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कश्मीर : 3 महीने बाद शफ़िया ने तस्वीर बनाई, नाम रखा 'डेड एयर'

कश्मीर के विभाजन के बाद कलाकारों और कवियों ने एक अजीब किस्म की चुप्पी ओढ़ ली है। उनकी कलम और ब्रश बहुत कुछ बयां करना चाहते हैं,  लेकिन एक भारी एहसास है, जो महसूस कराता है कि उनका कुछ बेहद ख़ास खो चुका है।
jammu and kashmir

जब दिल्ली ने कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों की संख्या बढ़ाने का फ़ैसला किया, तो वहां के लोगों ने अंदाज़ा लगाना शुरू किया कि कुछ बेहद ख़तरनाक होने वाला है। कश्मीरियों में एक किस्म की छठी इंद्री का विकास हो गया है। इसके ज़रिये वे ख़तरे को तुरंत महसूस कर लेते हैं। पाकिस्तान से युद्ध की बात हो या कश्मीर राज्य के दो हिस्से हुए हों, जिसके बाद राज्य के पुलिस थाने सेना के हवाले कर दिए गए, कश्मीरी काफ़ी हद तक सही साबित हुए हैं।

इन्हीं आशंकाओं के बीच पेंटर शफ़िया शफ़ी श्रीनगर की होटल सेंटौर में लगी एक प्रदर्शनी में हिस्सा लिया। 25 साल की शफ़िया कहती हैं, ''मुझे लगा कि पेटिंग करना बेहतर है, क्योंकि किसी को भी पूरी स्थिति के बारे में अंदाज़ा नहीं था।''

अनुच्छेद 370 और 35A हटाए जाने के बाद शफ़िया पूरी तरह रुक चुकी थीं। वो सीधी तरह नहीं सोच पा रही थीं, ना ही उनके पास किसी तरह के विचार मौजूद थे, जिन पर शफ़िया पेंटिग कर सकें।

एक गहरी सांस के साथ वे कहती हैं, ''बाहरी दुनिया से बिना किसी संबंध के मैं अपने कमरे में बैठी दीवार तकती रहती थी। मैं सोचती थी कि मुझे अपने दोस्तों की कोई ख़बर क्यों नहीं मिल रही है, न ही मुझे आस-पड़ोस की कोई जानकारी थी।''

शफ़िया आगे कहती हैं, ''मैं तस्वीरें बनाना चाहती थी, लेकिन स्थिति बहुत हताश करने वाली थीं, मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि कैसे अपने ग़ुस्से को तस्वीरों से बयां करूं। वह एक किस्म की रहस्यमयता जैसा महसूस होता था।''

कश्मीर जिस तरह का वक़्त बिताने पर मजबूर हैं, उसके चलते शफ़िया का दर्द भरा दिल हमेशा से कश्मीरी लोगों के लिए धड़कता रहा है। फिर वहां सरकार ने शिकंजा कसा और कर्फ्यू लगा दिया। शफ़िया के मन में पहला विचार तस्वीरें उकेरना का ही आया, लेकिन इसके लिए शफ़िया के पास किसी भी तरह की सामग्री नहीं थी। करीब तीन महीनों तक उसने कुछ नहीं किया।

शफ़िया कहती हैं, ''तीन महीने बाद मैंने तस्वीरें उकेरने का मन बनाया। मुझे अकेलापन और मौत का अहसास होता था, मैंने इसे ही तस्वीरों से बयां करना तय किया।'' शफ़िया ने इस तस्वीर का नाम ''डेड एयर'' रखा।

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शफ़िया को तस्वीर बनाने के बाद थोड़ा बेहतर महसूस हुआ, इसके बाद उन्होंने ''अमूर्त चित्रण (Abstract Painting)'' शुरू कर दिया।

शफ़िया ने कश्मीर की स्थितियों पर अमूर्त चित्रण किया और इसका नाम ''द वेलिंग वैली- क''ش"मीर रखा। इसमें "ش" पर विशेष ज़ोर दिया गया, जो बताता है कि कैसे कश्मीर के नाम में ही शहादत दर्ज है।

वह कहती हैं, ''कलाकारों के लिए अहम है कि वे प्रकृति, यात्राओं से जुड़ें और लोगों की कहानियां सुनें। लेकिन जब उसी इंसान को चार दीवारों के भीतर कैद कर दिया जाता है, तो वह जेल से कमतर तो कतई नहीं होता। कलाकार महज़ एक मजबूर कैदी बनकर रह जाता है। मुझे मूल्यहीन महसूस हुआ, मैंने खुद के अस्तित्व पर सवाल किए, मैंने इस दुनिया में पैदा होने के अपने भाग्य पर सवाल उठाए।''

पांच अगस्त, 2019 को बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35A को हटा दिया। साथ ही राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कलाकार सैय्यद मुज़तबा रिज़वी के विचार भी दूसरे लोगों से अलग नहीं हैं। उनके स्टूडियो की दीवारों में तीन तरफ खिड़कियां खुलती हैं। एक से झेलम नदी दिखाई देती है, दूसरे से अब्दुल्ला ब्रिज। तीसरी खिड़की से ऐतिहासिक जीरो ब्रिज पर नज़र जाती है, जिसकी पृष्ठभूमि में बादामी बाग छावनी के पार वाली पहाड़ियां तक दिखाई देता है।

वह कहते हैं, ''मैं रात-दिन अपने स्टूडियो में घंटों वक़्त गुजारता हूं। चूंकि एक लंबे बंद का अनुमान था, इसलिए मैंने तस्वीरें बनाने में इस्तेमाल होने वाला सामान बड़ी मात्रा में मंगा लिया था।मैंने सोचा मेरे पास स्टूडियो में लंबा वक्त होगा। लेकिन जब भी मैं स्टूडियो में जाता, तो मेरा दिमाग शून्य हो जाता। मैं वहां बहुत समय गुजारता, लेकिन कुछ नहीं करता। बस बैठा रहता और चीजों को घूरता रहता।''

रिजवी ने तीस दिनों तक कुछ नहीं बनाया। अपने होश को ठिकाने पर रखने के लिए रिजवी को खुद को जबरदस्ती कुछ करने पर मजबूर करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने दो छोटी तस्वीरें कैनवास पर और दो तस्वीरें कागज़ पर बनाईं। लेकिन इससे हताशा और बढ़ गई।

बंद के दौरान रिजवी कश्मीर के एक नए नक्शे की कल्पना करते, जिसमें कंटीले तार और ऐसे पुल हैं, जिनका रास्ता कहीं नहीं जाता। उन्होंने कागज पर इसे काली स्याही से बनाया। लेकिन इसका कोई शीर्षक नहीं दिया।

एक दूर-दराज के गांव में कश्मीरी भाषा में लिखने वाले 25 साल के लेखक को लगा कि कश्मीर अब जेल है। ''मुंतज़िर'' नाम से लिखने वाले मोहम्मद युसुफ़ मीर कहते हैं, ''इतिहास गवाह है कि हमसे हमारी मर्जी तय करने देने का वायदा किया गया था, तब आख़िर क्यों हिंदुस्तान अपना वायदा पूरा नहीं करता।''

बडगाम जिले के बीरवाह के रामहामा के रहने वाले युसुफ़ कहते हैं, ''बिना किसी वज़ह के कश्मीरियों को प्रताड़ित किया जा रहा है, हमारे घरों पर दबिश दी जा रही है। अगर भारत सरकार विकास के लिए ऐसा कर रहा है, तो मैं पूछना चाहता हूं कि यह कैसा विकास है? चार नवंबर से मेरे गांव में बिजली तक नहीं है।''

हाल ही में अपना ग्रेजुएशन खत्म करने वाले युसुफ़ ''सागर कल्चरल फोरम'' से जुड़े हुए हैं। वह कहते हैं कि एक कवि किसी समाज की असल आंख होता है। इसलिए हमारे आसपासजो होता है, हम वही लिखते हैं। मैंने कश्मीरी में एक कविता लिखी है जो 5 अगस्त के आसपास और उसके बाद होने वाली घटनाओं पर आधारित है।

युसुफ़ की कहानियों में सीख हैं और यह कविताएं कश्मीरियों के दर्द को बयां करती हैं।  उनकी कविताओं में किशोर युवाओं की गैरकानूनी हिरासत का जिक्र है। ''।।।जब भारत ने वायदा किया था, तब भी कश्मीरी लोग आत्म-निर्णय की मांग क्यों नहीं कर सकते।'' एक शेर में यूसुफ कश्मीर के हालातों का जिक्र करते हुए बताते हैं, ''रेडियो, टीवी, अख़बार और साथ चलने पर पूरी तरह प्रतिबंध है ''

लगभग 6 महीने से इंटरनेट और मोबाइल फोन पर प्रतिबंध के चलते करीब 80 लाख लोग बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट चुके हैं। हांलाकि हाल ही में 2G इंटरनेट सर्विस को दोबारा चालू कर दिया गया। लेकिन उसमें भी केवल 300 साइट तक ही पहुंच दी गई है। सोशल मीडिया पर पूरी तरह बैन है।

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शायर निगहत साहिबा ने 6 महीनों में कुछ भी लिखने की कोशिश नहीं की है। वह कहती हैं, ''जब से यह त्रासदी हुई है, मैंने कुछ नहीं लिखा। मैं अपने कमरे में बैठी रहती और सोचती कि मुझे कुछ लिखना है। लेकिन मैं कभी कुछ नहीं लिख पाती। मैं एक लाइन तक नहीं लिखी पाती।''

निगहत आगे कहती हैं, ''हमारे समाज में महिलाएं आज भी खुलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं कर पातीं। जब मैंने लिखना शुरू किया था, तो मुझे लगा था कि लिखकर मैं अपनी सारी भावनाओं को व्यक्त कर सकूंगी। लेकिन इस बार मुझे बहुत बेबस महसूस हुआ और मैं सोचती रही कि मेरे लेखने से कश्मीर या इसके भविष्य में कैसे बदलाव आ सकता है।''

कश्मीर एक ऐसा क्षेत्र है, जो दो परमाणु शक्तियों के बीच पिस रहा है। भारत और पाकिस्तान, दोनों ही कश्मीर पर अपना दावा करते हैं।

22 साल के अनीस वानी श्रीनगर के एक संवेदनशील इलाके खांयर में रहते हैं। अनिस कोच्ची में एक कला कार्यक्रम के लिए गए हुए थे और वापस लौट रहे थे। उन्हें दिल्ली में अपना कुछ निजी काम खत्म करना था और घर वापस लौटना था। लेकिन चार अगस्त की रात सब बदल गया।

साप्ताहिक कश्मीर वाला के लिए संपादकीय कार्टूनिस्ट का काम करने वाले अनीस कहते हैं, ''मेरी भावनाएं भी किसी दूसरे कश्मीरी से अलग नहीं हैं। मैं सदमे, गुस्से में रह गया। मुझे बहुत दुख हुआ। मैं अपने परिवार से संपर्क नहीं कर पा रहा था और यह बेहद दुखी करने वाला था। बच्चों सहित बड़ी संख्या में हो रही गिरफ़्तारियों की ख़बरों ने मुझे डरा दिया।

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चूंकि अनीस अपने परिवार से संपर्क नहीं कर पा रहे थे, इसलिए वे वापस नहीं आ पा रहे थे। लेकिन जल्द ही उनके सब्र का बांध टूट गया और अनीस 15 अगस्त को वापस लौट आए।

अगस्त के बाद हाल ही में काम दोबारा शुरू करने वाले अनिस कहते हैं, ''जब मैं कश्मीर पहुंचा तो मुझे एक अजीब और असहज करने वाली भावनाएं महसूस हुईं। ऐसा लग रहा था कि लोग हार मान चुके हैं और कोई भी इस बारे में बात नहीं कर रहा था। मैंने एक पत्रकार को कहते हुए सुना, ''मुझे नहीं लगता अब हमें कुछ और हो सकता है, वो अब हम सबको मारने वाले हैं।''

चित्रकार ग़ज़ल क़ादरी कश्मीर में ईद मनाने आए थे, ताकि बाल्टीमोर में अपनी मास्टर्स करने के लिए जाने से पहले अपने मां-बाप के साथ कुछ वक़्त बिता सकें।

ग़ज़ल याद करते हुए कहते हैं, ''मैं घर पर था और मुझे अगस्त के बीच में निकलना था। अचानक अफवाहों के बीच कश्मीर में संचार बंद हो गया।'' 

अपने कश्मीरी व्हॉट्सएप स्टिकर और हंसी-मजाक के लिए मशहूर ग़ज़ल अपनी पढ़ाई के चलते कश्मीर में कम ही रुके हैं। लेकिन कश्मीरी भाषा और संस्कृति से मोहब्बत के चलते ग़ज़ल हमेशा इन चीजों के लिए कुछ करने की कोशिश करते हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Kashmir: After Three Months, Shafiya Finally Painted – She Titled it ‘Dead Air’

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