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क्या सेना की प्रतिष्ठा बचाने के लिए पीड़िताओं की आवाज़ दबा दी जाती है?

वायु सेना में एक महिला अफ़सर के कथित यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी अफ़सर के अलावा भारतीय वायुसेना पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
 Air Force College
फ़ोटो साभार: द न्यूज़ मिनट

हमारे समाज में आज भी यौन शोषण के मामलों में अपराधी की जगह पीड़िता ही प्रताड़ित हो जाती है। कई बार पीड़ित के चरित्र पर उंगली उठाई जाती हैं, तो कई बार उसके मान-सम्मान को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। वायु सेना में एक महिला अफसर के कथित यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया है। जहां आरोपी अफसर के अतिरिक्त भारतीय वायुसेना पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। पीड़िता के अनुसार संस्था द्वारा न केवल उनपर केस वापस लेना का दबाव बनाया गया बल्कि जांच के दौरान वजाइनल स्वैब लेने के साथ चिकित्सक ने उनका टू फिंगर टेस्ट भी किया, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार वर्जित है।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में दो उंगलियों वाला परीक्षण यानी टू फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन आज भी देश में कई डॉक्टर इस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। साल 2019 में यौन हिंसा की शिकार 1500 से अधिक पीड़िताओं और उनके परिजनों की ओर से उच्चतम न्यायालय को एक पत्र लिखकर इस संबंध में उन डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द करने की मांग भी की गई थी, जो शीर्ष अदालत की पाबंदी के बावजूद शर्मिंदगी पूर्ण दो उंगलियों वाला परीक्षण करते हैं।

क्या है पूरा मामला?

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक बीते 26 सितंबर को वायुसेना के एक फ्लाइट लेफ्टिनेंट को एक महिला अधिकारी के बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

पुलिस ने बताया कि तमिलनाडु के कोयंबटूर में रेडफील्डस स्थित वायुसेना प्रशासनिक कॉलेज में प्रशिक्षण ले रहे छत्तीसगढ़ निवासी अमितेश हरमुख पर एक महिला सहकर्मी ने रेप का आरोप लगाया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार, वायुसेना के अधिकारियों द्वारा अमितेश पर कार्रवाई करने में कथित तौर पर विफल रहने के बाद महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई।

पीड़ित महिला अफसर ने जिस सहकर्मी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है, वे एयर फोर्स में फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट है और पीड़िता के साथ कोयंबटूर के वायु सेना प्रशासनिक कॉलेज के एक इंडक्शन कार्यक्रम में बैचमेट था।

द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, एफआईआर में अमितेश के खिलाफ लगाए गए इल्ज़ाम के अतिरिक्त भारतीय वायुसेना पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। एफआईआर में बताया गया है कि यौन उत्पीड़न की शिकायत करने पर पीड़िता पर दबाव डाला गया। इस मुद्दे पर सीनियर अफ़सरों ने उनका साथ देने के बजाय उन्हें परिवार और संस्थान की प्रतिष्ठा का हवाला दिया। वायुसेना ने महिला की शिकायत के 15 दिन बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। जिसके बाद मामले की शिकायत कोयंबटूर के एक महिला पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई। इसके बाद 26 सितंबर को आरोपी को ऑल-वुमेन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

न्यूज़ मिनट ने एफआईआर की प्रति देखी है, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि 10 सितंबर (जिस दिन यह घटना हुई) को क्या-क्या हुआ था। महिला ने बताया है कि 9 तारीख की शाम को उन्हें चोट लग गई थी और उन्हें दर्दनिवारक (पेनकिलर) दवाइयां दी गई थीं। इसी दिन देर शाम शिकायतकर्ता अपने कुछ साथियों के साथ ऑफिसर्स मेस के बार में गईं, जहां उन्होंने दो ड्रिंक लिए। अमितेश भी वहां मौजूद थे और एक ड्रिंक उन्होंने ही महिला के लिए खरीदा।

इसके बाद उनकी तबीयत ख़राब हुई और उन्हें उल्टी हुई, जिसके बाद उनकी दो साथियों ने उन्हें उनके कमरे में ले जाकर सुला दिया। महिला अफसर के मुताबिक, सब-कॉन्शियस स्टेट में उन्हें इतना याद है कि आरोपी उनके कमरे में दाख़िल हुआ और उन्हें दो-तीन बार जगाने का प्रयास किया था। इस पर महिला ने उन्हें कहा कि वे उन्हें सोने दें और वहां से चले जाएं।

शिकायत के अनुसार, महिला को अगली सुबह उनकी उसी दोस्त ने उठाया, जो पिछली रात उन्हें कमरे में छोड़कर गई थीं। दोस्त ने महिला से पूछा कि अमितेश उनके साथ कमरे में क्यों थे और क्या उन्होंने इसके लिए सहमति दी थी। उनकी दोस्त ने जो देखा (न्यूज़ मिनट ने इसकी जानकारी साझा नहीं की है) उसके आधार पर उन्हें संदेह हुआ कि महिला के साथ यौन उत्पीड़न हुआ है। इसके बाद महिला को भी अपनी शारीरिक अवस्था के चलते एहसास हुआ कि उनके साथ बलात्कार हुआ है। इसे लेकर जब उन्होंने अमितेश से सवाल किया तब उन्होंने कथित तौर पर उनकी निजता में दखल देने के लिए माफ़ी मांगी और कहा कि वे चाहें तो ‘उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई’ कर सकती हैं।

वायुसेना और सीनियर अफ़सरों का हतोत्साहित करने वाला रवैया

पीड़िता के मुताबिक जब उन्होंने और उनकी एक साथी ने इस मुद्दे पर अपने सीनियर अफ़सरों से संपर्क किया तो उन्हें निराशा मिली। उनका साथ देने के बजाय उन्हें परिवार और संस्थान की प्रतिष्ठा का हवाला दिया गया। पीड़िता के अनुसार, एक महिला विंग कमांडर ने कहा कि उन्हें अपने परिवार और अपनी प्रतिष्ठा के बारे में सोचना चाहिए। हालांकि, कुछ सीनियर विंग कमांडरों और अन्य पुरुष अधिकारीयों ने उन्हें आगे बढ़ने को कहा। लेकिन फिर पसोपेश और नाम बाहर आने के डर से पीड़िता रुक गईं।

इसके अगले रोज इन अधिकारियों ने महिला और उनकी दोस्त को बुलाया और कथित तौर पर दो विकल्प दिए- या तो वे शिकायत दर्ज करवाएं या लिखित में स्वीकार करें कि यह सहमति से बनाया गया संबंध था। इसी के बाद महिला ने शिकायत दर्ज करवाने का निर्णय लिया और अपनी दोस्त के साथ मेडिकल जांच के लिए अस्पताल पहुंचीं।

जांच के नाम पर प्रतिबंधित टू फिंगर टेस्ट किया गया

महिला का आरोप है कि जब वे मेडिकल के लिए वायुसेना के अस्पताल पहुंचीं तब वहां मौजदू दो डॉक्टरों को इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि मेडिकल कैसे किया जाता है। उनका आरोप है कि जांच के दौरान वजाइनल स्वैब लेने के साथ चिकित्सक ने उनका टू फिंगर टेस्ट भी किया। पीड़िता का कहना है कि उन्हें यह बाद में मालूम चला कि रेप की मेडिकल जांच में यह टेस्ट वर्जित है। महिला अफसर का ये भी कहना है कि मॉरल पुलिसिंग के जरिये उन पर दबाव बनाया गया। उनकी सेक्सुअल हिस्ट्री (पूर्व में रहे यौन संबंधों) के बारे में भी सवाल किया गया, जो प्रतिबंधित है।

सबूतों को लेकर बरती गई लापरवाही

शिकायतकर्ता का कहना है कि उन्हें बताया गया कि 11 सितंबर को लिया गया स्वैब सैंपल टेस्ट में निगेटिव पाया गया, लेकिन उन्हें बाद में मालूम चला कि यह बात झूठ थी। उन्होंने एफआईआर दर्ज होने वाले दिन- 20 सितंबर को कहा था कि उस दिन तक यह सैंपल संबंधित अथॉरिटी को नहीं भेजा गया था।

न्यूज़ मिनट ने जिन फॉरेंसिक मेडिकल जानकर से बात की है, उन्होंने बताया वजाइनल स्वैब को उसी दिन टेस्ट करना चाहिए, जब उसे लिया गया। देर होने की स्थिति में स्वैब को एयरटाइट डिब्बे में रखा जाना चाहिए। ऐसा न किए जाने पर उस पर संक्रमण हो सकता है जिससे टेस्ट के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।

‘हृदयहीन रवैया और उत्पीड़न’

महिला अफसर की शिकायत के अनुसार, कथित बलात्कार के दो दिन बाद 12 सितंबर, 2021 को संस्था के दो अधिकारियों ने उन्हें और उनकी दोस्त को मिलने के लिए बुलाया। दोनों को अलग करने के बाद एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें पीड़िता का बयान दर्ज करना है। जब महिला ने कहा कि वह ठीक मानसिक अवस्था में नहीं है, तो इन अधिकारी ने कथित तौर पर कहा कि वह बहुत व्यस्त हैं और महिला को तुरंत फैसला करना है कि क्या वह शिकायत दर्ज करना चाहती हैं या फिर लिखित में देना चाहती हैं कि वह ऐसा नहीं करना चाहतीं।

एफआईआर के अनुसार, पीड़िता जब शिकायत वापस लेने के लिए अपना बयान लिख रही थीं, उस समय यह अधिकारी बहुत ख़राब तरीके से पेश आए। अधिकारी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता की दोस्त से शिकायत वापस लेने के बयान पर दस्तखत करवाने का भी प्रयास किया। जब इन दोस्त ने कहा कि वह ऐसा करने से पहले कानूनी सलाह लेना चाहेंगी, तो उन पर कथित तौर पर चिल्लाया गया, कहा गया कि वे किसी को फोन नहीं कर सकतीं। पीड़िता और दोस्त दोनों को कथित तौर पर उनके फोन बंद करने और उन्हें मेज पर रखने के लिए कहा गया था।

डराना-धमकाना और ब्लैकमेलिंग

घटना के बाद अमितेश के रोज कक्षाओं में आने, इधर-उधर घूमकर सबसे बात करने और कथित तौर पर यह बताने कि उन्होंने क्या किया है, पर पीड़िता ने 14 सितंबर को इस बारे में पूछताछ कि उन्हें (अमितेश को) कब ऐसा करने से मना किया जाएगा और अगर ऐसा नहीं होता तो क्या वे कोर्स छोड़ सकती हैं।

एफआईआर के अनुसार, पीडि़ता ने बताया कि वे जिनके मार्गदर्शन में कोर्स कर रही थीं, उन कानूनी अधिकारियों से उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली। उनका आरोप है कि उन्हें ‘ब्लैकमेल’ किया गया कि या तो पुलिस में शिकायत दर्ज करवाएं या ‘सिस्टम पर भरोसा’ करें। महिला का आरोप है कि उनसे कई बार उनकी शिकायत वापस लेने की अर्जी हाथ से लिखकर देने को कहा गया। 15 सितंबर को जब उन्होंने अपने बयान का प्रिंट मांगा तब उन्हें मालूम चला कि उनके और उनकी दोस्त के बयान को बदला गया था।

भारतीय वायुसेना से टू फिंगर टेस्ट और आंतरिक तौर पर शिकायत दर्ज करवाने पर महिला को धमकाने के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर रक्षा जनसंपर्क अधिकारी ने द न्यूज़ मिनट को बताया कि मामला विचाराधीन और और वायुसेना इस समय इस पर कोई टिप्पणी नहीं सकती।

इस बीच अमितेश ने अदालत में हलफनामा दायर कर कहा है कि कोर्ट मार्शल का मामला होने के चलते न ही पुलिस न ही कोई क्रिमिनल अदालत उनकी जांच कर मुकदमा चला सकते हैं।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, जब अमितेश को अदालत में पेश किया गया था तब वायुसेना ने याचिका दायर कर अधिकारी को उसे सौंपने के लिए कहा ताकि उसका कोर्ट मार्शल किया जा सके और कहा कि सिविल पुलिस नागरिक कानूनों के तहत जांच एवं गिरफ्तारी नहीं कर सकती है। लेकिन पुलिस ने कहा कि वे अपनी जांच जारी रखेंगी क्योंकि वायुसेना ने महिला की शिकायत के 15 दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की थी।

अभी क्या चल रहा है इस मामले में ?

द न्यूज मिनट के मुताबिक, कोयंबटूर पुलिस ने आरोपी के कन्फेशन का वीडियो और मामले से जुड़े अन्य सबूत न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां जमा कर दिए हैं। गुरुवार 30 सितंबर को अमितेश हरमुख की पुलिस कस्टडी खत्म हो गई। उन्हें रेप के आरोप पर लगने वाली आईपीसी की धारा 376 के तहत नामजद किया गया है। उनके वक़ील ने कोर्ट में एफ़िडेविट दायर किया है। इसके जवाब के लिए पुलिस ने कोर्ट से समय मांगा है। वहीं, एयर फ़ोर्स अथॉरिटी ने इस केस के ट्रांसफर के लिए कोर्ट में अपील की है। खबर है कि ये अपील स्वीकार कर ली गई है यानी केस वायु सेना के हवाले कर दिया गया है।

संस्थान का नाम बचाने के लिए पीड़िताओं की आवाज़ दबा दी जाती है!

गौरतलब है कि इससे पहले भी सेना में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां संस्थान के नाम को बचाने के लिए पीड़िताओं की आवाज़ दबाने के आरेप लगते रहे हैं। आप समझ सकते हैं कि किसी की पूरी दुनिया उस एक रात में बदल जाती है, लेकिन हमारे प्रशासन में जमीं पितृसत्ता और पुरुष प्रधान मानसिकता पर जमीं धूल महिलाओं की लाख कोशिश के बाद भी आज तक नहीं हट पाई है।

1997 से पहले महिलाएं कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न की शिकायत आईपीसी की धारा 354 (महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ या उत्पीड़न के मामले) और 509 (किसी औरत के सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात या हरकत) के तहत दर्ज करवाती थीं। भंवरी देवी के मामले में साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ कुछ निर्देश जारी किए।

इन निर्देशों को ही 'विशाखा गाइडलाइन्स' के रूप में जाना जाता है। इसके तहत कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। साल 1997 से लेकर 2013 तक दफ़्तरों में विशाखा गाइडलाइन्स के आधार पर ही इन मामलों को देखा जाता रहा लेकिन 2013 में 'सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट' आया। जिसमें विशाखा गाइडलाइन्स के अनुरूप ही कार्यस्थल में महिलाओं के अधिकार को सुनिश्चित करने की बात कही गई। इसके साथ ही इसमें समानता, यौन उत्पीड़न से मुक्त कार्यस्थल बनाने का प्रावधान भी शामिल किया गया। इस एक्ट के तहत किसी भी महिला को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ सिविल और क्रिमिनल दोनों ही तरह की कार्रवाई का सहारा लेने का अधिकार है।

हालांकि इस कानून के बाद भी महिलाओं के प्रति अपराध और अत्याचार कम नहीं हुए हैं और न ही शिकायत के बाद महिला के प्रति लोगों के व्यवहार में कोई सुधार हुआ है। शिकायतकर्ता महिला को क्या कुछ सहना पड़ता है ये किसी से छिपा नहीं है। सेना में इसके लिए अपने अलग कानून भी हैं, लेकिन उन पर अमल कितना हो पाता है ये अपने आप में बड़ा सवाल है।

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