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किसान संघर्षों की बढ़ती हलचल क्या आंदोलन के नए दौर की तैयारी है?

उत्तर प्रदेश के जनपद श्रावस्ती में आयोजित किसान मजदूर महापंचायत को सम्बोधित करते हुए टिकैत ने कहा कि सरकार द्वारा की गई वादाख़िलाफ़ी को किसान नहीं भूलेगा और देश का किसान एक बार फिर से एक बड़े आंदोलन का आगाज़ करेगा।
Rakesh tikait
फ़ोटो साभार: पीटीआई

पंजाब के संगरूर में हजारों किसानों ने मुख्यमंत्री के घर के बाहर सड़क पर ही दीवाली मनाई। वहां किसान 9 अक्टूबर से डेरा डाले हुए हैं। उनके आवास के एक ओर के रोड पर 3 किलोमीटर लंबी ट्रैक्टर ट्राली की कतारों के साथ मोर्चा लगा हुआ है। किसान नेताओं ने चेतावनी दी है कि सरकार का टालमटोल का रुख नहीं बदला तो दूसरी ओर का रोड भी बंद कर दिया जाएगा। वे राशन, चटाई, कुकिंग गैस सिलेंडर, पंखा और दूसरे जरूरी सामान लेकर आये हैं और लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं।

किसान बारिश और कीड़ों से बर्बाद हुई फ़सलों के लिए मुआवजा, पराली के प्रबंधन के लिए 200 रू प्रति क्विंटल के भुगतान, लम्पी बीमारी से मरे पशुओं के लिए मुआवजे, मक्का-मूँग-बासमती के लिए MSP की मांग कर रहे हैं।

उधर किसान मजदूर संघर्ष कमेटी ने 26 नवम्बर से पंजाब के सभी 18 जिला मुख्यालयों पर अनिश्चितकालीन पक्का मोर्चा लगाने का ऐलान किया है जो ' मांगे मनवाने तक जारी रहेगा। '  वे MSP की कानूनी गारंटी, बिजली संशोधन बिल वापस लेने, कर्जमाफी तथा किसानों के लिये 10 हजार रुपये प्रति माह पेंशन की मांग कर रहे हैं।

हरियाणा में किसान फसलों की खरीद से लेकर भूमि-अधिग्रहण तक के सवाल पर जुझारू लडाइयों में उतर रहे हैं। पिछले दिनों कुरुक्षेत्र में बैरिकेड तोड़ते हुए हजारों किसानों ने 21 घण्टे से ऊपर राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम रखा। अंततः खट्टर सरकार ने घुटने टेक दिए और मंडियों में पड़ी पूरे धान की खरीद तथा खरीद की सीलिंग प्रति एकड़ 22 क्विंटल से बढ़ाकर 30 क्विंटल करने को तैयार हुई, तब आंदोलन वापस हुआ।

किसान नेता राकेश टिकैत UP, उत्तराखंड, हरियाणा में माहौल गरमाने में लगे हैं। उत्तर प्रदेश के जनपद श्रावस्ती में आयोजित किसान मजदूर महापंचायत को सम्बोधित करते हुए टिकैत ने कहा कि सरकार द्वारा की गई वादाखिलाफी को किसान नहीं भूलेगा और देश का किसान एक बार फिर से एक बड़े आंदोलन का आगाज करेगा। 6 अक्टूबर को महेंद्र सिंह टिकैत के जन्मदिन पर हरियाणा के किसान नेता अजय चौटाला के सिसौली किसान भवन आने और पुस्तकालय समर्पित करने के सवाल पर पैदा हुई गलतफहमी को साफ करते हुए टिकैत ने दो टूक कहा कि, " हमारा किसी पार्टी से कोई सम्बंध नहीं है। " 

पूर्वांचल के आजमगढ़ में हवाई अड्डे के विस्तार के नाम पर किसानों की जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ किसानों का अनिश्चितकालीन धरना-आंदोलन जारी है।

संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े पूर्वी उ.प्र.के  किसान संगठनों के नेता आन्दोलन के समर्थन में उतरे हुए हैं। उनके बयान में कहा गया है कि, "किसानों से जन संवाद में यह बात निकलकर आयी कि ग्रामीणों की एकमत राय बन चुकी है कि वे मुआवजा,पुनर्वास  नहीं चाहते हैं बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी जमीन, गाँव बचाये रखना चाहते हैं। ग्राम प्रधान व भूमि प्रबंधन समिति भी इसी पक्ष में डिमांड चार्टर पेश करेंगे कि वे अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे।"

ग्रामीणों को संबोधित करते हुए किसान नेताओं ने कहा कि, "अमेरिकी विकास मॉडल जो पूरी दुनिया में फेल हो चुका है, उसे खेती प्रधान भारत में नहीं थोपा जाना चाहिए। अंधाधुंध बहुफसलीय जमीनों को हड़पकर हाईवे, एक्सप्रेस वे, हवाई अड्डे आदि बना देना विकास माडल नहीं वरन जनविरोधी विनाश माडल बन चुका है। जहाँ  देश भूख सूचकांक, समाजिक-आर्थिक गैर बराबरी में शर्मनाक स्तर पर हो, फैक्टरियां-कम्पनियां बंद होने के कगार पर होकर बेरोजगारों को खपाने में अक्षम हों, मजदूरों को मजबूर होकर गाँव लौटना पड़े,वहाँ  हमारे गाँव-जवार को उजाड़ने वाला विनाश माडल नहीं चाहिए।"

स्थानीय सवालों पर प्रदेश सरकारों के खिलाफ जगह जगह मोर्चेबंदी के साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा ने लंबे अंतराल के बाद 25 अक्टूबर को हुई अपनी बैठक में आंदोलन के 2 वर्ष पूरे होने पर 26 नवम्बर को मोदी सरकार की वायदाखिलाफी के विरुद्ध सभी राज्यों की राजधानियों में राजभवन मार्च का ऐलान किया है। इसके लिए सभी राज्यों में किसान संगठनों की तैयारी बैठकें की जा रही हैं।

यह खबर स्वागतयोग्य और उत्साहवर्धक है।

यह भी अच्छी खबर है कि मोर्चे के ढांचे को  व्यवस्थित तथा चुस्त-दुरुस्त करने और गतिशील बनाने के लिए 14 नवंबर को मोर्चे की  बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा की कार्य-दिशा निर्देशिका को अंतिम रूप दिया जाएगा। 

एक अन्य महत्वपूर्ण प्रस्ताव में वन संरक्षण कानून में केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे संशोधनों की निंदा की गई तथा इसके खिलाफ देशभर के आदिवासी संगठनों द्वारा किए जा रहे संघर्ष के साथ 15 नवंबर को शहीद बिरसा मुंडा की जयंती पर एकजुटता प्रदर्शित करने का निर्णय लिया गया।

विश्व-इतिहास के अनोखे आन्दोलन और अकूत बलिदान के बावजूद किसानों का संकट न सिर्फ ज्यों का त्यों बरकरार है बल्कि और गहराता जा रहा है। अभी गेहूँ समेत अन्य रबी की फसलों के लिए सरकार ने MSP की घोषणा किया है। गेहूं की MSP में वृद्धि की घोषणा की गयी है- रू0 2015 प्रति क्विंटल से बढ़ाकर रू0 2115  प्रति क्विंटल अर्थात 5.45% की वृद्धि। जबकि सितंबर में खुदरा मुद्रास्फीति की दर थी 7.4% ! अर्थात MSP में वृद्धि से अधिक महंगाई बढ़ गयी। कुल मिलाकर किसान पहले से भी अधिक घाटे में चला गया।

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने तंज किया, " इससे केवल यह पता चलता है कि किसान जब फसलें उगाते हैं तो वे यह नहीं जानते कि वे दरअसल घाटा उगा रहे हैं (cultivating losses)।

सबसे बड़ी बात यह कि मोदी सरकार ने किसानों के साथ धोखाधड़ी और वायदाखिलाफी की है। किसान-आंदोलन की MSP गारंटी कानून, बिजली संशोधन बिल वापस लेने, किसानों पर आंदोलन के दौरान लादे गए मुकदमे वापस लेने, गृहराज्यमंत्री अजय टेनी की बर्खास्तगी जैसी मांगे अभी भी लंबित हैं। आज जरूरत इस बात की है कि अपनी समस्त तबाही की जिम्मेदार, विश्वासघात की सरकार के विरुद्ध सारे संचित आक्रोश और नफरत को शक्ति बनाकर किसान एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर हुंकार के लिए उठ खड़े हों!

यह सच है कि आंदोलन एक ही तरह हमेशा नहीं चल सकता है, परिस्थितियां बदली तो आंदोलन का स्वरूप बदलना स्वाभाविक है। लेकिन आंदोलन के कतिपय नेताओं ने चुनावों में उतरने के अपने उतावलेपन, कई ने सांगठनिक संकीर्णता-गुटबाजी, कुछ ने राजनीतिक अवसरवाद, रिट्रीट के कारण आंदोलन को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है।

हमारे इतिहास के एक नाजुक क्षण में किसान-आंदोलन ने मोदी के अधिनायकवाद पर लगाम लगाने, उसके कार्पोरेटपरस्त चेहरे को बेनकाब करने तथा साम्प्रदयिक एजेंडा को पीछे धकेल देने में जो भूमिका निभाई, वह अप्रतिम है।

आज जब देश फासीवाद के विरुद्ध जंग की फैसलाकुन घड़ी की ओर बढ़ रहा है, यह बेहद जरूरी है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में किसान-आंदोलन अपनी राष्ट्रीय हस्तक्षेपकारी भूमिका निभाता रहे, परिस्थिति के अनुरूप उसके आन्दोलन का स्वरूप जो भी हो। आज इसका निर्णायक महत्व है।

लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।

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