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मुद्दा: कश्मीर को क्या भारत जोड़ो यात्रा जोड़ पायेगी

कश्मीर का—कश्मीरी जनता का—भारत से गहरा अलगाव (alienation) तीस साल से भी ज़्यादा समय से चला आ रहा है। क्या यह यात्रा अलगाव के कारणों की शिनाख़्त कर पायेगी और उन्हें दूर करने का उपाय बता पायेगी?
kashmir
प्रतीकात्मक तस्वीर।

यह अच्छी ख़बर है कि जम्मू-कश्मीर की भूतपूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारुक़ अब्दुल्ला और सीपीआई-एम (माकपा) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद यूसुफ़ तारीगामी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन किया है।

इन नेताओं ने कहा है कि यह यात्रा जब जम्मू-कश्मीर में दाख़िल होगी, हम इसमें शामिल होंगे और इसके साथ चलेंगे।

इस क़दम का स्वागत किया जाना चाहिए। इसके दूरगामी राजनीतिक नतीज़े निकल सकते हैं। हो सकता है, यह यात्रा कश्मीर के लंबे समय से चले आ रहे दुख-दर्द और यातना को उजागर कर सके। नये राजनीतिक समीकरण भी बन सकते हैं।

लेकिन, सवाल है, क्या भारत जोड़ो यात्रा कश्मीर को भारत से जोड़ पायेगी?

कश्मीर का—कश्मीरी जनता का—भारत से गहरा अलगाव (alienation) तीस साल से भी ज़्यादा समय से चला आ रहा है। क्या यह यात्रा अलगाव के कारणों की शिनाख़्त कर पायेगी और उन्हें दूर करने का उपाय बता पायेगी?

इस अलगाव ने 5 अगस्त 2019 के बाद से और भी गंभीर रूप अख़्तियार कर लिया है। उस दिन कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता आया है, ख़त्म कर दिया, और एक राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर के अस्तित्व को ख़त्म करते हुए उसे दो केंद्र-शासित इकाइयों में बांट दिया। तब से इस केंद्र-शासित क्षेत्र में न विधानसभा है, न चुनी हुई सरकार है। विधानसभा चुनाव कब होगा, किसी को पता नहीं।

5 अगस्त 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर में, ख़ासकर कश्मीर घाटी में, जनता पर राजसत्ता के दमन ने और ज़ोर पकड़ लिया है। जम्मू-कश्मीर लगभग सैनिक राज्य (garrison state) बन गया है—यह दुनिया के सर्वाधिक सैन्यीकृत (militarised) क्षेत्रों में से एक है। यहां भारतीय सेना को हर तरह की खुली छूट मिली हुई है। मुठभेड़ हत्याएं आम चलन बन गयी हैं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019, 2020 और 2021 के तीन सालों में कुल मिलाकर लगभग 1000 कश्मीरी नौजवान सेना के साथ तथाकथित मुठभेड़ों में मारे जा चुके हैं। कश्मीरी जनता की निगाह में ये ठंडे दिमाग़ से की गयी हत्याएं हैं। वर्ष 2022 का आंकड़ा आना बाक़ी है। जो मारे गये/मारे जा रहे हैं, वे भारतीय नागरिक हैं—यह नहीं भूलना चाहिए।

कश्मीर में मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन लंबे समय से जारी है। राजनीतिक गतिविधियों और आंदोलनों पर पूरी तरह रोक लगी है। राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को या तो जेलों में डाल दिया गया है या फिर उन्हें उनके घरों में क़ैद रखा गया है। लोकतांत्रिक और नागरिक अधिकारों को बर्बरता से कुचल दिया गया है, और प्रेस की स्वतंत्रता को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया गया है। कई पत्रकारों को स्वतंत्रतापूर्वक अपना काम करने से रोक दिया गया है, कई तो जेलों में बंद हैं, और कई अपनी जान बचाने के लिए निष्क्रिय हो गये हैं या अपने घरों से भागे हुए हैं।

ऐसे समय में, जबकि सेना की बंदूक के बल पर कश्मीर में राजनीतिक स्वतंत्रता का पूरी तरह अपहरण कर लिया गया है और राजनीतिक प्रक्रिया को निरर्थक बना दिया गया है, यह यात्रा इस राज्य में प्रवेश करेगी। सवाल हैः क्या नरेंद्र मोदी सरकार यात्रा को इस राज्य में जाने देगी और उसे सुरक्षा मुहैया करायेगी? यह भी पूछा जा रहा है कि क्या यह यात्रा कश्मीर में राजनीतिक स्वतंत्रता की बहाली की दिशा में कारगर होगी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में 7 सितंबर 2022 को कन्याकुमारी (तमिलनाडु) से शुरू हुई भारत जोड़ा यात्रा जनवरी 2023 के तीसरे हफ़्ते में जम्मू-कश्मीर में दाख़िल होगी। राजधानी श्रीनगर के लाल चौक पर 26 जनवरी 2023 को तिरंगा झंडा फहराने के साथ भारत जोड़ो यात्रा का समापन होगा।

लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराने का मसला ख़ासा समस्याग्रस्त है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि देश के अन्य राज्यों के लिए तिरंगा झंडे का जो मतलब है, ठीक वही मतलब कश्मीर के लिए नहीं है। हम मानें-या-न मानें, कश्मीरी जनता के बहुत बड़े हिस्से के लिए तिरंगा झंडा भारत के कब्ज़े, आधिपत्य और दमन का प्रतीक बन चुका है।

जो कश्मीरी जनता 5 अगस्त 2019 से लगातार लॉकडाउन, कर्फ़्यू, तलाशी अभियान, फ़र्ज़ी मुठभेड़, लोगों की ज़बरन गुमशुदगी, यातना शिविर, घेराबंदी-बाड़ाबंदी-नाकाबंदी-कंटीले तारबंदी के दौर में रह रही है और जिसके आत्मसम्मान और गरिमा को पूरी तरह से कुचल दिया गया है—उसके लिए लाल चौक पर तिरंगा झंडा बेमानी है।

विडंबना यह है कि कश्मीरी जनता के ख़िलाफ़ ये सारे अभियान तिरंगा झंडा लहराते हुए किये गये हैं। राहुल गांधी इस जटिल सवाल से कैसे रूबरू होते हैं, यह देखना है।

(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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