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झारखंड: केंद्र से 1.36 लाख करोड़ बकाया लौटाने की मांग बनी राजनीतिक मुद्दा

“मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार केंद्र से यह राशि उपलब्ध कराने अनुरोध किया जा रहा है। जिसे केंद्र की सरकार लगातार अनसुना कर रही है। ऐसे में यदि ज़रूरत पड़ी तो हम क़ानूनी कार्रवाई की ओर भी बढ़ने को विवश हो जायेंगे।”
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झारखंड विधानसभा का बजट सत्र। फ़ोटो साभार सोशल मीडिया

झारखंड विधान सभा का चालू बजट सत्र इन दिनों सत्ता-पक्ष और विपक्ष के बीच हर दिन तीखी नोक-झोंक भरी हंगामेदार बहसों से काफी सरगर्म हो चला है। विगत 24 फ़रवरी से शुरू हुए इस सत्र में हंगामे का सिलसिला उस समय से शुरू हो गया जब 3 मार्च को सदन में राज्य सरकार की ओर से आगामी वित्तीय वर्ष 2025-26 का वार्षिक बजट प्रस्तुत किया गया। जिसमें केंद्र सरकार के पास झारखंड राज्य के 1.36 लाख करोड़ रुपये बकाया राशि के भुगतान का मुद्दा पुरज़ोर ढंग से उठाया गया। यह सत्र 27 मार्च तक चलेगा। 

बजट प्रस्तुत करते हुए राज्य सरकार के वित्त मंत्री ने मुखर होकर कहा कि- केंद्र सरकार के पास झारखंड प्रदेश का 1.36 लाख करोड़ रुपये देनदारी का मामला लंबित पड़ा है। मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार केंद्र की सरकार से यह राशि उपलब्ध कराने अनुरोध किया जा रहा है। जिसे केंद्र की सरकार लगातार अनसुना कर रही है। ऐसे में यदि ज़रूरत पड़ी तो हम कानूनी कार्रवाई की ओर भी बढ़ने को विवश हो जायेंगे। 

इसके बाद तो मानो तीखी बहसों की इस क़दर झड़ी सी लग गयी है कि सदन में जारी बजट सत्र के हर सेशन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रतिनिधियों के बीच जमकर आरोप-प्रत्यारोप होने लगता है।

एक ओर, जहाँ विपक्षी दल भाजपा के नेताओं द्वारा सिरे से इंकार करते हुए कहा जा रहा है कि- राज्य की भोली-भाली जनता को गुमराह न करें। झारखंड सरकार पर पीएसयू का बकाया है। ट्रिब्यूनल व कोर्ट में मामला चल रहा है। इस पर राजनीति ना करें।

वहीं, जवाब में सत्ता पक्ष की ओर से बोलते हुए हर प्रतिनिधियों द्वारा काफी तीख़े अंदाज़ में कहा जा रहा है- “कान में सुना के रखिये 1.36 लाख करोड़ झारखंड लेके रहेगा”। 

वैसे, यह मुद्दा झारखंड में सम्पन्न हुए विधान सभा चुनाव के पहले से ही उठ रहा है। झारखंड की INDIA गठबंधन सरकार द्वारा केंद्र की सरकार के समक्ष लगातार ये मांग उठाई जाती रही है कि वह राज्य का बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपये को चुकता करे। बाद में विधान सभा चुनाव के प्रचार अभियानों में हेमंत सोरेन द्वारा हर सभा-संबोधनों में प्रमुखता के साथ उठाया गया। लेकिन हैरत है कि इस मुद्दे को चुनाव प्रचार अभियान में आये प्रधान मंत्री व गृहमंत्री से लेकर किसी केन्द्रीय मंत्री-नेता ने कोई महत्व ही नहीं दिया। 

गौरतलब है कि झारखंड की सरकार ने इस मांग को उसी समय से मुखरता के साथ उठाना शुरू कर दिया था जब 2024 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा खनिज प्रधान राज्यों को खनिज रॉयल्टी देने सम्बन्धी अहम् फैसला दिया।  

जिसके तहत 2024 के जुलाई माह में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली 9 जजों की विशेष पीठ ने 8:1 की बहुमत से ये फैसला सुनाया था कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति संसद में नहीं बल्कि राज्यों में निहित है। बाद में शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से खनिज संपन्न राज्यों को केंद्र और खनन कंपनियों से 1 अप्रैल 2005 से खनिज की रॉयल्टी राशि और कर का बकाया वसूलने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि- यह रॉयल्टी टैक्स नहीं है बल्कि संविदात्मक मूल्य है जो खनन पट्टेदार की ओर से खनिज अधिकारों के उपभोग के लिए पट्टादाता को दी जाती है। 

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के तत्काल बाद ही त्वरित प्रतिक्रिया में पुरज़ोर स्वागत करते हुए झारखंड की हेमन्त सोरेन सरकार ने फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि- लम्बे संघर्ष के बाद ये दिन आया है जब देश के सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की जनता के हित में अपना फैसला सुनाया है। 

फिलहाल मीडिया ख़बरों के अनुसार झारखंड की सरकार ने एक बार फिर से राज्य का बकाया राशि नहीं दिए जाने के मुद्दे को मुखरता के साथ उठाया है। साथ ही केंद्र सरकार की लागातार चुप्पी के ख़िलाफ़ कड़ी नाराज़गी जताते हुए साफ़ तौर से यह भी कह दिया है कि- यदि झारखंड के 1.36 लाख करोड़ रुपये का बकाया नहीं चुकाया गया तो यहां से एक छंटाक खनिज भी नहीं ले जाने देंगे। बंद कर देंगे खदानें। 

4 मार्च को गिरिडीह में पार्टी स्थापना दिवस पर आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए हेमंत सोरेन ने उक्त बयान देते हुए यह भी कहा कि- ज़मीन हमारी लेकिन हमारा ही हिस्सा हमें नहीं मिल रहा है। राज्य की बाकाया राशि मांगी तो केंद्र की सरकार आनाकानी कर रही है।

यह भी आरोप लगाया कि- केंद्र सरकार झारखंड के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए नाक रगड़वा दिया, लेकिन राशि नहीं दी। मजबूर होकर हमें झारखंड के गरीब-गुरबों के लिए ‘अबुआ आवास योजना’ चलानी पड़ी। 

चर्चा है कि अभी यह मुद्दा इसलिए तूल पकड़ रहा है कि केन्द्रीय नीति आयोग और एफआरबीएम् हालिया रिपोर्ट के अनुसार “राजकोषीय घाटा को सीमा के अन्दर रखने के मामले में झारखंड देश में पहले स्थान पर बताया गया है। जिससे हेमंत सोरेन सरकार के हौसले काफी बुलंद हैं। 

इसे अभिव्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा है कि- “ये तब की स्थिति है जब हमारा 1.36 लाख करोड़ रुपये केंद्र पर बकाया है। सोचिये हमारे हक़ का पैसा समय से मिलता तो और कितने आगे होते! वैसे, देश के तथाकथित ‘मॉडल प्रदेशों’ की स्थिति बीजेपी राज में क्या है, पता किया है किसी ने?” 

इसी मुद्दे को सदन में बजट सत्र-चर्चा के दौरान ज़ोर देकर उठाते हुए झामुमो की नेता व गांडेय विधायक कल्पना सोरेन ने कहा कि- केंद्र सरकार झारखंड का खजाना उड़ा कर ले जाना चाहती है। ऐसा नहीं होने दिया जाएगा।

फिलहाल, इस मुद्दे पर प्रदेश की राजनीति काफी गरमाई हुई है और जल्द इसका कोई ठोस-सकारात्मक परिणाम आने के आरंभिक आसार भी अभी नहीं दीख रहे हैं। जाहिर है कि यह मुद्दा भी ठंडा नहीं पड़ने वाला है।

देखना है कि जब बात निकली है तो कितनी दूर तलक जायेगी। 

वैसे यह बात भी काफी वायरल हो चुकी है कि- जिस भी राज्य में यदि कोई गैर भाजपा सरकार सत्ता में है तो केंद्र की सरकार अघोषित रूप से उसे तंग-परेशान और अस्थिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।   

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और संस्कृतिकर्मी व राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। विचार-विश्लेषण व्यक्तिगत है।)

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