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बंगाल में मनाई गई ज्योति बसु की 14वीं पुण्यतिथि! ऐसे किया गया उन्हें याद.....

मुख्य कार्यक्रम कोलकाता के नज़दीक न्यू टाउन के ज्योति बसु सेंटर फॉर सोशल स्टडीज़ एंड रिसर्च  के मैदान में आयोजित किया गया।
yoti Basu
फ़ोटो साभार: Outlookindia

राजनेता ज्योति बसु की पुण्यतिथि पूरे पश्चिम बंगाल में गरिमा के साथ मनाई गई। वाममोर्चा नेतृत्व की भागीदारी के साथ मुख्य कार्यक्रम कोलकाता के नज़दीक न्यू टाउन के ज्योति बसु सेंटर फॉर सोशल स्टडीज़ एंड रिसर्च के मैदान में आयोजित किया गया।

वक्ताओं में सीपीआई(एम) के राज्य सचिव एमडी सलीम और वाम मोर्चा के चेयरमैन बिमन बसु शामिल थे। ज्योति बसु के विज़न पर CPI(M) पोलिटब्यूरो के सदस्य सूर्यकान्त मिश्रा ने मुख्य भाषण दिया।

कार्यक्रम के दौरान डॉ. इशिता मुखर्जी ने ज्योति बसु सेंटर फॉर सोशल स्टडीज़ एंड रिसर्च को दो शोधपत्र सौंपे। पहले शोध पत्र का विषय था-पिछले 12 सालों में पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था और दूसरा-पश्चिम बंगाल में पंचायती राज व्यवस्था की वर्तमान स्थिति। कार्यक्रम की शुरुआत में कलाकार सौमेन बसु ने अपने गीतों से श्रोताओं को रोमांचित कर दिया।

ज्योति बसु के योगदान के बारे में न्यूज़क्लिक द्वारा पूछे जाने पर पुराने कोलकाता के अनुभवी पत्रकार अप्रोमेयो दत्तागुप्ता ने पुराने समय को याद करते हुए कहा, "ज्योति बसु लोगों की भावनाओं को एक साथ पिरोने में सक्षम थे। राजनीति के क्षेत्र में वे अपने समकालीनों से अलग थे। वे जनता की नब्ज़ पकड़ने में माहिर थे। वे गली से राजनीति करते हुए पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे थे। लोगों से उनके गहरे संबंध थे। यही कारण था कि आम लोग उनसे अभूतपूर्व ढंग से जुड़े थे और वे राज्य में 24 सालों तक मुख्यमंत्री रहे। 1975 में उन्होंने बड़े स्तर पर संघर्ष किया था। नतीजा ये हुआ कि व्यापक जनसंघर्ष के चलते श्रीमती इंदिरा गांधी को आपातकाल का फैसला वापस लेकर चुनाव कराने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसके अलावा उनकी पार्टी का राजनीति के नक्शे से सफाया हो गया।

साल 1977 में जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव हुए तब वाम मोर्चा को ज़बरदस्त बहुमत मिला। वाम मोर्चा के नेता होने के कारण ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने। तब से उन्होंने भारतीय ससंदीय लोकतंत्र में एक नया ट्रेंड शुरू किया।

कांग्रेस के कुशासन और भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण के कारण पश्चिम बंगाल की आर्थिक स्थिति जर्जर हो गई थी। ज्योति बसु जानते थे कि सत्ता का विकेंद्रीकरण और स्थानीय शासन को मजबूत करने से ही ज़मीनी स्तर पर विकास का लाभ सुनिश्चित किया जा सकेगा।

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार का विकेंद्रीकरण कर उसे प्रभावी बनाया जाएगा। सत्ता सिर्फ “राइटर्स बिल्डिंग”(मुख्यमंत्री आवास) तक सीमित नहीं रहेगी।

अतिरिक्त ज़मीन की सीलिंग कर उसका वितरण गरीब भूमिहीन किसानो को पंचायती राज के माध्यम से सफलतापूर्वक किया जाएगा। साल 1980 में बना नया पंचायती राज और निगम अधिनियम, खासकर कोलकाता नगर निगम अधिनियम पूरे देश का आदर्श बन गया है। आर्थिक क्षेत्रों में इन सुधारों का तुरंत असर दिखा। भोजन की कमी वाला राज्य पश्चिम बंगाल भोजन में अधिकता वाला राज्य बन गया और वास्तव में कुछ कृषि उत्पादों में पश्चिम बंगाल सूची में सबसे ऊपर है। धीरे-धीरे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई और गरीबी का स्तर नीचे आ गया। ज्योति बसु के योगदान को विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों ने ही नहीं चिह्नित किया बल्कि गरीब लोगों ने भी उनको बार-बार चुनकर उन में अपने विश्वास को दोहराया।

एक और महत्वपूर्ण कदम उन्होंने बिजली के क्षेत्र में उठाया जिसके तहत उन्होंने बंगाल को बिजली में आत्मनिर्भर किया। 1977 में जब उन्होंने सत्ता ग्रहण की तब पश्चिम बंगाल की स्थिति काफी ख़राब थी। अन्य राज्यों के लोग पश्चिम बंगाल का उपहास करते थे। ज्योति बसु ने इस चुनौती को स्वीकार किया और पावर सेक्टर में पश्चिम बंगाल को आत्मनिर्भर बनाया। राष्ट्रीय राजनेताओं समेत सभी राजनेता उनका सम्मान करते थे। जब देश राजनीतिक संकट में होता था तब वे केंद्र सरकार को अपने सुझाव भी देते थे। 

वाम मोर्चे का शासन ग्रामीण इलाकों में महत्वपूर्ण परिवर्तनों के लिए भी जाना जाता है। ज्योति बसु ने अपने 23 वर्षो के नेतृत्व में बुनियादी भूमि सुधारों का कार्यान्वयन किया, ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और सिंचाई के साधन बढ़ाए तथा लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की पहली भारतीय व्यापक व्यवस्था स्थापित की।

दशकों से गतिरोध में फंसा कृषि उत्पादन वाम शासन में आगे बढ़ा 1980 से 1990 के दशक में पश्चिम बंगाल देश के 17 सबसे घनी आबादी वाले राज्यों में कृषि वृद्धि दर में उच्चतम स्तर पर रहा। नए सांस्थानिक बदलावों तथा कृषि में वृद्धि का परिणाम यह हुआ कि पोषण स्तर में सुधार हुआ और राज्य में ग्रामीण गरीबी में कमी आई। यथार्थ यह है कि पिछले दो दशको में केरल के बाद पश्चिम बंगाल का ग्रामीण गरीबी कम करने में सबसे अच्छा रिकॉर्ड रहा है। 

दूसरी ओर, बसु सरकार को बदनाम करने के लिए मीडिया के संगठित प्रयासों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर पश्चिम बंगाल, लोकतंत्र का जीता-जागता उदाहरण है। 1978 से पंचायती राज संस्थानों में हर पांच साल में चुनाव होते हैं। पहले जो जिला-स्तरीय नौकरशाही की ज़िम्मेदारी थी अब वह पंचायती राज संस्थाएं उठाती हैं और विभाज्य व्यय में राज्य प्लान व्यय का 50% जिला की बजाय पंचायत में समाहित हो गया है। अब पंचायत के अधिकांश निर्वाचित सदस्य गरीब और भूमिहीन परिवारों से हैं। भारतीय संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों के लिए पश्चिम बंगाल की स्थानीय सरकार का ही प्राथमिक प्रोत्साहन था जिसमें स्थानीय निकायों का नियमित चुनाव, ग्रामीण व शहरी, सभी राज्यों में अनिवार्य कर दिया गया था।

लंबे समय तक पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री रहे सूर्यकांत मिश्रा ने कार्यक्रम में अपने लंबे भाषण में कहा कि वाम मोर्चों को लोगों के बीच एक विकल्प के रूप में पहुंचना चाहिए। उन्होंने यह तथ्य भी उजागर किया कि सन 1972 में अर्ध-फासीवादी आतंक के समय में वाम ने असेंबली में भागीदारी नहीं की थी। संक्षेप में कहें तो उस समय वाम का विधानसभा में प्रतिनिधित्व नहीं था। फिर भी 1977 में लेफ्ट ने चुनाव में क्लीन स्वीप किया।

अपने भाषण में सूर्यकांत मिश्रा ने पंचायती व्यवस्था में ज्योति बसु की भूमिका को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि किसी को भी ज्योति बसु को महज़ विपक्षी नेता के रूप में ही नहीं आंकना चाहिए बल्कि यह भी देखना चाहिए कि वे एक मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री भी हो सकते थे।

यह भी याद रखा जाना चाहिए कि 1971 में भी वाम मोर्चा की राज्य में सरकार हो सकती थी पर बड़े स्तर पर अनियमितताओं और वोट-लूट के कारण ऐसा हो नहीं सका था। साल 1977 में शासन में आने के बाद ज्योति बसु ने कहा था, "हम ‘राइटर्स बिल्डिंग’ से सरकार नहीं चलाएंगे।"

पंचायत राज चुनाव कराने का निर्णय एक ऐसा कदम था जिससे ग्रामीण शासन में सभी साझेदारों (हितधारकों) की भागीदारी सुनिश्चित की गई थी। उन्होंने वाम मोर्चा की सरकार और ज्योति बसु के समय में होने वाली अनेक प्रगतियों का उल्लेख किया और कहा कि आज क्या किया जाना चाहिए इसकी सीख कोई भी ज्योति बसु से ले सकता है।

उन्होने कहा कि हमें उन सफलताओं को श्रोताओं को बताना चाहिए जो हमने वाम मोर्चा सरकार के दौरान प्राप्त की थीं। उन्होंने आगे कहा, “वाम विकल्प के प्रति लोगों को उत्साहित करते हुए हमें उन्हें पुनः संगठित करना चाहिए। अभी हमारी सरकार नहीं है। हम पंचायतों और निगमों का शासन कैसे चलाएं इसके लिए हम ताहेरपुर मॉडल अपना सकते हैं।" उन्होंने महामारी के दौरान वाम कार्यकर्ताओं के द्वारा किए गए काम की सराहना की और इसे प्रेरणा स्रोत कहा।

CPI(M) के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने सेमिनार में बोलते हुए कहा, "अब केंद्रीय टीमें राज्य सरकार के काम पर नज़र रखने के लिए पूरे राज्य में व्यस्त है। यह भी सच है कि 27 केंद्रीय परियाजनाओं का संचालन ग्राम पंचायतों के माध्यम से होता है। हालांकि हमने कई बार उन्हें लिखा है लेकिन केंद्र ने इस विषय पर हमारी दलील की उपेक्षा कर दी है। दरअसल केंद्र सरकार तृणमूल कांग्रेस (TMC) की जांच ही नहीं करना चाहती क्योंकि TMC केंद्र की भाजपा सरकार की फ्रेंचाइज़ी है।"

वाम मोर्चा के चेयरमैन बिमन बसु जो कि ज्योति बसु सेंटर फॉर सोशल स्टडीज़ एंड रिसर्च के भी चेयरमैन हैं, वे आज कार्यक्रम स्थल के निकट कार्यक्रम से पहले ग्रामीण आबादी के घरों में गए। उन्होंने ग्रामीणों से हुई बातचीत को साझा करते हुए कहा, "क्षेत्र के लोगों ने वाम मोर्चा के वक्त हुए वास्तविक विकास को स्वीकार किया। बिमन बसु ने यह भी उजागर किया कि 18 साल के युवाओं को मतदान का अधिकार दिलाने में भी बसु सरकार की भूमिका रही, बसु सरकार के इस निर्णय को बाद में पूरे देश में लागू किया गया।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Jyoti Basu’s 14th Death Anniversary Observed in West Bengal

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