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भारत और फ़्रांस के ट्रेड यूनियन एक जैसी लड़ाई लड़ रहे हैं

दुनिया भर की ट्रेड यूनियनों के सामने अब एक दूसरे की रणनीति के आदान-प्रदान का सही वक़्त है।
Indian and French Unions
बाएं फ्रांसीसी श्रमिक दांए भारतीय श्रमिक

फ़्रांस का आर्थिक जन-जीवन काफ़ी दिनों से पूरी तरह से अस्त-व्यस्त है, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सभी तरह के मज़दूर, शिक्षक, अस्पताल के कर्मचारी, हवाई अड्डे के कर्मचारी और हवाई यातायात नियंत्रक विभिन्न मुद्दों पर हड़ताल कर पेरिस सहित देश के मुख्य शहरों की सड़कों पर मार्च निकाल रहे हैं, विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, इन मुद्दों में पेंशन सुधार से लेकर हवाई अड्डे के निजीकरण के मुद्दे तक शामिल हैं।

इस आंदोलन से हवाई जहाज़ की उड़ानें, ट्रेनें, बसें और मेट्रो सेवाएं लगभग बंद पड़ी हैं, अस्पताल और चिकित्सा सेवाएं भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं और देश भर में स्कूल बंद हैं। पुलिस और प्रदर्शनकारी आपस में भिड़ रहे हैं, क्योंकि हड़ताल और प्रदर्शनों ने सभी प्रमुख शहरों और क़स्बों को बुरी तरह से प्रभावित किया है, जिनमें नैनटेस, रेनेस, मॉन्टपेलियर, स्ट्रासबर्ग, लिली, लियोन, ग्रेनोबल और टूलूज़ आदि मुख्य रूप से शामिल हैं।

फ़्रांसीसी किसान भी प्रदर्शनकारियों के साथ शामिल हो गए हैं। एक पखवाड़े पहले, किसानों ने सरकार की कृषि नीतियों के विरोध में पेरिस और उसके आसपास की सड़कों को अवरुद्ध कर दिया था, वे यानई किसान कहते हैं कि कृषि क्षेत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। जर्मनी और नीदरलैंड के किसानों ने भी हाल के महीनों में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन किए हैं।

सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा, जिसने कर्मचारियों और मज़दूर वर्ग को आपस में एकजुट किया है, वह है पेंशन सुधार, जिसके तहत फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन सरकार ने पेंशन फ़ंड में निजी भागीदारी की अनुमति देने का फ़ैसला किया है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लाखों कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियने इस फैंसले से नाख़ुश हैं, क्योंकि उनका मानना हैं कि उन्हें रिटायर होने के बाद लंबे समय तक काम करने या कम भुगतान का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

प्रचलित या मौजूदा फ़्रांसीसी पेंशन योजना निजी क्षेत्र में किसी भी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के पिछले 25 उच्चतम-भुगतान वाले वर्षों के काम के आधार पर पेंशन लाभों की गणना करती है और सार्वजनिक क्षेत्र में यह गणना पिछले छह महीनों के भुगतान के आधार पर तय की जाती है। इसे वर्तमान में फ़्रांस की वर्तमान प्रणाली की 42 विभिन्न पेंशन योजनाओं के ज़रीये लागू होता है, जोकि सेवानिवृत्ति और आयु में भिन्नता के साथ सरकारी और निजी नौकरियों में लागू है।

मैक्रॉन सरकार एक एकीकृत पेंशन प्रणाली लाना चाहती है और उसने संकेत भी दिया है कि वह विशाल पेंशन फंड के प्रबंधन में निजी भागीदारी की अनुमति देगा। हड़ताली फ़्रांसीसी यूनियन नेताओं का कहना है कि एक सार्वभौमिक अंक-आधारित पेंशन प्रणाली, नाविकों से लेकर वकीलों और यहां तक कि ओपेरा के कर्मचारियों और कई अन्य रोज़गार में कर्मचारियों के लिए सबसे अधिक लाभकारी पेंशन योजना को ख़त्म कर देगी।

फ़्रांसीसी मीडिया द्वारा प्रकाशित एक हालिया सर्वेक्षण ने निष्कर्ष निकाला है कि 75 प्रतिशत लोग पेंशन सुधार को आवश्यक मानते हैं, लेकिन उनमें से केवल एक तिहाई का मानना है कि मैक्रॉन सरकार उन वादों को पूरा नहीं कर पाएगी - इसका मुख्य कारण धन के प्रबंधन में निजी क्षेत्र की भूमिका को लेकर हैं।

फ़्रांसीसी पेंशन मुद्दा भारत के मुद्दे के समान है, जहां पिछले सप्ताह ही सेवानिवृत्त कर्मचारियों और पेंशनरों द्वारा दिल्ली के जंतर मंतर पर एक विशाल प्रदर्शन किया गया था, जो सेवानिवृत्ति होने के बाद से भुगतान की मांग कर रहे हैं, यह सेवानिवृत्ति के बाद उनके पिछले कुछ महीनों के दौरान की आय से जुड़ा हुआ मसला है। भारत में पेंशन की गणना इस तरह से 1995 से पहले की गई थी।

प्रदर्शनकारी पहले ही सुप्रीम कोर्ट का रुख कर चुके हैं, जो इस मामले पर विचार कर रहा है। 19 नवंबर को राज्यसभा में एक प्रश्न किया गया, कि क्या कर्मचारी पेंशन योजना या ईपीएस के तहत न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की योजना है, वित्त राज्य मंत्री ने इसका जवाब नहीं में दिया था। क्या सरकार ने योजना में अपना योगदान बढ़ाने की योजना बनाई है, मंत्री ने फिर से कहा, "नहीं, सर!"

फ़्रांस में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा मैक्रॉन सरकार की योजना प्रमुख हवाई अड्डों के निजीकरण का भी है। फ़्रांसीसी हवाईअड्डे के ऑपरेटर, एडीपी के संभावित निजीकरण पर जनमत संग्रह के लिए एक याचिका पर करीब एक मिलियन यानि 10 लाख से अधिक हस्ताक्षर हो चुके हैं। हस्ताक्षरकर्ता इस मुद्दे पर एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह चाहते हैं, और हालांकि जनमत संग्रह कराने के लिए उनकी संख्या अभी कम है और आवश्यक सीमा से दूर है, लेकिन फिर भी वे सरकार पर दबाव बनाने में सक्षम रहे हैं।

फ़्रांसीसी क़ानून के तहत, एडीपी के निजीकरण को अवरुद्ध किया जा सकता है यदि पंजीकृत फ्रांसीसी मतदाताओं में से 10 प्रतिशत या 4.7 मिलियन लोग अगले वर्ष मार्च तक याचिका पर हस्ताक्षर कर देते हैं, जिसके लिए अभी भी एक लंबा सफ़र होना है।

मैक्रोन ने 2017 में सत्ता में आते ही पहले दिन से ही राज्य में बिक्री की लहर शुरू कर दी थी और ADP का निजीकरण इस योजना का हिस्सा है। सरकार वर्तमान बाजार की कीमतों पर लगभग अपनी 50.6 प्रतिशत की हिस्सेदारी यानि 8.8 अरब यूरो (बिलियन यूरो (9.7 बिलियन डॉलर) मूल्य के एडीपी शेयर को या उसके कुछ कुछ हिस्से को बेचने की योजना है। एडीपी समूह पेरिस के चार्ल्स डी गॉल और ओरली हवाई अड्डों का संचालन करता है।

राज्य के स्वामित्व को त्यागने की योजना के ख़िलाफ़ राजनेताओं ने भी आलोचना की है, जो सरकार पर देश की मूल्यवान और रणनीतिक राष्ट्रीय संपत्ति को बेचने का आरोप लगा रहे हैं। एडीपी के निजीकरण का विरोध हालिया विरोध प्रदर्शनों की रैली में से एक था, जिसमें पहले पीले बनियान प्रदर्शन शामिल थे, जो कि जीवन में आ रही उच्च लागत के खिलाफ एक संघर्ष के रूप में शुरू हुए थे।

इसी तरह से भारत में भी हवाई अड्डों के कर्मचारी, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन या एनडीए सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के हवाईअड्डा प्राधिकरण (एएआई) द्वारा संचालित हवाई अड्डों को निजी हाथों में सौंपने के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है – सरकार के ये फ़ैसले ख़ासतौर पर निजी क्षेत्र के लिए बड़े लाभदायक हैं।

इस साल 1 दिसंबर के बाद विरोध प्रदर्शन तब तेज हो गया जब एएआई ने सिफ़ारिश की कि केंद्र अमृतसर, वाराणसी, भुवनेश्वर, इंदौर, रायपुर और त्रिची के हवाई अड्डों का निजीकरण करे। सार्वजनिक-निजी भागीदारी या पीपीपी मॉडल के तहत भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, मंगलुरु, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी में छह हवाई अड्डों का निजीकरण करने के महीनों बाद यह सिफारिश की थी, जहां निजी पार्टियों को हवाई अड्डों के संचालन, प्रबंधन और विकास के लिए अनुबंधित किया जाएगा।

5 सितंबर को एक बैठक में, एएआई बोर्ड ने अमृतसर, वाराणसी, भुवनेश्वर, इंदौर, रायपुर और त्रिची में छह और हवाई अड्डों के निजीकरण का निर्णय लिया। एएआई नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत काम करता है और 100 से अधिक हवाई अड्डों का मालिक है और इसका प्रबंधन करता है। फरवरी में, हवाई अड्डे के निजीकरण के पहले दौर में, गुजरात स्थित अडानी समूह ने भारी मार्जिन के साथ बोली जीतकर सभी छह के लिए अनुबंध हासिल कर लिया था। 3 जुलाई को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अडानी समूह को अहमदाबाद, लखनऊ और मंगलुरु हवाई अड्डों की भी मंज़ूरी दे दी थी। कैबिनेट को अन्य तीन हवाई अड्डों के पट्टे को मंज़ूरी देना बाक़ी है।

एएआई मज़दूर निजीकरण के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि इस तरह के क़दमों से राज्य द्वारा चलाए जाने वाले ये मिनी रत्न और लाभ कमाने वाले उद्यम घाटे में चले जाएंगे। वे कहते हैं कि सरकार एएआई को ऐसे मालिक में बदल देगी, जो सिर्फ उसकी मूल्यवान संपत्तियों को पट्टे पर देगा और चार दशक या उससे अधिक समय तक खूब किराया वसूलेगा।

फ़्रांस में इस तरह के मज़बूत विरोध प्रदर्शन, जो लगभग पांच सप्ताह से चल रहे हैं, वे आने वाले दिनों में भी जारी रहेंगे। भारत में भी इस तरह के विरोध प्रदर्शन देखे जा रहे हैं। मुद्दे काफ़ी समान हैं।

भारत में ट्रेड यूनियनों को फ़्रांस और कई अन्य देशों के विरोध प्रदर्शनों से सबक़ लेना चाहिए, ख़ासकर लैटिन अमेरिका से, ताकि वे अपनी मांगों को उनके तार्किक निष्कर्ष तक ले जा सकें।

लेखक प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के उप कार्यकारी संपादक थे और उन्होंने व्यापक रूप से नागरिक उड्डयन और रक्षा विषय पर लिखा है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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