ख़बरों के आगे-पीछे : बड़ी भूमिका के लिए तैयार हो रहे हैं खरगे?
कांग्रेस अपने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को मौजूदा दौर के सबसे बड़े नेता के तौर पर पेश कर रही है। उनके संसदीय जीवन के 50 साल पूरे होने पर उनके ऊपर लिखी गई एक किताब का विमोचन सोनिया गांधी ने किया और कांग्रेस ने उनको महान नेता बताया। कांग्रेस ने उनके राजनीतिक जीवन को बेदाग बताते हुए बेमिसाल करार दिया। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा के ऐसे कई नेता, जो कांग्रेस को कोसते रहे हैं, उन्होंने भी इस किताब में खरगे की खूब तारीफ की है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पूर्व उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि ने खरगे के बारे में लिखा है। सबने उनके राजनीतिक जीवन और कामकाज की खूब तारीफ की है। सिंधिया ने लिखा है कि खरगे ने कमजोर लोगों को सशक्त बनाने के लिए काम किया है। असल में कांग्रेस भी इसी पहलू को ही खड़गे की असली ताकत बता रही है कि वे दलित हैं और वंचितों को आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं।
गौरतलब है कि खरगे दलित होने के साथ-साथ बहुत गरीब पृष्ठभूमि वाले परिवार के हैं। उनके पिता मिल मजदूर थे, जिसका जिक्र उन्होंने कई बार किया है। कांग्रेस इसको खरगे का यूएसपी बता कर पेश कर रही है। किताब के विमोचन कार्यक्रम को जिस तरह से पेश किया गया और सोनिया गांधी सहित कांग्रेस के तमाम नेताओं ने उनकी जैसी तारीफ की उसके बाद कहा जा रहा है कि उन्हें किसी बड़ी भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है। इसीलिए किताब में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने खरगे के बारे में बड़ी बड़ी बातें लिखी है। शरद पवार ने भी उनके बारे में लिखा है। किताब के विमोचन के मौके पर सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, डीएमके नेता टीआर बालू, राजद के सांसद मनोज झा आदि मौजूद थे। एक तरह से कांग्रेस खरगे को अजातशत्रु के तौर पर पेश कर रही है।
यूनेस्को के चुनाव में भारत का डंका फूट गया
वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम भाजपा नेता अक्सर ही दावा करते रहते हैं कि पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। सोशल मीडिया में भाजपा समर्थकों की फौज तो यह भी कहती है कि भारत से पूछे बगैर दुनिया का कोई भी नेता कोई फैसला नहीं करता है। लेकिन अभी संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को यानी संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन के कार्यकारी बोर्ड में उपाध्यक्ष का चुनाव हुआ, जिसमें पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया। इस चुनाव में भारतीय उम्मीदवार विशाल शर्मा को सिर्फ 18 वोट मिले, जबकि पाकिस्तानी उम्मीदवार को 38 वोट मिले। यानी भारत से दोगुने से भी ज्यादा वोट पाकिस्तानी उम्मीदवार को मिले। अब इस बात की जांच हो रही है कि भारत कैसे कार्यकारी बोर्ड के आधे सदस्यों यहां तक कि ग्लोबल साउथ ब्लॉक के भी वोट नहीं ले सका?
गौरतलब है कि भारतीय नेतृत्व खुद को ग्लोबल साउथ के नेता के तौर पर पेश करता रहा है। यूनेस्को में भारत के प्रतिनिधि विशाल शर्मा की राजनीतिक नियुक्ति हुई थी। वे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के विशेष कर्तव्य अधिकारी थे। इसीलिए सवाल है कि क्या विदेश सेवा के अधिकारियों ने उनके साथ सहयोग नहीं किया? सबको पता है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत के मुकाबले पाकिस्तान की हैसियत बहुत खराब है। इसके बावजूद यूनेस्को के उपाध्यक्ष पद पर उसके उम्मीदवार ने भारत को बुरी तरह से हरा दिया। भारत को निश्चित रूप से पता लगाना चाहिए कि कौन सी विश्व शक्ति भारत के मुकाबले पाकिस्तान को बढ़ावा दे रही है?
पुरानी पेंशन योजना बड़ा मुद्दा बनेगा
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अन्य तमाम मुद्दों के साथ-साथ एक बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन योजना का होने वाला है। कई राज्यों में यह बड़ा मुद्दा बना है। राजस्थान में कांग्रेस ने अगर पांच साल सरकार चलाने के बाद भी भाजपा को कड़ी टक्कर दी है तो उसमें बड़ा हाथ पुरानी पेंशन योजना का है, जिसे राज्य सरकार ने बहाल कर दिया है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत में इस मुद्दे का बड़ा योगदान है। कांग्रेस और कई दूसरी विपक्षी पार्टियों की सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना लागू कर दी है या सरकार बनने पर लागू करने का वादा किया है। इस बीच केंद्रीय कर्मचारियों के संगठन इस पर बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। पिछले दो-तीन महीने में केंद्रीय कर्मचारियों सहित देश भर के सरकारी कर्मचारियों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में पुरानी पेंशन योजना की बहाली को लेकर दो बड़े प्रदर्शन किए। इन प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में कर्मचारी शामिल हुए। अब केंद्रीय कर्मचारी देशव्यापी हड़ताल की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें रेलवे के भी 13 लाख कर्मचारियों के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। केंद्रीय कर्मचारियों के संगठनों की बैठकें हो रही हैं। लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले किसी समय उनका आंदोलन शुरू होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है।
नीतीश की सरकार में भाजपा के एजेंट!
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार द्वारा एक के बाद एक ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं, जिनका राजनीतिक फायदा भाजपा को मिलना ही मिलना है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि नीतीश कुमार की पार्टी या सरकार में कुछ लोग भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। ताजा मामला स्कूलों की छुट्टी का है। इस साल बिहार के शिक्षा विभाग ने रक्षाबंधन से लेकर तीज तक कई छुट्टियों में कटौती की, जिसका भारी विरोध हुआ। बाद में सरकार को फैसला बदलना पड़ा। इसके बावजूद अगले साल का जो कैलेंडर जारी किया गया है उसमें हिंदू त्योहारों की छुट्टियां कम कर दी गई हैं, जबकि मुस्लिम त्योहारों की छुट्टियां बढ़ा दी गई है। इसका विरोध हो रहा है और जनता दल (यू) के ही कई नेताओं ने इस पर सवाल उठाए, जिसके बाद यह तय है कि इसे बदल दिया जाएगा। लेकिन ऐसा करके शिक्षा विभाग ने जनता दल (यू) और उसकी सहयोगी पार्टियों, राजद व कांग्रेस का जो नुकसान करना था वह कर दिया। अगले साल के कैलेंडर के मुताबिक मकर संक्रांति, रक्षाबंधन, तीज और जिउतिया की छुट्टियां खत्म कर दी गई हैं, जबकि दिवाली और छठ की छुट्टियां कम कर दी गई हैं। इसके उलट अब ईद और बकरीद की छुट्टी तीन-तीन दिन और मुहर्रम की छुट्टी दो दिन रहेगी। इसके अलावा मदरसों में साप्ताहिक अवकाश शुक्रवार को कर दिया गया है। शिक्षा विभाग का यह विशुद्ध राजनीतिक फैसला है, जिसका छात्रों को तो कोई फायदा नहीं होगा लेकिन भाजपा को जरूर होगा।
परदे के पीछे के खेल में भी उपयोगी हैं हिमंत
भाजपा में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की उपयोगिता सिर्फ नफरत फैलाने वाले भाषण देने और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करने तक ही नहीं है। वे परदे के पीछे के खेल में भी भाजपा के लिए बहुत उपयोगी है। इस वजह से भी भाजपा के शीर्ष नेताओं में उनकी पूछ बढ़ी है। पिछले साल महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिव सेना और एनसीपी की सरकार को गिराने के खेल में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। शिव सेना के विधायक टूटे तो उन्हें गुवाहाटी ले जाकर ही रखा गया था। एकनाथ शिंदे गुट के विधायक मुंबई से सूरत और वहां से गुवाहाटी ले जाए गए थे, जहां वे हिमंता बिस्वा सरमा की मेजबानी में थे। महाराष्ट्र में सरकार बनने की स्थिति स्पष्ट होने के बाद ही विधायक वहां से मुंबई लौटे थे।
इसी तरह झारखंड में कांग्रेस के विधायकों के टूटने की खबर आई तो उसमें भी हिमंत बिस्वा सरमा का नाम आया। यहां तक कि रांची में कांग्रेस के एक विधायक ने खरीद-फरोख्त का मुकदमा दर्ज कराया तो उसमें भी उनका नाम शामिल किया गया। उससे पहले अपने राज्य में कांग्रेस के विधायकों में सेंध लगा कर राज्यसभा की एक अतिरिक्त सीट हासिल करने का काम भी उन्होंने किया था। सो, सरकार गिराने या राज्यसभा के चुनाव में विपक्ष को कमजोर करने के लिए विधायक तोड़ने के काम में भी वे बहुत उपयोगी साबित हो रहे हैं। इसीलिए भाजपा के आला नेताओं खास कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का उन पर बड़ा भरोसा है।
आप सरकार भी निजीकरण के फेर में
कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगाती है कि वह सब कुछ निजी हाथों में सौंप रही है। लेकिन अब आम आदमी पार्टी के नियंत्रण वाले दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी ने कानून प्रवर्तन का एक बड़ा काम निजी कंपनियों को देने का फैसला किया है। अब तक दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में भी पार्किंग का ठेका निजी कंपनियों को दिया जाता रहा है लेकिन अवैध पार्किंग में खड़ी गाड़ियों को उठाने और उन गाड़ियों के मालिकों से जुर्माना वसूलने का काम ट्रैफिक पुलिस ही करती रही है। वह ऐसी गाड़ियों को उस इलाके के संबंधित थाने में या निर्धारित जगह पर ले जाती है, जहां से गाड़ियों के मालिक वैध कागजात दिखा कर और जुर्माना भर कर अपनी गाड़ी ले जाते हैं। यह काम कहीं भी निजी कंपनियों को नहीं दिया गया है। लेकिन दिल्ली नगर निगम यह काम अब निजी कंपनियों को देने जा रही है।
गाड़ी के वजन और आकार के हिसाब से कंपनियां उसे उठा ले जाने का शुल्क वसूलेगी और साथ ही जितने समय तक गाड़ी उनके पास खड़ी रहेगी उसका किराया भी कंपनियां वसूलेगी। यह कई हजार रुपये तक हो सकता है। दरअसल यह साधारण पार्किंग का मामला नहीं है, बल्कि कानून प्रवर्तन का मामला है, जिसे निजी कंपनियां मुनाफा कमाने का साधन बना सकती है। इससे मनमानी बढ़ने का खतरा अलग है। एमसीडी ने इसका टेंडर जारी कर दिया है। अगर इसे नहीं रोका गया तो दिल्ली के लोगों के लिए एक बड़ा सिरदर्द खड़ा होगा। गौरतलब है कि दिल्ली में अन्य तीनों महानगरों की साझा संख्या से ज्यादा गाड़ियां है और पार्किंग की जगह बहुत सीमित है।
भाजपा का एकतरफा सीट बंटवारा
महाराष्ट्र में भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन में चार पार्टियां हैं। भाजपा के अलावा शिव सेना, एनसीपी का अजित पवार गुट और रामदास अठावले की आरपीआई एक साथ है। लेकिन अगले साल के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने एकतरफा तरीके से सीट बंटवारे की घोषणा कर दी। पिछले सप्ताह भाजपा नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने ऐलान किया कि अगले साल लोकसभा चुनाव में भाजपा राज्य की 48 में से 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। बची हुई 22 सीटें सहयोगी पार्टियों को दी जाएंगी। इस घोषणा पर अजित पवार ने नाराजगी जताई और कहा कि अभी सीट बंटवारे को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है।
गौरतलब है कि पिछली बार शिव सेना के साथ तालमेल में भाजपा 25 सीटों पर और शिव सेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। भाजपा ने 23 और शिव सेना ने 18 सीटें जीती थीं। जब से एकनाथ शिंदे गुट को असली शिव सेना की मान्यता मिली है तब से उनके नेता 23 सीटों की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर एनसीपी भी कांग्रेस के साथ तालमेल में 19 सीटों पर चुनाव लड़ी थी तो अजित पवार का खेमा भी 19 सीटों की मांग कर रहा है। हालांकि सबको पता है कि शिव सेना का वोट शिंदे की बजाय उद्धव ठाकरे के पास है और एनसीपी का वोट अजित पवार की बजाय शरद पवार के साथ है। ऐसे में शिंदे और अजित पवार आधी पार्टी के ही नेता माने जाएंगे। इसी फॉर्मूले के तहत फड़णवीस ने दोनों के लिए 11-11 सीटें छोड़ने की बात कही। हालांकि अभी सीट बंटवारे के बारे में अंतिम तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि दोनों पार्टियों की आने वाले दिनों में क्या स्थिति रहने वाली है यह अभी साफ नहीं है।
शराबबंदी पर नीतीश नया सर्वे कराएंगे
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के अपने फैसले पर एक बार फिर राज्य में सर्वेक्षण कराने वाले हैं। उन्होंने पिछले शनिवार को कहा कि राज्य के कर्मचारी घर-घर जाकर इस नीति पर लोगों की राय लेंगे। सब जानते हैं कि सरकारें जब सर्वेक्षण या जनमत संग्रह कराती हैं तो नतीजा वही आता है, जो सरकारें चाहती हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल इस तरह के सर्वेक्षण कराते ही रहते हैं, जिनके नतीजे लोगों को पहले से पता होते हैं। सो, बिहार में भी शराबबंदी पर सर्वेक्षण होगा तो नीतीश के मन लायक ही नतीजे आएंगे। लोग इसकी तारीफ करेंगे और महिलाएं इसे बनाए रखने की वकालत करेंगीं। लेकिन सवाल है कि क्या राज्य सरकार का इस कानून को लेकर कोई और इरादा है?
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से इस कानून में काफी ढील दी गई है। इस बीच नकली और जहरीली शराब पीने से लोगों के मरने की घटनाएं भी बहुत बढ़ गई हैं। अदालत का रुख अलग से सख्त है और नीतीश कुमार की सहयोगी पार्टी राजद के कई नेता चाहते हैं कि यह कानून या तो खत्म किया जाए या इसमें कुछ और ढील दी जाए। इसीलिए लोकसभा चुनाव से पहले शराबबंदी पर सर्वेक्षण कराने के फैसले पर सवाल उठ रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश सर्वेक्षण के नतीजों से ज्यादा जोर-शोर से इसका प्रचार करेंगे तो दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि कुछ और ढील का ऐलान किया जा सकता है।
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