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जम्मू-कश्मीर: बेहद कम उम्मीद के साथ बकाया वेतन का इंतज़ार कर रहे कंटिंजेंट पेड वर्कर्स

जम्मू-कश्मीर में ऐसे क़रीब 7500 कंटिंजेंट पेड वर्कर्स (CPW) हैं जो सालों से बिना वेतन के काम कर रहे हैं।
jammu and kashmir
फ़ोटो साभार: फेसबुक

श्रीनगर: शब्बीर अहमद भट क़रीब एक दशक से दक्षिण कश्मीर के कुलगाम ज़िले के एक सरकारी स्कूल में काम कर रहे हैं। वह सबसे पहले स्कूल आते हैं और स्कूल खोलते हैं और सबके जाने के बाद ही जाते हैं।

भट की चार अविवाहित बेटियां, दो बेटे और एक बीमार पत्नी है, लेकिन प्राथमिक विद्यालय में काम करने के बावजूद, उन्हें कोई पैसा या पारिश्रमिक नहीं मिलता है और वह अपना गुज़ारा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

भट ने न्यूज़क्लिक से कहा, "बिना वेतन के काम करते हुए मुझे पांच साल से ज़्यादा हो गए हैं। मैं अब अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए मज़दूरी भी करता हूं, और ऐसा लगता है कि इतने सालों तक कड़ी मेहनत करने के बाद भी कोई राहत नहीं मिली है।"

भट ने स्कूल बनाने के लिए शिक्षा विभाग को अपनी एक कनाल ज़मीन भी दान में दी है। जिसके बाद वह अपनी सेवाओं के बदले में नियमित आय प्राप्त करने की उम्मीद में विभाग में एक कंटिंजेंट पेड वर्कर (CPW) के रूप में कार्यरत थे।

जम्मू-कश्मीर में ऐसे क़रीब 7500 कंटिंजेंट पेड वर्कर (CPW), सालों से बिना वेतन के काम कर रहे हैं। उनमें से लगभग 400 अकेले कुलगाम ज़िले में हैं, जहां सौ से अधिक CPW शिक्षा विभाग को अपनी ज़मीन-जायदाद दान करने के बाद अपने वेतन का इंतज़ार कर रहे हैं।

सीपीडब्ल्यू के ज़िला अध्यक्ष गुलज़ार अहमद का कहना है कि सरकारी उदासीनता के सबसे ज़्यादा शिकार मज़दूर हैं।

उन्होंने कहा, "उनमें से ज़्यादातर, समाज के कमज़ोर तबकों से आते हैं और उनकी दुर्दशा दिल दहला देने वाली है।"

गुलज़ार अहमद कहते हैं, "ऐसे अन्य लोग भी हैं जिन्होंने 5 कनाल से अधिक बाग की ज़मीन दान की है, जिसकी कीमत करोड़ों रुपये है, लेकिन वे अस्थायी घरों में बेहद गरीबी में रहते हैं।"

साल 2017 के बाद तत्कालीन पीडीपी-बीजेपी सरकार द्वारा इस दावे पर उनका वेतन रोक दिया गया था कि नए विभाग प्रमुख के तहत उनका वेतन जारी किया जाएगा, इसके बाद से श्रमिकों ने कई विरोध प्रदर्शन किए हैं।

500 रुपये से लेकर 2000 रुपये तक के कम वेतन पर काम करने वाले कंटिंजेंट पेड वर्कर्स (CPW) पर सफाई, झाडू लगाने और चौकीदार के रूप में काम करने की ज़िम्मेदारी थी।

गुलज़ार अहमद ख़ुदवानी में लगभग 23 कमरों और अलग बाथरूम वाले एक मिडिल स्कूल का रखरखाव करते हैं। उन्होंने कहा कि वे लंबित वेतन समेत अपनी अन्य मांगों को लेकर लगातार प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

कंटिंजेंट पेड वर्कर्स (CPW) भी सरकार के गठन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनका मानना है कि एक प्रतिनिधि सभा मौजूदा नौकरशाही व्यवस्था की तुलना में उनकी दुर्दशा के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण होगी। हालांकि, कर्मचारी CPW के रूप में काम करना जारी रखते हैं; अहमद के अनुसार, वे अपनी सेवा को नियमित करने को लेकर आशान्वित हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया है कि उन्हें न्यूनतम मज़दूरी कानून के तहत लाया जाएगा। अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

1 मई को मनाए जा रहे विश्व श्रम दिवस पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री समेत राजनैतिक नेतृत्व ने कहा कि बेहतर मज़दूरी के अभाव और आर्थिक अवसरों की कमी के कारण इस क्षेत्र के अधिकांश श्रमिक एक बड़े संकट का सामना कर रहे हैं।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता, एमवाई तारिगामी ने सोमवार को श्रीनगर में एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जहां उन्होंने श्रमिकों के प्रति उदासीन रवैये के लिए प्रशासन की आलोचना करते हुए वेतन वृद्धि की मांग की।

तारिगामी ने 'क्षेत्र में चुनावी प्रक्रिया को रोकने' के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली सरकार की भी आलोचना की।

तारिगामी ने कहा, "आज के समय में जब महंगाई आसमान छू रही है, ऐसे में गुज़ारा करना मुश्किल हो गया है। न्यूनतम मज़दूरी के रूप में 24,000 रुपये की राशि फिक्स की जानी चाहिए, भले ही कोई कैसुअल मज़दूर के रूप में कार्यरत हो या विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत काम कर रहा हो।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

J&K: Contingent Paid Workers (CPW) Await Pending Wages with Little Hope

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