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ईरान फोर्दोव के बहाने अमेरिका को चिढ़ा रहा है तो जासूस लेविंसन से ट्रम्प को शांत कर रहा है

ऐसा लगता है कि जहां एक ओर ईरान ने फोर्दोव का खुलेआम प्रदर्शन कर ट्रम्प को भड़काने का काम किया तो वहीं एजेंट लेविंसन मामले से पटाने की कोशिश भी जारी है। स्थितियां कई तरह की संभावनाओं से भरी पड़ी हैं।
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ईरान के भूमिगत फोर्दोव यूरेनियम संवर्धन केंद्र की सैटेलाइट इमेजरी, जो क़ोम शहर के उत्तर में स्थित है।

ईरान ने 7 नवंबर को घोषणा की है कि उसने फोर्दोव में यूरेनियम को परिष्कृत करना शुरू कर दिया है, जो कि पवित्र शहर क़ोम के उत्तर दिशा में स्थित पहाड़ के अंदर किसी गुप्त जगह पर है, जो कि जाहिरा तौर पर किसी भी तरह के हवाई बमबारी से बचाने के लिए बनाया गया है, और जिसे 2009 तक तेहरान ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के निरीक्षणकर्ताओं से छिपा कर रखा था।

वार्ताओं के दौर के केंद्र में फोर्दोव में सक्रिय परमाणु स्थल का भविष्य था जो 2015 में हुए परमाणु समझौते की तरफ ध्यान खींचा।

11 नवंबर को ई3 देशों (ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी) और यूरोपीय संघ के तमाम विदेश मंत्री जो ईरान परमाणु समझौते के हस्ताक्षरकर्ता थे, ने ब्रसेल्स में मुलाकात की और इस मुद्दे पर चर्चा की। उनकी ओर से एक संयुक्त बयान जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि फोर्दोव में यूरेनियम संवर्धन की गतिविधियों को फिर से शुरू करना "प्रसार पर संभावित रूप से गंभीर असर डालेंगे।"

बयान में मांग की गई है कि "ईरान को अविलंब जेसीपीओए के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं के साथ उसके पूर्ण कार्यान्वयन की स्थिति पर वापस लौटना चाहिए।"

महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने तेहरान को ई3 की चेतावनी "जेसीपीओए के तहत पूरी तत्परता से सभी तंत्रों पर विचार करने जिसमें विवादों के निपटारे के तौर-तरीके भी शामिल है जिससे ईरान से सम्बन्धित सभी विषयों को हल किया जा सके और वह अपनी जेसीपीओए की प्रतिबद्धताओं को लागू कर सके। इस संबंध में हम अन्य जेसीपीओए प्रतिभागियों (रूस और चीन पढ़ें) के साथ संपर्क में हैं।”

ई3 के साथ रूस और चीन की पटरी बैठने वाली है, इसकी संभावना नहीं दिखती। 9 नवंबर के एक टीवी इंटरव्यू में रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने ई3 पर जम कर बरसीं और इस पैदा हुई स्थितियों के लिए पश्चिमी देशों को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया है।

इस बीच 10 नवंबर से तेहरान और मास्को ने खाड़ी तट के बुशहर में ईरान के एकमात्र परमाणु ऊर्जा संयंत्र में एक दूसरे रिएक्टर के लिए कंक्रीट भी डालना शुरू कर दिया है।

ऐसा नहीं लगता कि ईरान,  ई3/ईयू के बयानों से अपने कदम पीछे हटाने वाला है। विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने इस बयान का जम कर मखौल उड़ाया है। इसे सुनिश्चित करने के लिए, तेहरान हर 60-दिन के अंतराल पर जेसीपीओए से दूरी बनाने के लिए कई और कदम उठा सकता है।

11 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र में ईरान के प्रतिनिधि अली नसीमफर ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में IAEA के साथ सहयोग करने के लिए समर्पित चेतावनी को दोहराया:

 “ईरान को जेसीपीओए की शर्तों को संरक्षित करने का बोझ न तो अकेले वहन करना चाहिए और न ही वह इसे झेलेगा। नतीजतन, जेसीपीओएए को एक संतुलन देने के लिए ईरान ने जेसीपीओए के अनुच्छेद 26 और 36 के साथ अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता के कार्यान्वयन तक खुद को सीमित रखने का फैसला किया है। ये वे न्यूनतम उपाय हैं जो ईरान जेसीपीओए से अमेरिका के खुद को बाहर करने के एक साल बाद ईरान अपना सकता है। अगर समय रहते, पर्याप्त, गंभीर और व्यावहारिक उपाय अन्य जेसीपीओए प्रतिभागियों द्वारा नहीं लिए जाते हैं, तो ईरान हर 60 दिनों में अपनी प्रतिबद्धता के कार्यान्वयन को और सीमित करने के लिए जेसीपीओए के अनुच्छेद 26 और 36 के तहत अपने अधिकार का उपयोग करने के लिए मजबूर होगा।”

अभी तक तो ई3 और ईयू देश जेसीपीओए के साथ ईरान द्वारा उसके अनुपालन के बारे में चिकनी-चुपड़ी बातें कहते हुए खुद को इससे दूर रखा है, जबकि साथ ही साथ एक ऐसे 'तंत्र' को विकसित करने की फ़िराक में हैं जो तेहरान को यूरोपीय देशों के साथ व्यापार करने में सक्षम बनाएगा। लेकिन फोर्दोव के एक बार फिर से सक्रिय हो जाने के चलते, संकट की घड़ी आ गई है।

दूसरी ओर, जहाँ ईरान के साथ वार्ताओं के दौर की वकालत की जा रही है, वहीँ ट्रम्प प्रशासन ने और अधिक प्रतिबंधों के जरिये ‘अधिकतम दबाव’ को ही बढ़ाने का काम जारी रखा है। लेकिन तेहरान अपने इस रुख पर कायम है कि वह केवल तभी बातचीत के लिए आगे बढ़ेगा जब उस पर प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे।

जैसे जैसे समय बीत रहा है, यह गतिरोध 60-दिन के अंतराल पर ईरान द्वारा ली गई अगली चालों के चलते, अपने चरमबिन्दु तक पहुँच सकता है। ई3 को इस बात का डर है कि ऐसे किसी बिंदु पर कहीं तेहरान व्यापक सुरक्षा उपायों और अतिरिक्त प्रोटोकॉल से दूरी बनाना न शुरू कर दे, जो जेसीपीओए का एक हिस्सा है और अभी तक किसी भी सदस्य देश पर आईएईए द्वारा लगाए गए सबसे कड़े नियमों में से है।

इस बीच, आईएईए खुद अपने संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। पूर्व आईएईए प्रमुख युकिया अमानो की रहस्यमय परिस्थितियों में जुलाई में मौत हो चुकी है। तेहरान को शक है कि वाशिंगटन ने इजरायल के एजेंटो के साथ मिलीभगत कर अमानो की हत्या करवा दी थी, क्योंकि उनका व्यवहार ईरान के प्रति तटस्थ/निष्पक्ष था।

अमानो के उत्तराधिकारी के रूप में अर्जेंटीना के राजनयिक राफेल ग्रॉसी की नियुक्ति काफी हद तक वाशिंगटन की पसंद है। अमेरिकी ऊर्जा सचिव ने उन्हें "बिलकुल सही उम्मीदवार" बताया है। ईरान को ग्रॉसी में एक निष्पक्ष विचार रखने वाले वार्ताकार की संभावना नहीं दिखती है (यही वजह है कि ट्रम्प प्रशासन ने उनके समर्थन का प्रस्ताव किया।)

अगर ग्रॉसी ने इजरायल की जासूसी एजेंसियों के एक एजेंट के रूप में अपना काम करना शुरू कर दिया, तो ईरान के सब्र का प्याला छलक सकता है और फिर चिंगारियां उडती दिखेंगी– क्योंकि इजरायल, ईरान के परमाणु कार्यक्रम की अतिरिक्त जांच पर जोर दे रहा है।

मजेदार बात यह है कि ई3/ईयू के कल के बयान में आईएईए के साथ "ईरान द्वारा समय रहते सहयोग करने में कमी" के बिंदु को छुआ गया है।

हालांकि, पिछले सप्ताह से चल रहे घटनाक्रमों का एक अच्छा पहलू यह रहा कि ई3/ईयू का यह बयान वर्तमान गतिरोध को भंग करने के लिए वाशिंगटन और तेहरान के बीच किसी तरह की मध्यस्थता की फौरी जरूरत को रेखांकित करता है।

ऐसा लगता है कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन अपने मध्यस्थता के अभियान को फिर से शुरू करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं।

6 नवंबर को, मैक्रॉन ने बीजिंग में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा है, "मैं आने वाले दिनों में ईरानियों सहित कई वार्ताओं में शामिल रहूँगा, और हम सबको मिलजुलकर इसके परिणाम निकालने होंगे।" मैक्रोन ने कहा कि अगले कुछ सप्ताह ईरान को समझौते के ढाँचे के भीतर लौट आने के लिए दबाव बढ़ाने पर समर्पित करेंगे, और इसके साथ ही यह "कुछ प्रतिबंधों में ढील देने के साथ होना चाहिए।"

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि "सहजता तभी आ सकती है जब संयुक्त राज्य अमेरिका और ईरान एक तरह के विश्वास की कार्यसूची को फिर से खोलने के लिए आपस में सहमत हों" और बातचीत शुरू हो। मैक्रोन ने बताया कि इस मुद्दे पर वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ चर्चा करेंगे।

इस बीच एक और घटना जो महज एक संयोग से अधिक प्रतीत होता है कि तेहरान ने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र के सामने अपनी रिपोर्ट दाखिल करते समय पहली बार स्वीकार किया है कि उसके क्रांतिकारी न्यायलय के सामने एक केस खुला पड़ा है जिसमें 2007 में लापता हो चुके एक पूर्व एफबीआई एजेंट का मामला है, जो कि देश के भीतर एक अनधिकृत सीआईए मिशन पर था।

अमेरिका के साथ तेहरान गतिरोध के चलते बढ़ते तनाव के बीच इस प्रकार का खुलासा बेहद हैरान करने वाला है। दिलचस्प बात यह है कि ट्रम्प की ओर से इस पर प्रतिक्रिया देने में समय नहीं लगा और अपने 11 नवंबर के ट्वीट में कहा: “अगर ईरान अमेरिका के भूतपूर्व एफबीआई एजेंट रॉबर्ट ए लेविंसन के अपहरण, जो 12 साल से ईरान में लापता है, के अपने बयान से पलटने में सक्षम है, तो यह एक बेहद सकारात्मक कदम होगा।"

अमेरिका-ईरान के बीच दुश्मनी की गाथा में, बंधक और व्यापार समझौते ने बातचीत के विभिन्न माध्यमों को खोलने में अहम भूमिका निभाई है। यह देखना अभी बाकी है कि इस बार यह किस प्रकार से खेला जायेगा। ऐसा लगता है कि फोर्दोव के खुले प्रदर्शन से ट्रम्प को भड़काकर, तेहरान उसे एजेंट लेविंसन के जरिये शांत करने में मशगूल है। स्थिति अनेक संभावनाओं से भरी पड़ी हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Tehran Taunts US with Fordow; Pokes at Trump with Agent Levinson

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