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नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में कर्मचारियों की हालत सुधरने की गुंजाईश नहीं

जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश बनने के तीन महीने से अधिक समय के बाद भी इंजीनियरिंग के अनुबंधित शिक्षकों से लेकर जेकेपीएससी कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन और नियमित करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरना पड़ रहा हैं।
J&K

नव निर्मित केंद्र शासित प्रदेश की कई विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) वाली जम्मू-कश्मीर पुलिस ने प्रदेश की शीतकालीन राजधानी में जम्मू में 19 फरवरी यानि बुधवार को दोपहर के समय पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग (पीएचई) विभाग के "अस्थायी कर्मचारियों" पर लाठियां बरसाईं।

पुलिस ने उन पर तब लाठियां बरसाईं जब वे यूटी प्रशासन और नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ ये कर्मचारी अपनी लंबित मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे और नारे लगा रहे थे। इन कर्मचारियों को वेतन कम मिलने के साथ ज़्यादा काम करना पड़ता है।

वर्तमान में, जम्मू-कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश के एक अस्थाई कर्मचारी को रोज़ाना सिर्फ 225 रुपये का मानदेय मिलता है। हालांकि, इन कर्मचारियों ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि कई वर्षों उन्हें ये मामूली सी राशि भी नहीं मिली है।

प्रशासनिक कानूनों में परिवर्तन के बाद, केंद्र सरकार मजदूरी अधिनियम जो दैनिक आधार पर 520 रुपये की न्यूनतम मजदूरी देने का वादा करता है उसे भी अभी तक जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किया गया है।

स्थानीय मीडिया से बात करते हुए प्रदर्शनकारियों ने बताया कि, “राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने सभी मांगों को पूरा करने का वादा किया था। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद वे उन सभी वादों को भूल गए हैं। उन्हें बार-बार याद दिलाने के बावजूद हमारे पास सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है।

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वर्तमान में, 33,000 से अधिक पीएचई कर्मचारी नियमित करने और न्यूनतम मजदूरी की मांग को लेकर जम्मू-कश्मीर में पिछले दो सप्ताह से हड़ताल कर रहे हैं। उनकी शिकायत है कि सेवा में दस साल काम करने के बाद भी सरकार ने उन्हें नियमित नहीं किया है।

जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के तीन महीने से अधिक समय के बाद भी पीएचई, बिजली विकास विभाग (पीडीडी), और सड़क तथा भवन विभाग (आर एंड बी) जैसे विभिन्न इंजीनियरिंग विभागों में काम करने वाले एक लाख से अधिक अस्थायी कर्मचारियों को उम्मीद थी कि उनके भी "अच्छे दिनों" की शुरूआत होगी। लेकिन उनका पूरी तरह से मोहभंग हो गया हैं।

जम्मू में जम्मू-कश्मीर पीडीडी कर्मचारी यूनियन के एक प्रतिनिधि तरुण गुप्ता ने बताया कि हमारी मांगें बहुत वास्तविक हैं। जिन लोगों ने 10 साल की सर्विस पूरी कर ली है उन्हें नियमित किया जाना चाहिए और अन्य जरूरतमंद कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन अधिनियम के अधीन लाया जाना चाहिए। श्रमिकों का शोषण बंद होना चाहिए और लंबित पड़े वेतन को तुरंत दिया जाना चाहिए साथ ही सातवें वेतन आयोग को लागू करने के साथ-साथ सभी दीर्घकालिक मुद्दों को बिना किसी देरी के निपटाना चाहिए।”

उन्होंने कहा, "सरकार अपने अस्थायी कर्मचारियों को दैनिक मजदूरी के नाम पर 225 रुपये का भुगतान करती है, जबकि निजी क्षेत्र में एक अकुशल श्रमिक को 500 रुपये से लेकर 600 रुपये तक मिलते हैं," उन्होंने कहा, "कश्मीर के सभी आकस्मिक श्रमिकों को जिन्होंने सात साल सर्विस के पूरे कर लिए थे उन्हें पिछले साल नियमित कर दिया गया था। लेकिन जम्मू क्षेत्र में 13,000 से अधिक पीडीडी कर्मचारियों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा हैं।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि "जब से पीडीडी को पावर कॉर्पोरेशन के रूप में पुनर्गठित किया गया है, इंजीनियरों सहित कर्मचारियों को भी समय पर उनका मासिक वेतन नहीं मिल रहा है।"

विडंबना यह है कि एसपीओ जो नियमित पुलिस कर्मियों की तरह काम करते हैं और आतंकवाद विरोधी अभियानों में भाग लेते हैं, वे भी उसी नाव में सवार हैं। जिनकी पांच साल से कम सर्विस है उन्हें मात्र 6,000 रुपये मासिक पारिश्रमिक दिया जाता है जबकि पांच साल की सर्विस पूरी करने वालों को मासिक आधार पर मात्र 9,000 रुपये मिलते हैं। और जिन लोगों ने 15 साल की सर्विस पूरी कर ली है, वे 15,000 रुपये के मासिक मानदेय पाते हैं।

हाल के वर्षों में, ऐसी कई घटनाएं हुईं हैं जब कई एसपीओ सर्विस राइफल लेकर फरार हो गए और कश्मीर घाटी के आतंकवादी के साथ मिल गए। निरपवाद रूप से कश्मीर में सुरक्षा बलों ने बेरोजगारों और अर्ध-बेरोजगार युवाओं के लिए कश्मीर में "उग्रवाद" और "पथराव" को “फायदेमंद” व्यापार के रूप में नामाकरण किया है।

पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार ने 2017 में 62,000 एडहॉक/तदर्थ कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने का वादा किया था। वास्तव में, सरकार ने इसके लिए एक नीति भी तैयार की थी। इसने विभिन्न विभागों के प्रमुखों से उन कर्मचारियों की सूची बनाने को कहा था जिन्होंने सर्विस में 10 साल पूरे कर लिए थे। हालांकि, 2018 में बीजेपी ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया और तत्कालीन राज्य में राज्यपाल शासन लागू कर दिया। तब से, इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई है और अस्थायी कर्मचारियों को अधर में छोड़ दिया गया है।

मोदी सरकार के 5 अगस्त के फैसले के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने वादा किया था कि कुछ ही महीनों के भीतर 50,000 खाली सरकारी नौकरियों को भरा जाएगा। लेकिन यह वादा भी अधूरा रह गया।

इन दिनों यूटी की जुड़वां राजधानी में उपराज्यपाल प्रशासन द्वारा लगाए जा रहे शिकायत शिविरों में अधिकांश उपस्थित लोगों ने कथित तौर पर बढ़ती बेरोजगारी और आकस्मिक तथा आवश्यकता-आधारित कर्मचारियों के नियमितीकरण में देरी के बारे में शिकायत की है। पिछले साल जुलाई में, स्नातकोत्तर, एमफिल और पीएचडी डिग्री धारकों सहित 2.5 लाख योग्य युवाओं ने पूर्व राज्य के रोजगार निदेशालय में अपना पंजीकरण कराया था।

अनुबंधित शिक्षक के वेतन में कटौती

हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे समय में जब कॉलेज के अनुबंधित शिक्षक नियमत करने और वेतन में बढ़ोतरी की मांग कर रहे थे, सरकार ने उनके वेतन में 45 प्रतिशत से अधिक की कटौती कर दी है। नेट योग्यता प्राप्त कॉलेज के अनुबंधित शिक्षकों का मासिक वेतन 28,000 रुपये से घटाकर 15,000 रुपये कर दिया और गैर-नेट योग्य शिक्षकों का वेतन 22,000 रुपये से घटाकर मात्र 12,000 रुपये कर दिया गया है।

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इससे पहले, पिछले साल दिसंबर में, सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में अकादमिक व्यवस्था को सही करने और वेतन/पारिश्रमिक से संबंधित सभी पहलुओं की जांच करने के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति ने कहा कि "सरकार और इन लोगों के बीच अनुबंध के मद्देनजर शिक्षकों का नियमितीकरण अनुचित होगा जो कि स्पष्ट है और इस तरह की व्यवस्था नियमित नियुक्ति के लिए नहीं होती है और इसलिए ऐसा करना दूसरे प्रार्थियों के लिए समान अवसर का उल्लंघन होगा।"

आहत शिक्षक अभी इससे उभरने की कोशिश कर रहे है। जम्मू स्थित एक एडहॉक/तदर्थ शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “पहले, फिर भी कुछ उम्मीद थी कि चीजें बेहतर होंगी। लेकिन जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने को लेकर प्रारंभिक उत्साह अब लगभग समाप्त हो चुकी है और अब वास्तविकताएं सामने आने लगी हैं।"

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के यूटी बनने के बाद, “दुर्लभ होती सरकारी नौकरियों में प्रतियोगिता बढ़ने जा रही है। शिक्षित बेरोजगार और अर्ध-बेरोजगार युवा एक अंधे युग से गुजर रहे हैं... जीवन से निराश और नाउम्मीदी महसूस कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने इससे पहले दिसंबर 2019 में स्टेनोग्राफर, ड्राइवर और टाइपिस्ट जैसे अराजपत्रित पदों की भर्ती के लिए पूरे भारत से आवेदन मंगाए थे। बाहरी लोगों के लिए सरकारी नौकरियों का दरवाजा खोलने के पहले प्रयास के खिलाफ हुए बवाल के बाद सर्कुलर को वापस लेना पड़ा। लेकिन वास्तव में नौकरियों को खोने का डर अभी स्थानीय लोगों में नहीं गया है।

एक अन्य निर्णय, जिसका सिविल सेवाओं के उम्मीदवारों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, सरकार ने राज्य सिविल सेवा कैडर को समाप्त कर दिया है और इस महीने के शुरू में पूर्व राज्य के उम्मीदवारों की आयु में दी गई छूट को समाप्त कर दिया है।

जेकेपीएससी, जेकेएसएसबी कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन

पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में सैकड़ों कर्मचारी को जिन्हें जम्मू कश्मीर लोक सेवा आयोग और जम्मू कश्मीर सेवा चयन बोर्ड के माध्यम से 2015 के बाद पूर्व राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था, उन्होंने भी धरना प्रदर्शन किया है। वे "अत्यधिक भेदभावपूर्ण" एसआरओ-202 को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। इस भेदभावपूर्ण नीति के तहत, एक कर्मचारी को पांच साल तक प्रोबेशन पर काम करना होगा, जिसके दौरान एक नियुक्तिकर्ता को केवल बेसिक वेतन ही मिलता है और वे अन्य सेवा भत्ते के हकदार नहीं होते हैं।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने एक प्रेस वार्ता में कहा, कि "जम्मू-कश्मीर प्रशासन को उचित रूप से नियमों को संशोधित करना चाहिए ताकि जम्मू-कश्मीर सरकार के नवनियुक्त कर्मचारियों को नुकसानदेह स्थिति में न रहना पड़े।" उक्त बयान बुधवार को जारी किया गया था।

कई केंद्रीय मंत्री 18 जनवरी के बाद से जम्मू-कश्मीर का दौरा कर रहे हैं ताकि अर्ध-स्वायत्त दर्जे को निरस्त करने के "लाभ" के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। चूंकि मोदी सरकार की रोजगार संबंधित योजनाएं पूर्व राज्य में वांछित परिणाम देने में विफल रही हैं, इसलिए पर्यवेक्षकों ने सरकार के जनता तक पहुंच (आउटरीच) कार्यक्रम को "निरर्थक कार्य" बताया है।

लेखक जम्मू-कश्मीर स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार निजी है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

J&K: Unemployment, Ad-hoc Employees’ Plight Unchanged in Newly Formed UT

 

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