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किसानों ने बनारसियों से पूछा- तुमने कैसा सांसद चुना है?

गांधी जयंती 2 अक्टूबर को चंपारण से शुरू हुई किसान जन-जागरण पदयात्रा का आज 20 अक्टूबर को बनारस में समापन हुआ। अब 7 नवंबर से कन्याकुमारी से दिल्ली तक के लिए पदयात्रा शुरू होगी, जो 26 नवंबर को दिल्ली पहुंचेगी।
Kisan Jan-Jagran Padyatra

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में पुलिस की तगड़ी नाकेबंदी के बावजूद बड़ी संख्या में जुटे किसानों ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ सत्याग्रह पर निकले पदयात्रियों का हौसला बढ़ाया। चंपारण से अलख जगाते हुए बनारस पहुंची किसानों की पदयात्रा ने एक बड़ा संदेश दिया। देश भर से आए किसानों के हुजूम ने बनारसियों कहा, " प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट देने वालों को अब चिंतन करना चाहिए कि क्या उन्होंने अडानी-अंबानी की आमदनी बढ़ाने के लिए चुना था? बनारस के सांसद ऐसे हैं जो देश के किसान, किसानी और गांवों को खत्म कर देना चाहते हैं। ऐसे किसी कानून को देश के किसान कतई स्वीकार नहीं करेंगे जिसका रास्ता ऐसे कांटेक्ट फार्मिंग की ओर जाता हो, जो अन्नदाता को न्याय के लिए कोर्ट जाने से रोक देता हो।"

बिहार के चंपारण से निकली किसानों की सत्याग्रह पदयात्रा 350 किमी दूरी नापने के बाद 19 अक्टूबर को बनारस के संदहां गांव में पहुंची थी। यहां से किसानों के जत्थे ने बनारस के कचहरी स्थित शास्त्री घाट के लिए कूच किया।

इसे पढ़ें चंपारण से बनारस पहुंची सत्याग्रह यात्रा, पंचायत में बोले प्रशांत भूषण- किसानों की सुनामी में बह जाएगी भाजपा 

पुलिस प्रशासन ने बनारस और आसपास के जिलों के तमाम किसान नेताओं को कई दिन पहले ही हाउस अरेस्ट कर लिया है। इसके चलते आसपास के गांवों के गिने-चुने किसान ही सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने पहुंचे। फिर भी बिहार और मध्य प्रदेश से बड़ी संख्या में किसान पहुंचे और मोदी सरकार के खिलाफ आयोजित आंदोलन-प्रदर्शन में शामिल हुए।

बनारस का कचहरी इलाका संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन के पोस्टरोंबैनरों और होर्डिंग्स से पटा पड़ा था। सत्याग्रह पदयात्रा का नेतृत्व कर रहे किसान नेता हिमांशु तिवारी कहने लगे, "हमने मोदी के गढ़ में पहुंचकर ऐसी कील ठोंकी है, जिसका असर काफी दूरगामी होगा। पूर्वांचल के किसान भले ही मुखर नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि वो कृषि कानून लागू करना चाहते हैं। अपने ऊपर हो रहे जुल्म-ज्यादती का बदला वह जरूर लेंगे। 104 साल पहले चंपारण में किसानों पर अंग्रेजों ने कांटेक्ट फार्मिंग थोपी थी और अब मोदी सरकार ने अडानी-अंबानी के लिए किसानों का गला घोंटने वाला कानून पास किया है, जिसे किसी भी हालत में लागू नहीं होने दिया जाएगा।"

"हमें सरकार बनाना आता है तो उतारना भी"

बनारस शात्री घाट पर किसानों को जमीन पर बैठने के लिए इंतजाम किया गया था। ग्राउंड के बड़े हिस्से में लोगों के बैठने के लिए विशाल शामियाना लगाया गया था। संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े नेताओं लिए बनाया गया था विशाल मंच। उड़ीसा, बिहार और मध्य प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से क़रीब एक दर्जन महिलाओं का समूह पंडल के नीचे दिखा। इस समूह में उड़ीसा की जयंती नायक, लड़ित पात्र और गोन्नई स्वाईं काफी बुजुर्ग थीं। इन सभी के पैरों छाले पड़े थे। इन महिलाओं ने चंपारण से बनारस की दूरी नापने के बाद शास्त्री घाट पर पहुंची तो वो काफ़ी ग़ुस्से में थीं। बनारस आने का मक़सद उन्होंने कुछ यूं बताया, "दस महीने से अन्नदाता बॉर्डर पर बैठे हैं। जाड़ागर्मीबरसात ही नहीं, कोरोना भी झेल लिया। बनारस के सांसद पीएम नरेंद्र मोदी यह नहीं सूझ रही है कि वह हमारी बात मान लें। हमें सरकार बनाना आता है तो उतारना भी आता है।"

सत्याग्रह पदयात्रा के समापन के अवसर पर मोदी सरकार के खिलाफ हुंकार भरने पहुंचे सभी किसानों की मांग यही थी कि सरकार तीन कृषि क़ानूनों को जिन्हें वो अब काले क़ानून कहते हैंवापस ले। मंच पर भाषण दे रहे संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े नेताओं की भी मुख्य मांग यही थी। इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी देने वाले क़ानून और बिजली की दरों में कमी की मांग भी शामिल थी। इस बीच किसानों की पंचायत के चलते शास्त्री घाट पुलिस छावनी बना रहा।

जनजागरण पदयात्रा में शामिल सभी किसानों को मौजूदा केंद्र सरकार से तमाम शिकायतें तो थीं हीलेकिन निशाने पर मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा अंबानी और अडानी थे। उड़ीसा, मध्यप्रदेश और बिहार के किसान नेता भी सत्याग्रही किसानों का हौसला बढ़ाने पहुंचे थे।

पंचायत स्थल के नज़दीक कई महिलाएं जमीन पर बैठकर अपने नेताओं के भाषण सुन रहे थे। तो क्या इस तरह के सत्याग्रह से मोदी-य़ोगी सरकार उनकी बात मान लेगी? इस सवाल पर वहां बैठे एक बुज़ुर्ग भड़क गए, "तो तुम्हीं बता दो कैसे मानेगीवही करें हम जिससे कि सरकार हमारी बात मान जाए। हम कोशिश कर रहे हैं। बड़ी संख्या में किसान बॉर्डर पर बैठे हैं। आंदोलन, प्रदर्शन, रैलियां कर रहे हैं। और क्या करें?"

पूर्वांचल के किसान भी उद्वेलित

वहां मौजूद कुछ लोगों से जब इस बात पर प्रतिक्रिया जाननी चाही कि चुनावी सर्वेक्षणों के मुताबिकयूपी में बीजेपी की सरकार एक बार फिर बनने वाली हैतो वहां मौजूद लोगों ने एक स्वर से ऐसे सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता को ही नकार दिया। हालांकि इस सवाल का जवाब वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति ने नहीं दिया कि 'भाजपा को पराजित करने के लिए आख़िर वह किस पार्टी के पक्ष में मतदान करेंगे?'

दोपहर में जनवादी गीतों के साथ पंचायत शुरू हो गई थी। मंच से किसान नेताओं के भाषण होने लगे थे। लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के साथ पत्रकार का अस्थिकलश लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के सचिव सुरेश यादव यहां पहुंचे। यहीं से शहीदों की अस्थियां गांव-गांव में घुमाने के लिए बनारस, गाजीपुर, चंदौली, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, बलिया, मऊ आदि जिलों के किसानों को दी गईं। किसान नेता सुरेश यादव सीधे मंच पर पहुंचे और पंचायत ख़त्म होने से पहले ही वह दिल्ली लौट गए। न्यूजक्लिक से बातचीत में बोले, "पूर्वांचल में भी किसान उद्वेलित हैं। सरकार काले क़ानून वापस नहीं लेगी तो पहले योगी सरकार विदा होगी, फिर मोदी जी जाएंगे।" इस बात को उन्होंने अपने भाषण में भी कहा और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और यूपी सरकार पर जमकर बरसे।

 ख़ास रणनीति बनाने की तैयारी

पंचायत में शामिल किसान नेताओं ने संकेत दिया कि यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए किसान मोर्चा एक ख़ास रणनीति बनाने की तैयारी में है। इसके लिए मोर्चा ने 26 अक्टूबर को लखनऊ में और एक अक्टूबर को सीतापुर में किसान रैली आयोजित की है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि हमें आखिर तक प्रशासन ने पंचायत करने की अनुमति नहीं दी। यह सरकार संविधान और देश विरोधी काम कर रही है।

जलपुरुष के नाम से मशहूर मैग्सेसे अवार्डी संदीप पांडेय ने कहा"यह ठीक है कि हमने जन-प्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजे हैं, लेकिन वह किसी लायक़ नहीं हैं। उन्हें तो किसान विधेयक पढ़ने तक की फुर्सत नहीं है। वह तो बस विधेयक पास कराने के लिए हाथ खड़े कर देते हैं। उनमें विधेयक का विरोध करने की हिम्मत कहां थीउन्होंने यह भी नहीं सोचा कि इन्हीं किसानों ने यहां भेजा हैआगे क्या हाल करेंगे?"

मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक डा. सुनीलम कहने लगे, "खेती-किसानी से जुड़े किसी एक भी आदमी से यदि सरकार ने यह क़ानून बनाने में सलाह ली होती तो ऐसे क़ानून की सलाह वह कभी नहीं देता। पीएम मोदी ने अंबानी और अडानी के लिए चोर दरवाजा बनाकर नया कृषि कानून बनाया है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा में तो न्यूनतम सर्मथन मूल्य दूर की कौड़ी है। एमएसपी कागजों पर है। यह आजादी बचाने की लड़ाई है। मोदी सरकार से देश के किसान जवाब मांग रहे हैं कि वह कब तक कारपोरेट की कठपुतली बनी रहेगी? हमारे सत्याग्रह को लाखों किसानों ने समर्थन दिया है। मोदी सरकार तालिबानियों के साथ बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन अपने देश के किसानों की बात सुनने के लिए उसके पास फुर्सत नहीं है।"

पंचायत में कई किसान टोपी लगाकर हल के साथ पहुंचे थे। सबका यही कहना था कि अंग्रेज चले गए तो अंबानी-अडानी की गुलामी करने वाली सरकार भी जाएगी। बिहार से आए किसान नेता धीरेंद्र सिंह ने कहा, " केंद्र सरकार कृषि कानून लागू नहीं करा सकी तो ऐसा सर्कुलर जारी करा दिया कि कोई किसान अपनी उपज मंडी में न बेच सके। अडानी के गोदाम सभी राज्यों में बन गए हैं, लेकिन उसमें अनाज जमा नहीं होने देंगे। आने वाले दिनों में किसान आंदोलन के मुद्दे पर बिहार सबसे आगे रहेगा।"  

कर्नाटक के किसान नेता बीआर पाटिल ने सरकार को चेताया और कहा, "मैं दक्षिण भारत के किसानों का संदेश लेकर आया हूं। यह मामूली पदयात्रा नहीं है। जिन्होंने मोदी को वोट देकर चुनाव जिताया है उन्हें यह बताने आया हूं कि पीएम देश के किसानों को तबाह करने पर आमादा है। सात नवंबर से कन्या कुमारी से दिल्ली तक के लिए पदयात्रा शुरू होगी, जो 26 नवंबर को दिल्ली पहुंचेगी। हम हर तरीके से सरकार से लड़ने के लिए तैयार हैं। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय सिंह टेनी की बर्खास्तगी भी हमारा प्रमुख मुद्दा है। देश के 650 किसानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने जो सपना दिखाया है वह झूठा है। बढ़ती महंगाई के चलते खेती-किसानी कर पाना कठिन हो गया है। किसानों की आमदनी 40 फीसदी तक घट गई है।"

“देश को क्यों गुलाम बनाने पर उतारू हैं मोदी!”

पंचायत के आखिर में किसानों ने हाथ उठाकर सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ प्रस्ताव पास किया। साथ ही बनारस के सांसद नरेंद्र मोदी से पूछा, " वह देश को क्यों गुलाम बनाने पर उतारू हैं? प्रधानमंत्री ने चुप्पी नहीं तोड़ी तो देश भर के अन्नदाता बनारस आकर उनसे हर सवाल का जवाब मांगेंगे। प्रधानमंत्री को बताना होगा कि उन्हें जनता ने किसके लिए चुना हैदेश के किसानों से ज्यादा उन्हें अडानी-अंबानी प्रति मोह क्यों है? "

बनारस में आयोजित किसानों की पंचायत में विजय नारायण, संजय, ईश्वरचंद त्रिपाठी, डा.राकेश रफीक, रवि कोहाड़, राघवेंद्र, रामाश्रय, अरुण, फादर आनंद, दलजीत कौर आदि ने मोदी-योगी सरकार पर तीखे प्रहार किए और कहा, " किसानों की हुंकार पीएम नरेंद्र मोदी का अहंकार तोड़ देगी। बनारस इसका गवाह बनेगा। मेन स्टीम  की मीडिया को हमारा आंदोलन नहीं दिख रहा, लेकिन भाजपा के अंदर भी एक तबका है जो सरकार की ठहवादिता को लेकर बेचैनी महसूस हो रहा है। अगले साल यूपी के चुनाव में दो तिहाई सीटों पर इस आंदोलन का असर जरूर पड़ेगा। हमारा मुद्दा ही सभी दलों का प्रमुख चुनावी मुद्दा रहेगा।"

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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