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मुद्दा: क्या कश्मीर में लोकतंत्र है

भारत में बचा-खुचा लोकतंत्र अभी थोड़ा-बहुत काम कर रहा है। लेकिन कश्मीर की हालत क्या है? क्या वह हमारे सार्वजनिक राजनीतिक विमर्श और चिंता का विषय है?
jammu and kashmir
फाइल फ़ोटो।

जब भारत के संदर्भ में लोकतंत्र या बूर्ज़्वा डेमोक्रेसी के लगातार सिकुड़ते जाते दायरे के बारे में बात होती है, तब क्या उस वक़्त भारत के हिस्से वाला कश्मीर हमारे जेहन में रहता है?

भारत में बचा-खुचा लोकतंत्र अभी थोड़ा-बहुत काम कर रहा है। लेकिन कश्मीर की हालत क्या है? क्या वह हमारे सार्वजनिक राजनीतिक विमर्श और चिंता का विषय है?

शायद लोगों को न पता हो। कश्मीर में सिर्फ़ सरकारी या सरकार-समर्थित मीटिंगें या सार्वजनिक कार्यक्रम ही हो सकते हैं (वे भी गिने-चुने)। लोकतांत्रिक ढंग से अपनी बात रखने और विरोध और असहमति जताने वाली सार्वजनिक मीटिंगों, सभाओं, सेमिनारों, अकादमिक बहसों, जुलूसों, प्रदर्शनों, धरना पर सख़्ती से रोक लगी है—इन्हें नहीं किया जा सकता। अगर आप फिर भी आमादा हैं, तो जेल जाने या सुरक्षा बलों की गोलियां झेलने के लिए तैयार रहिये।

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शेष भारत में कश्मीर वाली यह हालत आ रही है। बल्कि कुछ जगह तो आ भी चुकी है।

कश्मीर में आप ज़ोर-ज़ुल्म और ज़्यादती के ख़िलाफ़ कोई दरवाजा नहीं खटखटा सकते। न्याय हो पाना और न्याय मिल पाना लगभग असंभव हो गया है। (शेष भारत में भी यही हालत बनती नज़र आ रही है।)

शायद यही वजह रही होगी, लेखक और एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के भूतपूर्व अध्यक्ष आकार पटेल ने पिछले दिनों समाचार वेबसाइट ‘द वायर’ से बातचीत में कहा कि दक्षिण एशिया में कश्मीर ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां लोकतंत्र नहीं है।

कुछ इसी तरह की बात जम्मू-कश्मीर की भूतपूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने भी कही। इसी समाचार वेबसाइट से हाल में बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि कश्मीर एक खुली जेल बन चुका है, जहां लोगों के न तो कोई अधिकार हैं, न किसी तरह की आज़ादी।

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महबूबा मुफ़्ती का यह भी कहना था कि कश्मीर में दस लाख फ़ौजी तैनात हैं, और यह क्षेत्र दुनिया के सर्वाधिक सैन्यीकृत (militarized) क्षेत्रों में से एक है।

यही ‘सैन्यीकृत’ मानसिकता 17 अक्टूबर 2022 को दिल्ली हवाई अड्डे पर दिखायी पड़ी, जब कश्मीर की फ़ोटो पत्रकार सना इरशाद मट्टू को न्यूयार्क (अमेरिका) जाने से रोक दिया गया। 2022 की पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता सना को पुरस्कार लेने के लिए न्यूयार्क जाना था।

सना इरशाद मट्टू को यात्रा से रोकने का कारण तो नहीं बताया गया, लेकिन पता चला है कि उन्हें और कश्मीर घाटी के कई अन्य पत्रकारों को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने ‘ख़तरनाक’ बताते हुए उन सबको उड़ान-वर्जित सूची में डाल रखा है।

जो कश्मीर की ज़मीनी सच्चाई को सामने ले आये, वह सरकार की निगाह में ‘ख़तरनाक’ है! सना यही काम कर रही हैं।

कश्मीर में लोकतंत्र-विहीनता के अनगिनत उदाहरण हैं। पत्रकारों पर दमन आम बात हो चली है। जिस बड़े पैमाने पर वहां नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं का सेना की बंदूक के बल पर अपहरण किया गया है, उसने ख़ासा डरावना रूप ले लिया है। तथाकथित मुठभेड़ों में कश्मीरी नागरिकों का मारा जाना रोज़मर्रा की घटना बन गयी है।

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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