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मुद्दा: कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीम चुप्पी

यशंवत सिन्हा की प्रेस कॉन्फ्रेंस इस माने में ग़ौर करने लायक थी कि जब कश्मीर का मुद्दा देश के राजनीतिक विमर्श से लगभग ग़ायब है, तब राष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार ने उस ओर हमारा ध्यान खींचा और उस पर फ़ोकस किया।
Yashwant Sinha

भारत के राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर के ज्वलंत मुद्दे पर देश के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) की सुप्रीम चुप्पी पर गंभीर सवाल उठाया है। उन्होंने इस चुप्पी को बहुत चिंताजनक व अफ़सोसनाक बताया है।

जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 9 जुलाई 2022 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में यशवंत सिन्हा ने जो-कुछ कहा, उससे इस धारणा को मज़बूती मिलती है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सुप्रीम कोर्ट बन गया है।

राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 18 जुलाई को होगा और नतीजा 21 जुलाई को आयेगा। इस सिलसिले में यशवंत सिन्हा चुनाव अभियान में निकले हुए हैं और विभिन्न राज्यों का दौरा करते हुए अपने लिए समर्थन जुटा रहे हैं। श्रीनगर में 9 जुलाई को वह इसी मुहिम के तहत मौजूद थे।

जिस संदर्भ में यशवंत सिन्हा सुप्रीम कोर्ट को कठघरे में खड़ा कर रहे थे, उसका संबंध संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने और इसे चुनौती देनेवाली याचिकाओं से है, जो सुप्रीम कोर्ट में अगस्त 2019 से सुनवाई का इंतज़ार कर रही हैं।

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को केंद्र की भाजपा सरकार ने अगस्त 2019 में ख़त्म कर दिया और स्वतंत्र राज्य के तौर पर जम्मू-कश्मीर के अस्तित्व को समाप्त करते हुए उसे दो केंद्र-शासित हिस्सों में बांट दिया। केंद्र सरकार की इस अलोकतांत्रिक, दमनकारी कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की गयीं। लेकिन सुनवाई के लिए उनका नंबर अभी तक नहीं आया है।

यशवंत सिन्हा ने कहा कि यह गहरे अफ़सोस व चिंता की बात है कि क़रीब तीन साल बीत जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक इन याचिकाओं पर सुनवाई भी नहीं शुरू की। उनका कहना था कि संवैधानिक मामलों को लंबे समय तक लटकाये रखने और उनका निपटारा न किये जाने से अदालत की साख ख़त्म हो जाती है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक और महत्वपूर्ण बात यशवंत सिन्हा ने कही। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में जोर-ज़बर्दस्ती से और जोड़-तोड़ कर आबादी का जो फेरबदल किया जा रहा है, मैं उसके ख़िलाफ़ हूं। उन्होंने मांग की कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए।

यह प्रेस कॉन्फ्रेंस इस माने में ग़ौर करने लायक थी कि जब कश्मीर का मुद्दा देश के राजनीतिक विमर्श से लगभग ग़ायब है, तब राष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार ने उस ओर हमारा ध्यान खींचा और उस पर फ़ोकस किया।

कश्मीर के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की सरकार-परस्त नीति को कठघरे में खड़ा करना और उसकी कुछ सख़्त लहजे में आलोचना करना—यह काम विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने किया।

समाचार माध्यम के एक हिस्से में कश्मीरी जनता के ख़िलाफ़ द्वेषपूर्ण, गंदा और झूठा प्रचार चलाये जाने की उन्होंने कड़ी निंदा की। जब यशवंत सिन्हा ने कहा कि कश्मीर कई तरह की हिंसा झेल रहा है, तब उन्होंने साफ़ कर दिया कि इसमें सरकार/सेना की ओर से की जा रही हिंसा शामिल है, और उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

यशवंत सिन्हा ने शांति, न्याय, सम्मान, मानवाधिकार व अन्य अधिकारों के लिए कश्मीरी जनता के चलाये जा रहे संघर्ष को अपना समर्थन दिया और एकजुटता जतायी।

कश्मीर व कश्मीरी जनता के पक्ष में ग़ैर-कश्मीरी विपक्ष की ओर से ऐसी ज़िम्मेदार, संवेदनशील आवाज़ लंबे समय के बाद सुनायी पड़ी।

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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