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अयोध्या के बाद काशी: मंदिर नहीं सत्ता की लड़ाई!

“भगवा ताक़तों द्वारा अयोध्या विवाद को सत्ता हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया गया और काशी-मथुरा को सत्ता में बने रहने के लिए प्रयोग किया जायेगा”
अयोध्या के बाद काशी: मंदिर नहीं सत्ता की लड़ाई!
फाइल फोटो। साभार: गूगल

वाराणसी की फास्ट ट्रेक कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एसआई) से कराने के आदेश के बाद से, एक बार फिर देश में सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश की जाने लगी है। सांप्रदायिकता के सहारे राजनीति करने वाले इसके जरिये धार्मिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास कर रहे हैं।  

सोशल मीडिया के माध्यम पर भगवा राजनीति के समर्थक सक्रिय हो गये हैं। वहीं मुस्लिम समुदाय ऊपरी आदलत में आदेश को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है।

अयोध्या विवाद का निपटारा होने के बाद ऐसा माना जा रहा था कि कम से कम कुछ समय तक देश में कोई नया सांप्रदायिक मुद्दा नहीं उठेगा। एक सदी से पुराने अयोध्या विवाद को अस्सी-नब्बे के दशक में हिंसात्मक बनाने वाले भी अपने मक़सद में सफ़ल हो चुके हैं। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने उनको सत्ता के शीर्ष तक पहुँचा दिया है। 

ऐसे में सांप्रदायिक मुद्दों को उभारने का केवल एक ही मक़सद है- सत्ता। बहुसंख्य समाज की धार्मिक भावनाएं का इस्तेमाल कर के, सत्ता में बने रहना। जिसके लिए संवैधानिक मूल्यों को नज़रअंदाज़ कर के सभी तरह के प्रयास किये जा रहे हैं। जब देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हों और देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष 2022 के शुरू में चुनाव होना हो, ऐसे में सांप्रदायिक ताक़तों के लिए मंदिर-मस्जिद विवाद किसी वरदान से कम नहीं है। सत्ता में बैठे लोगों ने ज्ञानवापी के मुद्दे को हवा देना भी शुरू कर दिया है।

इसे पढ़ें : वाराणसी: अब ज्ञानवापी को ‘दूसरी बाबरी मस्जिद’ बनाने की तैयारी!

बीजेपी नेताओं ने किया आदेश का स्वागत

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वे के फैसले का स्वागत किया है। बीजेपी के बलिया के बैरिया विधायक सुरेंद्र सिंह ने राजनीतिक व सांप्रदायिक तापमान बढ़ाने की कोशिश शुरू करते हुए, 9 अप्रैल,को एक बयान में कहा कि यह "हिंदू सशक्तीकरण" का युग चल रहा है और भविष्य में देखने को मिलेगा कि भारत हिंदू राष्ट्र बन जायेगा।

विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा की ज्ञानवापी परिसर हटाया जाएगा और भगवान शिव का भव्य मंदिर बनेगा। विधायक ने अदालत के आदेश पर ख़ुशी का इज़हार किया और कहा की यह परिवर्तन का युग है। उन्होंने कहा की जिस तरह राम राज्य स्थापित होने में कुछ दिक्कत आई थी, वैसी ही परेशानिया इस समय में भी आ रही हैं। लेकिन इस दिक्कतों का बहुत जल्द दूर किया जाएगा।

एक निजी चैनल से बात करते हुए बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने देश के मुसलमानों से अपील है कि वह काशी विश्वनाथ और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को हिंदुओं को सौंप दें। उन्होंने कहा की अदालत का फैसला सबको स्वीकार करना चाहिये। हरनाथ सिंह यादव ने कहा कि हिंदुओं और मुस्लिमों दोनों के पूर्वज एक हैं और भगवान राम, शंकर और कृष्ण हिन्दुस्तान के कण-कण में बसे हुए हैं।

जब अदालत के बहार लगे “काशी-मथुरा बाक़ी है” के नारे

बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में गिराए जाने के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 30 सिंतबर को जब सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया था। उस वक़्त लखनऊ स्थित अदालत में मौजूद अभियुक्तों ने बाहर निकलते ही नारा लगाया था "अयोध्या तो झाँकी है, काशी-मथुरा बाक़ी है"। हालांकि अदालत परिसर के बहार मौजूद पुलिस ने इसका वीडियो मीडिया-वालों को नहीं बनाने दिया। उसी समय इस बात की आहट लगी थी की भविष्य में काशी-मथुरा मुद्दा उठाया जायेगा। लेकिन इतनी जल्दी यह मुद्दा तूल पकड़ेगा इसका अंदाज़ा किसी को नहीं था।

सोशल मीडिया पर ज़हर

ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश अदालत से आते ही एक समहू सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गया है। सोशल मीडिया साइट्स पर "अयोध्या तो झाँकी है, काशी-मथुरा बाक़ी है" जैसे नारे ट्रेंड करने लगे। लेकिन सोशल मीडिया पर लग़ाम लगाने के लिए नये नियमों को बनाने वाली सरकार, भी तमाशबीन बनी रही और सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक सौहार्द को ख़राब करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।

मंदिर का प्रतिनिधित्व कर रहे याचिकाकर्ता की मांग

आपको बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रतिनिधित्व कर रहे याचिकाकर्त्ता मांग कर रहे हैं, कि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब द्वारा 1669 में बनवाई गई ज्ञानवापी मस्जिद को, हिंदुओं की ज़मीन पर खड़ा हुआ घोषित किया जाए। हालाँकि मस्जिद की प्रबंधन समिति, अंजुमन इंतज़ामिया मस्जिद द्वारा इस याचिका का विरोध किया गया है।

अदालत का आदेश

सिविल कोर्ट के न्यायाधीश आशुतोष तिवारी ने 8 अप्रैल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से कहा, कि वो पता लगाए, "वर्तमान में विवादित स्थल पर खड़ा धार्मिक ढांचा, ऊपर रखा गया है, कोई परिवर्तन है, या जोड़ा गया है, या फिर किसी धार्मिक ढांचे के साथ, किसी तरह की ओवरलैपिंग है।" अदालत ने एक पांच सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया और कहा कि बेहतर होगा कि उसमें दो सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से हो। याचिका पर अगले आदेश के लिए, 31 मई की तारीख़ तय की गई है।

याचिकाकर्ता को कथित धमकी

काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में एक याचिकाकर्ता हरिहर पांडेय ने शिकायत की है कि उनको एक अज्ञात नंबर से फोन कर के जान से मारने की  धमकी  मिली है। जिसके बाद के पुलिस कमिश्नर ए सतीश गणेश के आदेश पर उनको सुरक्षा दी गई है। उत्तर प्रदेश पुलिस अभी मामले की जांच कर रही है।

मस्जिद के पक्षकार देंगे चुनौती

उधर मुस्लिम पक्ष भी मस्जिद को बचाने के लिए सक्रिय हो गया है। मस्जिद के पक्षकार ने वाराणसी कोर्ट के इस फैसले उच्च न्यायालय चुनौती देने का फैसला लिया। सुन्नी वक्फ़ बोर्ड के पुनः निर्वाचित अध्यक्ष ज़ुफर अहमद फारूकी ने अपनी प्रतिकिया देते हुआ कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा मस्जिदों की जांच की प्रथा को रोकना होगा। उन्होंने वाराणसी अदालत के सर्वे के आदेश को अनुचित बताया और कहा की बोर्ड इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।

ज़ुफर फारूकी ने कहा कि हमारी समझ स्पष्ट है कि इस मामले को "पूजा के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991" द्वारा रोक दिया गया है। उन्होंने कहा कि, उपासना अधिनियम को अयोध्या के फैसले में सर्वोच्च कोर्ट की 5 जज संविधान पीठ ने बरकरार रखा है।

बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी के संयोजक रहे और सुन्नी वक्फ़ बोर्ड के अधिवक्ता ज़फरयाब जिलानी के अनुसार वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद की स्थिति, किसी तरह के प्रश्न से परे है। ज़फरयाब जिलानी के अनुसार ‘कानूनी सलाह के अनुसार कह सकते हैं कि सर्वेक्षण का आदेश उचित नही है। उन्होंने कहा है कि अयोध्या के विवाद में भी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, की खुदाई का कोई फायदा नहीं हुआ। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इस बात का प्रमाण नहीं मिला कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़ कर बनाई गई थी।

क्या है प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991

प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 या उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत की संसद का एक अधिनियम है।यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। यह 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है। [3] मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर धाराएं लागू नहीं होंगी। यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए लागू नहीं होता है। [4] इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से अयोध्या विवाद से संबंधित घटनाओं को वापस करने की अक्षमता को स्वीकार किया। [5] बाबरी संरचना को ध्वस्त करने से पहले 1991 में पीवी नरसिम्हा राव द्वारा एक कानून लाया गया था। [6] इस अधिनियम में यह भी कहा गया था, जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में फैला हुआ है। राज्य के लिए लागू होने वाले किसी भी कानून को वहां की विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।

प्रबुद्ध जनों का क्या कहना है?

राजनीति की समझ रखने वाले काशी के मुद्दे को धार्मिक कम और राजनीतिक ज़्यादा मान रहे हैं। उनका कहना है भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे का का इस्तेमाल 2022 में उत्तर प्रदेश के चुनावों में धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए करेगी।

समाजशास्त्री मानते हैं की देश में मौजूदा समय में विकास कोई मुद्दा नहीं है,केवल धर्म के नाम पर राजनीति हो रही है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रशांत त्रिवेदी के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद को मुद्दा बनाकर 2022 में बीजेपी विरोधी लहर को कम करेगी। त्रिवेदी कहते हैं यह काशी और मथुरा धार्मिक मुद्दा नहीं है, बल्कि भगवा पार्टी के दशकों तक राज्य करने के हथियार हैं।

वहीं विद्याविद् समाज का कहना है की काशी और अयोध्या के मुद्दों में बहुत अंतर है। काशी में आज भी नमाज़ और पूजा दोनों होते हैं और इस मुद्दे भी कभी कोई फ़साद भी नहीं हुआ है। लेकिन अब इस मुद्दे को संघ द्वारा गरमाया जायेगा ताकि इसका फ़ायदा आने वाले चुनावों में लिया जा सके। 

वरिष्ठ मानव विज्ञानी प्रो. नदीम हसनैन कहते हैं “मौजूदा समय में बीजेपी की सरकारें बेरोज़गारी-स्वास्थ्य सेवाओं आदि को लेकर सवालों के घेरे में है, ऐसे में बहुसंख्यक समुदाय की भावनाएं से जुड़ा मुद्दा उसके लिए किसी वरदान से कम नहीं है”। हसनैन कहते हैं की पहले के अनुभवो के आधार पर कहा जा सकता है कि अदालत के बाहर, काशी-मथुरा का इस्तेमाल चुनावों में किया जायेगा। क्यूँकि दक्षिणपंथी विचारधारा हमेशा सत्ता हासिल करने में लिए धर्म का इस्तेमाल करती है।

अयोध्या आंदोलन को क़रीब से देखने वाले मानते हैं की काशी का मुद्दा एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा। पत्रकार और लेखक डॉ. सुमन गुप्ता कहती हैं कि अब कोई चुनाव बिना धार्मिक ध्रुवीकरण के नहीं होता है। बंगाल का चुनाव सामने हैं, जहाँ खुले आम धर्म के नाम पर राजनीति हो रही है, प्रचार में धार्मिक नारे लग रहे हैं। ऐसे में यह साफ़ नज़र आ रहा है आने वाले दिनों में “हिन्दू राष्ट्र” के नाम पर चुनाव होंगे और काशी को राजनीति के केंद्र में लाया जायेगा।

सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि लोकतंत्र को ख़त्म करने का प्रयास किया जा रहा है। बहुजन चिंतक और लेखक पीवी अम्बेडकर का कहना है देश में राजतंत्र स्थापित करने का प्रयास हो रहा है, जिसके लिए पहले भी धर्म का का प्रयोग किया गया है और भविष्य में भी किया जायेगा। पीवी अम्बेडकर कहते हैं, “भगवा ताक़तों द्वारा अयोध्या विवाद को सत्ता हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया गया और काशी-मथुरा को सत्ता में बने रहने के लिए प्रयोग किया जायेगा”।

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