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झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार

एक ओर, राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर मुहर नहीं लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार ने पिछली भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं।
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File photo- The Telegraph

ऐसा प्रतीत हो रहा है कि झारखण्ड प्रदेश में सत्ता सियासत की ‘शाह और मात’ का खेल अभी और बढ़ेगा. एक ओर, राज्यपाल महोदय हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर अपनी स्वीकृति की मुहर नहीं लगाकर, राजभवन की भूमिका को सियासी चर्चाओं में लगातार बनाए हुए हैं। वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार द्वारा पिछली भाजपा सरकार और रघुवर दास शासन काल में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश को भी पलटवार बताया जा रहा है। 

18 मई को प्रदेश की सियासी चर्चाओं में दो मामले एक साथ आये, जिसमें से एक है, महामहिम राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के विधान सभा से पारित ‘कृषि सम्बन्धी विधेयक’ को तथाकथित तकनीकी त्रुटि व कुछ बिन्दुओं के अस्पष्ट रहने का सवाल उठाते हुए उसे अस्वीकृत कर राज्य सरकार को वापस लौटा देना। जो बिलकुल उसी तर्ज़ पर हुआ जैसे पिछले दिनों ‘भीड़ हिंसा एवं मॉब लिंचिंग विरोधी विधेयक’ को राज्यपाल ने बिना दस्तखत किये राज्य सरकार को वापस लौटा दिया था। जिसे वापस करने की मांग को लेकर प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेतागण राज्यपाल से मिलने राजभवन गए थे।

इस बार ‘कृषि सम्बन्धी विधेयक’ लाकर झारखंड के किसानों की आय दोगुनी करने और उनकी फसलों के सही दाम दिलाने को सुनिश्चित करने हेतु विधान सभा से पारित कराकर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा गया था। जिसका झारखंड चैंबर ऑफ़ कॉमर्स समेत कई व्यावसायिक संगठन लगातार विरोध कर रहे थे। उक्त संगठनों ने विशेष प्रतिनिधि मंडल भेजकर राज्यपाल से प्रस्तावित विधेयक को अनुमति नहीं देने का अनुरोध किया था। कहा जा रहा है कि राज्यपाल महोदय ने उसे मान लिया. 

दूसरा सरगर्म मामला- 18 मई को ही हेमंत सोरेन सरकार के ताज़ा फैसले के तहत ‘झारखण्ड विधान सभा और हाई कोर्ट के नवनिर्मित भवन निर्माण कार्य में हुई अनियमिता और घोटालों की न्यायिक जाँच’ की घोषणा। यह मामला पिछली भाजपा सरकार के रघुवर दास शासन कल में काफी विवाद का विषय बना था। जिसे लेकर नेता प्रतिपक्ष के तौर पर खुद हेमंत सोरेन ने तत्कालीन सरकार को घेरते हुए जांच की मांग की थी। जिसे रघुवर दास सरकार ने खारिज भी कर दिया था। 

राज्य की गोदी मीडिया हेमंत सोरेन सरकार के इस फैसले को, हमलावर बनी भाजपा के खिलाफ पलटवार की संज्ञा दे रही है, जो सही नहीं है। यह कहकर कि हेमंत सोरेन अपनी सरकार को बचाने के लिए ही यह सब कर रहें हैं, पिछली भाजपा सरकार व उसके मुखिया रघुवर दास शासन काल में हुए जन विरोधी कार्यों और सरकार संरक्षित सर्वव्यापी लूट-भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे राज्य में हुए व्यापक जन आंदोलनों पर कत्तई पर्दा नहीं डाला जा सकता है। सर्वविदित है उस दौर में रघुवर दास कुशासन के खिलाफ उठने वाली आवाजों पर राज्य की गोदी मीडिया ने अघोषित रूप से सेंसर लगा रखा था।जो इस समय हेमंत सोरेन शासन के विरोध में ‘आदर्श पत्रकारिता’ का स्वांग रचे हुए हैं।

झारखंड विधान सभा और हाई कोर्ट के नए भवन निर्माण में हुई संस्थाबद्ध अनियमितता और घोटाले किसी विपक्ष मात्र के जरिये ही नहीं उजागर हुए थे। बल्कि उक्त भवनों के निर्माण काल के दौरान हुई कई संगीन घटनाओं ने ही वहाँ का सारा सच राज्य की जनता के सामने उजागर कर दिया था।

सनद रहे कि 12 सितम्बर झारखंड विधान सभा के नए भवन का उद्घाटन प्रधान मंत्री ने किया था, यह विडंबनापूर्ण संयोग नहीं था कि उद्घाटन कार्यक्रम के दो दिन विधान सभा के पूर्व ही नवनिर्मित भवन में अप्रत्याशित रूप से अग्निकांड की घटना हो गयी। जिससे मची अफरा-तफरी में वहाँ पर की गयी सारी अनियमितताएं खुलकर सामने आने लगीं। कि किस तरह से भवन निर्माण योजना में शामिल तत्कालीन सरकार के चहेते इंजीनियरों ने निर्माणकर्ता संवेदक रामकृपाल कंस्ट्रक्शन को लाभ पहुंचाने के लिए भवन निर्माण की प्राक्कलन राशि में ही हेर फेर का खेल कर दिया था। सरकार द्वारा विधान सभा के नए भवन निर्माण की आरंभिक प्राक्कलन राशि 465 करोड़ रूपये की थी, सरकार के चहेते इंजीनियरों ने गड़बड़ी कर 420.19 करोड़ कर दिया। पुनः 12 दिनों के अन्दर ही निर्माण लागत घटाकर सीधे 323.03 करोड़ कर दिया गया। बाद में टेंडर निपटारे के तहत 290.72 करोड़ की दर पर निर्माण कार्य का ठेका सीधे रामकृपाल कंसट्रक्सन को दे दिया गया। विधान सभा के नए भवन के चालू होने से पूर्व हुए अग्निकांड की घटना के थोड़े ही दिनों बाद नवनिर्मित विधान सभा भवन की छत की सीलिंग टूटकर गिरने की घटना ने दिखला दिया कि कैसे यहाँ सिर्फ अनियमितता ही नहीं बल्कि सरकार संरक्षित घोटाला हुआ है।

विधान सभा के नए भवन के निर्माणकर्ता संवेदक रामकृपाल कन्सट्रक्सन को ही रघुवर दास सरकार ने हाई कोर्ट के नए भवन निर्माण का भी ठेका दे रखा था। यहाँ तो सरकारी खजाने के करोड़ों करोड़ रुपये बिना किसी अनुमति के ही निकाल लिए गए। सरकार की ही विभागीय रिपोर्ट में इस तथ्य का खुलासा हुआ कि- हाई कोर्ट भवन निर्माण की प्राक्कलन राशि 265 करोड़ थी। लेकिन जैसे-जैसे वहां का काम बढ़ता गया निर्माण राशि भी बढ़ाकर 697 करोड़ खर्च कर दी गयी, जिसके लिए कहीं से भी कोई अनुमति नहीं ली गयी थी।

उक्त दोनों मुद्दों को लेकर वाम दल और विपक्ष के साथ साथ कई नागरिक व सामाजिक संगठनों ने काफी आवाजें उठायी लेकिन भाजपा और रघुवरदास सरकार ने आवाज़ उठाने वालों को ही ‘विकास विरोधी’ करार दे दिया था।

हालाँकि हेमंत सोरेन सरकार द्वारा न्यायिक जाँच कराये जाने के फैसले को लेकर भी कई तरह की मिली जुली चर्चाएँ हैं। एक चर्चा है कि जब 1 जुलाई 2021 को विधान सभा व हाई कोर्ट भवन निर्माण मामले की जांच का ज़िम्मा ‘भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो’ को देने की घोषणा की गयी थी और मात्र 9 महीने बाद ही अब ‘न्यायिक जांच कराने’ के आदेश का क्या मतलब समझा जाए?

वैसे यह कड़वी हकीक़त है कि पिछले भाजपा राज के कुशासन से तंग आकर ही लोगों ने हेमंत सोरेन सरकार को सत्ता का जनादेश दिया था। नयी सरकार से सबको आशा थी कि भाजपा और रघुवर दास शासन के ‘लैंड बैंक कानून’ और यहाँ के जल जंगल ज़मीन व खनिज की बेलगाम लूट व दोहन के लिए, कई निजी व कॉर्पोरेट कंपनियों से किये गए ‘एम्ओयू करार’ के साथ-साथ जैसे झारखंड विरोधी निर्णयों को निरस्त किया जाएगा। पुलिस दमन व अपराध के साथ साथ ब्लॉक-बैंकों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। यहाँ के व्यापक नौजवानों को उनके राज्य में सम्मानजनक रोज़गार मिलेगा, लेकिन इन उम्मीदों पर आज हेमंत सोरेन सरकार कहाँ खड़ी है? ये सवाल आज भी बने हुए हैं?

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