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झारखंड: स्वास्थ्य विभाग का नया ‘संकल्प पत्र, सरकारी ब्लड बैंकों से नहीं मिलेगा निःशुल्क ख़ून, स्वास्थ्य जन संगठनों ने किया विरोध

राजधानी रांची स्थित रिम्स और सदर अस्पताल में लोगों को पैसों से ब्लड मिल रहा है। बीपीएल व आयुष्मान कार्ड धारकों को छोड़ किसी भी गरीब-लाचार अथवा धनवान व्यक्ति को समान रूप से प्रदेश के किसी भी सरकारी ब्लड बैंक से खून लेने के लिए प्रति यूनिट 1050 रुपये देने होंगे।
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झारखंड राज्य में पिछले कई वर्षों से आम लोगों को सरकारी ब्लड बैंकों में यह सुविधा सहज हासिल थी कि कोई भी रक्तदान करके ज़रूरत लायक खून निःशुल्क प्राप्त कर लेता था। चंद दिनों पूर्व झारखण्ड सरकार के स्वास्थ्य विभाग के सनक भरे फैसले ने अब इस पर रोक लगा दिया है। बीपीएल व आयुष्मान कार्ड धारकों को छोड़ किसी भी गरीब-लाचार अथवा धनवान व्यक्ति को समान रूप से प्रदेश के किसी भी सरकारी ब्लड बैंक से खून लेने के लिए प्रति यूनिट 1050 रुपये देने होंगे।

ताज़ा जानकारी के मुताबिक राजधानी स्थित रिम्स और सदर अस्पताल में उक्त राशि चुकाने के बाद ही लोगों को ब्लड मिल रहा है। अचानक जारी हुए इस सरकारी फरमान से इन अस्पतालों में जिन ज़रूरतमंद लोगों के पास बीपीएल अथवा आयुष्मान कार्ड नहीं है या जो रांची के बाहर से यहाँ इलाज कराने आये हुए हैं उन्हें भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।

झारखंड सरकार इन दिनों प्रदेश में ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार’ योजना चला रही है। गत 15 नवम्बर से झारखंड राज्य गठन के 20 वर्ष और हेमंत सोरेन सरकार के दो साल पूरे होने पर शुरू किये गए इस अभियान का मक़सद है प्रदेश के सभी लोगों तक सरकार की सभी योजनाओं को पहुंचाया जाए। वहीँ सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी नए ‘संकल्प पत्र’ फरमान के कारण निःशुल्क मिलने वाले ब्लड के लिए 1050 रु. चार्ज तय चुकाने वाले नहीं समझ पा रहें हैं कि यह कैसी ‘आपकी सरकार’ है?

झारखण्ड सरकार के स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से झारखंड राज्य एड्स नियंत्रण समिति द्वारा ‘संकल्प पत्र’ जारी करने के बाद से रक्तदान शिविर का आयोजन कर लोगों से रक्तदान कराने वाले सामाजिक जन संगठनों, रक्तदाता और नागरिक समाज के लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया है।

गत 1 दिसंबर से ही राजभवन के समक्ष प्रतिवाद धरना और अलबर्ट एक्का चौक पर उक्त सामाजिक संगठनों द्वारा विरोध प्रदर्शनों से इस फैसले को अविलम्ब वापस लिए जाने की मांग की जा रही है। उनका कहना है कि 2018 से ही पिछली सरकार के जन कल्याणकारी योजना के तहत पूरे राज्य में सभी सरकारी ब्लड बैंकों में यह सुविधा उपलब्ध थी कि कोई भी रक्तदान करके निःशुल्क ब्लड ले सकता था। इसे बंद करके प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर 1050 रु. लिया जाना अमानवीय कृत्य जैसा है।

जन स्वास्थ्य के मुद्दों पर निरंतर सक्रिय रहने वाले सामाजिक संगठन ‘लहू बोलेगा’ के संयोजक नदीम खान का कहना है कि एक तो रक्तदान मुहीम चलाना चुनौती भरा है। जी तोड़ मेहनत करके हम लोगों को अधिक से अधिक रक्तदान करने के लिए तैयार करते है। जगह जगह ब्लड डोनेशन कैम्प लगाकर लोगों से ब्लड इकठ्ठा करते हैं। रक्तदान एक मानवीय कर्तव्य है, यह लोगों को समझाते हैं। लेकिन जब लोगों को पता चलेगा कि उनसे फ्री में लिए गए खून पर सरकार ही पैसे वसूल रही है तो ऐसे में कौन रक्तदान करेगा। यही बातें रक्तदान करने वालों और ब्लड डोनेशन कैम्प आयोजित करनेवाले सभी सामाजिक संगठनों का भी कहना है। 

सरकारी ब्लड बैंकों से प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर 1050 रु. लिए जाने का विरोध करने वालों ने स्वास्थ्य विभाग पर निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के कारोबारियों को लाभ पहुँचाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि उनके नए फैसले से निराश लोग अब निजी ब्लड बैंकों की शरण में जाने को विवश हो जायेंगे। ऐसे में खून की कालाबाजारी पूरी तरह बेलगाम हो जायेगी। क्योंकि सरकार पहले से ही निजी ब्लड बैंकों की मनमानी पर कोई अंकुश लगाने में विफल हो चुकी है।

दूसरी ओर, झारखंड स्वास्थ्य विभाग मिडिया से जारी बयानों में लगातार कह रहा है कि कुछ इस संकल्प का हवाला देकर सोशल मिडिया और अन्य संचार माध्यमों से लोगों को गुमराह कर रहें है। सरकार की छवि ख़राब करने की कोशिश कर रहें हैं। विभाग ने लोगों से यह भी अपील किया है कि वे इस तरह की अफवाहों पर ध्यान ना दें।

स्वास्थ्य विभाग के वरीय अधिकारी का कहना है कि ब्लड को लेकर चल रही काला बाजारी पर अंकुश लगाने की कार्रवाई के तहत यह संकल्प पात्र जारी किया गया है। जो निजी ब्लड बैंक कारोबार के लोगों को पसंद नहीं आ रहा है। जानकारों के अनुसार झारखण्ड प्रदेश में कुल 55 ब्लड बैंक हैं जिनमें से मात्र 19 ही सरकारी ब्लड बैंक बचे हुए हैं। जिनमें आम दिनों में भी खून की कमी हमेशा बनी रहती है। प्रोसेसिंग चार्ज वसूले जाने के कारण यहाँ एक कृत्रिम संकट पैदा हो जाएगा। अब रिम्स और सदर अस्पताल इत्यादि स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज करा रहे ऐसे गरीब मरीज़ जिनके पास कोई सरकारी कार्ड नहीं है या लावारिश व एक्सीडेंट के शिकार हाल में पहुंचे तथा बाहर से आये मरीजों के परिजन निजी ब्लड बैंकों की मनमानी झेलने को विवश हो जायेंगे।

सरकारी बैंकों से प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर शुल्क लिए जाने के फैसले पर स्वास्थ्य विभाग पुनर्विचार करने के मूड में नहीं दिख रहा है। खबर है कि प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों को ‘संकल्प पत्र’ भेजकर सरकारी ब्लड बैंकों से खून लेने वालों से 1050 रु. वसूलने का निर्देश जारी किया जा चुका है। राजधानी स्थित रिम्स और सदर अस्पताल में लोग शुल्क चुकाकर ही खून मिल रहा है।

तो दूसरी ओर, प्रोसेसिंग शुल्क वापस लेने की मांग को लेकर विरोध का भी दायरा बढ़ता जा रहा है। 2 दिसंबर को अलबर्ट एक्का चौक पर प्रतिवाद कर रहे आइसा-इनौस के सदस्यों के अलावे कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने एक स्वर से कहा है कि एक तो कोरोना महामारी काल ने सभी सरकारों की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह उजागर कर दिया है जिसे तत्काल दुरुस्त करने की ज़रूरत है। झारखंड सरकार स्वास्थ्य विभाग द्वारा सरकारी बल्ड बैंकों में लोगों से निःशुल्क एकत्रित खून पर भी शुल्क लिए जाने काफैसला जन स्वस्थ्य सुविधा से हाथ पीछे खींचने वाला और निजी स्वास्थ्य क्षेत्रों की लूट को बढ़ावा देने वाला है।

जन स्वास्थय को लेकर निरंतर कई वर्षों से सक्रिय सामाजिक स्वास्थ्य संगठन ‘लहू बोलेगा’ समेत कई अन्य जन संगठनों ने सरकार के स्वास्थय विभाग द्वारा सरकारी ब्लड बैंकों से खून लेने के सन्दर्भ में जारी किये गए नए फरमानों (संकल पत्र) का कड़ा विरोध किया है।

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