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झारखंड: मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ मुखर हो रहें हैं आम मज़दूर

झारखंड प्रदेश में आगामी 26 नवंबर को होने वाली देशव्यापी मजदूर–हड़ताल को सफल बनाने की तैयारियां ज़ोरों पर हैं।
 मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ मुखर हो रहें हैं आम मज़दूर
फोटो - सोशल मीडिया

देश की अधिकांश सार्वजनिक औद्योगिक ईकाईयों के अलावा अनेक छोटे बड़े निजी उद्योग संस्थानों से भरे झारखंड प्रदेश में आगामी 26 नवंबर को होने वाली देशव्यापी मजदूर–हड़ताल को सफल बनाने की तैयारियां ज़ोरों पर हैं।

इस संदर्भ में विभिन्न केंद्रीय ट्रेड यूनियन के नेताओं से पूछे जाने के क्रम में एक्टू के झारखंड महासचिव शुभेन्दु सेन जी ने सबसे पहले तो बार-बार हो रही मजदूरों की  हड़ताल के कारणों को बताते हुए कहा कि – झारखंड और देश के मजदूरों को जो बार-बार हड़ताल पर जाने की जो नौबत आ रही है इसके लिए सिर्फ और सिर्फ केंद्र की मोदी सरकार ज़िम्मेवार है। जिसने देश के हर तबके के साथ साथ मजदूर वर्ग के लिए तबाही ढाने वाली नीतियाँ थोपने का सिलसिला चला रखा है। देश के मजदूरों और उनके संगठनों से कोई वार्ता– निगोसिएशन की सारी संभावनाओं को खत्म कर संसद तक को हाईजैक करके जिस मनमाने ढंग से जनविरोधी क़ानूनों को पारित कर रही है, देश के मजदूर– किसानों और उनके संगठनों – ट्रेड यूनियनों के सामने हड़ताल करने के आलवे कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा है! इस बार झारखंड समेत देश के सभी सार्वजनिक क्षेत्र के मजदूरों की ऐतिहासिक हड़ताल होगी। जिसकी तैयारी के प्रथम चरण के तहत राज्य व ज़िला स्तर पर संयुक्त मजदूर कन्वेन्शनों के आयोजन के बाद दूसरे चरण में एरिया और लोकल स्तर पर अधिक से अधिक मजदूरों की राजनीतिक गोलबंदी का काम किया गया। अब तीसरे चरण में जमीनी स्तर पर मजदूरों के घर घर जाकर उनसे सघन संपर्क करने के अलावा इस बार निजी– मँझोले उद्योगों के मजदूरों की भी व्यापकतम भागीदारी को सुनिश्चित किया जा रहा है।

सीटू झारखंड के राज्य महासचिव प्रकाश विप्लव के अनुसार लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्र के कारखानों और कोयला खनन इलाकों में गेट व पीट मीटिंगों का सिलसिला लगातार जारी है। इस बार की हड़ताल में कोयला क्षेत्र के अलावा स्टील और तांबा उद्योगों समेत सभी स्कीम वर्कर्स और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की भी काफी भागीदारी रहेगी। हड़ताल तैयारी की मीटिंगों के दौरान उन मजदूरों की भी अच्छी भागीदारी देखने को मिल रही है जिन्होंने लोकसभा चुनाव में मोदी जी को खुलकर वोट दिया था। वे भी मोदी सरकार की निजीकरण की नीतियों से काफी नाराज़ और अपने रोजगार छिन जाने के भय से आक्रांत हैं।

वर्तमान सरकार द्वारा देश के कोयला समेत सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग – उपक्रमों को निजी कंपनियों के हाथों सौंपे जाने तथा श्रम क़ानूनों में संशोधन कर मजदूरों के संवैधानिक अधिकारों को छीने जाने जैसी मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आहूत 26 नंबर की देशव्यापी हड़ताल को झारखंड के कोयला मजदूर भी ऐतिहासिक बनाएँगे, कोल माइंस वर्कर्स यूनियन के केंद्रीय अध्यक्ष उपेंद्र सिंह का ये दावा है।

उनके अनुसार भी पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी जी को भारी संख्या में वोट देनेवाले कोयला क्षेत्र के मजदूरों की भी पूरी भागीदारी रहेगी। जो मोदी सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र जैसे सार्वजनिक उद्योगों – उपक्रमों के निजीकरण किए जाने की नीतियों से अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहें हैं। अपने रोजगार के भविष्य पर मँडराते खतरे को देख वे काफी डरे हुए और क्षुब्ध हैं कि - क्या मोदी जी ने ‘देशहित’ के नाम पर उनसे वोट इसीलिए लिया था?  

झारखंड दौरे के क्रम में कोल इंडिया लिमिटेड के प्रवक्ता ने 26 नवंबर की हड़ताल में कोयला मजदूरों के शामिल होने को ‘ अवैध ’ करार देते हुए हुए कहा है कि –हड़ताल में शामिल होनेवाले मजदूरों के ‘ नो वर्क नो पेमेंट ’के आधार पर दंडात्मक कारवाई हो सकती है।

जवाब में सभी प्रमुख कोयला यूनियनों ने भी कहा है कि कोल इंडिया के व्यापक कोयला मज़दूर अब पीछे हटने वाले नहीं हैं। केंद्र की सरकार जिस तरह से कोयला क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया लागू कर रही है, उससे खुद कोल इंडिया लिमिटेड की स्वायत्त स्थिति भी खत्म होनेवाली है। झारखंड स्थित कोयला क्षेत्र के ईसीएल– बीसीसीएल– सीसीएल से सम्बद्ध सभी कोलियारियों में सक्रिय तमाम केंद्रीय कोयला ट्रेड यूनियनों की स्थानीय इकाइयों के सदस्यों द्वारा दीपावली – छठ जैसे त्योहारों के दौरान भी गेट / पीट मीटिंग– छोटी छोटी मजदूर सभाएं – ड्यूटी मीटिंग कार्यक्रमों से मजदूरों को सक्रिय बनाने अभियान निरंतर जारी है।

कोयला की राजधानी कहे जानेवाले धनबाद इलाके के मुगमा– कुमारधुबी के अलावा बोकारो ज़िला के गोमिया–कथारा और रामगढ़– हजारीबाग जिले के कुजू– गिद्दी – सिरका समेत कई कोलियरियों में मजदूर गोलबंदी के कार्यक्रम ज़ोरों पर हैं। सीटू से जुड़े बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के संयुक्त महामंत्री मानस मुखर्जी ने भी बताया है कि जिस प्रकार से पिछले जुलाई माह में कॉमर्शियल माईनिंग के खिलाफ कोयला मजदूरों ने तीन दिन की सफल हड़ताल की थी, इस बार उससे भी जोरदार हड़ताल होगी। क्योंकि इस बार सभी सार्वजनिक क्षेत्र के मजदूरों के अलावा असंगठित क्षेत्र के भी मजदूर मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का खुलकर विरोध करेंगे।

झारखंड प्रदेश में स्टील क्षेत्र की प्रमुख ट्रेड यूनियनों की संयुक्त संघर्ष समिति के वरिष्ठ मजदूर नेता देवदीप सिंह दिवाकर (केंद्रीय नेता एक्टू) ने बताया कि बोकारो स्टील सिटी के आलवे कई अन्य स्टील क्षेत्र के मजदूर भी इस बार के मजदूर हड़ताल में शामिल होने का मन बना रहें हैं। 20 नवंबर से बोकारो के सेक्टर 9 में ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मोर्चा स्टील प्लांट के अंदर के साथ साथ बाहर के भी मजदूरों में भी व्यापक जन जागरण अभियान चलाया गया। हड़ताल के समर्थन में हो रही मजदूर सभाओं में वक्ताओं द्वारा कोरोना काल की आड़ में मजदूरों को मिले अधिकारों को मोदी सरकार द्वारा खत्म किए जाने के खिलाफ व्यापक विरोध खड़ा करने के आह्वान को आम मजदूर भी समर्थन दे रहें हैं।

मजदूरों का गुस्सा इस बात को भी लेकर भी दीख रहा है कि मोदी सरकार की निजीकरण की नीतियों से आज हर क्षेत्र के मजदूरों की रोजी रोटी छीन जाने का खतरा पैदा हो गया है। लॉकडाउन और उसके पहले नोटबंदी– जीएसटी की मार ने मंझोले उद्योगों की कमर तोड़ दी है। संयुक्त ट्रेड यूनियन के नेताओं के अनुसार मोदी सरकार द्वारा कोरोना काल की आड़ में कॉर्पोरेट – निजी बड़ी कंपनियों के फायदे हेतु ताबड़तोड़ लिए जा रहे फैसलों को सभी खुली आँखों से देख रहें हैं। जिससे आनेवाली पीढ़ियों के रोजगार पाने की सभी संभावनों के समाप्त किए जाने की सभी चालों को अब आम मजदूर भी जानने– समझने लगें हैं। यही वजह है कि जमशेदपुर क्षेत्र के हाट गमहरीया इलाके के निजी-मँझोले औद्योगिक मजदूरों में भी हड़ताल को लेकर सक्रियता देखी जा रही है। 26 नवंबर की देशव्यापी मजदूर हड़ताल का आह्वान करनेवाले प्रमुख केंद्रीय मजदूर संगठनों ने 27 नवंबर के किसानों के देशव्यापी प्रतिवाद को भी सफल बनाने का ऐलान किया है।

झारखंड प्रदेश के प्रमुख वामपंथी दल सीपीआई– सीपीएम– भाकपा माले व मासस के प्रतिनिधियों ने रांची में प्रेसवार्ता कर 26 व 27 नवंबर के मजदूर– किसानों की हड़ताल और राष्ट्रीय विरोध अभियान को सक्रिय समर्थन देने की घोषणा की है।

यह आंदोलन-हड़ताल किस हद तक मजदूरों को अपने व्यापक अधिकारों के लिए सतत जागरूक व सक्रिय बना पाती है और आगे की सभी लड़ाईयों को एक सही दिशा देने में कितनी कारगर होती है यह देखने वाली बात होगी।  

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