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ख़बरों के आगे-पीछे : लोकसभा में एक मुख्यमंत्री का अपमान जो पहले कभी नहीं हुआ

आम आदमी पार्टी का एक भी सदस्य लोकसभा में नहीं है इसलिए प्रतिवाद करने के लिए कोई नहीं था। पर यह पूरे सदन की ज़िम्मेदारी थी कि एक राज्य के चुने हुए मुख्यमंत्री का अपमान न होने दे।
ख़बरों के आगे-पीछे : लोकसभा में एक मुख्यमंत्री का अपमान जो पहले कभी नहीं हुआ
सांकेतिक तस्वीर

हमारा संसदीय लोकतंत्र जिस तरह पतन के नए-नए आयाम छू रहा है, उसकी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिल सकती। लोकसभा में अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने पंजाब के मुख्यमंत्री के भगवंत मान के बारे में अनाप-शनाप भाषण दिया और पूरा सदन चुपचाप सुनता रहा। हैरानी की बात है कि सदन में गृह मंत्री अमित शाह मौजूद थे और वे भगवंत मान के अपमान पर हंस रहे थे। आसंदी पर ख़ुद स्पीकर ओम बिरला मौजूद थे, जो सदन की गरिमा, मर्यादा और नियमों की ख़ूब दुहाई देते रहते हैं लेकिन हरसिमरत कौर के भाषण को चुपचाप सुनते रहे। हालांकि बाद में हरसिमरत कौर बादल के भाषण की बहुत सी बातों को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया गया, लेकिन बोलते वक़्त उन्हें नहीं टोका गया। अगर बात नीतिगत होती तब भी समझ में आती, लेकिन हरसिमरत कौर बादल अपनी पार्टी की लगातार दो बार की हार की कुंठा में मुख्यमंत्री को शराबी बता रही थीं। वे कह रही थीं कि भगवंत मान शराब पीकर लोकसभा में आते थे। उन्होंने यह भी कहा कि वे शराब पीकर पंजाब चला रहे हैं। जब उन्होंने कहा कि भगवंत मान ड्रिंक भी कर रहे है और राज्य को ड्राइव भी कर रहे है तो अमित शाह हंसने लगे। आमतौर पर जो व्यक्ति सदन में मौजूद नहीं होता उसके ख़िलाफ़ बात नहीं होती है और निजी हमला तो कतई नहीं होता है। चूंकि आम आदमी पार्टी का एक भी सदस्य लोकसभा में नहीं है इसलिए प्रतिवाद करने के लिए कोई नहीं था। पर यह पूरे सदन की ज़िम्मेदारी थी कि एक राज्य के चुने हुए मुख्यमंत्री का अपमान न होने दे।

केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की मिसाल

इस समय देश में कई नेताओं के ख़िलाफ़ प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी, सीबीआई, आयकर आदि केंद्रीय एजेंसियों की जांच चल रही है। लेकिन कर्नाटक के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार का मामला सबसे अलग है। उनके ख़िलाफ़ जैसी और जितनी लंबी जांच चल रही है, उतनी किसी अन्य नेता के ख़िलाफ़ नहीं चली होगी। उनके ख़िलाफ़ पिछले पांच साल से जांच ही चल रही है। आमतौर पर एजेंसियों की छापेमारी के बाद थोड़े दिन जांच और पूछताछ चलती है और फिर आरोपपत्र दाख़िल हो जाता है, जिसके बाद अदालती कार्यवाही चलती है, लेकिन शिवकुमार के मामले में ऐसा नहीं है। उनके यहां 2017 में आय कर विभाग का छापा पड़ा था, जब वे सिद्धरमैया सरकार में मंत्री थे। उसके तीन साल बाद अक्टूबर 2020 में सीबीआई ने एफ़आईआर दर्ज की। इस बीच प्रवर्तन निदेशालय ने भी अपनी जांच शुरू की और अभी तक एजेंसियों की जांच चल रही है। पिछले सोमवार को सीबीआई की टीम ने बेंगलुरू में उनके कई परिसरों में जाकर जांच की। अब भी उनको एक नियमित अंतराल पर पूछताछ के लिए बुलाया जाता है। कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि चार महीने बाद मई में होने वाले विधानसभा चुनाव तक शिवकुमार और उनके सांसद भाई डीके सुरेश को अगले साल मई में होने वाले विधानसभा चुनाव तक केंद्रीय एजेंसियां उलझाए रहेगी और इसका कारण विशुद्ध रूप से राजनीतिक होगा। सब जानते हैं कि डीके शिवकुमार को कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र माना जाता है। भले ही वे मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार नहीं हैं लेकिन सबको पता है कि चुनाव वे ही लड़वाएंगे। इसीलिए केंद्रीय एजेंसियां उन्हें राहत की सांस नहीं लेने देगी। इन एजेंसियों को भाजपा के गठबंधन का सदस्य यूं ही नहीं कहा जाता है।

भाजपा के लिए फिर संकटमोचक बनेगी आप?

आम आदमी पार्टी अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी मे लग गई है। मई में विधानसभा का चुनाव होने वाला है और उससे पहले अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने लोक लुभावन घोषणाएं शुरू कर दी है। पार्टी ने वादा किया है कि अगर राज्य में उसकी सरकार बनेगी तो वह पुरानी पेंशन योजना लागू करेगी। यह बात कांग्रेस भी कहने वाली थी, जैसा कि उसने हिमाचल प्रदेश में वादा किया था और चुनाव जीती थी। लेकिन कांग्रेस से पहले ही आम आदमी पार्टी ने ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं पार्टी के प्रदेश के नंबर दो नेता भास्कर राव ने राज्य सरकार के कर्मचारियों के प्रदर्शन में भी हिस्सा लिया। कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। हालांकि आप की कमज़ोरी यह है कि उसके पास प्रदेश में संगठन नहीं है और बड़े नेता भी नहीं हैं। इसके बावजूद वह कर्नाटक में चुनाव लड़ेगी और उसी तरह से लड़ेगी, जैसे गुजरात में लड़ी या जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा आदि राज्यों में लड़ी। अगर वह गुजरात की तरह लड़ती है यानी अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान और अन्य नेता रात दिन मेहनत करते हैं तब तो कांग्रेस को बड़ा नुक़सान हो सकता है। कांग्रेस वहां इस बार सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है लेकिन अगर आप पूरी ताक़त से लड़ी और जेडीएस भी अलग चुनाव लड़ी तो भाजपा को फ़ायदा होगा। परंतु अगर आप हिमाचल प्रदेश की तरह चुनाव लड़ती है तब कांग्रेस को नुक़सान नहीं होगा। चुनाव से पांच महीने पहले तो ऐसा दिख रहा है कि आप के पास संगठन नही है और वह सिर्फ़ लड़ने के लिए लड़ेगी।

त्रिपुरा और मेघालय में उद्घाटन-शिलान्यास शुरू

गुजरात के बाद अब हज़ारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास का काम पूर्वोत्तर के राज्यों में शुरू हो गया है, क्योंकि अब उधर चुनाव होने वाले है। त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में अगले साल फ़रवरी-मार्च में विधानसभा के चुनाव हैं। अगले महीने चुनावों की घोषणा हो सकती है। उससे पहले प्रधानमंत्री का पूर्वोत्तर का दौरा शुरू हो गया है। वे पिछले रविवार को दो चुनावी राज्यों- त्रिपुरा और मेघालय के दौरे पर पहुंचे। उन्होंने वहां क़रीब सात हज़ार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। दोनों राज्यों में उन्होंने दो बड़ी सभाओं को भी संबोधित किया। इससे पहले नवंबर में प्रधानमंत्री ने हिमाचल प्रदेश और अपने गृह राज्य गुजरात में चुनाव की घोषणा से पहले लाखों करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया था। ग़ौरतलब है कि इस मामले में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। 'मुफ़्त की रेवड़ी’ वाले मामले में आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस ने यह मुद्दा उठाया कि सरकारें चुनाव के समय परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास करती हैं, जिससे चुनावी मैदान ग़ैर बराबरी का हो जाता है। बहरहाल, उससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। प्रधानमंत्री ने मेघालय की राजधानी शिलांग में आईआईएम कैपस का उद्घाटन किया, एक सभा को संबोधित किया और नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में हिस्सा लिया। दोपहर बाद प्रधानमंत्री मोदी त्रिपुरा पहुंचे और वहां भी कई परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया और एक सभा को संबोधित किया। चुनाव की घोषणा तक यह सिलसिला चलता रहेगा।

बिहार में शराबबंदी पर भाजपा की उलझन

बिहार में शराबबंदी क़ानून को ख़त्म करने की मांग तेज़ हो रही है लेकिन भारतीय जनता पार्टी तय नहीं कर पा रही है कि वह क्या करे? इसीलिए वह सिर्फ़ गोलमोल बात कर रही है। वह पांच साल तक नीतीश कुमार के साथ सरकार में रही और इस नीति का समर्थन करती रही। अब सरकार से अलग होने के बाद उसे सारण में ज़हरीली शराब से हुई मौतों के बाद मौक़ा मिला है सरकार को निशाना बनाने का लेकिन वह अपनी वैचारिक स्थिति स्पष्ट नहीं कर रही है। वह सरकार की आलोचना कर रही है, ज़हरीली शराब से मरे लोगों के परिजनों को मुआवज़ा देने की मांग कर रही है, नीतीश को हटाने की मांग भी कर रही है लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर रही है कि वह शराबबंदी क़ानून के पक्ष में है या विरोध में। इसीलिए सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियों ने इस कमज़ोरी को पकड़ा है और भाजपा से स्थिति साफ़ करने को कहा है। भाजपा की मुश्किल यह है कि वह एक नीति के तौर पर इसका विरोध नहीं कर सकती है क्योंकि उसके मॉडल स्टेट यानी गुजरात में शराबबंदी लागू है। दूसरे उसको पता है कि बिहार में शराबबंदी से बड़ा सामाजिक बदलाव आया है। यह हाल के समय का सबसे बड़ा सामाजिक सुधार साबित हुआ है। इसलिए अगर वह इस क़ानून को समाप्त करने की मांग करती है कि मध्य वर्ग और ख़ास कर महिलाओं के वोट में उसको बड़ा नुक़सान हो सकता है। इसलिए वह खुल कर इस क़ानून का विरोध करने की बजाय सिर्फ़ नीतीश कुमार का विरोध कर रही है और उससे कुछ ख़ास हासिल नहीं होना है।

पूर्वोत्तर में फुटबॉल और पोप का कार्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितने कट्टर अपनी राजनीतिक विचारधारा को लेकर हैं, चुनावी रणनीति को लेकर उतने ही लचीले हैं। हर राज्य में वहां के माहौल और हालात के मुताबिक़ भाषण देते हैं और घोषणाएं करते हैं। यह बात उन्हें बाक़ी नेताओं से अलग करती है। वे चुनावी हिसाब से जब भाषण देते हैं तो अपनी पार्टी की ओर से प्रचारित मुख्यधारा के विमर्श और विचारधारा को भी किनारे कर देते हैं। जैसे उनकी पार्टी के नेता सारे समय मीडिया और सोशल मीडिया में इस्लाम और ईसाइयत के पीछे पड़े रहते हैं और मौलानाओं के साथ-साथ पादरियों को भी निशाना बनाते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ईसाई बहुल मेघालय गए तो वहां उन्होंने पोप से अपनी मुलाक़ात का ज़िक्र किया। एक जनसभा में उन्होंने बताया कि वे पोप से मिले और पोप के साथ हुई मुलाक़ात का उनके ऊपर बड़ा असर पड़ा। इसी तरह प्रधानमंत्री ने फुटबॉल का भी ज़िक्र किया। ग़ौरतलब है कि मेघालय और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में फुटबॉल सबसे लोकप्रिय खेल है। उन्होंने फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप का ज़िक्र करते हुए कहा कि आज भारत के लोग दूसरे देशों का खेल देख कर खुशी मनाते हैं लेकिन जल्दी ही अपने देश में तमाम वैश्विक खेल आयोजन होंगे और तब लोग अपने खिलाड़ियों के खेल का जश्न मनाएंगे। ग़ौरतलब है कि अगले तीन महीने में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनाव है, जिनमें से मेघालय और नगालैंड में बड़ी ईसाई आबादी है। उसे ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने पोप के साथ साथ फुटबॉल का कार्ड भी खेला।

अब सब कुछ इंडिया एट 100 के नाम पर

भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार ने अब नया गोल पोस्ट सेट कर दिया है। याद करें, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने 2022 का गोल पोस्ट तय किया था। उन्होंने कहा था कि आज़ादी के 75 साल पूरे होंगे तब तक भारत बड़ी ऊंचाइयों पर पहुंच चुका होगा। उन्होंने कई लक्ष्य तय किए थे, जिनमें से एक भी लक्ष्य पूरा नही हुआ है। लेकिन कोरोना के नाम पर उसे छोड़ दिया गया है और अब अगले 25 साल का लक्ष्य तय किया जा रहा है। सरकार ने अब 'इंडिया एट 100’ का गोल पोस्ट तय किया है। सारी चीज़े अब इस नाम पर हो रही है कि भारत की आज़ादी के सौ साल पूरे होंगे तो क्या-क्या होगा? सरकार के हर कार्यक्रम मे यह लिखा दिख रहा है कि इंडिया एट 100 तक क्या होगा। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा है कि इस बार का बजट अगले 25 साल का टेम्पलेट लिए होगा। ध्यान रहे यह नरेंद्र मोदी की सरकार के दूसरे कार्यकाल का आख़िरी बजट होगा। सो, बजट में इस बार बड़े लक्ष्यों की घोषणा हो सकती है और आज़ादी के सौ साल पूरे होने तक यानी 2047 तक चलने वाले कुछ कार्यक्रमों की घोषणा भी हो सकती है। उसके लिए बजट में कुछ प्रावधान किए जा सकते हैं।

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