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वाकई, कुंभ और मरकज़ की तुलना नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक भूल थी जबकि दूसरी जानबूझकर की गई ग़लती!

बीजेपी के नेता कहते हैं कि कुंभ और मरकज़ की तुलना न की जाए, जोकि सही भी है क्योंकि मरकज़ में लोग बिना जानकारी के अचानक हुए लॉकडाउन में फंस गए थे और उस समय देश में महामारी को लेकर कोई गाइडलाइन भी नहीं थी, लेकिन अगर अभी हम देखें तो पिछले एक साल से देश में कोरोना महामारी को लेकर एक सख़्त गाइडलाइन है, इसके बाद भी इस तरह के आयोजन हो रहा है!
वाकई, कुंभ और मरकज़ की तुलना नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक भूल थी जबकि दूसरी जानबूझकर की गई ग़लती!

देशभर में एकबार फिर महामारी अपने चरम तरफ बढ़ रही है। लेकिन हमारी सरकार पूरी से भक्ति में लीन दिख रही है। जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी में अनायास भीड़ से बच रही है, ऐसे में हमारी सरकार कुंभ जैसा धार्मिक आयोजन करा रही है। जहाँ लाखो-लाख की संख्या में लोग बिना किसी सुरक्षा के एक साथ स्नान करते हैं। लेकिन उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत कहते है कि गंगा मां की कृपा से यहां कोरोना नहीं फैलेगा। और इसी तरह का बयान देश की सत्ता पर काबिज़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अन्य प्रवक्ता भी देते हैं। लेकिन जब उनसे सवाल किया जाता है कि जब कुछ सौ या हज़ार के करीब मुसलमान आस्था के तहत एक अन्य धार्मिक आयोजन मरकज़ में शामिल होने आए थे और वो फंस गए थे तब उनपर किस तरह के आरोप लगे थे जैसे पूरे देश में कोरोना उनकी वजह से ही फैल रहा है। उन्हें तो आपने कोरोना बम तक कह दिया था! इस पर सत्ताधारी बीजेपी के नेता कहते है दोनों की तुलना नहीं होनी चाहिए। जोकि सही भी है क्योंकि मरकज़ में लोग बिना जानकारी के अचानक हुए लॉकडाउन में फंस गए थे और उस समय देश में महामारी को लेकर कोई गाइडलाइन भी नहीं थी लेकिन अगर अभी हम देखें तो पिछले एक साल से देश में कोरोना महामारी को लेकर एक सख़्त गाइडलाइन है इसके बाद भी इस तरह के आयोजन हो रहा है। क्या यह एक जानबूझकर की गई गलती नहीं हैइसे कोरोना कुंभ क्यों न कहा जाएऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब सत्ताधारी बहुत बेतुके अंदाज़ में और पूरे विश्वास के साथ देते है।

आइए एकबार देखते है कि सत्तधारी अपने बचाव में क्या कह रहे हैं, फिर समझने की कोशिश करेंगे की उनके जवाब कितने तार्किक हैं-

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने मंगलवार को एक अंग्रेजी अखबार के साप्ताहिक टॉक शोमें कहा कि कुंभ और मरकज़ के बीच कोई तुलना नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कुंभ को मरकज़ से जोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि मरकज़ एक कोठी की तरह की बंद जगह में हुआ था जबकि कुंभ का क्षेत्र बहुत बड़ाखुला हुआ और विशाल है।

मुख्यमंत्री से सवाल किया गया था कि दो धार्मिक आयोजनों (निजामुददीन मरकज़ और कुंभ) को एक जैसा क्यों नहीं माना जा सकता क्योंकि कुंभ में भी भीड़ आ रही है जो कोरोना की दूसरी लहर को और तेज कर सकती है।

हरिद्वार कुंभ और निजामुद्दीन मरकज़ के बीच अन्य अंतर बताते हुए रावत ने यह भी कहा कि कुंभ में आ रहे श्रद्धालु बाहर के नहीं बल्कि अपने ही हैं। इसके अलावाउन्होंने कहा कि जब मरकज़ हुआ था तब कोरोना के बारे में कोई जागरूकता नहीं थी और न ही कोई दिशा-निर्देश थे। उन्होंने कहा कि यह भी किसी को नहीं पता कि मरकज़ में शामिल हुए लोग कितने समय उस बंद जगह में रहे जबकि अब कोविड-19 के बारे में ज्यादा जागरूकता है और उससे बचने के लिए दिशानिर्देश भी हैं।

उन्होंने कहा कि कुंभ बारह साल में एक बार आता है और यह लाखों लोगों की आस्था तथा भावनाओं से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच दिशा-निर्देशों के सख्त अनुपालन के साथ इसे सफलतापूर्वक आयोजित कराना हमारा लक्ष्य है।

रावत ने कहा कि लोगों का स्वास्थ्य प्राथमिकता है लेकिन आस्था के मामलों को भी पूर्ण रूप से अनदेखा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि हाल में निस्संदेह कोविड-19 के मामलों में वृद्धि हुई है लेकिन हम स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं और स्वस्थ होने की दर भी अच्छी है। उन्होंने कहा कि किसी भी स्थिति का पालन करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि बड़े पैमाने पर मास्क और सेनेटाइजर की व्यवस्था की गई है और कोविड-19 दिशानिर्देशों के सख्त अनुपालन के लिए पूरी मशीनरी दिन रात लगी हुई है।

उन्होंने कहा कि हरिद्वार में प्रवेश और मेले में आने से पहले सीमाओं पर लोगों की जांच की जा रही है और इस दौरान रैंडम जांच की जा रही है ।

बुधवार को हरिद्वार महाकुंभ में बैसाखी पर्व का तीसरा शाही स्नान हो रहा है। इस बीचउत्तराखंड में मंगलवार को कोविड-19 के मामलों में और उछाल आया और पूरे प्रदेश में 1925 नए मामले सामने आए।

आइए अब समझते हैं कि मुख्यमंत्री के बयान कितने तार्किक हैं-

सबसे पहले उन्होंने कहा मरकज़ एक बंद जगह में हुआ और वहां लोग विदेश से आए थे जबकि कुंभ बड़ी जगह में हो रहा है और हमारे (भारत) लोग ही इसमें शामिल हो रहे हैं। अब देखिए मरकज़ एक बिल्डिंग में जरूर था लेकिन उसमें सीमित लोग रुके थे जबकि कुंभ में एक अनुमान के मुताबिक पहले शाही स्नान में 21 लाख लोग शामिल हुए थे। जबकि सोमवार, 12 अप्रैल को दूसरे शाही स्नान में करीब 30 लाख लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। अब इतने लोगों के एक साथ होने से कोरोना किस कदर गंभीर हो सकता है, यह अब सहज ही अनुभव किया जा सकता है।

इसके अलावा कोरोना अपने पराये में भेद नहीं रखता है। वैसे आज दुनिया में सबसे अधिक कोरोना वाले देशों में हम भी शीर्ष के देशों में शामिल है। इसलिए उनका यह तर्क की कुंभ में सब भारतीय है इसलिए फैलने संभावना कम है, ये एक भ्रम से अधिक कुछ नहीं है।

रावत अपना दूसरा तर्क देते है कि मरकज़ में शामिल लोग कब से आये थे, इसकी कोई जानकारी नहीं थी और उस समय कोई दिशानिर्देश भी नहीं था। ये बात बिलकुल सही है कि उस समय देश में कोरोना को लेकर कोई दिशानिर्देश भी नहीं था। लेकिन इससे तो यह बात सत्यापित होती है कि मरकज़ में शामिल जमात ने जानबूझकर वो जमघट नहीं किया था जबकि कुंभ तो सारे दिशनिर्देश के बाद किया जा रहा है। इसलिए कुंभ से कोरोना विस्फोट होता है तो इसे जानबूझकर की गई ग़लती ही कहा जाएगा।

तीसरा रावत कहते हैं कुंभ 12 साल में आता है। वैसे कुंभ जिसे अब महाकुंभ कहा जाता है 12 नहीं हर 3 साल में होता है। ये कुंभ देश के चार स्थानों प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), उज्जैन (मध्य प्रदेश), हरिद्वार (उत्तरखंड) और नासिक (महाराष्ट्र) में बारी-बारी से होता है। एक स्थान पर यह 12 साल बाद होता है लेकिन देश के स्तर पर हर तीन साल में एक बार महाकुंभ का आयोजन होता है।

इसके अलावा हरिद्वार और प्रयागराज में 6 साल के अंतराल में अर्द्धकुंभ जिसे अब कुंभ कहा जाने लगा है, होता है। इसके अलावा भी हर बरस जनवरी-फरवरी महीने में संगम तट पर माघ मेला लगता है। यह भी बहुत बड़ा मेला है। इसके अलावा भी साल भर देशभर में अलग-अलग तिथियों पर गंगा मेले चलते रहते हैं।

खैर इसे छोड़ अगर रावत जी की बात ही मानें कि यह अवसर 12 साल बाद आता है, फिर भी सवाल उठता है कि क्या इसलिए लाखों लोगों की जिंदगियों को जोखिम में डाल जा सकता हैइसपर कोई प्राइमरी स्कूल का छात्र भी कह देगा- बिल्कुल नहीं। फिर ऐसा क्यों किया जा रहा हैइसपर सरकार कोई उचित जबाव नहीं दे पाती है।

रावत जी कहते हैं कि कुंभ में कोरोना गाइडलाइन का पालन सख्ती से हो रहा है। इनके दावे कितने सही है, इसकी बानगी आप सब टीवी और सोशल मीडिया पर आ रही तस्वीरों से देख सकते हैं। हालांकि कुंभ के आयोजन में लगे अधिकारी का ही बयान है कि अधिक भीड़ होने से कोरोना के नियमो का पालन नहीं हो पा रहा है।

रावत जी ने अंत में एक बात कही कि उनके लिए लोगों का स्वास्थ्य प्राथमिकता है लेकिन लोगों की आस्था को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अब किसी राज्य के मुखिया का इस भयावह महामारी में इस तरह का बयान हो तो सही में उस राज्य का भगवान ही मालिक है। क्योंकि हमने बचपन से सुना है- जान है तो जहान है। लेकिन इस बार इसका विपरीत होता दिख रहा है। 

अंत में हम अगर मुख्यमंत्री जी के बात को भी सुने समझें तो एक बात स्पष्ट नज़र आती है कि मरकज़ को जानबूझकर महामारी के दौरान नहीं किया गया था, वो पहले से चल रहा था और उस बीच महामारी हुई और लोग फंस गए थे और उस समय देश में कोरोना महामारी को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं थे। लेकिन अब हम साल भर से इस कोरोना की भयावता देख रहे हैं। इस दौरान हम इस महामारी से लाखों जिंदगियां खो बैठे है। आज भी हमारे देश में सबसे अधिक केस आ रहे हैं। अर्थव्यवथा चौपट हो गई है। पिछले एक साल से पूरा देश एक सख़्त कोरोना गाइडलाइन को मान रहा है ऐसे में यह कुंभ का आयोजन साफ़ दिखता है हमारी सरकार लोगों के स्वाथ्य को लेकर कितनी संवेदनशील है! क्योंकि एक तरफ तो वो कोरोना के नाम पर देश में कामकाज बंद कराती है, स्कूल बंद कराती है, परीक्षाएं रद्द करती है, विरोध यानी धरने प्रदर्शन तक को बंद करना चाहती है लेकिन दूसरी तरफ इस तरह के धार्मिक आयोजन कराती है। और इस बीच चुनाव और चुनाव में बड़ी रैलियां और रोड शो भी बदस्तूर चलते हैं। इसलिए देश में लोगों को अब सरकार की मंशा पर शक होता है और आज जो देश में हालात हैं उसके लिए सरकारों के इसी तरह के गलत और अतार्किक निर्णय जिम्मेदार हैं।

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