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झारखंड: MP की घटना और UCC को लेकर आदिवासी समुदाय में भारी रोष

विरोध प्रदर्शन के माध्यम से यूसीसी को 'आदिवासी विरोधी' बताया गया और साथ ही आंदोलन तेज़ करने की चेतावनी दी गई।
Aadiwasi Against UCC

मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय के एक व्यक्ति के साथ किए गए अमानवीय अत्याचार की घटना को लेकर देश भर के लोकतान्त्रिक नागरिक समाज के साथ-साथ विशेष रूप से आदिवासी समुदायों में गहरा क्षोभ भरा हुआ है। झारखंड प्रदेश के आदिवासी जो प्रधानमंत्री द्वारा देश में यूसीसी लागू किए जाने की घोषणा के बाद से ही इसके ख़िलाफ़ विरोध में थे, वे मध्यप्रदेश में एक आदिवासी के साथ हुए अमानवीय अत्याचार को लेकर बेहद गुस्से में हैं।

बीती 8 जुलाई को रांची स्थित भाजपा मुख्यालय के समक्ष हुआ आक्रोश प्रदर्शन अब राज्यव्यापी विस्तार लेता जा रहा है। इस प्रदर्शन के माध्यम से बताया गया कि देश में यूसीसी लागू होने के बाद आदिवासियों के साथ कैसा व्यवहार होगा, मध्यप्रदेश में हुई घटना इसी की बानगी है। यहां इकठ्ठा हुई भीड़ दर्शा रही है कि यह भाजपा सरकार के शासन में हो रही घटनाओं की तीखी अभिव्यक्ति है। विरोध प्रदर्शन के दौरान आक्रोशित आदिवासी महिला नेताओं ने यह भी सवाल किया कि "इस घटना से “हिंदू-मुसलमान कार्ड” नहीं खेला जा सकता है क्या सिर्फ़ इसीलिए संघ-भाजपा और उसके समर्थक चुप है?”
 
भाजपा मुख्यालय के समक्ष किए गए आक्रोश प्रदर्शन के माध्यम से मांग की गई कि आदिवासी मंत्री अर्जुन मुंडा व प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी अपनी चुप्पी तोड़ें। इसके अलावा भाजपा के सभी आदिवासी सांसद-विधायक और नेताओं से भी पूछा जा रहा है कि वे अपने समुदाय के एक शख्स के साथ किए गए इतने अमानवीय कृत्य को लेकर चुप क्यों हैं?

उक्त मांगों को लेकर 10 व 11 जुलाई को खूंटी में आदिवासी समुदाय के लोगों ने मध्यप्रदेश की घटना के ख़िलाफ़ आक्रोश प्रदर्शित किया गया। इसके माध्यम से यह भी कहा गया कि यदि ऐसी जघन्य घटनाओं पर अविलंब एक्शन नहीं लिया गया और साथ ही यदि “आदिवासी विरोधी यूसीसी”लागू किया गया तो आंदोलन और तेज़ होगा जिसके लिए सीधे तौर पर भाजपा ज़िम्मेदार होगी।

विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए आदिवासी नेताओं ने यह भी कहा कि "अभी जबकि यूसीसी पर चर्चा ही चल रही है तो तब आलम ऐसा बना हुआ है कि मानो विशेष जाति समुदाय वालों को इतनी मनमर्जी करने की छूट मिली हुई है कि वह जब चाहे आदिवासियों के साथ अमानवीय घटना को अंजाम दे सकते हैं, यदि वास्तविक रूप से यूसीसी हम पर थोप दिया गया तब कैसी विकराल स्थिति होगी।"
 
9 जुलाई को जमशेदपुर में यूसीसी के ख़िलाफ़ विशाल जन कनवेंशन किया गया। कोल्हान क्षेत्र के मांझी परगना महल व मानकी-मुंडा संघ समेत कई प्रमुख आदिवासी जन संगठनों द्वारा आयोजित इस कनवेंशन में उपस्थित आदिवासियों द्वारा एक स्वर से यूसीसी का ज़ोरदार विरोध किया गया।

इसके अलावा सर्वसम्मति से पारित प्रताव में तीन सूत्री फैसला लिया गया:

1. 13 जुलाई तक व्यापक स्तर पर आदिवासी समुदाय के लोग अपना लिखित विरोध और सुझाव “विधि आयोग” को भेज देंगे

2. सभी आदिवासी गावों के मांझी, पड़हा, डोकलो सोहेर (ग्रामीण आदिवासी गावों के सामुदायिक प्रधान) अपने-अपने गावों से यूसीसी के विरोध में लिखित ज्ञापन देंगे

3. केंद्र की भाजपा सरकार जब तक अपन यह आदिवासी विरोधी प्रस्ताव वापस नहीं लेगी, तब तक हर स्तर से लोकतांत्रिक विरोध जारी रहेगा। इसके अलावा 9 अगस्त ‘विश्व आदिवासी दिवस’ तक इसे देशव्यापी आंदोलन का स्वरुप दिया जाएगा। ज़रूरत पड़ी तो न्यायिक कार्रवाई भी की जाएगी।

कनवेंशन में मांझी-मानकी व मुंडा संघ के सैंकड़ों प्रतिनिधियों के अलावा, उराँव, भूमिज व संताल समाज के कई वरिष्ठ आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने सक्रीय भागीदारी निभायी। कई सामाजिक जन संगठनों के लोग भी भारी संख्या में शामिल हुए जिन्होंने एक स्वर से कहा कि आदिवासी और आदिवासियत पर हो रहे हमलों को किसी भी क़ीमत पर अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सूचनाओं के अनुसार आगामी 30 जुलाई को रांची में फिर से एक बड़ी बैठक बुलाई जा सकती है जिसमें यूसीसी को लेकर आगे की रणनीति व एक बड़े आंदोलन की रूप रेखा तैयार की जाएगी।

इस बीच सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश की घटना को लेकर कुछेक लोगों द्वारा शर्मनाक टिपण्णी भी की गईं। ऐसे में सवाल उठता है की क्या वाकई ऐसे लोग एक सभ्य समाज का हिस्सा हों सकते हैं?

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