किसान आंदोलन: ‘’ये नसल और फसल बचाने का वक्त है’’
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला किया था, जिसके बाद करीब एक साल तक दिल्ली के गाज़ीपुर पर बैठे किसानों ने अपने प्रदर्शन को वापस लिया और अपने घर लौट गए।
लेकिन अब जब प्रदर्शन को एक साल पूरे होने वाले हैं, तब किसानों ने एक बार फिर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से दिल्ली के जंतर-मंतर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। इस बार का किसान आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) की ओर से बुलाया गया है। जिसमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा समेत अलग-अलग राज्यों के किसान शामिल हो रहे हैं। इससे पहले संयुक्त किसान मोर्चा, जिसके नेतृत्व में ये पूरा आंदोलन लड़ा गया था, आज़ादी के 75वें साल के मौके पर 75 घंटे का मोर्चा लगाया था और वहां भी इसी तरह की मांगे बुलंद की गई थीं।
इस बार के किसान आंदोलन में सबसे ज्यादा बात अपनी फसल और नसल बचाने के लिए हो रही है। आंदोलन में शामिल किसानों का कहना है कि ये सरकार हमारी नस्लों को बरबाद करने पर तुली हुई है।
आंदोलन के दौरान किसानों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की।
न्यूज़क्लिक ने जब बुंदेलखंड से आए संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) के कुछ किसानों और मज़दूरों से बात की तब उन्होंने जो बताया वो केंद्र सरकार के साथ-साथ दिल्ली पुलिस पर भी बड़े सवाल खड़े करता है।
करीब दो-ढाई सौ लोगों के समूह के साथ पहुंचे बुंलेदखंड के किसानों में गिरिज देवा, राजा भईया राजपूत और रामकली कुशवाहा करीब 60 बरस से ज्यादा उम्र के है, इनका कहना था कि वो सुबह के करीब 5 बजे दिल्ली के निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर पहुंच चुके थे, लेकिन पुलिस वालों ने जगह-जगह उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उनका रास्ता रोका, कई बार तो उन्हें जीत में भरकर दूर ले जाकर छोड़ दिया गया ताकि वो जंतर-मंतर में हो रहे प्रदर्शन तक नहीं पहुंच पाएं। हालांकि किसानों ने इन सभी यातनाओं को झेलने के बाद भी अपना संघर्ष जारी रखा और पैदल चलकर दोपहर करीब दो बजे जंतर-मंतर पहुंच गए।
इस दौरान हमने जिन महिला किसानों से बात की, वे बुंदेलखंड के छोटे-छोटे गावों से आए हुए थे। कई महिलाएं बात करते वक्त बेहद भावुक हो गईं और कहने लगीं कि सरकार की ओर से उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है। वे आज भी घास-फूस के बनाए छप्पर के नीचे रहने के लिए मजबूर हैं।
महिला किसानों का कहना है, कि महंगाई के कारण आज की तारीख में किसान न तो ठीक से फसल बो सकता है, न ही अपना परिवार पाल सकता है। बिजली के बिल से लेकर घर का गैस सिलेंडर तक पहुंच से बाहर जा रहा है। उज्जवला योजना सिर्फ नाम के लिए है, एक सिलेंडर दे दिया लेकिन भरवाना ख़ुद ही पड़ता है। महिला किसानों का कहना है कि जब खेत में बीड डालने तक को पैसे नहीं होते तब सिलेंडर कहां से भरवाएं। प्रदर्शनकारी महिला ने बताया कि सिर्फ अगर थोड़ी बहुत फसल हो भी जाती है तो सरकार उसका सही मूल नहीं देती।
बुंदेलखंड से आए किसान नेता विमल शर्मा से जब हमने बात की तब उन्होंने बताया कि निज़ामुद्दीन से 100 मीटर आगे रोक तो हमने वहीं धरना शुरू कर दिया। एक घंटे बाद जब बड़े अधिकारी आए तब जाने दिया, लेकिन जिस तरह 26 जनवरी को हमें रास्ते से भटकाकर लाल किला जाने पर मजबूर कर दिया था फिर से गलत रास्ते पर जाने को मजबूर किया।
मांगो को लेकर बताया कि एमएसपी गारंटी कानून लागू करे, बिजली संशोधन बिल 2022 को वापस लिया जाए। गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को बर्खास्त किया जाए। जेल में बंद किसानों को न्याय दिया जाए।
बुंदेलखंड के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ये सूखाग्रस्त इलाका है, कर्ज़ के कारण यही पर किसान सबसे ज्यादा आत्महत्याएं करता है। जिसके लिए सरकार को यहां पर किसानों के लिए बिजली पूरी तरह से मुफ्त की जाए, और कर्जमाफी कर उनके परिवार को बताया जाए।
किसान आंदोलन के सक्रिय नेता अभिमन्यु कौहार ने कहा कि सुबह 8 बजे हम चले थे, लेकिन पुलिस प्रशासन द्वारा परेशान किए जाने के कारण हम समय पर नहीं पहुंच पाए। अभिमन्यु ने कहा कि हमारा रास्ता पुलिस ने ये कहकर डायवर्ट कर दिया कि यहां से प्रधानमंत्री को गुज़रना है, इसलिए आप दूसरे रास्ते जाइए। लेकिन किसानों के अलावा सबकी गाड़ी जाने दी जा रही थी।
अभिमन्यु ने कहा कि सरकार हमारी आवाज़ दबाने में सफल नहीं हो पाएगी, हम उन्हें मुंह तोड़ जवाब देंगे। आगे के प्लान को लेकर बताया कि आने वाली 4 सितंबर को हरियाणा के पानीपत में हज़ारों किसान पंचायत करेंगे।
हरियाणा से आईं महिला किसान नेता अमृता कुंद्रू ने कहा जो लोग कृषि कानून के समर्थन में थे, उन्हीं को सरकार ने कमेटी में रखा है। कुल मिलाकर हमसे जो मांगे की गई थीं, वो पूरी नहीं की गई हैं।
आंदोलन में शामिल कुछ आम नागरिक भी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साध रहे थे, और कह रहे थे हम भ्रम में थे कि नरेंद्र मोदी अपने पद की गरिमा रखेंगे, लेकिन हो ठीक इसका उल्टा रहा है। प्रधानमंत्री ने उन लोगों का अपमान किया जिन्हें लोग धरती का भगवान कहते हैं। लोगों ने कहा कि जो नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले वादे गिनाए थे अगर उन्हें ही पूरा कर दें तो किसानों का बहुत हद तक भला हो जाएगा।
किसानों की क्या-क्या मांगे हैं...
- लखीमपुर खीरी नरसंहार के पीड़ित किसान परिवारों को इंसाफ, जेलों में बंद किसानों की रिहाई व नरसंहार के मुख्य दोषी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी की जाए।
- स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार MSP की गारंटी का कानून बनाया जाए।
- देश के सभी किसानों को कर्जमुक्त किया जाए।
- बिजली बिल 2022 रद्द किया जाए।
- गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए और गन्ने की बकाया राशि का भुगतान तुरन्त किया जाए।
- भारत WTO से बाहर आये और सभी मुक्त व्यापार समझौतों को रद्द किया जाए।
- किसान आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए सभी मुकदमे वापस लिए जाएं।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों के बकाया मुआवज़े का भुगतान तुरन्त किया जाए।
- अग्निपथ योजना वापस ली जाए।
प्रधानमंत्री मोदी और गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ किसानों में खूब गुस्सा दिखाई दे रहा है। किसानों का ये भी कहना है कि इस बार वो सरकार की भ्रमित बातों में नहीं फंसेंगे, अगर किसानों की सारी बातें नहीं मानी गईं तो आने वाले वक्त में आंदोलन तेज़ किया जाएगा और पहले से बड़ा आंदोलन होगा। आपको बता दें कि आने वाली तारीखों में किसान आंदोलन के एक साल पूरे होने पर भी किसानों ने कुछ बड़ी योजना बनाई है।
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