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झारखंड:  ‘नियोजन नीति’ के सवाल पर तीखी हुई सियासी टकराहट  

16 दिसमबर को हाई कोर्ट ने ‘झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली-2021’ के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के उपरांत अपने फैसले में राज्य सरकार की वर्तमान ‘नियोजन नियमावली’ को पूरी तरह से निरस्त्र कर दिया था।
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झारखंड प्रदेश की ’1932 का खतियान आधारित नियोजन नीति’ को लेकर एक बार फिर से प्रदेश का राजनीतिक और सामाजिक वातावरण काफी सरगर्म हो उठा है। झारखंड प्रदेश के व्यापक आदिवासी और मूलवासी समुदाय के लोग और उनके संगठन वर्षों से 1932 का खतियान आधारित राज्य की स्थानीयता और नियोजन नीति’ बनाने की माँगा को लेकर आवाज़ उठाते रहें हैं।   

आशंकाओं के अनुरूप उक्त विवादास्पद मुद्दे को लेकर झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र भी भारी हंगामे और सत्ता पक्ष-विपक्ष के बीच तीखी नोक झोंक व आरोप-प्रत्यारोपों के साथ समाप्त हुआ। हैरानी है कि राजधानी में सदन की ऐसी ही स्थितियों का हवाला देकर संसद के शीतकालीन सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया।

’1932 के खतियान आधारित राज्य नियोजन नीति’ को लेकर छिड़ा सियासी विवाद शीतकालीन सत्र के शुरूआती दिन से लेकर इसके समापन दिवस तक सत्ता और विपक्ष के बीच हुए तीखे तकरारों के केंद्र में छाया रहा। विधान सभा में उक्त मुद्दे पर हेमंत सोरेन सरकार द्वारा रखे गए तर्कों से असंतुष्ट होने के कारण सत्र के अंतिम दिन 23 दिसंबर को सदन भारी हंगामे और शोर शराब से पूरी तरह अस्त व्यस्त रहा। 

शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही विपक्षी दल भाजपा कई विधायक नारे लगाते हुए विधानसभा के मुख्य द्वार पर अपना विरोध प्रदर्शन किया। जो सदन के कई सत्रों में भी किसी न किसी रूप से चर्चा में आता रहा। आखिरी दिन सुबह का सत्र शुरू होते ही भाजपा विधायक स्पीकर के वेल में पहुँचकर ‘राज्य नियोजन नीति’ पर विशेष चर्चा कराये जाने और हेमंत सरकार से स्पष्टीकरण जवाब की मांग करने लगे। स्पीकर ने- उक्त विषय पर पूर्व में ही काफी चर्चा हो चुकी है, कहते हुए विपक्ष की मांग को अस्वीकार कर दिया। स्पीकर के जवाब से असंतुष्ट होकर भाजपा विधायक हेमंत सरकार विरोधी नारे लगते हुए सदन से बाहर मुख्य द्वार पर खड़े होकर अपना विरोध प्रदर्शित करने लगे।

गौरतलब है कि गत दिनों हेमंत सरकार द्वारा आहूत विधान सभा के विशेष सत्र से पारित ’1932 का खातियान आधारित राज्य नियोजन नीति’ विधेयक को लेकर शुरू से ही भाजपा-आजसू का तीखा विरोध रहा है। जिसपर तकरार तब और भी ज़्यादा बढ़ गयी जब बीते 16 दिसमबर को राज्य हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन सरकार द्वारा निर्धारित ‘राज्य नियोजन नीति’ को असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। 

झारखंड सरकार ने गजट नोटिफिकेशन- 3849/ 10।8।2021 के माध्यम से कर्मचारी चयन आयोग चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली-2021 लागू की थी। जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को झारखंड के मान्यताप्राप्त शैक्षिक संस्थानों से मैट्रिक/इंटर करना अनिवार्य होगा। साथ ही अभ्यर्थी को स्थानीय रीति-रिवाज़, भाषा व परिवेश की जानकारी रखना अनिवार्य होगा। जिसके खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी और सुनवाई चल रही थी। 

16 दिसमबर को हाई कोर्ट ने ‘झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली-2021’ के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई के उपरांत अपने फैसले में राज्य सरकार की वर्तमान ‘नियोजन नियमावली’ को पूरी तरह से निरस्त्र कर दिया। कहा कि यह नियमावली भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 व 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है। राज्य सरकार की यह नियमावली संविधानिक प्रावधानों पर खरी नहीं उतरती है, इसलिए इसे निरस्त्र किया जाता है। 

हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की इस नियमावली से की गयी सभी नियुक्तियों और जारी अन्य सभी नियुक्ति प्रक्रियाओं को भी रद्द कर दिया। साथ ही सरकार को निर्देश दिया कि नए सिरे से वह पुनः नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू करे।                                                                  

यह भी सनद रहे कि झारखंड हाई कोर्ट की विशेष खंडपीठ ने उक्त याचिका पर बीते सात सितम्बर की हुई सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा हुआ था। खंडपीठ ने यह भी कहा कि पूर्व की सुनवाई के दौरान अंतरिम आदेश दिया गया था कि रीट याचिकाओं पर होनेवाले अंतिम फैसले से पह्ले संशोधित नियमावली के तहत नियुक्ति प्रक्रिया की जाती है, तो यह अंतिम आदेश से प्रभावित होगी। इसलिए यह कोर्ट इस नियमावली से की गयी नियुक्ति प्रक्रिया को भी रद्द करता है। 

हाई कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए हेमंत सोरेन ने सवाल उठाया कि- हमने झारखंडवासियों के हितों को ध्यान में रखकर कानून बनाया तो क्या यह गलत है? यही दुर्भाग्य है इस राज्य का। चिंता मत कीजिये पूरी कानूनी जानकारी लेकर इस पर न्यायोचित पहल की जायेगी। साथ ही यह भी कहा कि- 1932 के खतियान वाले विधेयक मामले को भी राज्यपाल महोदय सीधे प्यार से आगे बढ़ा दें। लेकिन यह इतना आसान नहीं है इसके लिए यहाँ से लेकर दिल्ली सुप्रीम कोर्ट तक की दौड़ लगानी पड़ेगी। 

हाई कोर्ट के फैसले का व्यापक झारखंडियों ने तीखा विरोध किया है। विशेषकर छात्र युवाओं में काफी गुस्सा है। जो 21 दिसंबर को खुलकर राजधानी समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में सड़कों से लेकर सोशल मीडिया पर दिखा भी। हाई कोर्ट के इस फैसले के विरोध में रांची विधान सभा घेरने पहुंचे छात्र-युवाओं की प्रदर्शन-रैली से मुख्यमंत्री द्वारा भेजे गए पांच विधायकों के दल ने प्रदर्शनकारियों से मिलकर उनकी मांगों पर त्वरित संज्ञान लिए जाने का भरोसा दिलाया।

 उधर शीतकालीन सत्र के दौरान मुख्यमंत्री ने भी सदन में बोलते हुए आरोप लगाया कि-  बिहार-यूपी के लोग साजिश के तहत झारखंडी हित की नीतियों को कोर्ट में ले जाकर अड़ंगा डालते हैं। लेकिन झारखंडी युवाओं को रोज़गार देने के लिए उनकी सरकार हर संभव रास्ता निकालने को संकल्पबद्ध है। 

20 दिसंबर को ’1932 के खतियान आधारित स्थानियता/ नियोजन नीति तथा आरक्षण संसोधन’ विधेयक 2022 को ज़ल्द से ज़ल्द हस्ताक्षर कर अग्रसारित करने की मांग को लेकर हेमंत सोरेन सत्ता पक्ष के सभी विधायकों को लेकर झारखंड के राज्यपाल से मुलाक़ात की। राज्यपाल से विशेष आग्रह करते हुए कहा कि- झारखंड हितैषी नीतियों पर हमेशा से कुठाराघात हुआ है। इसलिए महामहिम शीघ्रतर इन विधेयकों को संविधान की 9 वीं अनुसूची में डलवाकर हमें संविधानिक कवच प्रदान करने में पुर सहयोग करें।

उक्त पुरे सन्दर्भों में एक सवाल तो पूरी तरह से वाज़िब प्रतीत होती है कि- क्या झारखंड जैसे प्रदेश को केवल यहाँ के जल, जंगल, ज़मीन, खनिज़ और प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुंध दोहन और लूट के लिए ही बनाकर रखा जाएगा ? अथवा बरसों बरस से यहाँ रहनेवाले आदिवासी-मूलवासी समुदाय के लोगों के संविधानिक-लोकतान्त्रिक हितों और उनकी बेहतरी को भी बहाल किया जाएगा? 

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