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कश्मीर: हिंसा की ताज़ा वारदातों से विचलित अल्पसंख्यकों ने किया विरोध प्रदर्शन

सिख समुदाय के सदस्यों ने सुपिंदर कौर के लिए न्याय की मांग करते हुए नारे लगाये और प्रशासन से नागरिक हत्याओं की ताजा घटनाओं की जांच का आग्रह किया।
sikh jammu
स्कूल की प्रधानाध्यापिका, सुपिंदर कौर के पार्थिव शरीर को ले जाते मातमी सिख, जिनकी कल उनके स्कूल में हत्या कर दी गई थी। चित्र साभार: कामरान यूसुफ़ 

श्रीनगर : श्रीनगर में एक आतंकवादी हमले में अपने एक सहयोगी सहित मौत की शिकार हुई एक स्कूल की प्रधानाध्यापिका सुपिंदर कौर के परिवार के लोगों और रिश्तेदारों सहित सिख समुदाय के सदस्यों ने शुक्रवार को पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करते शहर में जुलूस निकाला। 

सैकड़ों की संख्या में गमजदा लोगों ने श्रीनगर के अलूची बाग़ इलाके में कौर के आवास से नागरिक सचिवालय की ओर कूच करते हुए एक रैली निकाली, जहाँ उन्होंने पीड़िता का अंतिम संस्कार करने से पहले विरोधस्वरूप धरना-प्रदर्शन किया।

समुदाय के सदस्यों ने कौर के लिए न्याय की मांग करते हुए नारे भी लगाये। इसके साथ ही कई शोकाकुलों ने आम नागरिकों की हत्याओं की ताजा घटनाओं की जांच करने का आग्रह किया।

एक सप्ताह से भी कम समय में सात नागरिकों की हत्या के पीछे लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) ग्रुप की एक शाखा माने जाने वाले द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के संदिग्ध आतंकवादियों का हाथ बताया जा रहा है। कौर की सुबह गुरुवार को श्रीनगर के बाहरी इलाके में स्थित एक स्कूल में एक अन्य सहयोगी दीपक चंद के साथ गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) कश्मीर विजय कुमार के अनुसार इस वर्ष कुलमिलाकर 28 नागरिक मारे गए हैं, जिनमें से पांच लोग स्थानीय अल्पसंख्यक समुदायों से थे और दो लोग गैर-स्थानीय थे। हिंसा की घटनाओं में हालिया वृद्धि ने इन अल्पसंख्यक समूहों के बीच में नए सिरे से चिंताओं को जन्म दे दिया है, जिसके चलते कई लोग घाटी के अपने आवासों को छोड़कर पलायन कर गये हैं। बाकियों का तर्क है कि जब तक उन्हें सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती, वे अपने-अपने काम-काज और कर्तव्यों में शामिल नहीं होने जा रहे हैं। 

बडगाम गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष और कौर के रिश्तेदार सतपाल सिंह ने बताया कि समूह ने इस संबंध में उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को पत्र लिखा है और उनसे सुरक्षा घेरा प्रदान करने की अपील की है।

सिंह का कहना था “हम इस जगह को छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं, लेकिन जब तक हमें इस बात का अहसास नहीं होगा कि हम सुरक्षित हैं, हम अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर पाने में अक्षम रहेंगे। जो लोग दूर-दराज के इलाकों से आते हैं उन्हें उनके घरों के पास स्थानांतरित किया जाना चाहिए, क्योंकि हत्या की घटनाएं शहर के बीचोबीच घट रही हैं। जब शहर में ही सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है तो कल्पना कीजिये कि दूर-दराज के इलाकों का क्या हाल होगा।”

ऑल कश्मीरी माइग्रेंट एम्प्लॉइज फोरम कश्मीर ने दावा किया है कि वे बेहद भय और दहशत के माहौल में जी रहे हैं। इसके सदस्यों का कहना था कि वे हाल की लक्षित हत्याओं के कारण “भयभीत” हैं। केंद्र शासित प्रशासन को लिखे एक पत्र में समूह का कहना है “कश्मीर में हिन्दू समुदाय के खिलाफ मौजूदा स्थिति को देखते हुए, आपसे अनुरोध किया जाता है कि, हालात सामान्य होने तक इस लुप्तप्राय आबादी को उनके कर्तव्यों से छूट दी जाए और आपके द्वारा हमारे बचाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाये।”

हिंसा की घटनाओं में वृद्धि के कारण स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है जबकि प्रशासन ने सुरक्षा बढ़ा दी है और समूची घाटी में सुरक्षा बलों को अलर्ट पर रखा गया है। प्रमुख इलाकों और राजमार्गों के आस-पास सुरक्षा जांच को बढ़ा दिया गया है।

गुरूवार की शाम दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में एक चेक-पोस्ट के पास एक 28 वर्षीय नौजवान परवेज अहमद गुज्जर की मौत हो गई थी, जब सीआरपीएफ के जवानों ने उसके वाहन पर गोलीबारी की थी। कार के भीतर गोली लगने से मारे गए परवेज अपने पीछे पत्नी और दो नन्हीं बेटियों को छोड़ गए हैं।

इन हत्याओं ने सरकार और सुरक्षा तंत्र के खिलाफ निंदा को आमंत्रित किया है, जिसमें कई लोगों द्वारा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार पर इस क्षेत्र को ‘गलत तरीके से संचालन करने” का आरोप लगाया जा रहा है।

पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता मेहबूबा मुफ़्ती ने परवेज़ की मौत के बाद अपने ट्वीट में कहा है “पिछले दो दिनों के दौरान जो देखने को मिला है, उसके लिए अचानक से हड़बड़ी में शुरू की जाने वाली प्रतिक्रिया प्रतीत होती है। सीआरपीएफ द्वारा आबादी की तुलना में असंतुलित मात्रा में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है, जिसके चलते इस निर्दोष नागरिक की मौत हुई है। क्या इन गोली दागने में ख़ुशी पाने वाले जवानों के खिलाफ भी कोई कार्यवाई की जायेगी?”

कौर के अंतिम संस्कार में मौजूद एक शोकाकुल सुरिंदर सिंह चन्नी ने कहा कि सरकार अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जिसे भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने विरोध के बावजूद 5 अगस्त, 2019 को लागू किया था, के मद्देनजर सामान्य हालात को बहाल कर पाने के अपने दावे में नाकाम रही है। 

उनका कहना था “हम सभी हत्याओं की भर्त्सना करते हैं, भले ही पीड़ित किसी भी धर्म से संबंध रखता हो। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली में बैठी सरकार अपने इस दावे में पूरी तरफ से विफल साबित हुई है कि 370 को निरस्त करने के बाद सब कुछ सामान्य हो जायेगा।”

कई लोगों के लिए वर्तमान हालात 1990 के दशक यादें ताजा करा देती हैं जब उन दिनों चिट्टीसिंहपोरा नरसंहार और वंधमा हत्याकांड की घटना में हत्याओं को अंजाम दिया गया था। एक अन्य शोकाकुल व्यक्ति ने न्यूज़क्लिक को बताया कि प्रशासन को इस मामले की जांच करनी चाहिए और यह तय करना चाहिए कि क्या “सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की साजिश” तो नहीं चल रही है।

हत्याओं के मद्देनजर पीडीपी कार्यकर्ताओं ने लाल चौक स्थित अपने मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन कर एलजी सिन्हा के इस्तीफे की मांग की।

पीडीपी प्रवक्ता सुहैल बुखारी ने विरोध प्रदर्शन के लिए बन रहे दबाव से पहले कहा था कि “एलजी सिन्हा लोगों को सुरक्षा प्रदान कर पाने में विफल रहे हैं।” हालाँकि पुलिस ने “एकता मार्च” के प्रयासों को विफल कर दिया।

उधर जेल में कैद मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस (एपीएचसी) ने जहाँ तीन हत्याओं की भर्त्सना की वहीँ “शांतिपूर्ण तरीकों से कश्मीर का समाधान” से निकाले जाने की आपनी मांग को एक बार फिर से दुहराया है।

एपीएचसी के बयान में कहा गया है “एपीएचसी एक बार फिर से दोहराता है कि कश्मीर विवाद के शांतिपूर्ण उपायों के माध्यम से एक न्यायसंगत समाधान, सभी अभिव्यक्तियों में खूनखराबे को खत्म करने और स्थायी शांति की शुरुआत करने की एकमात्र कुंजी है, न कि कश्मीर के लोगों के लिए हर नए तूफ़ान से पहले की एक खामोशी, जिसका जम्मू-कश्मीर में शासकों द्वारा शांति के रूप में जोर-शोर से ढिंढोरा पीटा जाता है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Kashmir: Protests Held as Fresh Violence Scares Minorities

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