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झारखंड–बिहार: अमित शाह के बयान के विरोध में छात्र-युवाओं का अभियान  

फ़िलहाल का यही नज़ारा है कि अमित शाह के “बिगड़े बोल” के ख़िलाफ़ विरोध का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। 
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सर्वविदित है कि देश से लेकर दुनिया भर में ‘बाबा साहब’ संबोधन जोड़कर ही डा. अम्बेडकर को पुकारने की रवायत रही है। लेकिन यह क्या, देश की सर्वोच्च लोकतान्त्रिक संस्था ‘संसद’ के अन्दर देश के गृहमंत्री द्वारा जिस अशोभनीय अंदाज़ में अम्बेडकर! अम्बेडकर! अम्बेडकर ! बोलकर जो विवादित बातें कही गयीं, क्या उसे महज “क्षणिक भावावेश” की घटना मान ली जाय? इस मामले पर कई तरह के परस्पर समर्थन-विरोध के मत दिए जा रहें हैं। लेकिन देश की आबादी का जो विशाल हिस्सा भली भांति जानता है कि- बाबा साहब और उनके नाम तक से किस विचारधारा-संगठन और राजनीतिक दल के लोगों को हमेशा से काफी एलर्जी रही है। 

सो, संसद में हुई इस निंदनीय घटना के खिलाफ पूरे देश में व्यापक आक्रोश भड़क उठा है। विशेषकर छात्र-युवाओं का एक बड़ा हिस्सा तो काफी आक्रोशित है और अपना तीखा विरोध जताते हुए अमित शाह का पुतला जलाकर लगातार सड़कों पर प्रतिवाद प्रदर्शित कर रहा है।

दूसरी ओर, सभी वामपंथी दल व उनके संगठन, राज्यों में व्यापक विरोध प्रदर्शित करते हुए अमित शाह की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं। वहीं, कई दलित-बहुजन एवं आदिवासी सामाजिक संगठन भी सड़कों पर उतर कर लगातार तीखा विरोध जता रहे हैं। 

घटना के ही दिन से ही संसद से लेकर सड़कों पर INDIA गठबंधन के सभी घटक राजनीतिक दल व उनके नेता-कार्यकर्त्ता विरोध-मार्च निकाल रहे हैं। गृहमंत्री का पुतला जलाकर विक्षोभ प्रदर्शनों का सिलसिला निरंतर जारी है।  

झारखंड और बिहार में भी कई छात्र-युवा संगठन सड़कों पर ‘विरोध-मार्च’ निकालकर अमित शाह के खिलाफ गुस्से का इज़हार कर रहें हैं। कई स्थानों पर तो छात्र-छात्राओं के जत्थे बिना किसी संगठन-बैनर के हाथों में ‘विरोध-पोस्टर’ लेकर अमित शाह का पुतला जलाते हुए उनसे इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। 

भाकपा माले के राष्ट्रव्यापी विरोध अभियान के तहत झारखंड और बिहार में राज्यव्यापी प्रतिवाद प्रदर्शनों के कार्यक्रम व्यापक रूप से किये जा रहे हैं। साथ ही राजद समेत बिहार के सभी गैर-भाजपा राजनितिक दलों ने भी विरोध का मोर्चा खोल दिया है। हर तरफ से गृहमंत्री अमित शाह को तत्काल बर्खास्त करने की मांग करते हुए ज़ोरदार विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है।

झारखंड की राजधानी रांची में घटना के दूसरे दिन से ही विभिन्न कॉलेजों के आदिवासी छात्र-छात्राओं का समूह कॉलेज कैम्पस से जुलूस की शक्ल में सड़कों पर निकल कर ‘बाबा साहब का अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्तान’ जैसे नारे लागते हुए अपने आक्रोश को प्रदर्शित कर रहें हैं। प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राएं सभी एक स्वर से ये मांग कर रहें हैं कि- देश के गृहमंत्री यदि बाबा साहब को ज़रा भी मानते हैं तो अपनी घटिया हरकत के लिए पूरे देश से माफ़ी मांगें। वरना अपने पद से तत्काल इस्तीफा दें। आदिवासी छात्रायें विक्षोभ भरे लहजे में कह रही हैं कि- बाबा साहब उनके लिए किसी भगवान् से कम नहीं हैं। क्योंकि हम आदिवासी-दलित-ओबीसी के बेटे-बेटियाँ आज जिस संवैधानिक सम्मान-अधिकार के साथ पढ़-लिख रहे हैं और नौकरी कर पा रहें हैं, वह सब बाबा साहब के जोखिम भरे प्रयासों से ही संभव हो सका है। जिसे साकार करने के लिए उन्होंने अनेक राजनीतिक-सामाजिक संकटों-रुकावटों का सामना करते भी इस देश के वंचित-उपेक्षित समुदायों के हित में संविधान निर्माण में केन्द्रीय भूमिका निभाई। 

विरोध प्रदर्शन में शामिल कई छात्रों ने तो यह भी कह डाला कि- अमित शाह जो बोल रहे हैं कि “भगवान का नाम लेते तो स्वर्ग मिल जाता” तो बताएं कि वे किस भगवान् का नाम लेने की बात करते हैं, जिस भगवान् के धर्म में सदियों से हमारे साथ छुआ-छूत और भेद-भाव करना “सभ्य सामाजिक लोकाचार” बना हुआ है! 

बिहार में भी वामपंथी छात्र-युवा संगठनों का विरोध-आक्रोश प्रदर्शन लागातार जारी है। जगह-जगह ‘बाबा साहब का अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्तान’ के केन्द्रीय नारे के अलावे ‘बाबा साहब को अपमानित करने वाले “मनुवाद” के प्रवक्ता देश के गृहमंत्री इस्तीफा दो जैसे नारों के साथ प्रतिवाद-मार्च संगठित कर “गृहमंत्री अमित शाह मुर्दाबाद” कहते हुए उनका का पुतला जलाया जा रहा है। विरोध सभायें आयोजित कर अमित शाह से तत्काल इस्तीफे की ज़ोरदार मांग की जा रही है। कई जगहों पर तो यह भी नारा लगाया गया कि- यदि भारत में रहना है तो डा. अम्बेडकर कहना होगा। 

रोषपूर्ण प्रतिवाद कर रहे छात्र-युवाओं का यह भी आरोप है कि- सारा देश यह जानता है कि संघ परिवार और भाजपा अपने जन्मकाल से ही इस देश पर “मनुवादी धर्म-शासन” थोपने पर आमादा रही है। इसीलिए कभी भी सच्चे मन से बाबा साहब और इस देश के लोकतान्त्रिक संविधान को नहीं माना है। आज देश पर “मनुवादी सिद्धांत-संविधान” थोपने के कुचक्र के लिए ही बाबा साहब का नाम लेने और संविधान की दुहाई देने का प्रपंच कर रहे हैं। लेकिन संसद में अमित शाह के मुहं से निकले “कुटिल-शब्दों” ने उनके अन्दर के कलुषित विचारों का खुला सबूत दिखला दिया है।  

लोकतंत्र-धर्मनिरपेक्षता पसंद देश की जनता खुली आँखों से ये देख रही है कि जब से भाजपा केंद्र में काबिज़ हुई है तो बाबा साहब के विचारों और संविधान के साथ साथ संविधान संचालित सभी लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर लगातार सत्ता-प्रायोजित हमले किये जा रहे हैं। जिससे लोगों का ध्यान भटकाने के लिए ही आये दिन “नफ़रत-हिंसा की राजनीति संचालित” धार्मिक उन्माद और सामाजिक विभाजन की खेती की जा रही है। ताकि जब जब चुनाव आये तो उसकी फसल काटकर देश को लूटने के लिए “अडानी-अम्बानी कॉर्पोरेटों” के हाथों में डाल दिया जाय।  

कुल मिलाकर, देखा जाय तो फिलहाल का यही नज़ारा है कि अमित शाह के “बिगड़े बोल” के खिलाफ विरोध का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। जिसके माध्यम से यही सन्देश दिया जा रह है कि- अब जबकि “पानी सर से ऊपर पहुंचाया जा रहा है” तो ‘बाबा साहब और उनके विचारों को मानने वाले’ देश के बहुसंख्यक छात्र-युवाओं के साथ साथ ‘लोकतंत्र और समता’ में विश्वास रखनेवाली सामाजिक-राजनितिक शक्तियां भी चुप नहीं बैठेंगी। इनका साफ़ कहना है कि- ‘बाबा साहब का अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्तान” महज एक नारा मात्र नहीं है। इसका असर आनेवाले दिनों में एक बहुत बड़ा विस्तार लेगा और देश पर मनुवादी सिद्धांत-संविधान थोपने की हर कवायद को विफल बनाएगा।  

(लेखक एक संस्कृतिकर्मी और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं।) 

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