजट--राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (आरआरएसके)--के लिए फंड में रही कमी इस प्रकार थी: रेलवे के आंतरिक संसाधनों से ‘20 हजार करोड़ रुपये के कुल हिस्से में से 15,775 करोड़ रुपये (79.88 फीसद) की कमी।’ सीएजी के अनुसार इसने तो, ‘रेलवे में पूर्ण संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संसाधन मुहैया कराने के लिए आरआरएसके के गठन के मूल लक्ष्य को ही विफल कर दिया।’

दूसरे शब्दों में रेलवे ने अपने कुंजीभूत संरक्षा दायित्वों को तो अनदेखा कर दिया है और कुछ नुमाइशी परियोजनाओं के पीछे भाग रही है। यह पूरी तरह से गलत प्राथमिकताओं का मामला है। और अपनी इस बुनियादी विफलता पर पर्दा डालने के लिए अब वर्तमान शासन ने अपनी ट्रोल सेना को रेलों के संचालन स्टाफ को बदनाम करने के लिए मैदान में उतार दिया है और खुद रेलवे द्वारा घटना की समुचित जांच पूरी होने से भी पहले ही, सीबीआई को इस दुर्घटना के पीछे षडयंत्र का हाथ खोजने में लगा दिया गया है। 

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