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झारखंड : जन विरोधी नीतियों के ख़‍िलाफ मज़दूरों का महापड़ाव अभियान

''केंद्र में बैठी भाजपा सरकार पूरी तरह से मालिकों के हित में खुलकर काम कर रही है। जो मज़दूर-किसान व महिला-नौजवान विरोधी होने के साथ साथ देशविरोधी भी है।'’
jharkhand

केंद्र की मौजूदा सरकार द्वारा थोपे गए मज़दूर विरोधी 'नए श्रम कानून' व मज़दूर-किसान समेत तमाम जनविरोधी नीतियों के ख़‍िलाफ 'मज़दूर-महापड़ाव' के माध्यम से शुरू किया गया अभियान लगातार जारी रहेगा। फिलहाल जिसका अभी का लक्ष्य है, 2024 के लोकसभा चुनाव में इस सरकार को सत्ता से बाहर कर देना। यह घोषणा झारखंड के मज़दूर-महापड़ाव की ओर से की गयी।

ऐतिहासिक तारीख 9 अगस्त से शुरू किये गए मज़दूरों के इस ‘महापड़ाव’ को, भाजपा संचालित ट्रेड यूनियन को छोड़कर, देश की अन्य सभी प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के ‘संयुक्त संघर्ष मोर्चा’ के रूप में इस अभियान को संगठित किया।

10 अगस्त को रांची स्थित राजभवन के समक्ष मज़दूर ‘महापड़ाव’ का आयोजन केंद्रीय ट्रेड यूनियन सीटू, एटक, एक्टू, इंटक, एमएमएस, यूटीयूसी व टीयूसीसी की राज्य इकाइयों समेत कई अन्य केंद्रीय कर्मचारी व कामगार संगठनों के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। जिसमें झारखंड स्थित कोयला, इस्पात, बैंक, बीमा, डाक व बीएसएनएल समेत सभी सरकारी उपक्रम क्षेत्रों समेत अन्य असंगठित क्षेत्र के निर्माण व ठेका कामगारों इत्यादि सेक्टरों के सैकड़ों मज़दूरों शामिल हैं।

महापड़ाव कार्यक्राम की अध्यक्षता करते हुए एटक केंद्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ कोयला मज़दूर नेता रमेन्द्र कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि- केंद्र में बैठी भाजपा सरकार पूरी तरह से मालिकों के हित में खुलकर काम कर रही है। जो मज़दूर-किसान व महिला-नौजवान विरोधी होने के साथ साथ देशविरोधी भी है। जिसे देश की गद्दी में बने रहने का कोई हक़ नहीं रह गया है। देश की कोल इंडिया पर भी आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार के निर्देश से उसने राष्ट्र की संपत्ति कहलाने वाले कोयला उद्योग की सभी बंद पड़ी खदानों को अब निजी कंपनियों के हाथों में बेचने का फैसला कर चुकी है। इसीलिए देश की सभी प्रतिनिधि केंद्रीय मज़दूर यूनियनों ने मिलकर मज़दूर विरोधी इस सरकार को हटाने का निर्णय लेते हुए आज इस ‘महापड़ाव’ अभियान को शुरू किया है।

एक्टू झारखंड के महासचिव शुभेंदू सेन ने भी केंद्र की सरकार के मज़दूर-किसान विरोधी व कॉर्पोरेटपरस्त रवैये को बताते हुए कहा कि देश के हर प्रान्त में शुरू किया गया मज़दूरों का महापड़ाव अभियान आगे भी जारी रहेगा। क्योंकि मोदी सरकार देश के मज़दूरों पर काला 'नया लेबर कोड' थोपने के बाद से मज़दूरों की कोई भी बात नहीं सुन रही है। इनकी लंबित जायज़ मांगों पर गौर करना तो दूर, इन मांगों के लिए लड़ रहीं सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों से कोई वार्ता तक करने को तैयार नहीं है। ऐसे में मज़दूरों के पास एक ही रास्ता बचा है कि आनेवाले 2024 के आम चुनाव में पूरी एकजुटता के साथ इस मज़दूर विरोधी सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दें।

सीटू के राज्य नेता प्रकाश विप्लव ने दावा जताया कि आज यहां जो सभी उद्योग सेक्टरों के सैकड़ों मज़दूर प्रतिनिधि एकजुट हो आक्रोश प्रदर्शित कर रहें हैं, वो बतला रहा है कि मज़दूर विरोधी भाजपा सरकार के ख़‍िलाफ लड़ाई थमने वाली नहीं है। सभी मज़दूर-कर्मचारी इस सत्ता के असली चरित्र को अच्छी तरह से जान समझ गए हैं।

महापड़ाव को इंटक के संजीव श्रीवास्तव तथा उषा सिंह ने मज़दूरों के एकजुट संघर्ष को और भी ज़ोरदार बनाने का आह्वान करते हुए भाजपा सरकार के ख़‍िलाफ व्यापक रूप से मज़दूरों से सक्रिय होने पर जोर दिया। इनके अलावे अन्य सभी ट्रेड यूनियनों व केंद्रीय कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बातें रखीं।

उपस्थित सभी मज़दूरों ने इस संयुक्त अभियान के माध्यम से केंद्र सरकार पर सीधा आरोप लगाया गया कि- देश की जनता आज जिन घोर संकटों और चिंताजनक स्थितियों का सामना कर रही है, उसका एकमात्र जिम्मेवार केंद्र में बैठी भाजपा सरकार की मौजूदा जन विरोधी नीतियां ही हैं। जिसके चलते ही नौजवानों और हर तबके के लोगों को आज चरम बेरोज़गारी के साथ साथ रोज़गार व काम की गुणवत्ता में लगातार गिरावट, बेलाम महंगाई, पूर्व से बने श्रम कानूनों का घोर उल्लंघन, कॉर्पोरेट व निजी कंपनियों के हित में नित नए कानून बनाए जाने समेत सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में जारी भारी कटौती की संकटपूर्ण यथास्थितियां साक्षात् हैं। उक्त विनाशकारी नीतियों को ही लागू करने के लिए देश के संविधान के साथ साथ सभी लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं-मानदंडों को पूरी हठधर्मिता के साथ खुलकर तहस-नहस किया जा रहा है।

इसी का भयावह परिणाम है कि आज ये सरकार देश के मज़दूर-किसानों व नौजवानों समेत पूरी जनता की रोजी-रोटी छीनकर सबको भिखारी बनाने पर आमादा है। श्रम के मंदिरों को तहस नहस कर धार्मिक मंदिर बना रही है ताकि भिखारी बना दी गयी जनता वहां बैठकर भीख मांगने को विवश हो जाए। जिसके विरोध में मज़दूर एकजुट हो ही ना सकें, इसीलिए सरकार-शासन द्वारा प्रायोजित धार्मिक व जातीय ध्रुवीकरण का उन्मादी कुचक्र रचा जा रहा है।

मज़दूरों के महापड़ाव को सफल बनाने के लिए पिछले एक माह से पूरे प्रदेश के सभी प्रमुख मज़दूर सेक्टरों में सघन प्रचार कैंपेन चलाते हुए जगह जगह नुक्कड़ सभाएं व गेट मीटिंग की गयीं।

इसी क्रम में हटिया स्थित एचईसी के मुख्य द्वार पर गेट-मीटिंग कर वहां जारी एचईसीकर्मी मज़दूर-कर्मचारियों आंदोलन के प्रति एकजुटता जाहिर की गयी। साथ ही केंद्र सरकार पर देश का ‘मदर उद्योग’ कहलाने वाले इस महत्वपूर्ण बड़े उपक्रम को 'बीमार' घोषित कर निजी हाथों में सौंपने का आरोप लगाते हुए ‘एचईसी बचाओ अभियान’ को और भी व्यापक बनाने का आह्वान किया गया।

सनद रहे कि इसी अभियान के दौरान दो दिन पूर्व ही जब झारखंड सरकार द्वारा राज्य में नए 'कारखाना संशोधन अधिनियम' लागू करने की हालिया घोषणा का भी ज़ोरदार विरोध करते हुए तत्काल वापसी की मांग की गयी। जारी नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से हेमंत सोरेन सरकार पर मोदी सरकार के मज़दूर विरोधी 'लेबर कोड' को झारखंड में चोर दरवाज़े से लागू करने का आरोप लगाया गया। जिसके तहत सभी महिला कामगारों से जबरन रात्री पाली में भी काम करने का नियम जारी किया गया है। झारखंड संयुक्त ट्रेड यूनियन मोर्चा के नेताओं ने साफ़ चेताया है कि हेमंत सोरेन सरकार के शासनतंत्र में कॉर्पोरेट निर्देशित नौकरशाहों का कितना दबदबा बढ़ गया है, उसी का प्रमाण यह नया 'कारखाना संशोधन अधिनियम' है। जो महिला कामगारों के समानता के अधिकारों का खुला हनन है। इसलिए झारखंड सरकार इसे तुरत वापस ले अन्यथा इस मज़दूर विरोधी अधिनियम के ख़‍िलाफ भी ‘मज़दूर-महापड़ाव’ का विरोध अभियान चलाया जाएगा।  

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