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कश्मीरः फिर सुरक्षा घेरे में ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ की हत्या

दोनों हत्याओं के कारणों पर पुलिस ने एक-जैसा बयान दिया। 19 अक्तूबर को जो कहानी कही गयी, उसे ही 19 नवंबर को दोहरा दिया गया।
jammu and kashmir

भारत के हिस्से वाले कश्मीर में ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ के नाम पर कश्मीरी नौजवानों की हत्या का नया चलन शुरू हो रहा है। अभी तक ‘मुठभेड़’ शब्द का इस्तेमाल होता रहा है, अब ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ शब्द भी इसके साथ जुड़ गया है।

ख़ास बात यह है कि जिस कश्मीरी नौजवान को पुलिस ने ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ बता कर गिरफ़्तार किया, जो हिरासत में और तगड़े सुरक्षा घेरे में था, उसे अन्य ‘आतंकवादियों’ ने गोली चलाकर मार डाला! यानी, उसे पुलिस या सेना ने नहीं, ‘आतंकवादियों’ ने मार डाला! कश्मीर पुलिस या यही कहना है। क्या इस कहानी पर भरोसा किया जा सकता है?

कश्मीर में एक महीने के भीतर दूसरी बार ऐसा हुआ है।

19 नवंबर 2022 को दक्षिण कश्मीर के बिजबेहरा इलाके में यह घटना हुई। पुलिस का कहना है कि उस दिन गिरफ़्तार किये गये और पुलिस हिरासत में मौजूद ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ सज्जाद तांतरे को अन्य ‘मिलिटेंटों’ या ‘आतंकवादियों’ ने गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गयी।

पुलिस के मुताबिक,  सज्जाद तांतरे पुलिस की सर्च पार्टी (खोजबीन करनेवाला दल) के साथ ‘मिलिटेंटों’ के ठिकानों का अता-पता करने के लिए जा रहा था, तभी यह वाक़या हुआ।

ठीक ऐसी ही घटना 19 अक्तूबर 2022 को हुई, वह भी दक्षिण कश्मीर में—दक्षिण कश्मीर के शोपियां इलाक़े में। उस दिन तथाकथित ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ इमरान बशीर गनाइ को, जो पुलिस हिरासत में था, इसी तरह मार डाला गया।

इसे पढ़ें: कश्मीरः पुलिस हिरासत में इमरान बशीर गनाइ की हत्या

दोनों हत्याओं के कारणों पर पुलिस ने एक-जैसा बयान दिया। 19 अक्तूबर को जो कहानी कही गयी, उसे ही 19 नवंबर को दोहरा दिया गया।

सवाल है, ये ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ कौन हैं?

कश्मीर पुलिस के अनुसार, ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ वे कश्मीरी नौजवान हैं, जिनका लेखा-जोखा या सूची पुलिस के पास नहीं हैं, लेकिन जो चरमपंथी रुझान रखते हैं, बीच-बीच में आतंकी वारदात करते हैं, और फिर वापस सामान्य ज़िंदगी में लौट जाते हैं।

इस हिसाब से पुलिस किसी भी कश्मीरी नौजवान को ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ बता सकती है और फिर ‘फटाफट न्याय’ कर सकती है। और अब तो पुलिस ने—और सेना-समेत अन्य सुरक्षा बलों ने—कश्मीरी नागरिकों की हत्या को जायज ठहराने के लिए नया बहाना भी गढ़ लिया है। वह यह कि पुलिस हिरासत में मौजूद ‘हाइब्रिड मिलिटेंट’ को अन्य ‘मिलिटेंट’ या ‘आतंकवादी’ ने गोली मार दी।

पिछली बार जब इमरान बशीर गनाइ की हत्या हुई थी (19 अक्तूबर), तब जम्मू-कश्मीर की भूतपूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि कश्मीर में सेना व अन्य सुरक्षा बलों के हाथों नागरिकों की हत्याओं को उचित ठहराने का आम चलन हो गया है।

महबूबा मुफ़्ती ने कहा था कि इन हत्याओं को जायज ठहराने के लिए पुलिस/सेना कभी ‘मुठभेड़’ शब्द का इस्तेमाल करती है, कभी कहती है कि उसने ‘हाइब्रिड (hybrid) मिलिटेंट’ को मार डाला।

कश्मीर में किसी भी ‘मुठभेड़’ या ‘मुठभेड़ हत्या’ की स्वतंत्र जांच-पड़ताल नहीं होती। मारे गये लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट न तो सार्वजनिक की जाती है, न संबंधित परिवारवालों को दी जाती है। न कहीं कोई सवाल-जवाब है, न किसी स्तर पर जवाबदेही है, न आंदोलन है।

न्याय पाने के सारे दरवाजे कश्मीर में बंद हैं।

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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