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झारखंड-बिहार : ''राष्ट्रपति का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान'’, मनाया गया “काला दिवस”

प्रगतिशील लेखक-बुद्धिजीवियों, वाम दलों और सामाजिक जन संगठनों ने संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह से राष्ट्रपति को बाहर रखे जाने के ख़िलाफ़ तीखा प्रतिवाद किया।
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ये अनायास नहीं था कि 28 मई की सुबह 9 बजे झारखंड की राजधानी रांची के केंद्र अलबर्ट एक्का चौक पर देश के संविधान का पाठ कर सामूहिक संकल्प लेते हुए ‘राष्ट्रपति का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान’ के नारे के साथ “काला दिवस” मनाया गया।

इसी दिन सुबह 9 बजे पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत राजधानी दिल्ली में देश की संसद के नए भवन का उद्घाटन समारोह हुआ। जिसमें देश की प्रथम नागरिक और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को शामिल होने का औपचारिक आमंत्रण तक नहीं देकर उनका सरेआम “राष्ट्रीय अपमान” किया गया। केंद्र की सत्ता में काबिज़ और खुद को सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी कहने वाली भाजपा ने देश में स्थापित लोकतांत्रिक मर्यादाओं को तार तार कर देश व दुनिया के सामने अपने “दलित-आदिवासी विरोधी चरित्र” भी खुलकर दिखा दिया।

“काला दिवस” अभियान के माध्यम से इस “राष्ट्रीय अपमान” के असंवैधानिक कृत्य के लिए सीधे तौर पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रधानमंत्री को जिम्मेवार ठहराया गया। एक स्वर से यह भी आरोप लगाया गया कि देश की आज़ादी के 75 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है जब देश की प्रथम नागरिक और सर्वोच्च संवैधानिक पद वाली सम्मानित व्यक्तित्व के महत्व को सिरे से नकार कर देश की स्थापित संवैधानिक परंपरा को सिरे से नकारने की खुली चुनौती दी गयी।

झारखंड प्रदेश के सभी वामपंथी दलों-संगठनों के साथ साथ ‘झारखंड के संविधान प्रेमी नागरिक’ समुदाय की ओर से इस अभियान को संगठित किया गया जिसमें भाकपा माले, सीपीएम, सीपआई व मासस के अलावा कई आदिवासी और सामाजिक जन संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। साथ ही जन संस्कृति मंच, प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ इत्यादि सांस्कृतिक संगठनों व कई वरिष्ठ लेखक-बुद्धिजीवी-सोशल एक्टिविस्ट और वरिष्ठ पत्रकार-मीडियाकर्मियों की भी सक्रिय भागीदारी रही।

“काला दिवस” अभियान के तहत अलबर्ट एक्का चौक पर सुबह 9 बजे सैंकड़ों लोगों ने देश के नए संसद भवन का उद्घाटन महामहिम राष्ट्रपति से न कराकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये जाने का ज़ोरदार विरोध किया। साथ ही राष्ट्रपति के सम्मान में संविधान सम्मत प्रक्रिया लागू करने व प्रधानमंत्री को लोकतंत्र विरोधी बता कर उनके ख़िलाफ़ काली पट्टी बांधकर हाथों में विरोध पोस्टर लेकर प्रतिवाद प्रदर्शित किया।

इस प्रतिवाद अभियान को जसम के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष रविभूषण, प्रलेस के चर्चित साहित्यकार रणेंद्र, आंदोलनकारी दयामनी बारला, वरिष्ठ आदिवासी एक्टिविस्‍ट प्रभाकर तिर्की व वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता बलराम इत्यादि ने संबोधित किया।

वाम दलों में भाकपा माले झारखंड सचिव मनोज भक्त, सीपआई के महेंद्र पाठक व सीपीएम के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी संबोधन किया।

सभी वक्ताओं ने एक स्वर से अपने संबोधन में कहा कि "आज के दिन देश में एक और नया काला अध्याय जुड़ गया है। क्योंकि देश के नये संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में महामहिम आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पूरे आयोजन से बाहर रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तानाशाही दिखलायी है। जबकि ये स्थापित सत्य है कि संवैधानिक तौर पर संसद भवन राष्ट्रपति के आदेश से ही खुलता है। उनके अभिभाषण से ही संसद और राज्य सभा के सत्रों की शुरुआत होती है। तदनुरूप उन्हीं की अनुमति से ही संसदीय कार्यवाही की भी शुरुआत होती है। संसद के अंदर जो भी बिल अथवा अध्यादेश पास होते हैं, वे सभी महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही कानून का रूप लेते हैं।"

वक्ताओं का कहना है कि संसद के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर देश के सर्वोच्च पद पर आसीन राष्ट्रपति को न बुलाकर प्रधानमंत्री ने खुद उद्घाटन करके देश के संविधान की धज्जियां उड़ाई है।

वक्ताओं ने यह भी आरोप लगया कि "इसी नए संसद भवन के शिलान्यास समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद जी को पूरी तरह से बाहर रखा गया था, क्योंकि वे दलित समुदाय के हैं। इस बार द्रौपदी मूर्मू जी को आदिवासी होने के कारण ही उद्घाटन समारोह से पूरी तरह से बाहर रखा गया। उक्त दोनों ही घटनाएं साफ़ तौर से नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा के “दलित और आदिवासी विरोधी” चरित्र और मानसिकता को खुलकर दिखलाता है। जो “वोट की राजनीति” के लिए तो इन समुदायों के हित के जुमले देकर इनका खुलकर इस्तेमाल करती है लेकिन जब इन्हें समान अधिकार और सम्मान देने का मामला आता है तो खुलकर अपना “मनुवादी चरित्र” दिखला देती है।"

वक्ताओं ने यह भी कहा कि "आज के दिन को काला दिन के रूप में इसलिए भी देखा जाएगा क्योंकि पूरी दुनिया में सबसे बड़े लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की मान्यता रखने वाले देश भारत का संविधान, जो यहां के सभी धर्मों और समुदायों को एक सूत्र में बांधकर सभी को एक समान अधिकार देता है, आज खतरे में है। जिसके संवैधानिक मूल्यों को मनमाने तरीके से धता बताकर देश के प्रथम नागरिक को ही किनारे रखकर प्रधानमंत्री ने एक भयावह संकेत देने का काम किया है।"

ऐसे में यहां एक प्रतीक प्रतिनिधि के तौर पर जुटे सभी लोग देश की लोकतंत्र और संविधान पसंद जनता की ओर से भाजपा और प्रधानमंत्री को खुली चुनौती दे रहें हैं कि “राष्ट्रपति का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान!”

कार्यक्रम में शामिल झारखंड हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा संविधान की मूल प्रस्तावना के पाठ उपरांत सभी लोगों ने हाथ उठाकर संविधान रक्षा का संकल्प लिया।

नए संसद भवन समरोह में राष्ट्रपति को नहीं बुलाए जाने के विरोध में विपक्षी महागठबंधन के 20 राजनैतिक दलों व उनके सभी सांसदों के राष्‍ट्रीय बहिष्कार अभियान के तहत प्रदेश कांग्रेस की ओर से बिरसा चौक पर प्रतिवाद धरना दिया गया।

बिहार में भी प्रदेश की महागठबंधन सरकार और उसके सभी घटक दलों तथा वाम दलों द्वारा राष्ट्रीय बहिष्कार अभियान को सक्रियतापूर्वक सफल बनाते हुए जगह जगह प्रतिवाद प्रदर्शित किया। भाकपा माले की विभिन्न जिला इकाइयों ने बिहार प्रदेश के कई स्थानों पर विरोध-मार्च निकालकर प्रधानमंत्री का पुतला जलाया।

फिलहाल विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। इसके माध्यम से ये उद्घोष किया जा रहा है कि- भाजपा और मोदी सरकार “संघ द्वारा निर्देशित एजेंडे के तहत” देश के संविधान पर जो हमले कर रही है, उसके खिलाफ एकजुट संघर्ष तेज़ होता जाएगा।

(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।)

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