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8 जनवरी बंदः 'राष्ट्रव्यापी क्रोध दिखाई देगा'

देशव्यापी बंद से दो दिन पहले ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में आयोजित बैठक में कहा कि सरकार संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को सुधारने में नाकाम रही है।
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8 जनवरी को देशभर के श्रमिक राष्ट्रव्यापी बंद में शामिल होंगे। इसमें राज्य और केंद्र की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के श्रमिक भी शामिल होंगे। इस बंद का आह्वान दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने किया है जिसमें भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (आईएनटीयूसी), अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी}, ट्रेड यूनियन कोओरडीनेशन कमिटी (टीयूसीसी), सेल्फ एम्प्ल्याएड वूमेंस एसोसिएशन (एसईडब्ल्यूए), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (एआईसीसीटीयू), लेफ्ट प्रोग्रेसिव फ्रंट (एलपीएफ), यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) शामिल है। इसके साथ विभिन्न क्षेत्रीय स्वतंत्र महासंघों ने भी इस बंद में शामिल होने का फैसला किया है। इस हड़ताल के साथ 175 से अधिक किसान संगठन, छात्रों के 60 संगठनों ने एकजुटता दिखाई है और ग्रामीण भारत बंद की घोषणा की है।

इस हड़ताल से दो दिन पहले यूनियनों के सभी प्रतिनिधि दिल्ली में यह बताने के लिए इकट्ठा हुए कि सरकार संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था से निपटने में विफल रही है और वह उल्टे सार्वजनिक उपक्रमों, प्राकृतिक संसाधनों और अन्य राष्ट्रीय संपत्तियों का या तो निजीकरण कर रही है या फिर उन्हें बेचने पर आमादा है जो कि राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय विकास के लिए हानिकारक है।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की तरफ से अमरजीत कौर ने कहा कि “25 करोड़ लोग इस बंद में भाग लेंगे और 10 से 15 शहरों में पूरी तरह बंद रहेगा। अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर हड़ताल की जाएगी। हम सितंबर के महीने से जब पहली बार इस हड़ताल का आह्वान किया गया था तब से प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, हमारा और मज़दूरों का अब इस सरकार में कोई विश्वास नहीं रह गया है, वह अब आम लोगों और छात्रों को निशाना बना रही हैं और केम्पसों में हिंसा का सहारा ले रही है ताकि लोग अपने ज्वलंत मुद्दों के बारे में न सोच सके, इसके खिलाफ लोगों में गुस्सा है और " देश का गुस्सा 8 जनवरी को जगज़ाहिर हो जाएगा।"

यूनियन के नेताओं ने 12 हवाई अड्डों के निजीकरण करने की कड़ी आलोचना की है। साथ ही उन्होंने बताया कि एयर इंडिया की 100 प्रतिशत बिक्री की तैयारी पहले ही हो चुकी है, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) को बेचने का निर्णय भी लिया गया है, बीएसएनएल-एमटीएनएल के विलय की भी घोषणा की गई है और 93,600 दूरसंचार कर्मचारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना के तहत अपनी नौकरी गंवा दी है।

ट्रेड यूनियनों की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि, '' रेलवे के निजीकरण के लिए तैयारी की जा रही है, प्लेटफार्मों की नीलामी जारी है, रेलवे की उत्पादन इकाइयों के निजीकरण के प्रयास किए जा रहे हैं, लगभग 150 निजी रेल गाड़ियों को चलाने की योजना है। 49 डिफेंस प्रोडक्शन यूनिटों के निजीकरण के निर्णय को अभी कर्मचारियों की यूनियन के विरोध के कारण टाल दिया है, बैंकों का जबरन विलय किया जा रहा है, कोयले के साथ रक्षा, रेलवे, फार्मास्यूटिकल्स, पशुपालन, सुरक्षा सेवाओं, खुदरा व्यापार आदि के मामले में 100 प्रतिशत एफडीआई लाने के फैसले किए जा रहे हैं।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा, “वर्तमान सरकार के कारनामों से देश की हालत ख़राब होने वाली है। पिछले 70 वर्षों में हमने जो कुछ बनाया है वह अब नष्ट हो रहा है और इसे गैर-औद्योगीकरण की ओर धकेला जा रहा है। खुद सरकार के सलाहकारों ने कहा है कि अर्थव्यवस्था बदतर स्थित में है। जबकि आर्थिक मंदी सरकार के एजेंडे में नहीं है, वे मीडिया और श्रमिकों पर नियंत्रण रखना चाहते हैं। किसान, युवा, छात्र, सभी सड़कों पर हैं।

उन्होंने कहा, "इसके अलावा, श्रम मंत्रालय 2 जनवरी 2020 को बैठक के दौरान श्रमिकों को उनकी मांगों पर आश्वासन देने में विफल रहा है। सरकार का रवैया मज़दूरों के प्रति उपेक्षा वाला है क्योंकि हम इसकी नीतियों और कार्यों से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते हैं। जुलाई 2015 में हुए भारतीय श्रम सम्मेलन के बाद से चार साल से ज़्यादा समय बीत गया लेकिन अब तक ये सम्मेलन नहीं हुआ है।”

ट्रेड यूनियनों ने 12-सूत्रीय मांग पत्र के जरिए मांग की है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सार्वजनिकरण किया जाए जिससे मूल्य-वृद्धि में कमी लाई जा सके और कमोडिटी बाजार में सट्टा व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए तत्काल उपाय की भी मांग की हैं। रोज़गार पैदा करने के लिए ठोस उपाय की जाए और सभी बुनियादी श्रम कानूनों को सख्ती से लागू किया जाए। श्रम कानूनों के उल्लंघन के मामले में कड़े दंडात्मक उपाय करने की भी मांग की गई है, श्रमिकों के लिए सार्वजनिक सामाजिक सुरक्षा कवर, न्यूनतम मज़दूरी 21,000/- रुपये प्रति माह, केंद्र एवं राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश और उनकी बिक्री को बंद करना शामिल है। इसमें स्थायी काम में ठेकेदारी प्रथा को बंद करना और उसी काम के लिए मज़दूरों को अन्य लाभ के साथ समान वेतन देना आदि शामिल है।

निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूर वर्ग ने मोदी सरकार की अन्य नीतियों के साथ विनिवेश नीतियों के ख़िलाफ़ मज़़बूत लड़ाई लड़ी है। पिछले छह वर्षों में ऐतिहासिक तीन अखिल भारतीय हड़ताल की गई हैं, संसद के सामने महापड़ाव का आयोजन किया गया, कई उद्योग क्षेत्रों में कई हड़ताल और संघर्ष हुए हैं और किसान संघर्षों के साथ एकजुटता भी प्रकट की गई है। सभी ट्रेड यूनियनों (भाजपा/आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर) ने इन संघर्षों में एकता दिखाई है। इस बड़े पैमाने पर और एकजुट प्रतिरोध ने सरकार को कुछ मुद्दों पर सोचने के लिए मजबूर किया और यहां तक कि फिर से विचार करने को मजबूर किया है। लेकिन अन्य मुद्दों पर, सरकार अपनी मज़दूर विरोधी नीतियों के साथ आगे बढ़ी है।

मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ 8 जनवरी 2020 की हड़ताल मज़दूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष की तरफ बढ़ता हुआ कदम होगा। किसान भी ग्रामीण भारत बंद करेंगे और छात्र विश्वविद्यालय बंद करेंगे।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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