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एक उम्मीद का नाम है जेएनयू

उत्तराखंड के ज्यादातर शिक्षा संस्थानों में इस समय विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं। ये शिक्षा संस्थान और इनसे जुड़े छात्र-छात्रा जेएनयू की ओर एक उम्मीद से देख रहे हैं। जेएनयू इनकी उम्मीद है कि यहां भी स्थितियां बदली जा सकती हैं, प्रतिरोध के स्वर के ज़रिये यहां भी व्यवस्था बेहतर की जा सकती है।
uttrakhand student protest

उत्तराखंड में फीस बढ़ोतरी, कैंपस में सुविधाओं का अभाव, सेमेस्टर सिस्टम का विरोध, शिक्षकों की कमी जैसे अहम मुद्दों को लेकर स्टुडेंट्स प्रदर्शन कर रहे हैं। गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षा फीस में की गई बढ़ोतरी का लगातार विरोध हो रहा है। आयुष छात्र-छात्राएं लगातार धरने पर बैठे हुए हैं। कुमाऊं में छात्रसंघ अध्यक्ष की गिरफ्तारी के विरोध में उग्र प्रदर्शन हो रहा है। हल्द्वानी महाविद्यालय की छात्राएं शिक्षकों के तबादले और सिलेबस पूरा न होने पर तालाबंदी कर रही हैं।

मुख्यमंत्री, मंत्रियों का सार्वजनिक कार्यक्रमों में विरोध

सोमवार को देहरादून में एनएसयूआई और युवा कांग्रेस ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोध किया। मुख्यमंत्री गांधी पार्क स्थित जिम का उद्घाटन करने पहुंचे थे। उसी समय एनएसयूआई और युवा कांग्रेस कार्यकर्ता मुख्यमंत्री के विरोध के लिए आगे बढ़े। वहां मौजूद पुलिस कर्मियों ने उन्हें रोक लिया।

जिसके बाद कार्यकर्ताओं ने सड़क पर बैठकर ही “मुख्यमंत्री गो बैक” के नारे लगाए और मुख्यमंत्री के कार्यक्रम से जाने के बाद ही सड़क से उठे। इससे पहले देहरादून में विधायक आवास के बाहर भी धरना प्रदर्शन किया गया। हालांकि मंगलवार शाम तक गढ़वाल विश्व विद्यालय ने परीक्षा फीस में की गई 1200 रुपये की बढ़ोतरी वापस ले ली। लेकिन आयुष छात्रों की लड़ाई अभी जारी है।

गर्ल्स हॉस्टल को जेएनयू से उम्मीद

गढ़वाल विश्वविद्यालय के हॉस्टल में नियम-कानून की तमाम पाबंदियां झेल रही छात्राएं भी जेएनयू की ओर उम्मीद से ताक रही हैं। पॉलिटिकल साइंस से पीएचडी कर रही और आइसा से जुड़ी शिवानी पांडे कहती हैं कि यहां गर्ल्स हॉस्टल को लड़कियों के लिए जेल सरीखा बना दिया गया है। वह बताती हैं कि अभी शाम छह बजे हॉस्टल के दरवाजे बंद हो जाते हैं। सर्दियां शुरू होने पर साढ़े पांच बजे ही गेट बंद हो जाएंगे। हॉस्टल के अंदर ने खेलने की जगह है, न लाइब्रेरी है, न कोई ऐसी जगह जहां लड़कियां अपना स्पेस ढूंढ़ सकें और अपना स्ट्रेस कम कर सकें। मान लीजिए कोई अपना एकांत चाहता है तो वो उस सिस्टम में कहां जाएगा।

शिवानी कहती हैं कि बहुत सारी स्टुडेंट्स हैं, जो पांच-छह बजे तक प्रैक्टिकल क्लास में रहते हैं, वहां से आकर छह बजे हॉस्टल में बंद हो जाती हैं। वो एक जेल जैसी जगह बन गई है। जब हम 21वीं सदी की बात कर रहे हैं, वे लड़कियां 18 साल से ऊपर की हैं। एमफिल-पीएचडी कर रही छात्राओं को तो उनके निर्णय लेने की आज़ादी दीजिए। उन्हें कब हॉस्टल में आना-जाना है ये आप तय क्यों करते हैं।

हॉस्टल की दिक्कत के बारे में पूछने पर एक लड़की ने बताया कि पांच बजे उसकी क्लास छूटी, जिसके बाद वो हॉस्टल पहुंची। उसी समय उसके पीरियड्स आ गए। लेकिन उसे सैनेटरी नैपकिन लेने के लिए बाहर जाने की इजाजत नहीं मिली।

एक लड़की ने कहा कि मॉर्निंग वॉक की इजाज़त मांगी तो हॉस्टल वार्डन ने कहा कि तुम्हारे पीछे लड़के भागेंगे, तब क्या करोगी।

एक तरफ स्त्रियों की बराबरी और महिला सशक्तिकरण की बात की जाती है, दूसरी ओर गर्ल्स हॉस्टल को जेल बना दिया है। शिवानी कहती हैं कि हमारा श्रीनगर कैंपस एक सुरक्षित जगह है, जहां पर्याप्त सिक्योरिटी गार्ड्स हैं। इसके बावजूद इतनी पाबंदियां डाली गई हैं।

दिक्कत ये भी है कि यहां कैंपस की मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में लड़कियां नहीं है, इसलिए लड़कियों के मुद्दे सामने नहीं आ पाते। शिवानी पांडे कहती हैं कि पंजाब यूनिवर्सिटी में जब एक लड़की छात्र संघ में आई और उन्होंने डेढ़ साल मूवमेंट चलाया, उसके बाद लड़कियों के हॉस्टल से जुड़े नियमों को लचीला बनाया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के हॉस्टल में भी समय को लेकर बड़ा आंदोलन चला। जेएनयू बहुत लिबरल है।

वर्ष 1973 में स्थापित गढ़वाल विश्वविद्यालय में आज तक कोई लड़की छात्रसंघ अध्यक्ष नहीं बनी। छिटपुट पदों पर भी बहुत कम लड़कियां चुनकर आईँ। आइसा ने वर्ष 2016 में छात्राओं के प्रतिनिधित्व को लेकर मूवमेंट चलाया, जिसके बाद छात्रसंघ में एक पोस्ट लड़कियों के लिए बनाई गई। शिवानी पांडे उस पोस्ट पर पहली छात्रा रिप्रेजेंटेटिव बनी।

वर्ष 2018 में यहां छात्राओं को आठ बजे तक लाइब्रेरी में जाने की इजाजत के लिए लाइब्रेरी भरो आंदोलन चलाया गया। जिसके बाद छात्राएं हॉस्टल से लाइब्रेरी जा सकती हैं। शिवानी बताती हैं कि वहां भी हॉस्टल की वार्डन एक केयरटेकर को भेज देती हैं, ये जांचने कि लड़की लाइब्रेरी में ही है या नहीं।

हॉस्टल में लड़कियों को लड़का दोस्त बनाने पर भी ताने दिये जाने की शिकायतें हैं। छात्राएं कहती हैं कि यदि हम इस उम्र में लड़कों को दोस्त नहीं बनाएंगे तो कब बनाएंगे। ये हमारा निजी फैसला है कि हम किससे दोस्ती करते हैं। जो लोग जेंडर इक्वेलिटी, जेंडर पॉलिटिक्स पढ़ा रहे हैं, वही ये सब चीजें कर रहे हैं।

गढ़वाल विश्वविद्यालय के हॉस्टल में रह रही एक छात्रा कहती हैं कि ये हमें सिर्फ फिजिकली 6 बजे के बाद अंदर रखने की बात नहीं है, मेंटली और साइकोलॉजिकली भी बाउंडेशन लगा देते हैं। पूरा दिन कॉलेज में गुजारने के बाद आपको अपना निजी वक्त शाम को मिलता है। उस समय भी यदि आप अपना समय अपने हिसाब से न बिता सकें तो ये एक समस्या हो जाती है। ये हमारी मर्जी है कि हम कमरे में बैठें या बाहर रहें। हम ब्वॉयफ्रेंड के साथ जाएं, घूमने जाएं या बिना किसी मकसद से टहलें। हमारा स्पेस खत्म किया जा रहा है।

जेएनयू में लड़कियां भी लड़कों के साथ पुलिस के डंडे खाती हैं। अपनी आवाज उठाती हैं। गढ़वाल विश्वविदालय के गर्ल्स हॉस्टल के इन मुद्दों पर बात करने के लिए यहां लड़कियां एकजुट नहीं हो पाती। ये छात्रा कहती है कि जेएनयू में बच्चे पिट कर आ जाएंगे, जेल के अंदर भी चले जाएंगे लेकिन जिस चीज के लिए वे लड़ रहे हैं, उस पर कायम रहेंगे। यहां पर पारिवारिक दबाव को इस्तेमाल किया जाता है। रेस्टिकेट होने, कॉलेज से निकालने का खतरा होता है। इतनी दूर दराज के गांवों से बच्चे पढ़ने आते हैं और अगर किसी कारणवश आपको डिग्री न मिले या अभिवावकों तक गलत तरीके से बात पहुंचे, तो एक डर होता है। इसलिए छात्राएं सबकुछ चुपचाप झेल लेती हैं।

गढ़वाल विश्वविद्यालय के गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन बबीता पाटनी कहती हैं कि वे विश्वविद्यालय प्रशासन के बनाए गए नियमों के अनुसार चलती हैं। विश्वविद्यालय ने लाइब्रेरी आउटिंग की अनुमति दी है तो लड़कियां जाती हैं। छह बजे हॉस्टल के गेट बंद करने का निर्णय विश्वविद्यालय प्रशासन का है।

जेएनयू जैसे संस्थानों की ओर उम्मीद से देखते गढ़वाल विश्वविद्यालय के गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों को अपने हिस्से की लड़ाई स्वयं ही लड़नी होगी। फिर उनके साथ खड़े होने वाले लोग भी जुटेंगे। 

जेएनयू और छात्रों के पक्ष में जुटेंगे सामाजिक संगठन

इधर, देहरादून में पीपुल्स फोरम उत्तराखंड के साथ कई सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल 21 नवंबर को केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ एक दिवसीय धरना देंगे। पीपुल्स फोरम के जयकृत कंडवाल कहते हैं कि फीस वृद्धि को लेकर जेएनयू के छात्र और प्रदेश में आयुष छात्र और विश्वविद्यालयों के छात्र आंदोलनरत हैं। सरकार उनकी मांगों को दरकिनार करते हुए सत्ता के घमंड में न्यायालय के आदेश की भी अवमानना कर रही है। इस तानाशाही रवैये के विरोध में एकजुट हो लड़ने का निर्णय लिया गया है। वे जेएनयू के साथ खड़े हैं और चाहते हैं कि महंगी फीस उच्च शिक्षा हासिल करने की राह में बाधा न बने।

(मुख्यमंत्री का विरोध करते एनएसयूआई से जुड़े छात्र)

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