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दो टूक: इज़रायल को युद्ध अपराधी घोषित किया जाना चाहिए

ग़ज़ा में इज़रायल ने जो-कुछ किया है, वह अंतरराष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक युद्ध अपराध—मानवता के ख़िलाफ़ अपराध—की श्रेणी में आता है।
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फ़ोटो साभार : The National

ग़ज़ा-फ़िलिस्तीन पर 7 अक्टूबर 2023 से भीषण सैनिक हमला करने, जनसंहार करने और भयानक विनाश और अत्याचार करने के लिए इज़रायल को युद्ध अपराधी घोषित किया जाना चाहिए।

ग़ज़ा में इज़रायल ने जो-कुछ किया है (जो इस वक़्त—23 नवंबर को—भी जारी है), वह अंतरराष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक युद्ध अपराध—मानवता के ख़िलाफ़ अपराध—की श्रेणी में आता है। इसके लिए इज़रायल पर—और इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर—अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत (आईसीसीः हेग-नीदरलैंड) में मुक़दमा चलाना चाहिए।

सऊदी अरब की राजधानी रियाद में 11 नवंबर 2023 को इस्लामी-अरब सम्मेलन में की गयी यह मांग—कि ग़ज़ा पर हमला करने के लिए इज़रायल पर अंतरराष्ट्रीय अदालत में युद्ध अपराध का मुक़दमा चले—पूरी तरह जायज़ है। इसका समर्थन किया जाना चाहिए। इस सम्मेलन में सऊदी अरब, ईरान, तुर्की, क़तर, सीरिया, फ़िलिस्तीन आदि देशों के राष्ट्रपतियों/शासनाध्यक्षों ने हिस्सा लिया।

क़ायदे से इज़रायली युद्ध अपराधियों और उनके सरगनाओं पर उसी तरह से मुक़दमा चलना चाहिए, जिस तरह द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद नाज़ी युद्ध अपराधियों पर नूरमबर्ग (जर्मनी) की अदालत में चला था (1945-46).

ग़ज़ा-फ़िलिस्तीन पर इज़रायली यहूदीवाद और इज़रायली आतंकवाद की ओर से किये गये हमले को किसी भी तरह से युद्ध नहीं कहा जा सकता। यह जनसंहार (genocide) है—सिर्फ़ जनसंहार। इसका मक़सद है, फ़िलिस्तीनी जनता का धार्मिक/नस्ली/जातीय सफ़ाया (ethnic cleansing) करना। यह अत्यंत क्रूर ढंग का इस्लामाफ़ोबिया है। और इसे अमेरिकी साम्राज्यवाद की खुली सरपरस्ती मिली हुई है।

इस जनसंहार के निशाने पर कौन है?

इज़रायल जिन पर गोले दाग रहा है, बमबारी कर रहा है, वे सब-के-सब (99 प्रतिशत से ज़्यादा) निहत्थे फ़िलिस्तीनी नागरिक हैं—औरतें-बच्चे-नौजवान-बूढ़े, अस्पताल, मरीज, डॉक्टर, अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी, एंबुलेंस सेवाएं, राहत/बचाव दल, राहत/शरणार्थी शिविर, स्कूल, पानी-बिजली-राशन सप्लाई करनेवाली एजेंसियां, घनी बस्तियां, पत्रकार/मीडिया संस्थान, संयुक्त राष्ट्र संघ के दफ़्तर/कर्मचारी... इसे जनसंहार न कहा जाये तो क्या कहा जाये! यह युद्ध तो कतई नहीं है। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ युद्ध अपराध है, अत्यंत हिंसक इस्लामोफ़ोबिया है, फ़िलिस्तीनी जनता का धार्मिक/नस्ली सफ़ाया कर देने का अभियान है, इसे अमेरिका का समर्थन मिला हुआ है।

अगर इसे युद्ध कहा जाता है, तो इसे फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ इज़रायल का जनसंहारक युद्ध (genocidal war) कहा जाना चाहिए।

भारत के वरिष्ठ पत्रकार मुज़म्मिल जलील ने अपने फेसबुक पेज पर 20 नवंबर को, तस्वीरों और नामों के साथ, एक सूची जारी करके बताया कि इज़रायल ने 7 अक्तूबर के बाद से अब तक 60 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों की हत्या कर दी है।

इससे पता चलता है कि इज़रायल ने फ़िलिस्तीन में पत्रकारों को ख़ास निशाना बनाया है। एक महीने से कुछ ज्यादा समय से चल रहे जनसंहारक युद्ध में इतने कम दिनों में इतनी छोटी-सी जगह में इतने ज़्यादा पत्रकार कहीं और मारे गये हों, मुझे याद नहीं आता। फ़िलिस्तीन की ग़ज़ा पट्टी, जहां इज़रायल का हमला चल रहा है, 365 वर्ग किलोमीटर (क़रीब 35-36 किलोमीटर) लंबी-पतली पट्टी है, जहां 22 लाख लोगों की घनी बस्तियां हैं।

अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा थोपे गये वियतनाम युद्ध, अफ़गानिस्तान युद्ध और इराक़ युद्ध में, जो कई-कई साल चले, इतने ज़्यादा पत्रकार इतनी कम अवधि (एक-डेढ़ महीने) में नहीं मारे गये होंगे।

भारत में फ़िलिस्तीन के राजदूत अदनान अबू अल्हैजा ने दिल्ली में 13 नवंबर को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ अख़बार को जो बताया, उससे इस जनसंहारक युद्ध की भीषणता का कुछ अनुमान होता है। उन्होंने बताया कि ग़ज़ा पट्टी पर 7 अक्टूबर से जारी इज़रायली हमले और बमबारी में अब तक (13 नवंबर तक) तकरीबन 14000 लोग मारे जा चुके हैं। उन्होंने यह भी बताया कि (संकट की इस घड़ी में) भारत ने (फ़िलिस्तीन के लिए) कुछ नहीं किया।

ग़ज़ा में जो लोग मारे गये, उनमें आधी से ज़्यादा औरतें और बच्चे हैं। ग़ज़ा में इज़रायली यहूदीवाद और आतंकवाद क़हर बरपा कर रहा है। दुनिया के शक्तिशाली और प्रभावशाली देश ख़ामोश हैं!

(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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