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कोंकण के मछुआरे: पिछली साल चक्रवात तो अबकि कोरोना और चीन से तनाव के चलते बुरा हाल 

कोंकण के मछुआरे बताते हैं कि उन्होंने लॉकडाउन के कारण पिछली 25 मार्च से मई महीने के दूसरे पखवाड़े तक पूरी तरह से मछलियां पकड़ना बंद कर दी थीं। मई के अंतिम सप्ताह से उन्होंने फिर से मछलियां पकड़नी शुरू कर दी थीं। मगर इस दौरान उनसे बड़े व्यापारियों ने बहुत कम कीमतों पर मछलियां खरीदी।
कोंकण के मछुआरे

पुणे। कोरोना और लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र में कोंकण की समुद्री पट्टी के मछुआरों को पिछले कुछ महीनों से मछलियों के निर्यात को लेकर भारी नुकसान झेलना पड़ा है। किंतु, मौजूदा परिस्थितियों में उन्हें आर्थिक तंगी से बाहर निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। यहां के मछुआरों की आशंका यह है कि उन्हें आने वाले दिनों में भी इस व्यापार में मछलियों के मांस का उचित दाम हासिल नहीं होगा। बता दें कि मछुआरों के लिए हर साल अगस्त का महीना नया सीजन माना जाता है। ऐसे में यहां के मछुआरों ने राज्य सरकार से यह मांग की है कि वह नए सीजन में उन्हें उचित कीमत पर मछलियां खरीदने की गारंटी दे।

जैसा कि स्पष्ट है कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे को देखते हुए केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने विगत 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। तब से हर व्यवसाय के साथ-साथ मछली पकड़ने का व्यवसाय भी प्रभावित हुआ। लिहाजा, इस व्यवसाय से जुड़े मछुआरों को भी भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। कोंकण के मछुआरे बताते हैं कि उन्होंने लॉकडाउन के कारण पिछली 25 मार्च से मई महीने के दूसरे पखवाड़े तक पूरी तरह से मछलियां पकड़ना बंद कर दी थीं। मछुआरे बताते हैं कि मई के अंतिम सप्ताह से उन्होंने फिर से मछलियां पकड़नी शुरू कर दी थीं। मगर, इस दौरान उनसे बड़े व्यापारियों ने बहुत कम कीमतों पर मछलियां खरीदी थीं।

इस बारे में सिंधुदुर्ग जिले के मछआरे रमेश धुरी कहते हैं, 'कम दाम पर मछलियों को बेचने के पीछे हमारी मजबूरी यह थी कि लॉकडाउन और बाजार में मंदी के चलते कोंकण से मछलियों के मांस का निर्यात करने वाली कंपनियों ने अचानक व्यवसायिक गतिविधियां बंद कर दीं। इसलिए, मछुआरों को मछलियों को सस्ते दाम पर बेचना पड़ा। लिहाजा, हमें अपने धंधे में भारी घाटा उठाना पड़ा है।'

अब नए मछली पकड़ने का नया मौसम अगस्त से शुरू हो रहा है। दूसरी तरफ, मछली निर्यात को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पहले लॉकडाउन और अब चीन के साथ संबंधों में कटुता आने से मछली के व्यवसाय और निर्यात को लेकर अभी भी स्पष्टता नहीं है। बता दें कि यहां की मछलियां चीन में बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती रही हैं। ऐसी स्थिति में मछुआरों का कहना है कि कई बड़े व्यापारी और कंपनियां मछली खरीदने में फिलहाल रुचि नहीं दिखा रहे हैं।

इस बारे में रायगढ़ जिले के मछुआरे बबन सावजी बताते हैं, 'इस बार हालात बहुत अलग हैं। कई कारणों से हम मछुआरे भी समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जाना नहीं चाहते। हमारा कहना यह है कि यदि हमारे.जाल में मछलियां फंस भी गईं तो उसके अच्छे खरीदार कहां मिलेंगे।' इसी तरह, मछुआरों को यह डर भी सता रहा है कि कुछ व्यापारी बहुत कम कीमत पर मछलियां खरीदने के लिए कहेंगे। इसलिए, कोंकण के मछुआरे अपनी माली हालत से उभरने और आजीविका के लिए सरकारी सहायता की उम्मीद कर रहे हैं। यहां के मछुआरों की सरकार से मांग है कि वह उन्हें मछलियों को खरीदने की गारंटी दे और उचित कीमत पर सरकार से मछलियां खरीदे।

दरअसल, महाराष्ट्र की इस समुद्री पट्टी पर एक बड़ी आबादी मछली पकड़ने की आर्थिक गतिविधियों में शामिल है। यहां हर साल मुख्यत: अगस्त से दिसंबर के बीच बड़े पैमाने पर मछलियां पकड़ी जाती हैं। इसी दौरान मछली बाजार में करोड़ों रुपए का कारोबार होता है। लेकिन, इस साल कोरोना में संकट और निर्यात पर प्रतिबंध के कारण मछुआरे रोजीरोटी के इस जरिए से अपना मुंह फेरने पर मजबूर हैं।

इस स्थिति में मछुआरों ने मांग की है कि राज्य सरकार को समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमएमडीए) के साथ मध्यस्थता करनी चाहिए और राज्य में बड़े मछली निर्यातकों को बुलाकर मछली की कीमत तय करनी चाहिए। वहीं, ऐसी यदि यह नौबत नहीं आती है तो मछुआरों की दूसरी मांग यह है कि सरकार को खुद मछली खरीदनी चाहिए और मछुआरों को उचित कीमत की गारंटी देनी चाहिए।

दूसरी तरफ, भाईंदर क्षेत्र के समुद्री तट पर भी बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने का काम किया जाता है।  लेकिन, यहां पर पकड़ी गई मछलियों के लिए कोल्ड स्टोरेज की कोई सुविधा नहीं है। इसलिए, मछुआरों को कम कीमत पर व्यापारियों को मछली बेचनी पड़ती है। इससे मछुआरों को लगातार वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है। अभी तक केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कई निरीक्षणों के बावजूद कोल्ड स्टोरेज का निर्माण शुरू नहीं हुआ है।

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इस बारे में भाईंदर की महापौर शर्मिला बागाजी कहती हैं, 'मछलियों के लिए कोल्ड स्टोरेज न होने से मछली पकड़ने वाले समुदाय को नाराज कर दिया है। हालांकि, मछुआरों की तरफ से लंबे समय से यह मांग की जाती रही है।'

वहीं, इस मामले में स्थानीय विधायक गीता जैन कहती हैं, 'यह जायज मांग हैं और मछुआरों लगातार यह मांग करते रहे हैं। मैं इस मामले को विधान सभा में उठाऊंगी।'

दस में सात मछुआरे बेरोजगार

पिछले साल मछली पकड़ने के मौसम के दौरान तूफानों की श्रृंखला और उसके बाद अब कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन ने इस व्यवसाय में ठहराव में ला दिया है।

इस वर्ष दूसरे राज्यों से आने वाले नाविकों की कमी, व्यापार के लिए वित्तीय बाधा, नावों को चलाने के लिए लगने वाले डीजल के दामों में बढ़ोतरी और अन्य लागत मंहगा होने से जुड़ी समस्याओं के कारण मछुआरे व्यवसाय शुरू करने का मन नहीं बना पा रहे हैं।  हालांकि, स्थानीय नाविकों की मदद से केवल 30 प्रतिशत मछुआरे ही समुद्र में जा पा रहे हैं।

इस बारे में रत्नागिरी के मछुआरे आप्पा वांदरकर कहते हैं, 'हर साल अगस्त के महीने से मछली मछुआरों को आमदनी का मौका मिलता था. लेकिन, इस बार कोरोना ने मछुआरों के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया है। इस दौरान मछली पकड़ने का काम ट्रॉलर, गिलनेट, डॉल्नेट और अन्य छोटी और बड़ी नावों द्वारा शुरू हो जाता था।'

आप्पा वांदरकर के मुताबिक नाविकों को कर्नाटक, नेपाल और केरल से लाया जाता था। लेकिन, इस बार महामारी के कारण ऐसा करना मुश्किल हो रहा है। बदली हुई परिस्थितियों में केवल 30 प्रतिशत नौकाएं समुद्र में जाने के लिए तैयार हैं।  यदि मौसम स्थिर रहा है तो उनके पास समुद्र में जाने का मौका होगा।

हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा नाबार्ड की शर्तों के अनुसार मछुआरों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई मछुआरों ने कर्ज लिया था। उन्हें एक लाख 60 हजार रुपए की पूंजी उपलब्ध कराने का आदेश भी दिया गया था। पर, व्यावहारिक रूप से इसमें कई तरह की बाधाएं हैं। नतीजा यह कि अभी लाभार्थियों को व्यवसाय के लिए कर्ज की राशि उपलब्ध नहीं हो पा रही है।

वहीं, डीजल के दामों में वृद्धि से मछुआरों के लिए निवेश की लागत बढ़ गई है। मछली पकड़ने के लिए एक ट्रिप की बात करें तो दस से पंद्रह दिनों के दौरान एक ट्रॉलर नाव पर दो से ढाई हजार लीटर डीजल की आवश्यकता होती है। कोरोना लॉकडाउन के बाद चार महीनों में डीजल की कीमत 18 से 20 रुपए तक बढ़ गई हैं। इस वजह से मछुआरों को हर ट्रिप के लिए अतिरिक्त 35 हजार रुपए से 50 हजार रुपए का भुगतान करना होगा।

वहीं, राज्य में मत्स्य विभाग के सहायक आयुक्त एन वी भादुले कहते हैं, 'अन्य राज्यों से नाविक अभी तक नहीं आए हैं। इसलिए, इस काम के लिए स्थानीय लोगों पर भरोसा किया जाएगा। बारिश का मौसम होने के कारण समुद्र में नावों भेजना खतरनाक साबित हो सकता है। इन सब वजहों से  मछुआरे फिलहाल समुद्र में जाने के मूड में नहीं हैं।'

बता दें कि राज्य में सरकार के मत्स्य विभाग ने लगभग 25 हजार नावों को मछली पकड़ने का परमिट दिया हुआ है। महाराष्ट्र राज्य मछुआरा सहकारी संघ के अध्यक्ष रामदास संधे बताते हैं, 'सरकार ने मछुआरों से कहा है कि वे अपनी मछलियां गोदामों में रख लें. पर, समस्या यह है कि मछली निर्यात से जुड़े बड़े कारोबारियों के पास ही गोदाम उपलब्ध हैं। इसलिए, बड़े व्यापारी इस स्थिति का फायदा उठाकर सस्ती दर पर मछलियां खरीदना चाहते हैं। इसके अलावा, कोरोना के कारण इन दिनों सख्ती होने से शहर के रास्तों पर भी कई बार मछलियां बेचने से रोका जा रहा है.'

यहां इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि पिछले साल भी लगातार आने वाले तूफानों के कारण दस महीने तक चलने वाली मछली पकड़ने की अवधि केवल पांच महीने तक रह गई थी। अब इस साल यदि फिर से करोना का प्रकोप लंबे समय तक रहा तो घरेलू और विदेशों में निर्यात की जाने वाली मछली की कीमत और अधिक प्रभावित होगी।

दूसरी तरफ, कोरोना का कारक मछुआरों पर और अधिक प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। इसकी एक वजह यह भी है कि गुजरात में मछुआरों ने केंद्र सरकार से 1 सितंबर से मछली पकड़ने की शुरुआत करने की मांग की है। ठाणे जिले में मछुआरों ने 15 अगस्त से मछली पकड़ने जाने का फैसला किया है। जबकि, मुंबई में मछुआरे अभी भी 1 अगस्त से मछली पकड़ने के निर्णय के बारे में उलझन में हैं।

राज्य में घटा मछली उत्पादन

हालांकि इस वर्ष देश में समुद्री मछली उत्पादन में 2.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन, राज्य में मछली उत्पादन में 32 प्रतिशत की गिरावट आई है। सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अरब सागर में चक्रवातों ने मछली पकड़ने के कुल दिनों की संख्या को कम कर दिया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल देश में 35 लाख 60 हजार टन मछली का उत्पादन किया गया है।  जबकि, महाराष्ट्र में 2.01 लाख मत्स्य उत्पादन है।  यह देश की कुल मत्स्य पालन का 5.6 प्रतिशत है, मत्स्य पालन में राज्य सातवें स्थान पर है।

बता दें कि पिछले साल अरब सागर में सात बार भारी तूफान आया था। यह वर्ष 1891 से 2018 तक की उच्चतम दर है, जो पहले 1998 में आए छह चक्रवात से अधिक है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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