केरल: एलडीएफ़ ने बफ़र ज़ोन मुद्दे पर यूडीएफ़ पर दोहरे मानदंड का आरोप लगाया
तिरुवनंतपुरम: 3 जून 2022 को सुप्रीम कोर्ट (एसी) के फ़ैसले ने संरक्षित क्षेत्रों (प्रोटेक्टेड एरिया-पीए) के आसपास एक इको-सेंसिटिव ज़ोन (ईएसज़ेड) को अनिवार्य कर दिया है। इससे केरल में विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गया है। लोगों में इस बात का डर है कि उनकी आवासीय और कृषि भूमि का नुक़सान होगा।
लेकिन, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट (यूडीएफ़) गठबंधन और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट (एलडीएफ़) सरकार पर राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के क़रीब रहने वालों के हितों को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया।
यूडीएफ़ ने अक्टूबर 2019 में एलडीएफ़ सरकार द्वारा लिए गए कैबिनेट के फ़ैसले से राज्य पर प्रभाव डालने का आरोप लगाया और वह इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ लगातार अभियान चला रही है।
जबकि एलडीएफ़ सरकार बफ़र ज़ोन से छूट के लिए ज़ोर दे रही है, यूडीएफ़ ने 2013 में अपने कार्यकाल के दौरान केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों द्वारा बताए गए 10 किलोमीटर के उलट 12 किलोमीटर बफ़र ज़ोन की सिफारिश की थी।
इस बीच, एलडीएफ़ सरकार लोगों की चिंताओं पर विचार करने के लिए सर्वेक्षण संख्या के साथ बफ़र ज़ोन का तीसरा नक़्शा प्रकाशित करने के लिए तैयार है।
एलडीएफ़ पर आरोप
इडुक्की, वायनाड, मलप्पुरम और पलक्कड़ ज़िलों के कई गांव एक किलोमीटर के बफ़र ज़ोन के अंतर्गत आते हैं, जिसे राज्य सरकार छूट देना चाहती है। बफ़र ज़ोन पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद यूडीएफ़ ने 16 जून को मलप्पुरम के कुछ हिस्सों सहित वायनाड, इडुक्की जिलों में हड़ताल का आह्वान किया था।
एलडीएफ़ सरकार द्वारा 12 जून को सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करने के बाद यूडीएफ़ द्वारा हड़ताल की घोषणा की गई थी। 28 नवंबर को इडुक्की में भी हड़ताल की घोषणा की गई थी।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, 24 नवंबर को यूडीएफ़ ने इडुक्की ज़िले के नेदुमकंदम में एक विरोध प्रदर्शन किया, यूडीएफ के संयोजक एम एम हसन ने कहा, “यूडीएफ का कहना है कि अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों में कोई बफ़र ज़ोन न हो। यदि सरकार भूमि संबंधी मुद्दों को हल करने में विफल रहती है, तो यूडीएफ़ सचिवालय तक मार्च निकालेगा।"
विधानसभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) वी डी सतीशन ने बफ़र ज़ोन के मुद्दे को लेकर एलडीएफ़ सरकार पर ग़ैरज़िम्मेदारी का आरोप लगाया। पलक्कड़ में लैटिन कैथोलिक सूबा और स्वतंत्र किसान संगठनों सहित चर्चों ने भी एलडीएफ़ सरकार पर आरोप लगाया।
'संकीर्ण राजनीतिक एजेंडा'
एक ओर जहां यूडीएफ़ एलडीएफ़ सरकार पर व्याप्त भ्रम और चिंताओं का आरोप लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर एलडीएफ़ ने राज्य में पिछले यूडीएफ़ शासन के फ़ैसलों की ओर इशारा किया है।
ओमन चांडी मंत्रालय की एक कैबिनेट बैठक ने केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 10 किलोमीटर के स्थान पर 12 किलोमीटर ईएसजेड लागू करने की उप-समिति की सिफारिश को मंज़ूरी दे दी थी।
वास्तव में वर्तमान नेता प्रतिपक्ष सतीसन उस उपसमिति का हिस्सा थे जिसने 12 किलोमीटर के बफ़र ज़ोन की सिफारिश की थी। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने हाल के सत्र में विधानसभा को बताया, "वीडी सतीसन, टीएन प्रतापन और एन शम्सुद्दीन की मौजूदगी वाली उप-समितियों ने कई बैठकों के बाद 12 किलोमीटर की सीमा पर फ़ैसला किया। लोग जानते हैं कि विरोध करने वाले प्रतिपक्षी नेता ने पहले क्या कहा था।”
उद्योग एवं क़ानून मंत्री पी राजीव ने कांग्रेस और भाजपा दोनों पर एक संकीर्ण राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया। उन्होंने मलयालम दैनिक देशाभिमानी में लिखा, "ये राजनीतिक फ़ायदे के लिए जनता के बीच ग़लत सूचना फैला रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों के रूप में बफर जोन दिशानिर्देशों को मंजूरी देने वाली कांग्रेस अब मगरमच्छ के आंसू बहा रही है।"
एलडीएफ़ सरकार आवासीय क्षेत्रों और कृषि भूमि में शून्य बफ़र ज़ोन की मांग करती रही है, जबकि अनइनहिबिटेड एरिया के लिए एक किलोमीटर बफ़र ज़ोन की सीमा की सिफारिश की गई है।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि ईएसज़ेड के शुरू होने से भूमि का कोई नुक़सान नहीं होगा। उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "संरक्षित क्षेत्रों के आसपास इनहिबिटेड क्षेत्रों और कृषि भूमि को बाहर रखा जाना चाहिए। हमने इसे पहले ही स्पष्ट कर दिया है।”
एससी और सीईसी को सौंपे जाने वाले मानचित्र
सरकार अब तक जनता की राय जानने के लिए सैटेलाइट सर्वे समेत दो मैप जारी कर चुकी है। राजस्व और स्थानीय निकायों को निर्देश दिया गया है कि वे आवासीय और कृषि क्षेत्रों को बाहर रखने को सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र का दौरा करें।
सरकार ने आवासीय और कृषि क्षेत्रों को छूट देने की अपनी मांग को दोहराने के लिए एससी और केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को अंतिम नक्शा प्रस्तुत करने का प्रस्ताव दिया है।
एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के 3 जून के फ़ैसले का हवाला देते हुए सरकार ने प्रोटेक्टेड एरिया के क़रीब आवासीय और कृषि क्षेत्रों को छोड़कर, बफ़र ज़ोन का अंतिम नक़्शा सौंपने के लिए एससी में अधिक समय लेने की योजना बनाई है।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
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