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क्‍या मोदी का 1000 साल की निरंतरता का वादा हिटलर की उद्घोषणा के समान है? 

प्रधानमंत्री का स्वतंत्रता दिवस का भाषण सितंबर 1934 में नाजी कांग्रेस में एडॉल्फ हिटलर की उस उद्घोषणा की प्रतिध्वनि है। तीसरे नाजी साम्राज्य के दौरान उन्होंने कहा था कि उनके शासन ने ऐसे साम्राज्य की बुनियाद रखी है कि अगले 1000 वर्षों तक उसमें कोई नाटकीय उलटफेर नहीं होगा क्योंकि उनके शासन से नाजी सहस्राब्दी की शुरुआत हुई है।
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मोदी ने वस्तुतः "1200 साल की गुलामी" वाक्यांश का कॉपीराइट हासिल कर लिया है और राजनीतिक रैलियों में इसका अनाप-शनाप इस्तेमाल कर रहे हैं।

दस साल पहले, लगभग आज ही के दिन, एक वरिष्ठ बैंक निवेशक ने मेरी प्रस्तुति के अंत में कहा, "प्रस्तुति काफी विस्तारित थी। लेकिन मेरा एक सवाल है। हमारे युवाओं को कौनसा एक शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए – जो (नरेंद्र) मोदी की जीवन यात्रा, को दर्शा सके?"

पिछली कहानी यह थी कि उस व्यक्ति की मेरे द्वारा लिखी गई जीवनी, जो तब तक भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं था, वह हाल ही में प्रकाशित हुई थी। भारत के वित्तीय क्षेत्र से जुड़े लोग पहले से ही उनके राजनीतिक आगमन को महसूस कर रहे थे और उस व्यक्ति और उसकी राजनीति के बारे में अधिक समझने के लिए एक निजी बातचीत की कोशिश में थे।

जवाब सीधा दिल से निकला।

"वह इतिहास में अमर होना चाहता है," मैं रुका तो मुझे ऐसे भाव मिले की कुछ सवाल ओर भी हैं। इसने मुझे वार्ता जारी रखने की इजाजत दी।

"...मोदी जरूर चाहेंगे कि 2047 में जो भी भारत का प्रधानमंत्री बने, वह प्रधानमंत्री सरदार पटेल (जब स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण शुरू होने वाला था) के बगल में उनकी प्रतिमा का अनावरण करे, और उसका आकार दोगुना हो।"

कमरे में मौजूद सभी लोग मेरी सहज बुद्धिमानी पर हंस पड़े।

कई साल बाद, जब अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम को नया बनाया गया और उसका नाम बदलकर नरेंद्र मोदी स्टेडियम किया गया। उसका उदघाटन (तत्कालीन) राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किया, तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा ख़याल आधा सही था।

मोदी ने कंक्रीट और स्टील के ज़रिए अमर होने के लिए साढ़े तीन दशकों तक का इंतजार नहीं किया। उन्होंने अपने जीवनकाल में ऐसा करने की कोशिश की जैसे कि उन्हें यकीन ही नहीं था कि भविष्य का कोई नेता उनकी प्रशंसा करेगा या नहीं।

पिछले नौ वर्षों में अनगिनत अवसरों पर, लोगों ने प्रथम व्यक्ति और एकवचन के प्रति उनके आकर्षण को देखा है यानी सब कुछ मैं ही मैं हूं। अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह न केवल वर्तमान पर हावी होना चाहते हैं बल्कि भारत के इतिहास में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में अपना स्थान दर्ज करना चाहते हैं जिसने भारत के ''क्षणभंगुर' वक़्त के दौरान अनिश्चित अतीत से ऊपर की ओर उभरने वाले भविष्य की ओर अग्रसर किया।

ऐसा कर, मोदी का लक्ष्य अन्य प्रतिष्ठित भारतीय नेताओं को पृष्ठभूमि में धकेलना है क्योंकि वे अतीत से थे और उन्होंने भारत को 'गौरव के पथ' पर लाने और उसके स्वर्णिम अतीत के पुनरुत्थान में 'कोई भूमिका नहीं' निभाई, जिन प्रक्रियाओं का मोदी समर्थन कर रहे हैं। इसमें उनकी छाप बढ़ती जा रही है।

जून में, संयुक्त राज्य अमेरिका की अपनी राजकीय यात्रा के दौरान, उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस को बताया कि भारत को "किसी न किसी रूप में एक हजार साल के विदेशी शासन के बाद" 1947 में आजादी मिली थी।

उन्होंने ऐसा कहकर औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत के शासन भारत और मध्ययुगीन युग भारत के बीच के अंतर को धुंधला कर दिया था।

संघ परिवार ने आज़ादी से पहले भारतीय इतिहास के लंबे कालखंड को हिंदू काल, मुस्लिम काल और फिर ब्रिटिश काल में विभाजित किया है। लेकिन मोदी ने पिछले दो कालखंडों को एक साथ जोड़ दिया, यह तर्क देते हुए कि दोनों में एक समान विशेषता थी - हिंदुओं पर अन्य का आधिपत्य।

एक दशक से अधिक समय से, मोदी ने वस्तुतः "1200 साल की गुलामी" वाक्यांश का कॉपीराइट हासिल किया हुआ है और राजनीतिक रैलियों में इसका अनाप-शनाप इस्तेमाल करते हैं।

समसामयिक राजनीति पर हावी होने के लिए, मोदी और उनके हिंदू सांप्रदायिक साथी भारत के मध्ययुगीन अतीत की पूजा कर रहे हैं, बावजूद इसके कि मुगल काल इस भूमि की मिश्रित संस्कृतियों का शीर्षबिंदु था।

निस्संदेह, वर्तमान में ठहराव है, यहां तक कि विकास धीमा भी है और यह वर्तमान शासन की अक्षमता का प्रतीक है।

लेकिन चूंकि मोदी इस विफलता को स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए उनकी रणनीति दोषारोपण की है। 1980 के दशक से संघ परिवार का आदर्श रहा है कि वह आरोप लगाने के लिए एक से अधिक तरीकों वाली राजनीति अपनाए, जब उन्होंने चुनावी राजनीति के क्षेत्र में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को मजबूत करने के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन शुरू किया था।

हर मांग - कथित तौर पर नष्ट किए गए मंदिरों से लेकर इस्लामी इबादत स्थलों के निर्माण तक, मुस्लिम समाज, उनके व्यक्तिगत कानूनों और रोजमर्रा के उनके जीवन को नियंत्रित करने तक - उस अतीत की ओर इशारा करना जब उस समय के मुसलमानों ने कथित तौर पर हिंदुओं पर अपना शासन थोप दिया था। जबकि वर्तमान के मुसलमानों को उनसे कोई संबंध नहीं है, बावजूद अतीत के लिए उन्हे दोषी ठहराया जा रहा है।

अमेरिकी कांग्रेस और लाल किले में मोदी के भाषण उनकी पार्टी के लिए वोट मांगते समय उनके मानक राजनीतिक भाषणों से अलग थे। क्योंकि उन्होंने इसे एक भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में कहा था, न कि किसी भाजपा नेता के रूप में जो दफ्तर में है और एक अन्य कार्यकाल की मांग कर रहा था।

फिर भी, दोनों स्थानों पर, उन्होंने भारत के इतिहास को गलत ठहराया और इसकी जटिलताओं पर ध्यान देने के बजाय, इतिहास को केवल विजेताओं और हारने वालों के नेरेटिव के रूप में पेश किया, और इसे 'विदेशियों' द्वारा 'हमारे ऊपर' अपना 'शासन' थोपने के नेरेटिव के रूप में देखने के लोकप्रिय दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। वे लोग' या 'हम' का नेरेटिव। इस नेरेटिव ने मोदी को अतीत के कल्पना से भरपूर दुश्मन और वर्तमान में उन्हें 'महिमामंडित' करने वालों पर गुस्सा और नफरत पैदा करने वाला नेता स्थापित किया है।

15 अगस्त का भाषण एक प्रमुख धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए उल्लेखनीय था, जैसा कि वाशिंगटन में जून में उनके संबोधन में बताया गया था। पिछले भाषण में, उन्होंने कहा था कि गुलामी 1947 में समाप्त हो गई थी। यह कहकर इसने राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं (पढें ,कांग्रेस नेताओं) आज़ादी दिलाने के लिए सम्मान दिया।

लेकिन अपने नए भाषण में, मोदी ने वास्तव में गुलामी की इस अवधि को 2014 तक बढ़ा दिया, जो भारतीय (हिंदू पढ़ें) अधीनता के युग को समाप्त करने का श्रेय लेने के समान है। हालांकि, भाषण के कुछ हिस्से ऐसे थे जो इस धारणा के विरोधाभासी थे।

काफी बारीकी से जांच करने पर ये गलतियां साफ हो जाती हैं और परिकल्पना को आगे बढ़ाने की मोदी की खराब क्षमता को दर्शाती हैं। लेकिन, वे इससे बच जाते हैं क्योंकि उनके दर्शकों में उनके भाषणों/धारणाओं की जांच करने वाले कुशल लोग शामिल नहीं होते हैं। इसके बजाय, वे नाटकीय तरीके से की जाने वाली बयानबाजी के ज़रिए से जनता तक पहुंचते हैं। यह शैली अतीत में नेताओं के लिए आम थी, और वे आज की दुनिया में भी ऐसा कर रहे हैं।

मोदी ने मध्यकालीन युग को बेहद शोषणकारी काल के रूप में भी प्रस्तुत किया और कहा कि: "हम गुलाम होते रहे, पकड़े जाते रहे, जकड़े जाते रहे; जो भी आया, उसने हमें लूटा; जो आया, हम पर हावी हो गया; कैसा अजीब समय रहा होगा", हाय! वो हज़ार साल।"

स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, मोदी ने दो 1000 साल लंबे युगों के बारे में बताया, जिनमें से पहला युग "1000-1200 साल पहले शुरू हुआ था। (जब) एक छोटा सा राज्य और उसके राजा हार गए थे। हालांकि, हम यह नहीं जानते थे यह घटना भारत को एक हजार साल की गुलामी में धकेल देगी। और हम गुलामी में फंस गए..."

भारत के आज़ाद होने पर गुलामी के इस युग के समाप्त न होने की नई थीम विकसित करते हुए उन्होंने दावा किया कि, "हम गुलामी के 1000 साल और आने वाले 1000 साल के भव्य भविष्य के बीच के पड़ाव पर खड़े हैं। हम इस चौराहे पर खड़े हैं, और इसलिए हम यहां रुक नहीं सकते हैं।"

दो साल पहले, मोदी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के बाद अमृत काल की अवधारणा की घोषणा की थी - जिसे आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ के जश्न का प्रतीक माना गया।

अमृत काल वह अभिव्यक्ति है जिसे उन्होंने 2022 और 1947 के बीच की 75 साल की लंबी अवधि के बारे में पेश किया था। इसकी विशेषताओं के संदर्भ में, इसे एक ऐसा समय माना जाता है जब कोई भी नया (विचार या परियोजना) शुरू या लॉन्च की जाए तो उसका सफल होना तय है।

2014 में शुरू होने वाले दौर को 'चौराहे' की विशेषताओं वाले दौर की शुरुआत कहा जाता है। मोदी ने कहा कि वह भारत के 1000 साल आगे के बारे में बात कर रहे थे क्योंकि वे "हमारे देश के सामने एक और अवसर पाने के लिए जीवित थे...जब हम ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं... हम जो काम करते हैं, जो कदम हम उठाते हैं, इस युग में हम जो त्याग करते हैं, जो तपस्या करते हैं, वही हमारी विरासत को परिभाषित करेगी... और इससे देश का अगले 1000 वर्षों का स्वर्णिम इतिहास उभरने वाला है। इस कालखंड में होने वाली घटनाएं अगले 1000 सालों पर प्रभाव डालने वाली हैं।”

मोदी अगले वर्ष तक सत्ता में रहने के दस वर्षों को (और 2024 से आगे की अवधि जब तक वह सत्ता में हैं) परिवर्तनकारी युग के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिसने अंततः गुलामी के युग को समाप्त किया और भारत को 1000 सालों के स्‍वर्णिम पथ पर आगे बढ़ाया। ये गौरव और वैश्विक उत्थान के वर्ष हैं जिन पर मोदी की अपनी छाप है।

"देश, जो गुलाम मानसिकता से बाहर आ गया है और 'पंच-प्राण' या पांच प्रतिज्ञाओं (फिर से पिछले साल के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में मोदी की संकल्पना) के लिए समर्पित है, आज एक नए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है।"

कोई संदेह न रह जाए, इसलिए मोदी ने विस्तार से समझाया कि, "हम एक के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय लेंगे। अगले 1000 वर्षों के स्वर्णिम काल का इतिहास इन निर्णयों से अंकुरित होगा। वर्तमान काल की घटनाएं तय करेंगी कि भविष्य में क्या होगा।"

यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह सब तब होगा (या हो रहा है) जब सब कुछ मोदी के हाथ में होगा।

वर्तमान युग, जिसके वे शहंशाह हैं, के बाद 1000 वर्षों की निरंतरता की मोदी की अभिव्यक्ति पर सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह सितंबर 1934 में नाजी कांग्रेस में एडॉल्फ हिटलर की घोषणा की प्रतिध्वनि है जिसमें हिटलर ने तीसरे नाजी जर्मन साम्राज्य पर शासन करते हुए कहा था कि, इसमें अगले 1000 वर्षों तक कोई नाटकीय उलटफेर नहीं होगा। वह वर्ष, जिसने कि उनके शासन ने नाज़ी सहस्राब्दी के आगमन की शुरुआत की थी।

यह सच है कि हिटलर की धमकी के बावजूद, तीसरा साम्राज्य उतने वर्षों तक नहीं टिक पाया, जितना कि उसने दावा किया था। फिर भी, 1933 से 1945 के बीच, उनके सत्ता में रहने के बारह वर्षों में, जर्मनी ने कई त्रासदियों को देखा, जिसके परिणामस्वरूप उस अवधि को मानव इतिहास के सबसे अंधेरे युगों में से एक माना जाता है।

स्वतंत्रता दिवस पर मोदी के भाषण के बाद अब एक सवाल अपरिहार्य रूप से उठता है: क्या भारतीय भविष्य के बारे में उनका दृष्टिकोण हिटलर के दृष्टिकोण से कोई समानता रखता है?

(नीलंजन मुखोपाध्याय की नवीनतम पुस्तक द डिमोलिशन एंड द वर्डिक्ट: अयोध्या एंड द प्रोजेक्ट टू रीकॉन्फिगर इंडिया है। उनकी अन्य पुस्तकों में द आरएसएस: आइकॉन्स ऑफ द इंडियन राइट और नरेंद्र मोदी: द मैन, द टाइम्स शामिल हैं। उन्हे @NilanjanUdwin पर ट्वीट किया जा सकता है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।) 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Is Modi's 1000 Years of Continuity Promise Similar to Hitler's Proclamation?

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