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ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि

ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की वृद्धि देखने को मिली है।
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ईरान की राजधानी तेहरान में एक महिला सुपरमार्केट में खाना पकाने के तेल की कीमत देखती हुई, सरकार द्वारा सब्सिडी खत्म करने की वजह से तेल की कीमत में अचानक वृद्धि हो गई है। फोटो साभार- रॉयटर्स (17 मई 2022)

कोरोना महामारी और हालिया समय में रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुए युद्ध के कारण पैदा होने वाली समस्याओं ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता का उभार इस कारण चहुंओर देखा जा रहा है। वर्तमान समय मे विश्व के कई देश या तो आर्थिक अस्थिरता झेल रहे हैं या वह आर्थिक अस्थिरता झेलने की राह पर हैं। श्रीलंका से लेकर पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, और ब्राजील के अलावा भी कई मुल्क इस अस्थिरता का सामना कर रहे हैं। ईरान भी कई कारणों से आर्थिक अस्थिरता का सामना कर रहा है। यहाँ खाने पीने और आम जरूरतों की चीजों के दामों में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिल रही है। जिस कारण ईरान में सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं।

दरअसल सरकार ने इस माह की शुरुआत में अचानक से खाने-पीने की वस्तुओं पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया, जिसके बाद अचानक से आटा आधारित वस्तुओं के दामों में 300 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि हो गई है। वहीं इसके अलावा आम जरूरतों से जुड़ी वस्तुओं जैसे खाद्य-तेल और डेरी से संबंधित उत्पाद के दामों में भी 100 से 200 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है। सरकार के इस फैसले की वजह से पिछले कुछ दिनों से लोग सड़कों पर हैं और बढ़े हुए दामों को कम करने की मांग कर रहे हैं।

सब्सिडी दुबारा से बहाल करने और महंगाई को काबू में लाने के लिए चल रहे इस आंदोलन की शुरुआत ईरान के खुज़ेस्तान प्रांत से शुरू होकर लगभग ईरान के हर प्रांत में पहुँच चुकी है। मुख्य रूप से खुज़ेस्तान, लोरेस्तन, चारमहल और बख्तियारी, कोहगिलुयेह और बोयर-अहमद और आर्दबील प्रांतों में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। और अब यह आंदोलन की आंच देश की राजधानी तेहरान तक पहुँच गई है। सरकार इस आंदोलन को रोकने के लिए कठोर से कठोर कार्रवाई कर रही है। वहीं इस आंदोलन की वजह से कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है।

आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो ईरान की आधी आबादी लगभग 42 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, और ऐसे में अचानक से सरकार द्वारा आम जरूरतों से सम्बंधित वस्तुओं के दामों मे वृद्धि करने से जनता को बेतहाशा समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सरकार के सब्सिडी हटाने के फैसले के कारण वहां की आधी आबादी को इसका बोझ व्यापक रूप से उठाना पड़ रहा है।

सरकार समस्या का समाधान निकालने के बजाय आंदोलन को कुचलने के लिए उठा रही कठोर कदम

ईरानी सरकार महंगाई जैसी समस्या से देश को निज़ात दिलाने की नीति पर काम करने के बजाय हालिए समय में चल रहे आंदोलन को कुचलने की नीति पर काम कर रही है। महंगाई के खिलाफ चल रहे इस आंदोलन के शुरू होने के बाद से अब तक पुलिसिया कार्रवाई में कम से कम छह आन्दोलनकर्ताओं की मौत हो चुकी है। हालांकि सरकार ने किसी भी व्यक्ति की मौत से इनकार किया है। आंदोलन को खत्म करने के लिए पुलिस कठोरतम रवैया अपना रही है। पुलिस द्वारा आंदोलन को तितर-बितर करने के लिए गोली भी चला रही है जिसे सोशल मीडिया पर मौजूद वीडियो में देखा व सुना जा सकता है।

बीते समय में आंदोलन की खबरों को नियंत्रित करने के प्रयास में सरकार ने इंटरनेट पर कुछ प्रांतों में पूर्ण रूप से तो कुछ में आंशिक रूप से नियंत्रित किया है।

आंदोलन की शुरुआत सब्सिडी ख़त्म करने के ख़िलाफ़ शुरू हुई, लेकिन अब होती जा रही है राजनीतिक

हालिया प्रदर्शन में प्रदर्शनकारी अपनी रैलियों मे न केवल महंगाई के खिलाफ नारे लगा रहे हैं, बल्कि वह इस्लामीक गणराज्य ईरान के सर्वोच्च नेता, अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई और राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी सहित सत्ता मे मौजूद शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ भी रोष व्यक्त कर रहे हैं।

पिछले आधे दशक में, ईरान ने कई सारे गैर-राजनीतिक आंदोलन देखे हैं, चाहे वह आर्थिक हों या सामाजिक। हालांकि इन सबका प्रतिफल किन्ही ना किन्हीं रूप से राजनीतिक हो ही गया है। हाल के वर्षों में, ईरानियों ने सत्ता के प्रति अपना असंतोष ज़ाहिर करने के लिए हर उपलब्ध अवसर का उपयोग किया है। इसमें चुनाव बहिष्कार और व्यापक विरोध-प्रदर्शन शामिल हैं।

पिछले समय में खासकर 2017 से ईरान देश लगातार आंदोलन की चपेट में है। 2017 में वहां के लोग अंडे की कीमतों में अचानक से उछाल आ जाने के कारण आंदोलन करने लगे थे, जो 2018 तक चलता रहा था। 2019 के अंत में,वहां के नागरिक गैस की ऊंची कीमतों का विरोध करने के लिए फिर से सड़कों पर उतर आए थे। ऐसे मे देखा जाए तो पिछले कुछ समय में सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता समय-समय पर सड़कों पर आ रही है। इसी साल मई के महीने में ही सब्सिडी खत्म करने के खिलाफ चल रहे आंदोलन के अलावा भी कई आंदोलन हो गए हैं। जैसे कि शिक्षकों और बस चालकों द्वारा - खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ हुआ आंदोलन। हालांकि इन तमाम आंदोलन का अध्ययन करने पर यह साफ-साफ देखा जा सकता है की बीते समय में हुए अमूमन आंदोलनों की शुरुआत गैर-राजनीतिक रूप से शुरू होकर अंत में राजनीतिक ही हो गई है। 

हालिया आंदोलन की शुरुआत भी गैर-राजनीतिक ही हुई थी, लेकिन यह धीरे-धीरे राजनीतिक होती जा रही है। अब आन्दोलनकर्ताओं की मांग केवल महंगाई मे कमी करने की नहीं है, बल्कि उनकी मांग सरकार बदलने की भी है। सोशल मीडिया पर आंदोलन के वीडियोज़ देखने पर आन्दोलनकर्ताओं को यह कहते सुना जा सकता है कि, “ख़ामेनेईएक हत्यारा है” और “उसका शासन अवैध है”, “हमें सैन्य शासन नहीं चाहिए”, “कोई सुधार नहीं, कोई प्रगति नहीं”, “हमारा जीवन बर्बाद हो रहा है”। इन नारों मे सरकार के खिलाफ जनता का रोष साफ तौर पर देखा जा सकता है। इसके अलावा लोग ईरान के सर्वोच्च नेता, अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई और राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के पुतले भी फूँक रहे हैं। इन तमाम आंदोलनकारियों की मांग बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने वह आर्थिक स्थिरता लाने के अलावा जो सबसे बड़ी मांग है वह सरकार बदलने की है।

मौजूदा आंदोलन 2019 मे हुए आंदोलन की राह पर

राजनीतिक जानकार और मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो वह सब हालिया समय में चल रहे आंदोलन को केवल आम जरूरतों की चीजों के दामों में हुई बेतहाशा वृद्धि से जोड़ कर देखने से इनकार करती है। उन सबों का मानना है कि हालिया समय में चल रहा आंदोलन 2019 के ईरान आंदोलन की राह पर है, जो इस्लामिक गणराज्य की स्थापना के इतिहास मे सबसे बड़ा आंदोलन था। 2019 का आंदोलन भी ईंधन के दामों मे वृद्धि के खिलाफ शुरू हुआ था जो अंत होते होते तक सत्ता परिवर्तन की मांग पर पहुँच गया था।

मौजूदा आंदोलन 2019 मे हुए आंदोलन की राह पर ही जाता हुआ दिख रहा है। सरकार द्वारा निर्धारित गैसोलीन की कीमतों में वृद्धि मे 3 गुना वृद्धि के कारण नवंबर 2019 में भी वहां बड़े स्तर पर आंदोलन हुआ था। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो 2019 में हुए आंदोलन मे तकरीबन 1500 लोगों की जाने चली गई थी। और इस आंदोलन को 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद के इतिहास में सबसे व्यापक माना जाता है। आंदोलन को रोकने के लिए सरकार ने हर तरह की कठोरता अपनाई थी, मीडिया सेन्सर्शिप से लेकर, पूरे देश में इंटरनेट बैन व आंदोलनकारियों पर कठोरतम कार्रवाई इत्यादि।

2019 के प्रदर्शन की भी शुरुआत गैर राजनीतिक थी लेकिन अंत होते होते तक यह पूर्ण रूपेन राजनीतिक हो गया था। उस वक़्त भी प्रदर्शनकारियों की अंतिम मांगे सत्ता में बदलाव ही थी और अब यह आंदोलन भी अब उसी राह पर जाता हुआ दिख रहा है।

देश पर “खाद्य सुरक्षा” का खतरा मंडरा रहा 

ईरान में पैदा हुए हालात और बार-बार हो रहे आंदोलनों के पीछे की समस्या पर गौर करें तो देश की गलत आर्थिक नीति, पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध, भ्रष्टाचार और सरकार की अदूरदर्शिता जैसी समस्या निकल कर आती है। इन तमाम कारणों से यहाँ पिछले कई सालों से आर्थिक हालात अस्थिर है और यही वजह है की अभी भी वहां की मुद्रास्फीति दर 40% से भी अधिक है, और लोग आंदोलन कर रहे हैं। 

आने वाले समय में यह आंदोलन और व्यापक हो सकता है, क्योंकि आंदोलन से इतर अगर हम इस देश की अनाज की जरूरतों पर नज़र डालें तो यह देश आने वाले समय में “खाद्य सुरक्षा” जैसी समस्या का सामना कर सकता है। हालिया समय में जारी रुस-यूक्रेन युद्ध के कारण यह समस्या और प्रबल होती हुई नज़र आ रही है।

गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर हर ओर “खाद्य सुरक्षा” का खतरा मंडरा रहा है और इसी कारण ईरान भी इससे अछूता नही है। जानकार ईरान में फैली अस्थिरता का इसे भी एक कारण बताते हैं।

दरअसल रुस-यूक्रेन के बीच जारी जंग व कोरोना के कारण सप्लाइ चेन में जो बाधा आई है उसके कारण पूरे विश्व में खासकर विकासशील देशों के ऊपर “खाद्य सुरक्षा” का खतरा मंडराने लगा है। पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के अधिकतर देशों में गेहूं से संबंधित वस्तुओं का आयात रुस और यूक्रेन से होता है। मिस्र, लेबनान, सीरिया, यमन, जॉर्डन और फिलिस्तीन जैसे देश रूस और यूक्रेन से अपने गेहूं का 50 प्रतिशत आयात करते हैं, और यह निर्यात युद्ध के कारण बाधित हो गया है।

ईरान भी अपनी अपनी गेहूं की ज़रूरत का अच्छा-खासा हिस्सा आयात करता है खासकर रूस और यूक्रेन से। पिछले तीन वर्षों में ईरान गेहूं आयात करने में पूरे विश्व में 11वें नंबर पर है। पिछले तीन सालों का आंकड़ा देखा जाए तो ईरान ने लगभग 15 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं का आयात किया है, और ऐसे में सप्लाइ चेन का बाधित होना ईरान की खाद्य सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बन सकता है।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है की ईरान जो पहले से ही आर्थिक संकटों से बुरी तरह से प्रभावित है। ऐसे में समय पर गेहूं का निर्यात न होने पर इस देश को मानवीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।

हालांकि गौरतलब हो की सब्सिडी खत्म करने के फैसले को ईरान की सरकार ने सोचा-समझा फैसला बताते हुए लोगों को आंदोलन खत्म करने की सलाह दी है। 

आर्थिक अस्थिरता के पीछे पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध

जानकारों का मानना है की ईरान में वर्तमान समय में पैदा हुई आर्थिक अस्थिरता, जिसके कारण लोग सड़कों पर हैं के पीछे पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध (Economic Sanctions) हैं। यह आर्थिक प्रतिबंध ईरान के परमाणु कार्यक्रम को प्रतिबंध करने के लक्ष्य से लगाए हैं और जिस वजह से ईरान 2018 के बाद से वृहद रूप से आर्थिक अस्थिरता का सामना कर रहा है।

2018 के बाद से आर्थिक प्रतिबंध लगने के बाद ईरान में हर साल मुद्रास्फीति दर में वृद्धि ही दर्ज की गई है। इस साल ईरान में मुद्रास्फीति दर 40 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। 2013 से 2022 कीमुद्रास्फीति दर का अंदाजा नीचे दिए गए ग्राफ से लगाया जा सकता है। दरअसल 2015 मे परमाणु संधि होने के बाद ईरान की मुद्रास्फीति दर बेहतर होती हुई साफ देखी जा सकती है, लेकिन अमेरिका के संधि से हाथ खीचने के बाद यह दर व्यापक रूप से बढ़ती चली गई जो अभी भी जारी है।

2015 में जॉइन्ट कॉम्प्रीहेन्सिव प्लान ऑफ एक्शन(JCPOA) संधि के अस्तित्व मे आने के बाद ईरान पर लगे हुए आर्थिक प्रतिबंध हट गए थे। उसके बाद से ईरान में आर्थिक स्थिरता आनी शुरू हो गई थी, लेकिन मई 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शासन में अमेरिका ने इस समझौते से हाथ खींच लिया था। उसके बाद फिर से अमेरिका ने ईरान के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए जिस कारण से ईरान की आर्थिक अस्थिरता जो 2015 के बाद पटरी पर आती दिखी थी, उसकी स्थिति दुबारा से खराब होती चली गई। बीते चार सालों से ईरान और इस संधि से संबंधित देशों (अमेरिका, फ़्रांस, जर्मनी, चीन, यूनाइटेड किंगडम और रुस व यूरोपियन यूनियन) के बीच बातचीत और विचार-विमर्श का दौर चला आ रहा है लेकिन अभी भी यह संधि दुबारा से अस्तित्व मे नहीं आ पाई है। यह भी एक वजह है, जिसकी वजह से वहां साल दर साल आर्थिक आस्थिरता बढ़ती देखी जा रही है।  

आर्थिक प्रतिबंध लगने की वजह से ईरान की आर्थिक स्थिति चरमरा सी गई है। जिसकी वजह से भी हर ओर महंगाई बढ़ रही है और ऐसे में वहां के लोगों का सड़कों में आने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता है। और इसी कारण जानकारों का कहना है की मौजूदा आंदोलन के और भी व्यापक होने की उम्मीद है।

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