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मैरिटल रेप पर केरल हाईकोर्ट का फ़ैसला महिलाओं के लिए एक उम्मीद की किरण है

कोर्ट के मुताबिक मैरिटल रेप तब होता है, जब पति को लगता है कि वो अपनी पत्नी के शरीर का मालिक है। आधुनिक समाज में पति और पत्नी का दर्जा बराबरी का है। पति खुद को अपनी पत्नी से ऊंचा नहीं मान सकता है। फिर चाहे बात शरीर के अधिकार की हो या व्यक्तिगत आज़ादी की।
मैरिटल रेप पर केरल हाईकोर्ट का फ़ैसला महिलाओं के लिए एक उम्मीद की किरण है
Image courtesy : Feminism In India

"पत्नी की स्वायत्तता की अवहेलना करने वाला पति का अवैध स्वभाव वैवाहिक बलात्कार है।"

ये महत्वपूर्ण और जरूरी टिप्पणी केरल हाईकोर्ट की है। कोर्ट ने शुक्रवार, 6 अगस्त को मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। केरल हाईकोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप तलाक लेने के लिए एक ठोस आधार है। कोर्ट ने ये बात तब कही हैं जब भारत में मैरिटल रेप कानूनी रूप से अपराध नहीं है और इसलिए आईपीसी की किसी धारा में न तो इसकी परिभाषा है और न ही इसके लिए किसी तरह की सज़ा का प्रावधान है।

आपको बता दें कि मैरिटल रेप पर केन्द्र सरकार कानून बनाए, इस मांग को लेकर पिछले कई सालों से महिलावादी संगठनों- कार्यकर्ताओं का सड़क से लेकर कोर्ट तक लंबा संघर्ष जारी है। ऐसे समय में केरल हाईकोर्ट का ये फैसला आंखें खोलने वाला है। जो लोग हिंदू विवाह अधिनियम की दुहाई देते हैं, उनके लिए आईने जैसा है।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक एक पति की ओर से फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी, जिसमें क्रूरता के आधार पर पत्नी को तलाक की अनुमति दी गई थी। अर्जी में फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।

इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस ए मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस कौसर एद्देपगाथ की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी की मर्जी के खिलाफ जाकर संबंध बनाना मैरिटल रेप है। इस तरह के आचरण को दंडित नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसे शारीरिक और मानसिक क्रूरता के दायरे में माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ये मामला एक महिला के साथ ज्यादती को दिखाता है। पति की क्रूरता से तंग आकर महिला पिछले 12 साल से तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी लगा रही है, लेकिन अबतक उसे तलाक नहीं मिल पाया है।

इसके अलावा कोर्ट ने कहा, “एक पति का मनमाना रवैया, जिससे पत्नी के शरीर पर अपने अधिकार का हनन हो, मैरिटल रेप है। भले ही मैरिटल रेप कानूनी तौर पर अपराध के दायरे में नहीं आता, लेकिन यह शारीरिक और मानसिक क्रूरता की श्रेणी में जरूर आता है।”

पति की पैसे और सेक्स के प्रति हवस ने एक महिला की दुर्गति कर दी है!

कोर्ट ने आगे एक और जरूरी टिप्पणी करते हुए कहा, “हमारे सामने जो मामला है, वो एक महिला के संघर्ष को दर्शाता है। वो महिला जो कानून के एक ऐसे दायरे में फंसी हुई है, जो उत्पीड़न से उसकी मुक्ति को प्राथमिकता नहीं दे रहा है। एक पति की पैसे और सेक्स के प्रति हवस ने एक महिला की दुर्गति कर दी है। तलाक लेने की चिंता में महिला अपने आर्थिक दावे भी भूल गई है। तलाक के लिए उसकी मांग न्याय के मंदिर में पिछले एक दशक से पड़ी हुई है।”

रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने कोर्ट को बताया कि शादी के वक्त उसका पति एक डॉक्टर के तौर पर प्रैक्टिस करता था। शादी के बाद पति ने डॉक्टर का पेशा छोड़कर रियल इस्टेट में हाथ आजमाया. यह बिजनेस सही नहीं चला। जिसके बाद पति अपनी पत्नी का उत्पीड़न करने लगा। पति ने अपनी पत्नी के ऊपर पैसे देने का दबाव डाला। जिसके बाद पत्नी के पिता ने उसे 77 लाख रुपये दिए।

‘पत्नी का शरीर पति की प्रॉपर्टी नहीं’

महिला ने कोर्ट को यह भी बताया कि उसके पति ने उसके साथ शारीरिक हिंसा की, बिना उसकी मर्जी के सेक्स किया। बीमारी की हालत में बेटी के सामने भी। उसका पति उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करता था। यहां तक कि जिस दिन महिला की मां का निधन हुआ था उस दिन भी पति ने उसे शारीरिक संबंध के लिए मजबूर किया था। कोर्ट ने माना कि इस तरह के संबंध जिसके लिए पत्नी तैयार ना हो और वह पीड़ा में हो, मैरिटल रेप की श्रेणी में ही आएगा।

कोर्ट ने इस मामले के सबूतों पर नजर डालने के बाद टिप्पणी की, “वैवाहिक जीवन में सेक्स पति और पत्नी के बीच की अंतरंगता को दर्शाता है। महिला ने जो सबूत दिए हैं, उनसे साफ पता चलता है कि उसके साथ हर तरह की यौन हिंसा हुई। यह साफ है कि पति ने महिला की सहमति और भावनाओं का कोई सम्मान नहीं किया।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि मैरिटल रेप तब होता है, जब पति को लगता है कि वो अपनी पत्नी के शरीर का मालिक है। कोर्ट ने कहा कि आधुनिक समाज में पति और पत्नी का दर्जा बराबरी का है। पति खुद को अपनी पत्नी से ऊंचा नहीं मान सकता है। फिर चाहे बात शरीर के अधिकार की हो या व्यक्तिगत आजादी की।

कोर्ट ने आगे कहा कि अपनी पत्नी के शरीर को अपनी संपत्ति मानना और फिर उसकी मर्जी के बिना यौन संबंध बनाना और कुछ नहीं बल्कि मैरिटल रेप है। इस मामले में फैमिली कोर्ट ने पहले ही महिला को तलाक लेने की इजाजत दे दी थी।

क्या है रेप और मैरिटल रेप की कहानी?

आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक़, कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध, मर्ज़ी के बिना, मर्ज़ी से, लेकिन ये सहमति उसे मौत या नुक़सान पहुंचाने या उसके किसी क़रीबी व्यक्ति के साथ ऐसा करने का डर दिखाकर हासिल की गई हो या फिर मर्ज़ी से, लेकिन ये सहमति देते वक़्त महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हो या फिर उस पर किसी नशीले पदार्थ का प्रभाव हो और लड़की सहमति देने के नतीजों को समझने की स्थिति में न हो और फिर भी यौन संभोग करता है तो कहा जाएगा कि रेप किया गया।

हालांकि इसमें एक अपवाद भी है। 11 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना अपराध है और इसे रेप माना जा सकता है। कोर्ट के अनुसार, नाबालिग पत्नी एक साल के अंदर शिकायत दर्ज करा सकती है।

इस क़ानून में शादीशुदा महिला (18 साल से ज्यादा उम्र) के साथ उसका पति ऐसा करे तो उसे क्या माना जाएगा, इस पर स्थिति साफ नहीं है। इसलिए मैरिटल रेप पर बहस हो रही है।

सरकार का मैरिटल रेप को लेकर ढीला रवैया!

ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दे पर अपनी वाहवाही करने वाली केंद्र की मोदी सरकार शुरुआत से ही मैरिटल रेप के मामले में ढीला रवैया अपनाए हुए है। केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में 'मैरिटल रेप' को 'अपराध करार देने के लिए दायर की गई याचिका के जवाब में 2017 में कहा कि इससे 'विवाह की संस्था अस्थिर' हो सकती है।

दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था, "मैरिटल रेप को अपराध नहीं क़रार दिया जा सकता है और ऐसा करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है। पतियों को सताने के लिए ये एक आसान औज़ार हो सकता है।"

तब की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने 2016 में मैरिटल रेप पर टिप्पणी करते हुए कहा था, "भले ही पश्चिमी देशों में मैरिटल रेप की अवधारणा प्रचलित हो, लेकिन भारत में ग़रीबी, शिक्षा के स्तर और धार्मिक मान्यताओं के कारण शादीशुदा रेप की अवधारणा फ़िट नहीं बैठती।"

कई लोग इस मामले में हिंदू विवाह अधिनियम की दुहाई भी देते हैं। जो पति और पत्नी के लिए एक-दूसरे के प्रति कुछ ज़िम्मेदारियां तय करता है और सहवास का अधिकार देता है। क़ानूनन ये माना गया है कि सेक्स के लिए इनकार करना क्रूरता है और इस आधार पर तलाक मांगा जा सकता है।

जस्टिस वर्मा कमेटी ने भी मैरिटल रेप के लिए की थी अलग से क़ानून बनाने की मांग

एक तरफ रेप का क़ानून है और दूसरी तरफ़ हिंदू मैरेज एक्ट - दोनों में परस्पर विरोधी बातें लिखी है जिसकी वजह से 'मैरिटल रेप' को लेकर संशय की स्थिति बनी है। मैरिटल रेप में अक्सर महिलाएं घरेलू हिंसा क़ानून का सहारा लेती हैं, जो उनका पक्ष को मज़बूत करने के बजाय कमज़ोर करता है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर पति को अधिकतम तीन साल की सज़ा या जुर्माना और सुरक्षा जैसे मदद के प्रावधान हैं, जबकि बलात्कार के क़ानून में अधिकतम उम्र क़ैद और जघन्य हिंसा होने पर मौत की सज़ा का प्रावधान है।

गौरतलब है कि निर्भया रेप मामले के बाद बनी जस्टिस वर्मा कमेटी ने भी मैरिटल रेप के लिए अलग से क़ानून बनाने की मांग की थी। उनकी दलील थी कि शादी के बाद सेक्स में भी सहमति और असहमित को परिभाषित करना चाहिए। मैरिटल रेप पर अब तक कई जनहित याचिकाएं कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं। कई बार महिलाओं की आपबीती सुनकर खुद कोर्ट ने सख्त टिप्पणियां की हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई अलग से कानून नहीं बन पाया है। शायद आपको याद हो कि दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान एक्टिंग चीफ़ जस्टिस गीता मित्तल और सी हरि शंकर की बेंच ने कहा था कि शादी का ये मतलब बिल्कुल नहीं की बीवी सेक्स के लिए हमेशा तैयार बैठी है।

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