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केरल: गड़बड़ियों को रोकने के लिए सीपीआई (एम) की एलडीएफ़ सरकार के कामकाज़ पर होगी कड़ी नज़र

सरकार के फ़ैसलों की जांच-पड़ताल करने और पार्टी कार्यकर्ताओं पर कड़ी नज़र रखने के लिए एकेजी सेंटर में साप्ताहिक संयुक्त बैठकें आयोजित की जा रही हैं।
केरल: गड़बड़ियों को रोकने के लिए सीपीआई (एम) की एलडीएफ़ सरकार के कामकाज़ पर होगी कड़ी नज़र
प्रतीकात्मक फ़ोटो।

कुछ शर्मिंदगी पैदा कर देने वाले विवादों के बढ़ने से चिंतित केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ़) की सरकार का नेतृत्व कर रही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने राज्य सरकार के प्रशासनिक फ़ैसलों पर कड़ी नज़र रखने का फ़ैसला किया है। राज्य के वरिष्ठ पार्टी नेताओं का कहना है कि उन्होंने सरकार के साथ माकपा के बेहतर तालमेल की प्रणाली पर चर्चा करने के लिए कई बैठकें की हैं।

बताया जा रहा है कि हाल ही में एकेजी सेंटर (पार्टी मुख्यालय) दो स्तरों पर परेशान कर देने वाले घटनाक्रमों से चिंतित था। पहली घटना आम कार्यकर्ताओं के बीच "गिरते" तौर-तरीक़ों से जुड़ी हुई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि दूसरी घटना मंत्री स्तर पर उठाये जा रहे "टाले जा सकने वाले ग़लत क़दम" की है।

एलडीएफ़ सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान विपक्ष ने इस तरह के उठाये गये कुछ "ग़लत क़दमों" को एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनाने की जब कोशिश की थी, तो माकपा को ख़ुद का बचाव करते हुए पाया गया था।

ज़मीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से किये गये कई ग़लत कार्यों के कई मामले सामने आये हैं। मसलन, पार्टी के नेतृत्व वाली कई सहकारी समितियों में कुछ धोखाधड़ी का पता चला है, जिनमें सबसे बड़ा करुवन्नूर सहकारी बैंक है। इस मामले में कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। असल में कुछ हफ़्ते पहले माकपा नेतृत्व को उस समय शर्मसार होना पड़ा था,जब उसके एक होनहार नौजवान कार्यकर्ता को तस्करी के एक कथित मामले में गिरफ़्तार किया गया था। उस आरोपी नौजवान कार्यकर्ता ने कथित तौर पर पार्टी के साथ अपने रिश्ते का इस्तेमाल अपनी "आपराधिक गतिविधियों" की आड़ के तौर पर किया था।

हालांकि, ऐसे सभी मामलों में स्थानीय पार्टी इकाइयों ने इन "धोखेबाज़ों" के ख़िलाफ़ त्वरित कार्रवाई की है, इन सभी को पार्टी से बर्ख़ास्त कर दिया गया है और अगर अन्य कार्यकर्ताओं की इस तरह की संलिप्तता कहीं और हो और वे स्थानीय नेताओं की निगरानी से बचने में किस तरह कामयाब रहे, इन तमाम बातों का पता लगाने के लिए जांच-पड़ताल की गयी। हालांकि, इससे पार्टी की छवि को काफ़ी धक्का लगा है।

माकपा नेतृत्व को हुई शर्मिंदगी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी की राज्य समिति ने हाल ही में 'राज्य सरकार और पार्टी के काम-काज' शीर्षक से एक ऐसे दस्तावेज़ को अपनाया है, जिसमें सभी पार्टी इकाइयों के लिए निर्देशों का एक ढांचा शामिल है। दस दिन पहले इस दस्तावेज़ के मुख्य बिंदुओं को राज्य पार्टी अख़बार देशभिमानी ने प्रकाशित किया था।

पार्टी की राज्य समिति ने अब शाखा और क्षेत्र समिति के नेताओं को संदिग्ध तत्वों और अग्रिम पंक्ति के संगठनों से जुड़े लोगों पर लगातार नज़र रखने के लिए कहा है, ताकि जैसा कि मातृभूमि अख़बार की रिपोर्ट में बताया गया है कि इनकी स्थानीय रेत और भू-माफ़िया के साथ किसी भी तरह की खुली या गुप्त संलिप्तता पर नज़र रखी जा सके ।

मिल रही रिपोर्ट के मुताबिक़ स्थानीय समिति के नेताओं को ख़ास तौर पर अधिकारियों के तबादलों में दखल देने वालों के ख़िलाफ़ त्वरित अनुशासनात्मक कार्रवाई करने को कहा गया है। इस दस्तावेज़ में पश्चिम बंगाल का नाम लिये बिना कहा गया है कि पार्टी को उन राज्यों के तजुर्बे से सबक़ लेना चाहिए, जहां पार्टी लगातार सत्ता में रही है।

राज्य स्तर पर पिनाराई विजयन की अगुवाई वाली सरकार अपने पहले पांच सालों के दौरान विवादों की एक श्रृंखला में उलझ गयी थी, जिससे पार्टी को काफ़ी असहजता का सामना करना पड़ा था। इसकी शुरुआत राज्य सरकार के आर्थिक सलाहकार के रूप में गीता गोपीनाथ की नियुक्ति के साथ हुई थी। गीता गोपीनाथ की आईएमएफ़ पृष्ठभूमि ने एकेजी केंद्र में बेचैनी पैदा कर दी थी, जिसके बाद उन्हें चुपके से "सावधानी" बरतते हुए हटा दिया गया था।

जल्द ही मुख्यमंत्री कार्यालय के सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को सोने की तस्करी के मामले में शामिल लोगों के साथ कथित जुड़ाव के सिलसिले में गिरफ़्तार कर लिया गया था। इसके बाद स्प्रिंकलर विवाद हुआ। इस सौदे के तहत संवेदनशील कोविड डेटा को एकत्र करने के सिलसिले में विदेशी जुड़ाव वाली किसी कंपनी को अनुमति दिये जाने को लेकर राज्य सरकार की आलोचना की गयी थी। बाद में इसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।

इसके बाद, जब गहरे समुद्र में मछली पकड़ने को लेकर एक निजी कंपनी के साथ सरकारी अनुबंध का विवरण मीडिया में लीक हो गया था,तो मछुआरों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन से सरकार चल रही बातचीत को बीच में ही छोड़ देने के लिए मजबूर हो गयी थी। इसके अलावा, माकपा नेता पुलिस को खुली छूट दिये जाने के सरकारी क़दम से नाराज थे। बाद में वह फ़ैसला भी वापस ले लिया गया था।

माकपा के राज्य नेताओं की ओर से चिह्नित की गयी एक अन्य गड़बड़ी मंत्रालयों में संकल्टेंट कंपनियों के दाखिल होने से जुड़ी हुई है। इन स्मार्ट पुरुषों और महिलाओं में से कुछ का दावा है कि उनकी पृष्ठभूमि स्टूडेंट फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया और यूथ फ़ेडरेशन की है।

अब जबकि वाम सरकार अपने छठे साल में प्रवेश कर चुकी है, पार्टी में आने वाले दिनों में इस तरह के किसी भी तरह के नुक़सान से निजात पाने की बेचैनी दिखती है। इसकी शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री ने प्रस्तावित ‘नॉलेज मिशन’ पर आगे की बातचीत पर पहले ही रोक लगा दी है। इस मिशन को निजी भागीदारी से लागू किया जा रहा है (मातृभूमि, 26 अगस्त)।

इसी तरह, महत्वाकांक्षी बेहतरीन के-रेल योजना पर आगे की कार्रवाई नवगठित उच्च स्तरीय पार्टी पैनल की तरफ़ से इसकी जांच के बाद ही की जायेगी। इस परियोजना की वामपंथी प्रभुत्व वाली केरल शास्त्र परिषद और विभिन्न नागरिक समूहों ने आलोचना की है। उनका कहना है कि इसके अभिजात्य प्रकृति के होने के अलावे इस परियोजना से राज्य के नाज़ुक पर्यावरण को भी अपूरणीय क्षति होगी।

राज्य समिति ने अब सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की ओर से लिये गये सभी विवादास्पद फ़ैसलों की जांच-पड़ताल को लेकर केरल के पोलित ब्यूरो सदस्यों की चार सदस्यों से बनी उच्च स्तरीय समिति बनायी है। कोडियेरी बालकृष्णन, रामचंद्रन पिल्लई, एम.ए. बेबी और राज्य पार्टी सचिव विजयराघवन इसके सदस्य हैं। सीपीआई (एम) के वरिष्ठ मंत्री इस पैनल का हिस्सा होंगे, जिसकी हर मंगलवार को बैठक होगी। यह पैनल पार्टी सचिवालय की शुक्रवार को होने वाली बैठकों में अपने विचार-विमर्श की रिपोर्ट देगा।

इस दस्तावेज़ में 'राज्य सरकार और पार्टी के काम-काज' को राज्य समिति की ओर से अपनी पिछली बैठक में अनुमोदित किया गया था और पार्टी के कार्यकर्ताओं को सभी स्तरों पर "सत्तारूढ़ पार्टी का हिस्सा होने की शेखी और शेखी बघारे जाने वाले रवैये" के ख़िलाफ़ चेतावनी दी गयी है।

यह दस्तावेज़ ख़ास तौर पर पार्टी पदाधिकारियों को सावधान करता है कि सरकार के दिन-ब-दिन के कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। जो भी नीतिगत हस्तक्षेप ज़रूरी होगा, वह मुख्यमंत्री या पार्टी के मंत्रियों के ज़रिये किया जायेगा। इस दस्तावेज़ में मंत्रियों, पार्टी नेताओं और स्थानीय कार्यकर्ताओं के लिए ‘क्या करें और क्या न करें’ के बारे में भी बताया गया है।

नये मंत्रियों के नामों को अंतिम रूप देते हुए पार्टी प्रबंधकों ने पिछले मई में अपने वरिष्ठ नेताओं को मंत्रियों के आधिकारिक सहयोगी के रूप में रखे जाने का फ़ैसला किया था। ऐसा पार्टी की नीतियों का अनुपालन को सुनिश्चित करने और इस तरह नये विवादों को टाले जाने को लेकर किया गया था। इस तरह, पोलित ब्यूरो के सदस्यों के पैनल की ओर से नज़र रखना, दरअस्ल पार्टी के नियंत्रण को और कड़ा करने जैसा है।

लेखक अनुभवी पत्रकार हैं और 1970 के दशक के आख़िर से राजनीति को कवर करते रहे हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Kerala: To Avert Flip-flops, CPI(M) Tightening Vigil on Govt’s Working

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